उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव सिर पर है। ऐसे में राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशियों की सूची फाइनल करनी शुरू कर दी है। कांग्रेस- भाजपा के चुनाव प्रभारी प्रदेश के नेताओं से सलाह-मशविरा कर जल्द ही अपनी-अपनी पार्टी के आलाकमान नेतृत्व को अंतिम लिस्ट सौंपने जा रहे हैं। इन दोनों ही दलों में टिकट पाने वालों की लंबी कतार है जिसके चलते चुनाव प्रभारियों का काम खासा कठिन हो चला है। सबसे ज्यादा संकट कई सीटों पर स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे के चलते पैदा हो रहा है। कई सीटों पर जहां स्थानीय कार्यकर्ता ऐसे प्रत्याशियों का खुलकर विरोध करने लगे हैं जिन्हें वे बाहरी कैंडिडेट मानते हैं। ऐसे में आपसी रार के बड़ी वॉर में बदलने की आशंका ने इन दोनों दलों के बड़े नेताओं को भारी सांसत में डाल दिया है
अगले साल 2022 में उत्तराखण्ड सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं राजनीतिक पार्टियां पूरी ताकत से इसकी तैयारियों में जुट गई हैं। इस बार राष्ट्रीय पार्टी भाजपा-कांग्रेस के साथ ही क्षेत्रीय दल यूकेडी और आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में है। सभी पार्टियों के नेता मतदाताओं के बीच जाकर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। इसी दौरान चुनावी जंग शुरू होने से पहले एक दंगल बाहरी बनाम स्थानीय का शुरू हो गया है जिसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के नेताओं को बाहरी के मुद्दे पर उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं का विरोध सहन करना पड़ रहा है। ऐसे में उत्तराखण्ड की कई विधानसभा सीटों पर राष्ट्रीय पार्टियों के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है। बाहरी बनाम स्थानीय की यह जंग पहाड़ों में ना के बराबर है जबकि मैदान की कई विधानसभा में यह ज्यादा देखने में आ रही है। ऐसा नहीं है कि यह मुद्दा पहली बार सामने आ रहा है बल्कि इससे पहले भी हुए विधानसभा चुनाव में बाहरी बनाम स्थानीय की जंग होती रही है। इसके चलते ही ज्यादातर पार्टियों के प्रत्याशी चुनाव में भितरघात का शिकार होते रहे हैं।
मैदानी इलाके से अगर बात करें तो किच्छा विधानसभा क्षेत्र में पूर्व विधायक तिलकराज बेहड़ के लिए यह मुद्दा परेशानी का कारण बन रहा है। किच्छा में कांग्रेस के 8 नेता टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। जिनमें से सात नेता बाहरी के मुद्दे पर पार्टी के सामने असंतोष जाहिर कर चुके हैं। इन सभी नेताओं का ग्रुप बन गया है। जिनमें डॉ गणेश उपाध्याय, प्रदेश प्रवक्ता पुष्कर राज जैन, प्रदेश महामंत्री हरीश पनेरु, प्रदेश महामंत्री संजीव कुमार सिंह, प्रदेश सचिव नारायण सिंह बिष्ट, पूर्व जिलाध्यक्ष राजेश प्रताप सिंह, सुरेश पपनेजा आदि शामिल हैं। सातों ने मिलकर एक साथ होर्डिंग भी बनवाए हैं जो किच्छा में चर्चा का विषय बन रहे हैं।
गत् दिनों नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय क्षेत्र के पर्यवेक्षक राजेन्द्र सिंह यादव किच्छा में आए थे। उनकी इस यात्रा के दौरान बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा खुलकर सामने आ गया। किच्छा से पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तिलकराज बेहड़ की दावेदारी पर जी-7 का सबसे ज्यादा रोष सामने आया। स्थानीय प्रत्याशी को टिकट देने और दो बार चुनाव हारे प्रत्याशी को टिकट नहीं देने के कांग्रेस आलाकमान के निर्देश का दावा करते हुए किच्छा से सात कांग्रेसी दावेदारों ने बेहड़ की दावेदारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। पार्टी पर्यवेक्षक राजेन्द्र सिंह यादव के सामने ही वह बैठक के लिए प्रस्तावित सभाकक्ष में धरने पर बैठ गए। काफी समझाने के बाद भी वह नहीं माने और अपनी मांग पर अड़े रहे। इस हंगामे के बीच पर्यवेक्षक यादव को दूसरे कक्ष में जाकर बैठक शुरू करना पड़ा, जबकि सातों कांग्रेसी नेता वहीं धरने पर बैठे रहे।
किच्छा से दावेदारी करने वालों की सूची में शामिल प्रदेश कांग्रेस के महासचिव हरीश पनेरु कहते हैं कि पूर्व मंत्री तिलकराज बेहड़ बाहरी प्रत्याशी के मुद्दे पर वह पार्टी हाईकमान के सामने दिल्ली भी अपना आक्रोश प्रकट कर आए हैं और यहां आए पर्यवेक्षक के सामने भी उन्होंने विरोध किया है। इसके बावजूद भी अगर पार्टी बाहरी प्रत्याशी पर दांव लगाएगी तो फिर कुछ भी हो सकता है। बहुत आक्रोश के साथ पनेरु कहते हैं कि रुद्रपुर का रिजेक्टेड किच्छा का सिलेक्टेड नहीं हो सकता। जबकि तिलक राज बेहड़ का कहना है कि वह बाहरी नहीं बल्कि स्थानीय हैं। उनका गांव मलसा किच्छा विधानसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है। यही नहीं, बल्कि बेहड़ कहते हैं कि पूर्व में जब किच्छा और रुद्रपुर विधानसभा दोनों एक ही सीट हुआ करती थी तब वह यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं। वह कहते हैं कि ‘मैं पार्टी के सभी नेताओं को साथ लेकर चल रहा हूं। अभी थोड़ी नाराजगी है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि वह मान जाएंगे। परिवार में थोड़ी-बहुत नाराजगी तो चलती रहती है।’
लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में भी यही मुद्दा आजकल चर्चाओं में है। यहां लड़ाई भाजपा नेताओं के मध्य हो रही है। जब से भाजपा के विधायक नवीन दुमका ने इस मुद्दे पर बयानबाजी की है तब से यह मामला सुर्खियों में है। विधायक नवीन दुमका ने पूर्व दर्जा मंत्री हेमंत द्विवेदी को निशाने पर लिया है। बकौल विधायक नवीन दुमका वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले की बात करते हुए कहते हैं कि ‘कभी स्वर्गीय प्रकाश पंत ने लालकुआं विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया था और इसको लेकर तैयारियां भी पूरी कर ली थी। लेकिन आखिर में उन्हें वापस पिथौरागढ़ जाकर ही चुनाव लड़ना पड़ा था। ऐसे ही इस बार भी होगा।’ साथ ही वह कहते हैं कि अभी जो बाहरी लोग लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं, बाद में उनके पास कोई विकल्प भी नहीं रहेगा।
बाहरी के मुद्दे पर विराम लगाने के उद्देश्य से कुछ दिनों पहले ही हेमंत द्विवेदी ने हल्दुचौड़ में घर लिया है जिसका गृह प्रवेश किया गया था। विधायक नवीन दुमका ने इस पर तंज कसते हुए कहा कि यहां पर कोई भी दावेदार आकर अपना घर बना ले, लेकिन यहां की जनता को पता है कि किस प्रत्याशी का घर कहां पर है। पूर्व दर्जा राज्यमंत्री हेमंत द्विवेदी का इस बारे में कहना है कि लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में 10 जनपदों से आए हुए लोग रहते हैं। यहां सेंचुरी में काम करने आए बाहर के लोग भी बहुत संख्या में रहते हैं। क्या यह सभी बाहरी हैं। वह कहते हैं कि स्कूल की पढ़ाई से लेकर अब तक वह देश के कई शहरों में रहे लेकिन फिर भी हम हैं तो उत्तराखण्डी ही। साथ ही वह कहते हैं कि हमारी पार्टी जब स्मृति ईरानी को अमेठी से चुनाव लड़ा सकती है तो पार्टी के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है। आखिर निर्णय तो पार्टी को ही करना है कि वह किस को और कहां से चुनाव लड़ाएगी।
रामनगर विधानसभा में भी कांग्रेस के लिए यह मुद्दा चिंता में डालने वाला है। बताया जाता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बाहरी का मुद्दा उठाकर कुछ लोगों ने तत्कालीन कांग्रेस प्रत्याशी रणजीत रावत के लिए मुश्किलें पैदा कर दी थी। एक बार फिर पार्टी उसी कशमकश का शिकार होती नजर आ रही है। यहां के कांग्रेसी नेता रणजीत रावत को बाहरी बताकर विरोध कर रहे हैं। पूर्व ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी रणजीत रावत का विरोध करने में सबसे आगे हैं। संजय नेगी कहते हैं कि ‘रामनगर में 2017 या इस बार ही बाहरी नेता चुनाव नहीं लड़े हैं, बल्कि इससे पहले भी 2002 में योगाम्बर सिंह रावत यहां से चुनाव लड़े थे, जो सिर्फ 6 माह तक विधायक रहे। 2012 में यहां से अमृता रावत चुनाव लड़ी थी जो बाहरी थी। लेकिन इस बार किसी भी कीमत पर बाहरी को स्वीकार नहीं किया जाएगा।’
2017 में रामनगर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव हारे रणजीत रावत बाहरी के मुद्दे को कोई मुद्दा नहीं बताते हैं। वे कहते हैं कि उन पर रामनगर में बाहरी का आरोप बेबुनियाद है। 1989 से उनका रेजिडेंस रामनगर रहा है, बल्कि बच्चे विक्रम रावत और चेतन रावत की जन्मस्थली भी रामनगर ही है। वे कहते हैं ‘मैं यहां पर खेती करता हूं। बाहरी तो वह होता है जो बाहर रहता है। मैंने तो अपना अधिकतर समय रामनगर में दिया है। मेरे पिता आर्मी में थे। मैं अहमदाबाद में पैदा हुआ। मैं पला-बढ़ा सल्ट में और ज्यादातर रहता हूं रामनगर में।’ काशीपुर में भाजपा बाहरी के मुद्दे पर उलझी हुई है। जब से भाजपा के चार बार के विधायक रहे हरभजन सिंह चीमा ने चुनाव लड़ने के लिए मना किया है और अपने बेटे त्रिलोक सिंह की दावेदारी पेश की है, तब से भाजपा के टिकट के लिए यहां से कई दावेदार सामने आ गए हैं। इनमें से एक है बलराज पासी। पासी पूर्व में नैनीताल- ऊधमसिंह नगर लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी को हराकर सांसद बन चुके हैं। लेकिन इसके बाद वह चुनाव नहीं जीते। चार बार लोकसभा चुनाव हारने के बाद अब बलराज पासी काशीपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने काशीपुर में रोड शो भी किया था। इस रोड शो में भाजपा के वह नेता जो यहां से अपने टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, नजर नहीं आए। बलराज पासी उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडेय के खास बताए जाते हैं। गदरपुर से विधायक अरविंद पांडेय पासी को काशीपुर में टिकट दिलाने के लिए प्रयासरत है।
लेकिन वहीं दूसरी तरफ यहां के भाजपा नेता बलराज पासी को बाहरी बता कर विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वालों में पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष राम मेहरोत्रा सबसे आगे है। वह कहते हैं कि ‘बलराज पासी पूर्व में किच्छा पर भी ऐसी ही दावेदारी जता चुके हैं। लोकसभा चुनाव में भी अपना टिकट पक्का मानकर चल रहे थे। यहां तक कि उन्होंने हल्द्वानी में घर तक ले लिया था। इस बार फिर वह काशीपुर में आ गए हैं। लेकिन काशीपुर के भाजपा नेता उनके साथ नहीं हैं। पहाड़ में एक रानीखेत विधानसभा सीट ऐसी है जहां बाहरी नेता को लेकर स्थानीय नेताओं में रोष देखने को मिल रहा है। हालांकि यह रोष अभी खुलकर सामने नहीं आया है। स्थानीय भाजपा नेता महेंद्र अधिकारी को बाहरी बता रहे हैं। महेंद्र अधिकारी की पत्नी रेनू अधिकारी हल्द्वानी से चुनाव लड़ चुकी हैं तथा वह कुमाऊं मंडल विकास निगम की उपाध्यक्ष भी रह चुकी हैं। महेंद्र अधिकारी पिछले कई महीनों से रानीखेत में जनता के बीच जा रहे हैं। वह वहां स्वास्थ्य कैंप लगवा रहे हैं। महेंद्र अधिकारी का अचानक हल्द्वानी से आकर रानीखेत की राजनीति में सक्रिय हो जाना स्थानीय भाजपाइयों को नहीं भा रहा है। वर्षों से रानीखेत की राजनीति कर रहे नेता अधिकारी के विरोध में आ गए हैं।
जिला पंचायत सदस्य और भाजपा के रानीखेत से प्रबल दावेदार धन सिंह रावत महेंद्र सिंह अधिकारी का नाम लिए बिना उनकी तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि यहां की जनता बाहरी को स्वीकार नहीं करेगी। इसलिए पार्टी यहां से स्थानीय नेता को ही टिकट देगी। महेंद्र सिंह अधिकारी से जब इस बाबत बात की गई तो उन्होंने कहा कि ‘वह बाहरी नहीं बल्कि भारी है और मजखाली के अधिकारी है।’ साथ ही वह अपने गांव का नाम तल्ली रूनी और अपनी तहसील रानीखेत बताते हैं। वह कहते हैं कि उनका बचपन यहां बीता। जवानी में बेशक हल्द्वानी चले गए। क्षेत्र के लिए काम करने का जज्बा ही मुझे जनता के बीच मजबूत कर रहा है। जबकि विरोधी लोग इससे भयभीत हैं।
गौरतलब है कि रानीखेत विधानसभा सीट पर प्रदेश के दिग्गज नेता अजय भट्ट का वर्चस्व रहा है। प्रदेश बनने के बाद हुए चार बार के विधानसभा चुनावों में दो बार जीत कर भट्ट ने इस क्षेत्र का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस प्रत्याशी करण माहरा से हार गए थे। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अजय भट्ट नैनीताल-ऊधम सिंह नगर सीट से सांसद चुने गए। अजय भट्ट के सांसद बनने के बाद रानीखेत विधानसभा सीट पर भाजपा के दावेदारों की लाइन लग गई है। यहां भाजपा के कई नेता टिकट मांग रहे हैं।
बात अपनी-अपनी
जो व्यक्ति एक बार 60,000 से तथा एक बार 30,000 से और लोकसभा चुनाव में 56,000 वोटों से हार गया हो, जिसके ऊपर तमाम तरह के आरोप लग रहे हैं वह किच्छा विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार नहीं हो सकता है। मैं ही नहीं बल्कि पार्टी के समस्त नेता ऐसे बाहरी नेता का विरोध कर रहे हैं। किच्छा की जनता स्थानीय नेता को अपना जनप्रतिनिधि बनाना चाहती है।
हरीश पनेरु, प्रदेश कांग्रेस महासचिव
हेमंत द्विवेदी लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से नहीं आते हैं। लिहाजा उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र में ही दावेदारी पेश करनी चाहिए। उसी को उन्हें अपनी कर्मभूमि बनाना चाहिए।
नवीन दुमका, विधायक, लालकुआं
हमारी पार्टी के लिए कोई बाहरी और भीतरी नहीं है। यह तो कुछ लोगों द्वारा बेवजह की बात बनाई जा रही है। मैंने पार्टी के विधायक नवीन दुमका जी के घर के पास ही घर लिया है। जहां गृह प्रवेश के दौरान 14000 लोग आए थे। पिछले 5 साल से मैं लाल कुआं में जनता की सेवा कर रहा हूं। जनता खुद जानती है कि जो व्यक्ति उनके साथ हर दुख सुख में रहा वह बाहरी कैसे हो सकता है।
हेमंत द्विवेदी, पूर्व दर्जा राज्यमंत्री
जिस तरह की स्थितियां पिछली बार हुई थी एक बार फिर वही बनती हुई नजर आ रही है। अगर हमारी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बदला तो इसके परिणाम चौंकाने वाले होंगे। कांग्रेस का दुर्भाग्य रहा है कि यहां से ज्यादातर बाहरी नेता ही चुनाव लड़ने आते हैं। लेकिन अब स्थानीय कांग्रेसी किसी बाहरी को नहीं सहेंगे। मैं भी पिछले 22 साल से पार्टी की सेवा कर रहा हूं। टिकट की दावेदारी पर पहला अधिकार हमारा बनता है।
संजय नेगी, पूर्व ब्लॉक प्रमुख
काशीपुर में पिछले कई दशकों से हम जनता के बीच जाकर उनके दुख-दर्द साझा कर रहे हैं। लेकिन चुनाव के समय कोई बाहर से नेता आ जाए और वह अपनी दावेदारी करें तो इसको सहन नहीं किया जाएगा।
राम मेहरोत्रा, पूर्व जिला अध्यक्ष, भाजपा
यदि किसी बाहरी नेता को यहां से टिकट दिया तो पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ सकता है। जो लोग कई सालों से क्षेत्र में काम कर रहे हैं और बीजेपी को जिंदा किए हुए हैं वह नेता ही यहां से टिकट के असली दावेदार हैं।
धन सिंह रावत, पूर्व ब्लॉक प्रमुख
पेड़ों को हरा करोगे तो ही वह फल देंगे। फिलहाल, क्षेत्र में जनता की सेवा करना ही मेरा पहला फर्ज है और यह फर्ज मैं बखूबी निभा रहा हूं। रही बात टिकट की तो वह पार्टी का काम है। पार्टी जिसका ज्यादा जनाधार देखेगी उसी को टिकट देगी।
महेंद्र सिंह अधिकारी, भाजपा नेता