चुनावी मौसम आने के साथ ही उत्तराखण्ड में एक बार फिर से सभी राजनीतिक दलों ने कड़ा भू-कानून बनाने का राग छेड़ दिया है। एक तरफ जनता जनार्दन से बड़े-बड़े वायदे किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ राज्य की बेलगाम नौकरशाही भूमाफियाओं के संग गठजोड़ कर भू-घोटालों के नित नए रिकॉर्ड बना रही है। जनपद पौड़ी गढ़वाल की यमकेश्वर तहसील ने तो ऐसे घोटालों का कीर्तिमान ही बना डाला है
जिलाधिकारी और न्यायालय के आदेशों को अफसर कितनी निर्ममता से रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं, इस उत्तराखण्ड के जनपद पौड़ी गढ़वाल की तहसील यमकेश्वर से समझा जा सकता है। खास तौर पर इस तहसील का राजस्व विभाग इसके लिए कुख्यात रहा है। तमाम आदेशों के बावजूद वर्षों तक राजस्व के मामलांे को तहसील और राजस्व विभाग द्वारा फाइलों में हीे दबाया जाता रहा है। पौड़ी जिले की इस तहसील का ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमें करोड़ांे की सम्पति जो कि नियमानुसार सरकार में निहित होनी चाहिए थी वह तहसील और राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से एक ट्रस्ट के नाम कर दी गई है। हैरानी इस बात की है कि इस मामले में जिलाधिकारी पौड़ी के तीन-तीन आदेशों के साथ-साथ न्यायालय राजस्व परिषद द्वारा कार्यवाही के आदेश भी जारी हो चुके हैं, लेकिन तहसील प्रशासन आदेशों का पालन करने के बजाय पूरे मामले को ही दबाने का प्रयास कर रहा है।
वर्ष 1951 में एक संत शिव चैतन्य महाराज द्वारा ग्राम जौंक में 60 नाली भूमि खरीदी गई। पांच वर्ष बाद इस भूमि को 1956 में स्वामी वेद व्यासानंद को बेच दिया गया। तब यह समूचा क्षेत्र कोटद्वार तहसील के अंतर्गत आता था। बहरहाल राजस्व अभिलेखों में यह भूमि स्वामी वेद व्यासानंद के नाम दर्ज हो गई। स्वामी वेद व्यासानंद ने इस भूमि पर भव्य और आलीशान आश्रम का निर्माण करवाया। वर्ष 1992 में स्वामी वेद व्यासानंद की भी मृत्यु हो गई। स्थानीय लोगों के मुताबिक वेद व्यासानंद ने अपनी भूमि और आश्रम का किसी को वारिस नहीं बनाया था, लेकिन एक संत शांतानंद जो कि वेद व्यासानंद के शिष्य बतााए जाते हैं, ने उक्त सम्पति राजस्व अभिलेखांे में अपने नाम दर्ज करवा डाली। वर्ष 1998 में स्वामी शांतानंद की भी मृत्यु हो गई। शांतानंद की मौत के बाद यह सम्पति स्वामी वेद व्यासानंद सरस्वती श्री गीता आश्रम इंटर नेशनल चैरिटेवल ट्रस्ट के नाम से राजस्व अभिलेखों में दर्ज कराने का खेल रचा गया। यहीं से मामले के संदिग्ध होने की बात उठने लगी। स्थानीय लोगों का कहना है कि क्षेत्र में जमीनों की खरीद-फरोख्त करने वाले कुछ प्रॉपर्टी डीलरों ने तहसील प्रशासन के साथ मिलीभगत कर यह सम्पति स्वामी वेद व्यासानंद सरस्वती श्री गीता आश्रम इंटर नेशनल चैरिटेवल ट्रस्ट के नाम दर्ज करा डाली ताकि इसे ऊंचे दामों में बेचा जा सके।

वर्ष 2014 में इस मामले में कोटद्वार के राज्य आंदोलनकारी और आरटीआई कार्यकर्ता संजय ध्यानी ने आरटीआई के जरिए सभी दस्तावेज एकत्र करके जिलाधिकारी पौड़ी को इसकी शिकायत की। मामला बेहद गम्भीर होने के चलते तत्कालीन जिलाधिकारी पौड़ी ने एसडीएम यमकेश्वर को जांच करके कार्यवाही करने के आदेश दिए। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार स्वामी शांतानंद शिष्य स्वामी वेद व्यासानंद ने अपने नाम आश्रम की सम्पति करवाने के लिए तहसील यमकेश्वर में कोई प्रमाण नहीं दिए थे। राजस्व अभिलेखागार पौड़ी ने सूचना के अधिकार कानून के तहत दी गई जानकारी में माना हैे कि स्वामी शांतानंद शिष्य वेद व्यासानंद के नाम सम्पति दर्ज होने के कोई भी राजस्व अभिलेख उपलब्ध नहीं हैं। तहसील में सम्पति के हस्तांतरण की प्रक्रिया का पालन भी नहीं किया गया और न ही इस प्रकार के कोई प्रमाण तहसील में लगाए गए जिससे यह प्रमाणित होता कि स्वामी शांतानंद के नाम यह सम्पति किसी आधार पर दर्ज की गई है। अब सवाल यह है कि जब स्वामी शांतानंद के नाम हस्तांतरित सम्पति ही नियम विरुद्ध थी तो किस आधार पर स्वामी वेद व्यासानंद सरस्वती श्री गीता आश्रम इंटर नेशनल चैरिटेवल ट्रस्ट के नाम सम्पति दर्ज हुई?
उल्लेखनीय है कि 2014 में यमकेश्वर तहसील बन चुकी थी, सभी कार्य कोटद्वार तहसहील से ही होते थे। कोटद्वार तहसील के एसडीएम को यमकेश्वर का भी प्रभार दिया गया था। इसके चलते यमकेश्वर के सभी राजस्व के काम कोटद्वार में ही सम्पन्न होते थे। जानकारी के अनुसार जांच में आश्रम को क्लीन चिट दे दी गई। इस क्लीन चिट के बाद स्थानीय जनता ने हो-हल्ला मचाया तो अपर जिलाधिकारी पोैड़ी द्वारा 28 जुलाई 2021 को एसडीम यमकेश्वर को तीन दिन के भीतर दोबारा मामले की जांच और कार्यवाही करने के आदेश दिए गए। लेकिन एक माह बीत जाने के बाद भी तहसील प्रशासन चुप्पी मारे बैठा है। एक माह तक कोई कार्यवाही न होने के कारण फिर से जिलाधिकारी के संज्ञान में यह मामला अब लाया गया है। 26 अगस्त 2021 को फिर से जिलाधिकारी ने एसडीएम यमकेश्वर को पत्र जारी किया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि यमकेश्वर तहसील प्रशासन इस मामले में क्या कार्यवाही करता है।
यह स्पष्ट हैे कि ट्रस्ट के साथ तहसील प्रशासन की मिलीभगत रही है। संजय ध्यानी का कहना हैे कि उनके द्वारा कई बार तहसील से सूचना पाने के लिए प्रयास किए गए, लेकिन जानबूझ कर उनको सूचना नहीं दी गई। आखिरकार राज्य सूचना आयुक्त के सामने यह मामला गया तो आयुक्त के आदेश पर सूचना दी गई। राज्य सूचना आयुक्त द्वारा इस मामले में डीएम पौड़ी को जांच करने के आदेश भी दिए गए। इसके बाद ही जिलाधिकारी पौड़ी ने जांच और कार्यवाही के आदेश जारी किए। इससे साफ हो गया है कि इस करोड़ों की सम्पति के मामले में राजस्व विभाग द्वारा जानबूझ कर गड़बड़ियां की गई हैं जिससे जो सम्पति सरकार में निहित होनी चाहिए थी उसकी बंदरबांट करवाने में तहसील प्रशासन का हाथ रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि यह सम्पति स्वामी वेद व्यासानंद सरस्वती श्री गीता आश्रम इंटर नेशनल चैरिटेवल ट्रस्ट के नाम करने के लिए तहसील में वसीयत और आपसी समझौते का आधार बनाया गया है। जबकि कोई सम्पति के अभिलेख दर्ज न होने की बात सूचना में सामने आ चुकी है। ‘दि संडे पोस्ट’ को मिली जानकारी के अनुसार इस मामले में एक बार फिर से जांच के नाम पर ट्रस्ट को समय दिए जाने की खबरें आ रही हैं जिससे मामले को लटकाया जा सके, जबकि इसके लिए केवल अभिलेखों की जांच ही पर्याप्त है।
यमकेश्वर तहसील प्रशासन द्वारा दशकों से जमीनांे के बड़े खेल को कूट रचना के साथ किया जा रहा है। इस तहसील के ग्राम जौंक निवासी तहसील प्रशासन के कारनामे से वर्षों से त्रस्त हैं। किसी की जमीन किसी के नाम चढ़ा दी जाती है। मूल खातेदारों के साथ अवैध कब्जेदारों को खातादार बनाकर उनके नाम राजस्व अभिलेखों में चढ़ा दिए गए हैं। तहसील प्रशासन द्वारा किए गए कूट रचना के कारनामों को राजस्व विभाग और न्यायालय राजस्व परिषद ने भी स्वीकारा है। इसके बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
बात अपनी-अपनी
मेरे पास अभी तहसीलदार की आख्या नहीं आई है। जब आएगी तक बता पाऊंगा, आप मुझसे बाद में बात करें।
संदीप सिंह, उपजिलाधिकारी यमकेश्वर
मैं आपको इस बारे में क्यों बताऊं। मैं अपने अधिकारियों को जवाब दूूंगा। अभी मैं बिहार में हूं, आप मुझे बाद में फोन करें तो यह जरूर बता दूंगा कि कानूनगो ने अपनी रिपोर्ट दी है या नहीं।
मंजीत सिंह, तहसीलदार यमकेश्वर
यह मामला बहुत ही गम्भीर है। जब मुझे पता चला कि यमकेश्वर तहसील में जमीनों के खुर्द-बुर्द के खेल में सांठ-गांठ हो रही है, तो मैंने आरटीआई से जानकारी लेनी चाही, लेकिन मुझे सूचना नहीं दी गई। सूचना आयुक्त के आदेश पर ही मुझे सूचना दी गई। आपको हैरानी इस बात की होगी कि पूरा प्रशासन इस मामले को दबाने में लगा हुआ है। जिलाधिकारी के तीन बार आदेश हो चुके हैं, लेकिन कार्यवाही करने के बजाय जमीन कब्जाने वाले के साथ साठ-गांठ की जा रही है। मुझे इस मामले में धमकियां भी मिल चुकी हैं। अगर इस क्षेत्र में खतौनियों को सुधार दिया जाए तो पता नहीं कितने होटल रिसोर्ट और मठ- मंदिरों और आश्रमों के कब्जे सामने आ जाएंगे। इसीलिए इन मामलों को दबाया जा रहा है। अगर प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं करता है तो हमारे पास हाईकोर्ट का विकल्प भी खुला है। हम इस मामले को लेकर हाईकोर्ट भी जाने वाले हैं।
संजय ध्यानी, राज्य आंदोलनकारी कोटद्वार
60 सालों से तहसील प्रशासन अवेैध कब्जेधारियों के लिए काम कर रहा है। सभी जांच रिपोर्ट और आख्याएं यह साबित करती हैें कि मूल खातेदारों की जमीनों पर तहसीलकर्मियों ने सांठ-गांठ करके दूसरे लोगों के नाम जोड़ दिए हैं और उनको दूसरे खातों में भी मालिकाना हक दिया हुआ है। हम केवल इतना चाहते हैं कि हमारे लोगों को उनका हक मिले बंटवारा और खतौनियांे को सुधारा जाए और हकदारों को उनका हक मिले। हमारे पास स्वयं तहसील के 1940 से लेकर 1660 तक के बंदोबस्त की खतौनियां और खाते हैं जिनमें हमारे नाम है लेकिन तहसील कर्मियों ने मिलीभगत करके हमारे खातों पर दूसरे लोगों का नाम भी चढ़ा दिया है।
धीरज सिंह, मूल खातेदार ग्राम जौंक स्वर्गाश्रम