नदियों में मछलियों के होने के मायने हैं कि नदी का पानी स्वच्छ है। लेकिन उत्तराखण्ड में खनन और भूस्खलन ने नदियों का स्वरूप बिगाड़ दिया है। लगातार खनन होने से नदियों की इकोलॉजी बिगड़ रही है। इसका सीधा प्रभाव मछलियों पर पड़ रहा है। इससे मछलियों के पलने-बढ़ने की परिस्थितियां विषम हो गई हैं। रही सही कसर इनका अवैध शिकार ने पूरी कर दी है। नदियों में करंट, ब्लीचिंग, बम, जहर से मछलियों का शिकार कर इन्हें नष्ट किया जा रहा है। इनके पालन-पोषण के लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं शुरू की गई हैं। अगर योजनाबद्ध तरीके से मत्स्य पालन किया जाए तो उत्तराखण्ड अपने साथ-साथ देश को बेहतरीन मछली उपलब्ध करा सकता है। लेकिन ठोस कार्ययोजना के अभाव में प्रदेश के पास जो मौजूद था वह भी बर्बाद हो रहा है
प्रदेश में एक तरफ जल संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद मत्स्य पालन आजीविका का बड़ा माध्यम नहीं बन पा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अवैध शिकार के चलते पहाड़ी नदियों में मछलियों की स्थानीय प्रजातियां खतरे में हैं। गूंज, महासीर, असेला, बाम मछली की प्रजातियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है। इससे जैव विविधता एवं बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र पर भी खतरा मंडरा रहा है। मछलियों को जैव विविधता एवं बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी माना जाता है। उत्तराखण्ड के गंगा एवं यमुना की सहायक नदियों में मछलियों की प्रजातियों में तेजी से कमी आ रही है। अवैध आखेट एवं खनन से मछलियां आधी रह गई है। अवैध रूप से मछली पकड़ने के लिए डायनामाइट, ब्लीचिंग और टिमरू पाउडर का इस्तेमाल किया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि घटता जल स्तर, खरपतवार, शैवाल पुंज, ऑक्सीजन की कमी ने भी इन प्रजातियों पर खतरा पैदा किया है। जल प्रदूषण बढ़ने से रोगों की संक्रामकता बढ़ रही है जो इन प्रजातियों के लिए खतरा बन रहे हैं। इसी के साथ ही उत्तराखण्ड में खनन और भूस्खलन ने नदियों का स्वरूप बिगाड़ दिया है। लगातार खनन होने से न केवल नदियों की इकोलॉजी बिगड़ रही है, बल्कि इसका सीधा असर मछलियों के जीवन पर पड़ रहा है।
वर्तमान में प्रदेश में 12 हजार लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मछली उत्पादन से जुड़े हैं। प्रदेश के जनपद पिथौरागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी, चंपावत, रूद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी, ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार में हजारों लोग मछली पालन से जुड़े हैं। पिथौरागढ़ जनपद के घाट, नाचनी, थल, मुवानी के साथ ही बागेश्वर, कपकोट, सोमेश्वर, गढ़वाल मंडल में भागीरथी, अलकनंदा, टोंस, सौंग, नयार, अलगार, डोडीताल, यमुना के जलागम क्षेत्र में अभी भी मत्स्य विकास की अपार संभावनाएं हैं। पंचेश्वर यानी पांच नदियों का संगम। काली, गोरी, धौली, सरयू, रामगंगा में मत्स्य की अपार संभावनाएं हैं। चंपावत का पंचेश्वर क्षेत्र मत्स्य आखेटकों को लुभाता रहा है। जिले के पंचेश्वर में एंगलिंग के लिए वन विभाग की ओर से हर आखेटक को परमिट जारी किया जाता है। एंगलिंग के दौरान पकड़ी गई मछलियों का शिकार करने के बजाय उनका वजन मापने, टैग लगाने के बाद उन्हें पानी में छोड़ दिया जाता है। इस समय प्रदेश में सालाना 5200 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो रहा है, अगर और प्रयास किए जाएं तो यह उत्पादन भी बढ़ेगा और अधिक लोगों को रोजगार भी मिलेगा। राज्य में इस समय मत्स्य बीज के 4 हैजरी बने हैं जिसमें 10 से 12 लाख मत्स्य बीज का उत्पादन हो रहा है। जबकि यह 90 से 100 लाख तक हो सकता है। प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भी मानना है कि प्रदेश में मछली पालन की अपार संभावनाएं हैं। वह कहते हैं कि सरकार मछली उत्पादकों की समस्याओं को प्राथमिकता से हल करेगी।
सरकार का यह लक्ष्य भी है कि इसे प्रदेश की आर्थिकी का महत्वपूर्ण माध्यम बनाया जाय। इसके लिए प्रदेश में मत्स्य संपदा योजना बनाई गई है। फिलहाल राज्य में मत्स्य पालन की दृष्टि से जिला सेक्टर में 1, राज्य सेक्टर में 8 व केंद्रीय सेक्टर में 17 योजनाएं संचालित हो रही हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से भी इसे बल दिया जा रहा है। प्रदेश में ट्राउट मत्स्य बीज की उपलब्धता पर फोकस किया जा रहा है। इसके लिए उत्तरा फिश के 12 आउटलेट खोले गए हैं ताकि इससे स्वरोजगार के अवसर सृजित हों। मत्स्य विभाग ने ‘उत्तरा फिश’ नाम से अपना ब्रांड भी बाजार में उतारा है। ऐसा नहीं है कि पहली बार मत्स्य पालन को लेकर प्रदेश में काम हो रहा है। तालाबों के दस वर्षीय पट्टा, तालाब सुधार कार्य, पर्वतीय व मैदानी क्षेत्र में तालाब निर्माण, प्रथम वर्षीय उत्पादन निवेश, बहते जल में मत्स्य पालन, निर्धारित मूल्य पर मत्स्य बीज आपूर्ति, मत्स्य पालन प्रशिक्षण, मैदानी एवं पर्वतीय क्षेत्र में हैचरी स्थापना, मत्स्य पालन हेतु जल व्यवस्था के तहत नलकूपों की स्थापना, इन्टीग्रेटेड फिश फार्मिग, निजी क्षेत्र में फिश फीड मिल स्थापना, तालाब संबंधी तकनीकी सुविधा, मत्स्य जीवी सहकारिता समितियों का गठन, मछुवा आवासीय भवन का निर्माण, दुर्घटना बीमा योजना, जलाशय प्रबंधन योजना पहले से चलती आ रही हैं लेकिन यह आजीविका के बड़े माध्यम में तब्दील नहीं हो पाया। कई बार यह भी देखा गया कि मत्स्य पालन के लिए मिलने वाली सब्सिडी डकारने के बाद मत्स्य उत्पादकों ने इस धंधे को ही विराम दे दिया।
मत्स्य पालन के क्षेत्र में लगातार नई उपलब्धियों के बावजूद पर्वतीय क्षेत्रों में मत्स्य विकास गति नहीं पकड़ पा रहा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मत्स्य पालन को गति देने के लिए पुराने तालाबों को ठीक करने, नए तालाबों का निर्माण करने अंगुलिका (बीज) विपणन से पूर्व एवं बाद में तालाब की व्यवस्था करना जरूरी है। पर्वतीय क्षेत्रों में 200 वर्ग मीटर क्षेत्र के तालाब बनाये जा सकते हैं। मत्स्य पालकों को मत्स्य बीज समय पर उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है। यहां पर मैदानी क्षेत्र से कई कुंतल मछली बर्फ में दबी आती हैं जबकि ये पौष्टिकता के लिहाज से लाभकारी नहीं मानी जाती। लेकिन यहां नदियों के किनारे डायनामाइट, ब्लीचिंग पाउडर, विद्युत करंट, कारतूस के जरिए मछली पकड़ने का काम जोरों से हो रहा है। इससे पर्वतीय क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली मछलियां की प्रजाति नष्ट हो रही हैं। इससे बच्चों व अंडों का जीवन भी नष्ट हो जाता है। आज हालत यह है कि मछलियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं जिनमें महाशीर व असैला भी प्रमुख हैं। यूं तो मत्स्य पालन पर्वतीय क्षेत्रों में कई दशक पहले से कृषकों द्वारा अपनाया जाता रहा है लेकिन भौगोलिक परिस्थति के अनुसार परियोजनाओं का न होना, वैज्ञानिक तकनीकी का अभाव, मत्स्य तालाबों की परभक्षी जीवों से सुरक्षा न हो पाना, तालाबों में आवश्यकता से अधिक मत्स्य बीजों का संचय न हो पाना इसके मुख्य कारण हैं। पर्वतीय क्षेत्र में कतला, रोहू, नैन, सिल्वर काप्र, ग्रास कार्प, स्केल कार्प, मिरर कार्प, जैसी मछलियों का संरक्षण न किया जाना भी एक बड़ा कारण है।
प्रदेश में मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं हैं। इसे बढ़ावा देने व रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए प्रदेश सरकार ने केन्द्र से अधिक बजट देने की मांग की है। सरकार मछली पालन के जरिए महिला, युवक मंगल दल और एसएसजी को रोजगार उपलब्ध कराएगी। ट्राउड मछली उत्पादकों को उचित मूल्य न मिलने से होने वाले घाटे के भरपाई अभिकरण करेगा। प्रदेश के भीमताल में केंद्र सरकार का शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान स्थापित है। इस संस्थान में हर साल प्रदेश में 2 हजार मत्स्य पालकों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। जिससे वह नवीन तकनीक से मछली पालन कर सकें। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत राज्य को पिछले दो वर्षों में 114.22 करोड़ रुपए केंद्र की तरफ से दिए गए। मत्स्य पालन के लिए अवस्थापना विकास, बीमा, पर्वतीय क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को तालाब निर्माण में सहायता देने, ग्राम समाज के तालाबों में सुधार आदि कार्य होने हैं। पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्र में एक-एक राज्य स्तरीय एकीकृत एक्वा पार्क स्थापित करने की योजना भी रखी गई हैं इसके अलावा ऊट्टामसिंह नगर जिले में 45 एकड़ जमीन पर एक्वा पार्क बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है।
सौरभ बहुगुणा, मत्स्य विकास मंत्री