- मोहन सिंह राणा
उत्तराखण्ड में अक्सर देखने में आया है कि विकास कार्यों की बाबत अधिकारी और जनप्रतिनिधि आपस में उलझते रहते हैं लेकिन कभी मामला थाने-चौकियों तक नहीं गया। पहली बार है जब उत्तरकाशी के पुरोला में उपजिलाधिकारी और भाजपा विधायक के बीच महीनों से विवाद चल रहा था। इनके आपसी मामले ने इतना तूल पकड़ा कि मुकदमा तक दर्ज हो गया। इसके बाद मामला चर्चाओं में आ गया। विधायक और एसडीएम के बीच का यह विवाद सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। विधायक समर्थक एसडीएम के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। जबकि उपजिलाधिकारी द्वारा विधायक के खिलाफ तहरीर देने से खासी किरकिरी हो रही है। मामले में उपजिलाधिकारी सोहन सिंह सैनी ने पुरोला थाने में विधायक के खिलाफ तहरीर दी जिसमें उन्होंने विधायक दुर्गेश्वर लाल पर जान से मारने की धमकी देने और छवि धूमिल करने के साथ ही एससी एसटी एक्ट में केस दर्ज कराने की धमकी देने का आरोप लगाया था। मामले को गंभीरता से लेते हुए शासन स्तर से डैमेज कंट्रोल के प्रयास शुरू किए गए हैं। बहरहाल, पुरोला उपजिलाधिकारी सोहन सिंह सैनी को कमिश्नर गढ़वाल ऑफिस अटैच किया गया है। उपजिलाधिकारी ने अपनी तहरीर में विधायक पर जो आरोप लगाए उनकी जांच जारी है। लेकिन दूसरी तरफ विपक्ष ने इस पर सरकार की घेराबंदी कर दी है।
दुर्गेश्वर लाल उत्तरकाशी की पुरोला विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते हैं। उपजिलाधिकारी सोहन सिंह सैनी ने पुलिस को दिए शिकायती पत्र में कहा है कि 21 मई को नगर पंचायत पुरोला द्वारा अवैध अतिक्रमण हटवाया गया। इसके बाद उसी दिन विधायक ने उन्हें रात लगभग 10 बजे पुरोला स्थित विश्राम गृह बुलाया। रात ज्यादा होने की वजह से उन्होंने आने में असमर्थता व्यक्त की। उपजिलाधिकारी का कहना है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से पता चला था कि विधायक और उनके राजनीतिक मित्र मेरे साथ किसी प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग कर बदतमीजी कर सकते हैं। इसके बावजूद अगली सुबह जब मैं विधायक से मिलने गया तो उन्होंने मुझे विश्राम गृह की जगह मुख्य बाजार में ही मिलने को कहा। 22 मई को जब वे मुख्य बाजार पहुंचे तो पुरोला के विधायक दुर्गेश्वर लाल और उनके समर्थकों ने उनके खिलाफ नारेबाजी की और अभद्र भाषा का प्रयोग कर नोंक-झोंक की। उपजिलाधिकारी ने ये भी कहा कि दुर्गेश्वर लाल बार-बार अपनी विधायकी का धौंस दिखाते हुए कार्यालय में अवैध कार्य करवाने का अनावश्यक दबाव भी बनाते रहते हैं।
एसडीएम ने आरोप लगाया कि विधायक के स्तर से मुझे हत्या करवाए जाने और एससी और एसटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करवाए जाने जैसी कई प्रकार की धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि पूर्व में उपजिलाधिकारी आवास जैसे स्थानों में आगजनी जैसी घटनाएं घटित हो चुकी हैं। मेरे पूर्ववर्ती अधिकारियों के साथ भी कई तरह की घटनाएर्ैं हुई हैं। इसे देखते हुए भविष्य में अगर मेरे साथ किसी प्रकार की अप्रिय घटना घटित होती है तो उसकी संपूर्ण जिम्मेदारी पुरोला विधायक दुर्गेश्वर लाल की रहेगी। दूसरी तरफ इन आरोपों पर विधायक दुर्गेश्वर लाल ने सफाई देते हुए कहा कि उपजिलाधिकारी हर बार की तरह बिना बताए ही सरकारी वाहन लेकर अपने घर जा रहे थे। मेरे द्वारा डीएम के संज्ञान में यह मामला लाए जाने के बाद एसडीएम पुरोला को आधे रास्ते से वापस आना पड़ा। अब अपनी करतूत छिपाने के लिए उपजिलाधिकारी उन पर झूठे आरोप लगा रहे हैं।
थानाध्यक्ष को प्रेषित एसडीएम सोहन सिंह सैनी का पत्र
याद रहे कि पुरोला के साथ ही पौड़ी का भी एक मामला कुछ दिन पहले चर्चाओं में आया था। जिला पंचायत पौड़ी में अध्यक्ष और अपर मुख्य अधिकारी के बीच आपसी खींचतान हुई थी। जिसमें दोष जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी पर आ गया था। विवादों के चलते गत 2 अप्रैल को अपर मुख्य अधिकारी को निदेशालय से अटैच कर दिया गया था। बताया जाता है कि जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी तेज सिंह की कार्यशैली से पौड़ी की जिला पंचायत अध्यक्ष शांति देवी शुरू से ही असहज थीं। तेज सिंह को अगस्त 2021 में पौड़ी में अपर मुख्य अधिकारी के पद पर तैनात किया गया था। लेकिन उन्हें पौड़ी में 4 दिन तक नियुक्ति नहीं दी गई थी। मामला गर्म होने के बाद आनन-फानन में तेज सिंह को चार्ज दे दिया गया लेकिन 13 दिन बाद उन्हें निदेशालय से भी अटैच कर दिया गया। तब तेज सिंह इस मामले में कोर्ट गए थे। हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद तेज सिंह ने अक्टूबर 2021 से पौड़ी जिला पंचायत में फिर से कार्यभार संभाल लिया था। इसके बाद उनके और अध्यक्ष के बीच तकरार और तेज हो गई। 26 फरवरी को अध्यक्ष शांति देवी ने तेज सिंह की कार्यशैली पर सवाल उठाए। जिसमें उन्होंने कहा कि तेज सिंह मनमानी तरीके से काम करते हैं। जिसके बाद शांति देवी ने अपर मुख्य अधिकारी के एक माह के वेतन पर रोक लगा दी थी।
बात अपनी-अपनी
अभी तो केवल उन्हें पद से हटाया गया है लेकिन उनके द्वारा की गई अनियमितता और अनुशासनहीनता की अभी लंबी कहानी है। वह अवैध के बहाने वैध निर्माण कार्यों को भी गिरा देते थे। पिछले लंबे समय से यह अधिकारी पुरोला के विकास में हमेशा रोड़ा बने रहे हैं। यहां पर कोई भी काम नहीं किया जा रहा था। जब अधिकारी इस तरह से विकास के कार्यों में आड़े आते हैं, तो निश्चित तौर से क्षेत्र का नुकसान होता है। उत्तराखण्ड के सीमांत इलाकों में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को मिलकर काम करने की जरूरत है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में इस अधिकारी के खिलाफ और भी कार्रवाई की जाएगी।
दुर्गेश्वर लाल, विधायक पुरोला
भाजपा के इन जनप्रतिनिधियों के ऊपर सत्ता की हनक सिर चढ़कर बोल रही है कि यह एसडीएम और डीएम को अपना गुलाम समझने लगे हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एक अधिकारी, जिसकी रूल बुक के हिसाब से वह अपनी सरकार के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर बयान नहीं दे सकता। फिर भी एसडीएम कितने मजबूर रहे होंगे कि उनको बाहर निकल कर आना पड़ा और अपने क्षेत्र के ही विधायक के खिलाफ तहरीर देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उपजिलाधिकारी ने विधायक पर गंभीर आरोप लगाए हैं। जिसमें वह साफ कह रहे हैं कि विधायक उनके ऊपर गलत काम करने के अनैतिक दबाव डाल रहे थे। सरकार ने विधायक के बचाव में उपजिलाधिकारी का ही तबादला करा दिया।
गरिमा दसौनी, कांग्रेस प्रवक्ता