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Uttarakhand

स्वामित्व योजना उत्तराखण्ड के लिये वरदान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा राष्ट्रीय पंचायत राज दिवस के अवसर पर ई ग्राम स्वराज पोर्टल और स्वामित्व योजना का आरम्भ किया। इस येाजना में ग्रामों की मैपिंग करने और ग्रामीण क्षेत्रो में आवासीय भवनो को आवासीय क्षेणी में किया जायेगा। स्वामित्व योजना देश के कुल चार राज्यों में शूरूआती दौर में लगाू की गई है और खास बात यह हेेै कि उत्तराखण्ड इन चार राज्यों में शामिल किया गया है। जबकि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश ओर झारखण्ड को इसमें शमिल किया गया है।

स्वामित्व योजना में उत्तराखण्ड को शामिल करने से राज्य में ग्रामीण क्षेत्रो में कई सामस्याओं का निदान तो होगा ही साथ ही इस से गांवो के विकास के लिये कई आयाम बन सकेंगे। जानकारो की माने तो उत्तराखण्ड के लिये यह स्वामित्व योजना एक बड़े अवसर के तौर पर आई है। इस के लागू होने से ग्रामीण क्षेत्रों मे पर्यटन गतिविधियों और ग्रामीण करोबार में तेजी आ सकती है। अब आवासीय भवनो को आवास के स्वामी के नाम अभिलेखों मे ंदर्ज किया जा सकेगा जिसके चलते आसानी से अब बैंको से ऋण लेना आसान हो सकेगा।

उत्तराखण्ड के परिपेक्ष में देखा जाये तो सदियों से ग्रमीण ईलाको में ग्रामीणो के नाम उनकी खेती की जमीन तो अभिलेखों मे ंदर्ज होती है लेकिन उनके आवास को भी खेती की भूमि में ही माना जाता रहा है। जबकि अधिकतर गांवो में भवन और ख्ेाती की जमीनो के बीच खासी दूरी होती है। यहां तक कि पहाड़ी क्षेत्रों में गांव के मकान पर्वत के शिखर पर होते हें लेकिन जमीने तलहटी में होती है बावजूद इसके ग्रामीण की सभी भूमि खेती के नाम पर ही दर्ज होती है भले की उसके कितने भी खाते और खसरे क्यों न हो। जिसके चलते आज तक आवासी संपतियों को अभिेलख में अलग से दर्ज नही किया जाता है। इतना जस्र है कि गांवो के लिये बसावट और बस्ती के नमा पर अभिलेख राजस्व मे ंदर्ज होते है। लेकिन स्वतंत्र तौर पर ऐसा नही हो पाया है।

स्वामित्व योजना के लागू होने से अब स्थिति में बहुत बड़ा बदलाव आने की पूरी संभावना बन चुकी है। अब गांवो में इसके लिये मैपिंग कर के सभी आवासी संपतियों को अभिलेखों में दर्ज किया जा सकेगा जिसके चलते ग्रामीणों को अपनी संपति में खेती और आवासीय संपतियों का विभाजन आसानी से हो सकेगा।

जानकारां का कहना है कि उत्तराखण्ड में खास तो।र पर पहाड़ी क्षेत्रों में तीन प्रकार की सम्पतियों होती है जिनमे ंएक खेती की भूमि दूसरी आवासीय भूमि यानी जिसमें भवन आदि बने हुये हो और तीसरे स्तर की संपति पशुशाला या गोठ आदी होती है। गोठ या पशुशाला में भी दो तरह की श्रेणी होती है जिसमे ंएक तो अधिकतर गांव से दूर जंगलो के बीच होती है जो कि या तो स्वंय की भूमि होती है या ग्राम समाज की भूमि होती है या फिर गोल खाते यानी पूरे गांव की संपति होती है। दूसरी श्रेणी की वह गोठ या पशुशाला होती है जो राजस्व रिकार्ड में दर्ज खेती की भूमि के में बनाई गई होती है। इसमे भी अधितर दो मंजिले भवन होते है जिसमे ंएक मंजिल में पशु बांधे जाते हैं दूसरे में अनाज चारा आदी रखने के लिये भण्डार बने होते है। लेकिन इन भवनो को आवासीय क्षेणी मे नही रखा जाता है। एक तरह से यह भवन खेती की संपति में ही दर्ज होते है जबकि इनके निर्माण में अच्छी खासी रकम खर्च होती है। बावजूद इसके यह संपति खेती की श्रेणी मे दर्ज ही होती है ओर जिसके चलते खरद फरोख्त में इसका मूल्य का सही आंकलन तक नही हो पाता है।

 

इसस के चलतेे तब जयादा समस्या आती है कि जब परिवार के बढ़ने से इन पशुशाला में कोई ग्रामीण अपना आवास स्थापित कर लेता है लेकिन उसको इसके आवासीय होने का कोई लाभ नही मिल पाता। न तो वह इसको बैंक आदी मे निर्माण के मुल्य के अनुसार मुल्यांकन करवा पता है। कामेवेश यह स्थिति गांवो के आवासीय घरो में भी सामने आती है।

यदि किसी ग्रामीण को अपने करोबार या किसी अन्य कार्य के लिये सरकारी सेाजनाओं जैसे बैको से ऋण लेना होता है तो उसे अपनी खेती की भूमि के कागजात बेंक मे ंरेहन रखने पड़ते है जबकि अधिकतर खेती की जमीन का कीमत से कई गुना आवासीय भवन की कीमत होती है लेकिन तकनीकी तौर पर उसका सही मुलयांकन नही हो पाता है ओर उसे ऋण मांग के अनुसार नही मिल पाता है। स्वामित्व येाजना में यह समस्या समाप्त हो सकेगी। किसान या ग्रामीण असानी से अपने आवासी संपतियों का मुल्यांकन करवा सकेगा जिसके आधार पर बैक आदी से उसे ऋण मिल सकेगा।

जिस तरह से उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रो में ग्रामीण कारेाबार को बढ़ाने के लिये अति सूक्ष्म उद्योगो को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार और केन्द्र सरकार येाजनाये चला रही है साथ ही पर्यटन को रोजगार से जोड़ने के लिये होम स्टे योजना को प्रदेश में लागू कर चुकी है उसका बड़ा सुखद परिणाम भी देखने को मिल रहा है। लेकिन तकनीकी तौर पर इस योजना मे ंबैंको से ऋण पाना बड़ा कठिन हो चला है। जानकारो की माने तो होमस्टे योजना में अपने आवासीय भवनो के पुर्ननिर्माण और विस्तारिकरण में अच्छीखासी धनराशी खर्च हो रही है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि होम स्टे योजना में सबसे बड़ी शर्त यह है कि होम स्टे अपने अवासीय भवन में ही आरम्भ की जा सकती हे जिससें ग्रामीण स्वयं रहत हो। जबकि ग्रामीणो के भवन छोटे होते है और उसके पर्यटक को अपने साथ ठहराने में समस्यश आ रही है इसके लिये भवन का विस्तार करना जरूरी है लेकिन इसके लिये ऋण लेने मे समस्या आ रही है। क्योंकि अवासीय भवन अवासीय संपति में के अभिलेखें मे ंदर्ज नही होने से ऐसी समस्या आ रही है।

पलायन एक चितंन कार्यक्रम के संचालक रतन सिंह असवाल की माने तो होम स्टे योजना का पूरा लाभ पर्वतीय क्षेत्रो के ग्रामीण इसी लिये नही उइा पा रहे है कि बैंक उनके ीवनो के विस्तारी करण और पुनर्निर्माण के लिये ऋण नेने में अनाकानी कर रहे है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि आवासी भवन आवसीय क्षेणी में दर्ज नही है वे सभी खेती की संपति में ही दर्ज है। अब स्वामित्व येाजना के आरम्भ होने से यह परेशानी दूर हो जायेगी और ज्यादा तादात में पर्वतीय क्षेत्रों में होम स्टे योजना बढ़ेगी।

कुल मिला कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा स्वामित्व योजना में उत्तराखण्ड को शामिल कर के उत्तराखण्ड को एक बड़ी सोैगात दी है। आने वाले समय में इसका बहुत बड़ा सुखद परिणाम देखेने को मिल सकता है बर्शते राज्य सरकार और इसकी मशीनरी इस योजना को इमानदारी ओर सही तरीके से लगाू कर पाये।

डाक्टर राजेन्द्र कुकसालः पूर्व लोकपाल मनरेगा-प्रधानमंत्री ने हम उत्तराखण्डीयों को एक बड़ी सौगात दी है। इससे गांवो के विकास में तेजी आयेगी और गांव में ही रोजगार के साधनो को तेजी मिलेगी। जिस तरह से करोना संक्रमण के चलते बड़ी तादात मे प्रवासी लेाग अपने घरो मे ंलौटे है और अब उनको उनके गांवो और घरो में ही रोजगार मिलेगा तो वे अपने गांवो में ही रूक सकते है। स्वामित्व योजना से अवासीय भूमि को अभिलेखों में आवासीय श्रेणी में दज्र होने से युवा लेाग होटल पर्यटन गतिविधियों को आसानी से अपने ही गांवो में चला सकेगो जिससे न केवल पलायन रूकेगा साथ ही अन्य को भी रोजगार मिलेगा। लेकिन सरकार की ईमानदारी और इच्छाशक्ति के उपर है कि सरकार इस बड़ी महत्वपूर्ण येाजना को किस तरह से लागू करती है और कब तक कर पाती है।

रतन सिंह असवालः सचंालक पयालन एक चिंतन-यह बहुत ही अच्छी येाजना है जो उत्तराखण्ड के लिये बड़े अवसर को लेकर आई है। अब सरकार को देखना होगा कि इसे जल्द से जल्द लगाू करे ओर पूरी ईमानदारी के साथ इसे उत्तराखण्ड में आरम्भ करे। निश्चित ही यह येाजना बहुत बेहतर साबित होगी।

किशोर उपाध्यायः संचालक वनाधिकार आंदोलन -प्रधानमंत्री अगर पंचायतो को अधिक अधिकार देते तो ज्यादा अच्छा होता प्रधानमंत्री शब्दो को ढंढने मे बड़ा शगल रखते है जेैसे स्मार्ट सिटी आदी आदी। वे ग्रामीण परिवेश ओर परम्पराओं से अनजान लगते हैं। उत्त्राखण्ड के परिपेक्ष में यदि स्वामित्व की बात हो हो तो पहले यहां के जल जंगल ओर प्राण वायु का स्वामित्व हमें सौपा जाये। जब इस येाजना का पूरा स्वरूप सामने आयेगा तभी सम्यक रूप से कुछ कहा जायेगा। मैं आशा करता हूं कि यह भी एक जुमला ना साबित हो।

जोत सिंह बिष्टः पंचायत कार्यक्रम संयोजक कांग्रेसः सरकार कोरोना मे ंअपनी कमियों जो छुपाने का काम कर रही है। गांवो में अगर हम लोग ख्ती की जमीन में मकान आदी बनाते है तो वही नियम लगाू होत ेहै जो शहरी क्षेत्रो में चल रहे है। बस्ती और बसावट पहले से ही अभिलेखों में दर्ज होती है तो स्वामित्व योजना का क्या लाभ होगा। बस इतना हे कि गांवो में भवनो के नक्शे पास नही होते और अब सरकार इसके क्षरा यह काम करने वाली है जिस से गांवो में टैक्स थोपे जायें।

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