यादों का सिलसिला-पदयात्राएं/भाग-4
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
मैंने टिहरी में बहुत सारी पदयात्राएं की हैं। मैं जिस यात्रा का जिक्र करने जा रहा हूं वह अपने आप में एक विशिष्ट पद यात्रा थी। मैं श्री श्रीदेव सुमन जी के गांव जाकर उस पवित्र माटी को सर पर लगाना चाहता था, जहां श्री सुमन जैसे बलिदानी पैदा हुए हैं। मेरी यह पद यात्राएं टिहरी के लोगों के बलिदान और त्याग को समर्पित है। इसीलिए मैंने अपने लेख के प्रारंभ में कहा कि टिहरी को मैं अपना दूसरा घर मानता हूं
पदयात्राएं राजनीतिक जीवन में एक विलुप्त प्रजाति बनती जा रही हैं। ऐसे समय में मुझे अपना पुराना पदयात्रा-प्रेम बहुत याद आ रहा है। ज्यों-ज्यों मैं अपनी पदयात्राओं को अपने मन-मस्तिष्क में टटोल रहा हूं, यादों का सिलसिला आगे को चल पड़ रहा है। इस बार चुनावी थकान कुछ ज्यादा ही पीड़ादायक रही है। पार्टी भी हार गई, मैं भी हारा, पार्टी हार गई कहना शायद उचित नहीं होगा। पार्टी ने अच्छी टक्कर दी। भाजपा की मदद करने के लिए कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शक्तियां काम कर रही थी। भाजपा ऐन-केन-प्रकारेण, चाहे जुम्मे की नमाज की छुट्टी का झूठ हो या मुस्लिम यूनिवर्सिटी का झूठ प्रचारित कर चुनाव हथियाने में सफल रही। भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर शीर्ष नेतृत्व ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी के झूठ को प्रलोभनों की चासनी में इस तरीके से पेश किया कि ईवीएम खुलते ही भाजपा के जीत की घोषणा हो गई।
मैं जिस समय लोकसभा में चुनकर गया था, उस समय मैं विशुद्ध रूप से अल्मोड़िया था। लेकिन कई लोगों ने अपने स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन से मुझे एक अच्छा खासा टिहरी वाला बना दिया। टिहरी क्रांतिकारियों की धरती है। सिदुवा, विदुवा, रमोला, माधो सिंह भंडारी जी, कप्पू चौहान, महारानी कमलेन्दुमति शाह, लछमू कठैत, श्री सुंदरलाल बहुगुणा, हमारे कथानकों के प्रेरणा श्रोत टिहरी की धरती में पैदा हुए हैं। श्री श्रीदेव सुमन जैसे बलिदानी भी यहां पैदा हुए। पहले विक्टोरिया क्रास विजेता गब्बर सिंह जी भी टिहरी की धरती में ही पैदा हुए और आज भी चंबा में उनकी स्टेच्यू हर उत्तराखण्डी के सीने को चौड़ा कर देती है। जब आप उनकी मूर्ति की तरफ देखते हैं तो एक अद्भुत वीरता का आभास होता है। टिहरी प्रजामंडल ने पहले देश, फिर टिहरी की आजादी के लिए बहुत बड़ा संघर्ष किया। उसी संघर्ष के अनन्य सेनानी त्रेपन सिंह नेगी जी और मैं, दोनों सांसद थे। उन्होंने मेरे साथ टिहरी की समस्याओं और वहां के लोगों का मेरा साक्षात्कार करवाया। मैं सांसद बनने के बाद कई बार टिहरी गया। त्रेपन सिंह नेगी जी आज हमारे बीच में नहीं हैं, मगर उनकी ढेरों यादें मेरे साथ हैं। हम नागेंद्र सकलानी जी, मोलू भरदारी जी की शहादत को कैसे भूल सकते है? नागेंद्र सकलानी जी के अनुज जिनके नाम हजारों पेड़ों को जीवंत बनाए रखने का रिकॉर्ड है, विशेश्वर दत्त सकलानी जी की यादें तो अभी-अभी मानो ताजा हो।
मैं हमेशा टिहरी वालों से एक बात कहता था कि आप अपना मजबूत नेतृत्व खड़ा करिए। उसी चाहत में मैं राज्य आंदोलन के एक मूर्धन्य हस्ताक्षर श्री किशोर उपाध्याय जी के संपर्क में आया। कुछ मतभेद, कुछ सामंजस्य के बाद धीरे-धीरे मेरे छोटे भाई बन गए और मेरी राजनीतिक यात्रा में लंबे समय तक मुझसे बराबर जुड़े रहे। टिहरी के कई लोग जैसे जोत सिंह बिष्ट, देवी सिंह पंवार, मंत्री प्रसाद नैथानी, शांति प्रसाद भट्ट सहित सैकड़ों लोग आज भी मुझसे जुड़े हुए हैं। हिंदुस्तान वेजिटेबल एंड ऑयल कंपनी के ट्रेड यूनियन नेता मोहब्बत सिंह राणा जी सहित दर्जनों लोग दिल्ली में मेरे अनन्य सहयोगी रहे हैं। स्व ़फूल सिंह बिष्ट जी जिन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र के विकास में बहुत काम किया, आज उनके काम को श्री विक्रम सिंह नेगी विधायक कुशलता से आगे बढ़ा रहे हैं। प्रतापनगर, घनसाली, देवप्रयाग, टिहरी, नरेंद्रनगर, धनौल्टी, प्रत्येक क्षेत्र में कांग्रेस की सरकार ने ढेरों काम किए। आज तो डोबराचांटी का पुल हमारे विकास का एक प्रतीक बन गया है। टिहरी और टिहरी झील के चारों तरफ हुए डेवलपमेंट में हमारी सरकार का बहुत बड़ा योगदान रहा है। टिहरी के विस्थापित लोगों के हक में हों या टिहरी के विकास में मेरी सेवा हमेशा उपलब्ध रही है। केंद्रीय मंत्रियों में कल्पनाथ राय से लेकर श्री सुशील कुमार शिंदे तक जिन्होंने जल विज्ञान के क्षेत्र में पहला हाईड्रोलांजिकल प्रशिक्षण संस्थान टिहरी के लिए स्वीकृत किया था, मेरा प्रयास एवं जुड़ाव भी टिहरी के तत्कालिक नेतृत्व के साथ रहा है। इस जुड़ाव को निरंतरता देने में टिहरी के सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं का बड़ा योगदान है। उत्तराखण्ड में पहली निर्वाचित कांग्रेस सरकार बनाने में टिहरी के लोगों ने अभूतपूर्व योगदान दिया। एक षड्यंत्र के तहत जब श्री किशोर उपाध्याय को मंत्री पद से हटाया गया तो मुझे बहुत बुरा लगा। चुनाव निकट आ रहे थे, मैंने निर्णय लिया कि मुझे श्री किशोर के पक्ष में कुछ पदयात्राएं करनी चाहिए। एक ऐसी ही पदयात्रा मैंने चंबा से निकालने का निश्चय किया। 5 सितंबर, 2006 में श्री उत्तम सिंह रावत के आवास पर प्रातः कलेवा खाकर हमलोग चंबा में विक्टोरिया क्रॉस विजेता वीर गब्बर सिंह जी की मूर्ति पर इकट्ठा हुए। मूर्ति पर पुष्पांजलि के बाद एक छोटी-सी सभा हुई। सभा के बाद हमलोग गुल्डी एवं हड़म की ओर पैदल चल पड़े। यूं तो यह पदयात्रा चंबा-चिन्यालीसौड़ मोटर मार्ग पर थी, हम सड़क से सटे हुए प्रत्येक गांव में गए। प्रत्येक गांव में छोटी-बड़ी सभा हुई। लोगों ने उत्साह से हमारा स्वागत किया। इस यात्रा में जगह-जगह पर सैकड़ों की संख्या में आए भाई-बहन हमसे जुड़े। पदयात्रा के जोश को देखकर किशोर उपाध्याय जी के चेहरे की चमक बढ़ती जा रही थी। हम सबको लगने लगा कि किशोर जी के लिए माहौल अच्छा है। टिहरी के एक और संघर्षशील नेता श्री जोत सिंह बिष्ट जी, शांति प्रसाद भट्ट जी, चंबा के सोबन सिंह नेगी आदि यात्रा के मुख्य संयोजकगण थे। श्री विक्रम पंवार, विक्रम सिंह, मूर्ति सिंह भाई, सूरज राणा, साहब सिंह सजवाण, नरेंद्रचंद रमोला, अरविंद सकलानी, दिनेश थपलियाल, मुशर्रफ भाई, छोटा देवेंद्र नौडियाल, दर्शनी रावत, वीना जोशी, सुमना रमोला, शिवी भंडारी, कुलदीप पंवार, बुद्धि सिंह भाई जी, नरेंद्र राणा, भरत सिंह बुटोला, महावीर रावत, आशा रावत, विनीत रावत, सोहन जी, रविंद्र नेगी, हरी प्रसाद सकलानी आदि कई लोग यात्रा में सम्मिलित रहे। यात्रा को अविस्मरणीय बनाने में इन लोगों का बड़ा योगदान रहा। उस समय की टिहरी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हुजूम था, इनमें इतनी बड़ी क्षमता थी कि ये लोग किसी को भी नेता बना सकते थे।
यात्रा में ज्यों-ज्यों हमारे कदम आगे बढ़ रहे थे, नीचे लबालब भरा हुआ सुमन सागर अर्थात् टिहरी झील हम सब लोगों की चर्चा का विषय बनती जा रही थी। श्री श्रीदेव सुमन के नाम पर उस झील का नामकरण हमारी सरकार ने ही किया। हम सब पदयात्री ग्राम गुल्डी, हड़म, तल्ला हड़म, कोट, मोरी गाढ, मुड़िया गांव, बगासुधार, धारकोट, चरखिल और किरगणी, बैरागणी, रामगढ़ तक पहुंचे। बगासुधार में हमने बगासु महादेव के दर्शन किए। यह बहुत पुराना शिव मंदिर है। चरखिल एक छोटा-सा गांव है, जहां हमने जलपान किया और तरोताजा होकर हम आगे की ओर चल पड़े। टिहरी झील को देखकर बहुत सारी उम्मीदें मन में आ रही थी और हम उनको लोगों के साथ साझा भी कर रहे थे। एक बात जरूर बार-बार उठती थी कि प्रतापनगर अलग- थलग पड़ गया है और यह सत्यता थी। हमने लोगों को आश्वस्त किया है कि डोबराचांटी से एक मोटर पुल का निर्माण हो रहा है जिसकी सैद्धांतिक स्वीकृति जारी हो चुकी है। मैंने प्रतापनगर की यात्रा के वक्त इस बात को महसूस किया कि पूरे प्रतापनगर क्षेत्र को कुछ झूला पुलों के भरोसे छोड़ दिया गया है जो बिल्कुल अनुचित था। इसीलिए मैंने वहीं से मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी से बात की और उनकी समझ में भी यह बात आई। हमारी सरकार ने यह निश्चय किया कि डोबराचांटी नामक स्थान से जहां झील की चौड़ाई न्यूनतम थी, वहां मोटर पुल बनाया जाए। प्रतापनगर के लोग अपने जिला मुख्यालय से सरलता से जुड़े रहें, उसके लिए हमारी सरकार ने एक बार्ज भी खरीदा था जो अब भी वहां चल रहा है। सुमन सागर में फ्लोटिंग रेस्टोरेंट्स से लेकर फ्लोटिंग हट्स तक बनाए गए, ताकि पर्यटन विकसित हो सके। वहां प्रशिक्षण संस्थान खोला गया ताकि स्थानीय लोगों को वाटर स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग देकर दक्ष बनाया जाए। हमने उसमें माउंटेनियरिंग प्रशिक्षण का विषय भी रखा। खैंट पर्वत के नाम से एक प्रशिक्षण भी प्रारंभ किया गया ताकि माउंटेनियरिंग के शौकिनों को यहां लाया जा सके। यह सब चीजें आज भी वहां देखी जा सकती हैं। मगर लोग बार-बार जिक्र करते थे कि हमारी संस्कृति डूब गई है। यह सत्य भी है। टिहरी अपने आप में एक अत्यधिक समृद्ध संस्कृति थी, वह जलमग्न हो गई है। टिहरी के चारों तरफ के गांवों में शानदार घर बने हुए थे। मैं कई बार इस क्षेत्र में आया था। कैसे भूला जा सकता है उन गांवों के मंजर को! मैं नरेंद्र राणा के गांव तल्ला उप्पू नरेंद्र का उपवास तुड़वाने के लिए पहुंचा था। कफ्फू चौहान का गांव, कितने बड़े-बड़े पत्थर, कितने शानदार नक्काशीदार घर कोई भी व्यक्ति कह सकता था कि हमारे संस्कृति का ये गर्व स्थल है। राजशाही के नजदीकी गांव थे, उनमें तरक्की भी आई और वहां के लोगों ने अपने प्राचीन तरीके से उत्तराखण्ड शिल्प शैली के शानदार घर बनाकर रखे हुए थे। मैंने एक निश्चय किया कि कभी अवसर मिला तो हम जितने डूबे हुए गांव हैं उनके नाम से झील के चारों तरफ पर्यटन स्थल विकसित करेंगे। हमने लोगों से बातचीत की, अधिकांश लोग यह चाहते थे कि यहां जितनी नौकरियां निकलती हैं या काम धंधे हैं, वह स्थानीय लोगों को मिले। स्वभाविक मांग थी। हमने लोगों को आश्वस्त किया कि हम इस दिशा में काम करेंगे। इसलिए मैं लगातार इस बात को शासन के स्तर पर उठाता रहा हूं। हमने कोट में सभा की, हमने धारकोट में बड़ी सभा की और राम गांव में सभा की और यहीं यात्रा का समापन किया। एक अच्छी बात हर सभा में लोगों ने स्वीकारी कि टिहरी में कांग्रेस ने काफी अच्छा काम किया है और लोग हमारे विधायकगणों की, जिनमें किशोर उपाध्याय जी भी हैं, प्रशंसा करते थे। मैंने लोगों से लगातार इस बात पर जोर दिया कि आप किशोर जी पर विश्वास करें, एक बार आपने उनको चुना है तो आप उसको बरकरार रखिए ताकि राज्य के अच्छे नेता के रूप में स्थापित हो सकें। नेतृत्व की इस कतार में फूल सिंह बिष्ट जी, मंत्री प्रसाद जी, कौल दास जी, विक्रम सिंह नेगी जी, जोत सिंह बिष्ट जी का जिक्र प्रत्येक सभा में आता था। श्री किशोर उपाध्याय अब हमारी पार्टी में नहीं हैं, वह भाजपा में हैं। कांग्रेस में श्री किशोर, नेता थे और जिन दो-चार लोगों का नाम कांग्रेस नेता के तौर पर लिया जाता था, उनमें किशोर उपाध्याय जी का नाम होता था। आज गणवेश धारी किशोर उपाध्याय नेतृत्व की लाइन में कहां पर खड़े हैं, यह जरूर लोगों की दिलचस्पी का विषय होगा। किशोर उपाध्याय जी इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि टिहरी का जो भी विकास हुआ, वह कांग्रेस के ही समय में हुआ, उस पर भाजपा का ठप्पा नहीं लगाया जा सकता है। भले ही किशोर उपाध्याय जी, जो ठप्पा लगने से बदल गए हों लेकिन टिहरी विकास के चारों तरफ कांग्रेस का नाम लिखा हुआ है। राम गांव में सभा के बाद हमने निश्चय किया कि हम लोग आज ही उप्पू गांव जाएंगे और बड़ी अजीब विडंबना थी, उप्पू गांव में खेती लायक जमीन तो उनकी सारी डूब गई और ऐसी जमीन बची हुई थी जिसको हम वन पंचायती या फॉरेस्ट कह सकते हैं, जहां जानवरों का चारागाह था। गांव डूब रहा है, खेत डूब रहे हैं, घर डूब रहे हैं लेकिन गांव को पूर्ण विस्थापन योग्य गांव मानने के लिए टीएचडीसी तैयार नहीं थी, उसके लिए भी हमलोग लड़े हैं। आज भी मेरे मन में तल्ला उप्पू वालों की टीस है। यह गांव महावीर कप्पू चौहान का गांव है। इस महावीर ने महाराज के सम्मुख सर झुकाने से इंकार कर दिया था। टिहरी के लोगों का संघर्ष इस यात्रा के दौरान बराबर मेरे मानस पटल पर आता था और आज भी आता है। इसीलिए मैंने अपने लेख के प्रारंभ में कहा कि टिहरी को मैं अपना दूसरा घर मानता हूं और हमारे साथी जोत सिंह बिष्ट जी आदि, ये सब लोग निरंतर प्रयत्नशील लोग हैं काम करते रहते हैं, शांति प्रसाद भट्ट जी भी एक अच्छे नेता के रूप में उभर रहे हैं। दर्शनी रावत हमारी कमांडर हैं, टिहरी में सक्षम कांग्रेस नेतृत्व वर्ग की कमी नहीं है, दर्जनों हमारे सक्षम सहयोगी हैं। मुझे उम्मीद है कि ये सब लोग टिहरी में कांग्रेस को खड़ा करेंगे।
मैंने टिहरी में बहुत सारी पदयात्राएं की हैं। मैं जिस यात्रा का जिक्र करने जा रहा हूं वह अपने आप में एक विशिष्ट पद यात्रा थी। मैं श्री श्रीदेव सुमन जी के गांव जाकर उस पवित्र माटी को सर पर लगाना चाहता था, जहां श्री सुमन जैसे बलिदानी पैदा हुए हैं। हमने चंबा से पैदल यात्रा प्रारंभ की, तल्ला चंबा, सोला, भंडारा गांव, खड़ गांव होते हुए वहां से जौल तक गए। श्री श्रीदेव सुमन जी के नाम का प्रभाव था कि बड़ी संख्या में हमारे स्थानीय नेतागण भारत के स्वतंत्रता संग्राम, टिहरी प्रजामंडल, श्री श्रीदेव सुमन, श्री त्रेपन सिंह नेगी, श्री परिपूर्णानंद पैन्यूली की जिंदाबाद कहते हुए खड़ गांव तक पहुंचे, वहां चाय पीने का बाद पदयात्रियों के बड़े से कारवां के साथ जौल गांव पहुंचे। वहां एक सभा हुई। सभा में सभी नेतागणों ने अपने-अपने तरीके से श्री श्रीदेव सुमन जी का स्मरण किया, सभा श्री श्रीदेव सुमन स्मारक स्थल पर हुई। गांव के सब लोगों को प्रणाम करके हम नागणी की तरफ चल दिए। इस यात्रा को बड़ा अंतराल हो गया है, फिर भी यात्रा के साथियों और गांवों के नाम मेरी स्मृति में अंकित हैं। लेख में स्थान का अभाव के कारण मैं, सभी सहयात्रियों के नाम नहीं लिख पा रहा हूं। यात्राएं बड़ा साथ बनाती हैं। जो लोग हमारे साथ चले वह आज भी कांग्रेस का झंडा थाम करके चल रहे हैं। एकाध भले ही बीजेपी में चले गए लेकिन संघर्ष के साथी आज भी कांग्रेस के साथ हैं और आगे-आगे चल रहे हैं। मैं एक बार फिर जौल तक गया हूं, इस बार कार से गया था। मेरी यह पद यात्राएं टिहरी के लोगों के बलिदान और त्याग को समर्पित है।