कलम की ताकत
सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार चाय बागानों की जमीन की खरीद-फरोख्त नहीं हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो जमीन स्वतः ही सरकार की हो जाएगी। बावजूद इसके देहरादून में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत चलते चाय बागानों को गैरकानूनी तरीके बेचने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। इस मामले में देहरादून अपर जिलाधिकारी की कोर्ट में सुनवाई भी जारी है लेकिन अब सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया है और इसकी जांच एसआईटी को सौंप दी है
देहरादून में बहुतायत संख्या में चाय बागान हैं। लेकिन चाय बागान की जमीन की गैरकानूनी तरीके से खरीद-फरोख्त के चलते यहां चाय बागान नाम मात्रा के ही रह गए हैं। जबकि चाय बागान पर्यावरण और जैव विविधता के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि इनके संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2003 में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) की स्थापना की गई। जिसके तहत सरकार किसी भी सूरत में चाय बागानों का भू-उपयोग को परिवर्तित नहीं कर सकती है। सरकार द्वारा लीज पर चाय उद्योग के लिए भूमि दी गई है और इसका उपयोग हर हालत में केवल और केवल चाय उत्पादन के लिए ही हो सकता है। इस कानून के अनुसार न तो चाय बागान का स्वामित्व हस्तांतरित हो सकता है और न ही इसे बेचा जा सकता है। लेकिन सरकार के साथ-साथ शासन -प्रशासन में उच्च पदों पर बैठे लोगों से मिलीभगत करके चाय के बागानों की खरीद- फरोख्त धड़ल्ले से चल रही थी। जिस पर अब अपर जिलाधिकारी डॉ शिव कुमार बरनवाल ने विवादित भूमि को लेकर संबंधित लोगों को नोटिस जारी किए हैं। इस संबंध में जमीन की खरीद-फरोख्त करने वाले लोगों को 11 अगस्त को अदालत में तलब किया गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने जिला प्रशासन के इस कदम पर संतोष जताया है। उन्होंने कहा कि चाय बागान की भूमि को खुर्द- बुर्द करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
अपर जिलाधिकारी डॉ शिवकुमार बरनवाल चाय बागान और सीलिंग की जमीन की खरीद- फरोख्त मामले की सुनवाई कर रहे हैं। अदालत ने चाय बागान की भूमि खरीदने वाले विनोद कुमार और दीपचंद अग्रवाल को 11 अगस्त को भूमि संबंधी सभी दस्तावेजों के साथ अदालत में तलब किया है। यह विवादित भूमि रायपुर की खसरा नंबर 1586 है। डॉ बरनवाल ने एसडीएम ऋषिकेश और एसडीएम विकास नगर को आदेश दिए हैं कि ढकरानी, आर्केडिया और रायवाला में जो सीलिंग की जमीन है, उसका नया और पुराना पूरा रिकॉर्ड दिया जाए। एक जून को एसडीएम और तहसीलदार को लाडपुर के पर्ल व्यू की रिपोर्ट तीन दिन में देने के लिए कहा था, लेकिन दो महीने बाद भी यह रिपोर्ट नहीं दी गई है। एडवोकेट विकेश नेगी का कहना है कि इस तरह से तो सरकारी जमीन नहीं बचेगी।
दरअसल, आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने पिछले साल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी कि देहरादून में चाय बागान की जमीन की खरीद-फरोख्त चल रही है जो कि गैरकानूनी है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 10 अक्टूबर 1975 के बाद चाय बागान की जमीन की खरीद-फरोख्त नहीं की जा सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह जमीन स्वतः ही सरकार की हो जाएगी। एडवोकेट नेगी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद देहरादून के रायपुर, रायचकपुर, लाडपुर और नत्थनपुर समेत जिले में चाय बागान की सीलिंग की जमीन को खुर्द-बुर्द किया जा रहा है। इस मामले में देहरादून अपर जिलाधिकारी की कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है।
इस मामले को लेकर जिला प्रशासन भी लचर रवैया अपनाए हुए था। लेकिन अब सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और 1978 से 1990 के भू रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की बात को स्वीकार किया है। कई बैनामों के पेपर बीच में से फाड़ दिए गए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले की जांच के आदेश एसआईटी को दिए हैं। कोतवाली पुलिस में केस दर्ज किया गया है, इस मामले में नौ सब रजिस्ट्रार और 28 लिपिक जांच के घेरे में हैं।
इस मामले को उजागर करने वाले अधिवक्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी का कहना है कि इस मामले में निबंधन और राजस्व विभाग के अफसरों की मिलीभगत है और इसके तार पूरे उत्तर भारत में फैले हुए हैं। इस प्रकरण में भूमाफिया के साथ ही अफसर और नेता भी शामिल हैं। नेगी जरूरत पड़ने पर इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की करने की बात भी कर रहे हैं।