आपने कभी किसी मिथिलेश कुमार का नाम सुना है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति मिली हो? शायद नहीं, लेकिन नटवर लाल का नाम निश्चित ही आप सबने सुना होगा। इस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात ठग का असल नाम मिथिलेश कुमार था। बिहार के सीवान जिले में जन्मे इस व्यक्ति ने ‘ताजमहल’, ‘लाल किला’, ‘राष्ट्रपति भवन’ और ‘संसद भवन’ तक को बेच डाला था। एक ऐसे ही नटवरलाल दंपती की बाबत ‘दि संडे पोस्ट’ ने वर्ष 2010 में फर्जीवाड़ा कर अल्मोड़ा जिले के डांडा-काडा गांव में जमीन खरीदने का समाचार प्रकाशित किया था। इस नटवरलाल दंपती के काले कारनामे और ‘दि संडे पोस्ट’ के संपादक के खिलाफ वर्ष 2010 से लगातार इस दंपती द्वारा की जा रही साजिशों के चपेट में अब उत्तराखण्ड पुलिस के एक वरिष्ठ आईपीएस और उनकी टीम के सदस्य भी आ गए हैं
गत् एक सप्ताह से एक खबर जबर्दस्त वायरल हो रही हैं जिसका संदर्भ ‘दि संडे पोस्ट’ से तो है ही, उत्तराखण्ड के एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर एवं उनकी टीम के दो अन्य अफसरों का भी ‘पोस्टमार्टम’ इस वायरल न्यूज में है। खबर चूंकि खरबों रुपयों के बैंक घोटाले, कालाधन और ‘दि संडे पोस्ट’ के संपादक अपूर्व द्वारा कथित रूप से कराए गए एक मर्डर के साथ-साथ इस पूरे खेल में एक वरिष्ठ आईपीएस के शामिल होने और उनके द्वारा भी एक कथित विहिस्ल ब्लोवर की हत्या कराने से संबंधित है तो तहलका मचना वाजिब भी है। खबर कानूनी मामलों की जानकारी देने वाली एक वेबसाइट से निकली जिसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें उत्तराखण्ड के एक आईपीएस अफसर पर खरबों की बेनामी संपत्ति रखने, मर्डर कराने के आरोप लगाए गए हैं। खबर में बताया गया कि इस अफसर की कथित बेनामी संपत्ति और कथित काले कारोबार को ‘दि संडे पोस्ट’ अखबार के संपादक अपूर्व और उनकी पत्नी गीतिका संचालित करते हैं। इस याचिका को एक नवयुवक निशांत रोहेल ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। याचिका में लगाए गए गंभीर लेकिन पूरी तरह झूठे आरोपों की तह में जाने का प्रयास ‘दि संडे पोस्ट’ ने किया तो सारा सच सामने आ गया। इस याचिका के तार 2010 में इस अखबार में प्रकाशित एक समाचार से गहरे जुड़े हैं।
‘दि संडे पोस्ट’ के 20 जून 2010 माह के अंक 32 में एक खबर प्रकाशित हुई थी, शीर्षक था ‘पहाड़ी जमीन बाहरियों ने लूटी’। इसमें बताया गया था कि अल्मोड़ा जिले के मजखाली के पास डांडा काडा गांव में प्लीजेंड वैली फाउंडेशन के नाम 10 एकड़ जमीन खरीदी गई। यह फाउंडेशन दिल्ली के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ए.वी. प्रेमनाथ की पत्नी आशा यादव की है। स्थानीय निवासी बिशन सिंह अधिकारी, पुत्र नारायण सिंह अधिकारी का जिस जमीन पर 50 साल से कब्जा था उस पर एनजीओ ने कब्जा कर लिया। खबर में इस जमीन पर नियम विरुद्ध चार बड़े भवन बनाए जाने की बात भी कही गई थी। इस समाचार के प्रकाशित होने के बाद ‘दि संडे पोस्ट’ के संपादक को एक श्री ए.वी. प्रेमनाथ नामक व्यक्ति ने फोन किया। उन्होंने इस समाचार को गलत बताते हुए जानकारी दी कि वे जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और वर्तमान में दिल्ली सरकार में एक वरिष्ठ पद पर हैं। उन्होंने बताया कि यह संस्था ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ उनकी पत्नी श्रीमती आशा प्रेमनाथ गरीब और यतीम बच्चों के लिए चलाती हैं और हमारे समाचार पत्र की खबर से उन्हें और उनकी पत्नी को खासी मानसिक पीड़ा हुई है। संपादक ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे इस खबर का पुनः परीक्षण कराएंगे। साथ ही उन्हें भरोसा दिलाया कि यदि हमारा समाचार गलत हुआ तो उसके लिए समाचार पत्र में ही खेद याचना भी किया जाएगा। इसके बाद श्री ए.वी. प्रेमनाथ ने कोई संपर्क नहीं किया लेकिन संपादक की बाबत दुष्प्रचार का युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया। पूरी तरह फर्जी अखबार
प्रकाशित कर उन्हें उत्तराखण्ड में बांटा गया। ये अखबार फर्जी इसलिए क्योंकि इनमें आरएनआई का पंजीकरण नंबर नहीं था। रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज पेपर्स ऑफ इंडिया, जो केंद्र सरकार का संस्थान है, में अखबार का पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है। इस दुष्प्रचार के बाद हमारे वरिष्ठ सहयोगी पत्रकार आकाश नागर ने जांच-पड़ताल शुरू की। उनकी पड़ताल का नतीजा लगातार अलग-अलग खबरों के रूप में ‘दि संडे पोस्ट’ में प्रकाशित हुआ जिनमें बताया गया कि कैसे एक एनजीओ ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ की आड़ में गांव वालों को परेशान किया जा रहा है। उनका रास्ता और पानी रोका जा रहा है।
प्लीजेंट वैली के तार जुड़े मनी लॉउंड्रिग से
08 अगस्त, 2010 के हमारे अंक में पहला एक ऐसा समाचार प्रकाशित हुआ जिसमें हमने आशंका जताई कि इस फाउंडेशन की आड़ में बड़े स्तर पर मनी लाउंड्रिंग यानी कालेधन को सफेद करने का काम हो रहा है। खबर का शीर्षक था ‘पैसा है तो पानी है’। इस खबर का सार था कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन की 10 एकड़ जमीन जिस व्यक्ति के नाम पर खरीदी गई उनका नाम गोपाल सिंह बिष्ट पुत्र खड़क सिंह बिष्ट है। वह बागेश्वर का निवासी है और ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ में नौकरी करता है। महज 10 से 15 हजार की नौकरी करने वाले गोपाल सिंह बिष्ट के पास लाखों रुपया कहां से आया, जिससे उन्होंने 10 एकड़ जमीनें 80 लाख रुपए की खरीदी? जब इस जमीन पर निर्माण कार्य चल रहा था तब नियम विरुद्ध पानी इस्तेमाल करने के लिए बोरिंग किया गया था। प्रशासन ने जांच की और इसे सील करने के आदेश तो दिए लेकिन दिल्ली के अधिकारी की ऊंची पहुंच के चलते पानी का दोहन होता रहा। इसके बाद तो आकाश नागर खोजी पत्रकारिता में जुट गए। उन्होंने इस एनजीओ द्वारा अवैध तरीके से जमीन कब्जाने, भवन बनाने, वृक्षों के अवैध कटान करने के समाचार खोज निकाले। अल्मोड़ा जनपद का प्रशासन सक्रिय हुआ और इस एनजीओ के खिलाफ मुकदमें दर्ज होने लगे। आकाश नागर जब अवैध वृक्ष कटान की फोटो ले रहे थे तब उन पर एनजीओ की संपत्ति के लिए रखे गए चौकीदार बचीराम और गोपाल सिंह बिष्ट ने बदतमीजी की, धमकाया और उन पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप जड़ एक फर्जी मुकदमा एससी/एसटी एक्ट सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज करा डाला। सात बरस यह मुकदमा चला। अंत में सत्य की जीत हुई और नागर जेल जाने से बच गए। बाइज्जत बरी हो गए।
फर्जी दस्तावेजों के जरिए खरीदी जमीन
आकाश नागर की मेहनत असल रंग अगस्त, 2010 में लाई। हम समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्योंकर सामान्य सी खबरों से एक व्यक्ति, वह भी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी इतना आक्रोशित हो उठा है कि मिथ्या आरोप संपादक पर, मिथ्या मुकदमा आकाश नागर पर दर्ज करा रहा है। आकाश नागर ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खरीदी जा रही जमीनों की पड़ताल की तो ए.वी. प्रेमनाथ की बौखलाहट का राज समझ आ गया। दरअसल, एक जमीन की खरीद-फरोख्त पर हमें शक हुआ। किसी आशा यादव नाम की महिला ने खुद को उत्तराखण्ड का मूल निवासी बताते हुए मैणी गांव, जनपद अल्मोड़ा में सौ नाली (लगभग पांच एकड़) जमीन खरीदी थी। प्लीजेंट वैली फाउंडेशन की कर्ताधर्ता आशा प्रेमनाथ और इस जमीन की खरीददार आशा यादव के नाम की समानता होने के चलते नागर आशा यादव के उत्तराखण्ड का निवासी होने की जांच करने में जुट गए जिससे यह सच सामने आया कि आशा यादव ने अपने आपको उत्तराखण्ड का मूल निवासी बताने के लिए जो दस्तावेज दर्ज कराए हैं वह पूरी तरह जाली हैं। हमने इस पर एक समाचार 29 अगस्त, 2010 को प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था ‘आखिर कौन है आशा यादव’। खबर का सार था ‘नियमानुसार उत्तराखण्ड में कोई भी बाहरी व्यक्ति सवा नाली से अधिक जमीन नहीं खरीद सकता है। लेकिन आशा यादव नाम की महिला ने फर्जी खतौनी के आधार पर सौ नाली से अधिक जमीन खरीद ली। यह जमीन मैणी गांव में खरीदी गई।’
आशा यादव निकली आशा प्रेमनाथ
इसके साथ ही हमने ‘प्लीजंट वैली फाउंडेशन’ के दस्तावेज हासिल किए और दिल्ली की प्रतिष्ठित फॉरेंसिक प्रयोगशाला ‘ट्रूथ लैब’ में आशा यादव द्वारा खरीदी गई सौ नाली जमीन के कागजात और इस एनजीओ के कागजात आशा प्रेमनाथ और आशा यादव के हस्ताक्षरों की जांच के लिए भेज दिए। लैब ने अपनी रिपोर्ट में प्रमाणित किया कि दोनों ही हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति के हैं। इस पर हमने 05 जून, 2011 को ‘आशा का सच’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया जिसका सार था ‘आखिर आशा यादव का सच सामने आ ही गया। इस मामले में आशा यादव पर 08 अगस्त 2011 को अल्मोड़ा कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया गया और जमीन को सरकार में निहित करने के आदेश किए गए।
प्रेमनाथ ने साधा संपादक पर निशाना
इन समाचारों के प्रकाशित होने के दौरान और इसके बाद ए.वी. प्रेमनाथ ने इस अखबार के संपादक अपूर्व को अपने निशाने पर ले लिया। फर्जी नामों से उनकी बाबत शिकायती पत्र सीबीआई, विभिन्न राज्यों के पुलिस महानिदेशकों यहां तक कि एनआईए तक को भेजने का सिलसिला शुरू हो गया। इस शिकायती पत्रों में अपूर्व पर नकली नोट छापने, नशे का कारोबार करने, मासूम लड़कियां जो कथित तौर पर ‘दि संडे पोस्ट’ में ट्रेनी जर्नलिस्ट थी, संग सीरियल रेप करने, बड़े अपराधियों का कालाधन सफेद करने के आरोप लगाए गए। आरोपकर्ता के पते हमेशा फर्जी होते थे। केंद्र सरकार के नियमानुसार शिकायतकर्ता को अपना सत्यापन कराना जरूरी है। अज्ञात शिकायतकर्ता की शिकायत पर कार्यवाही नहीं की जाती है। ए.वी. प्रेमनाथ ने संपादक के खिलाफ जांच शुरू करवाने की भी तरकीब खोज ली। ऐसे शिकायती पत्र किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को भेजे जाते। उस व्यक्ति विशेष का कार्यालय जैसा सरकार में होता है ऐसे पत्रों को संबंधित जांच एजेंसी को भेज देता। अब मामला ‘वीआईपी रेफरेंस’ का बन जाता और जांच शुरू हो जाती। कई प्रदेशों की पुलिस का, एसटीएफ का आवागमन इस तरह ‘दि संडे पोस्ट’ के नोएडा स्थित दफ्तर में होना नियमित बात हो गई है। यहां तक कि सुदूर पहाड़ में अपूर्व के गांव और उनकी जन्मस्थली रानीखेत तक कई राज्यों की बेचारी पुलिस टीम सब कामधाम छोड़ पहुंच उनकी बाबत जानकारी एकत्रित करती है फिर पूरा मामला समझ आने के बाद केस बंद कर देती है। ए.वी. प्रेमनाथ लेकिन रुका नहीं है। वह नित नए षड्यंत्रों में जुटा रहता है।
आंदोलनकारी पीसी तिवारी भी बने टारगेट
2018 में ए.वी. प्रेमनाथ ने पहली ऐसी गलती कर डाली जिससे प्रमाणित हो गया कि इन फर्जी शिकायतों के पीछे ये साहब ही हैं। मार्च, 2018 में एक शिकायती पत्र दिल्ली के छह वकीलों ने कमिश्नर कुमाऊं को भेजा जिसमें उत्तराखण्ड के प्रतिष्ठित आंदोलनकारी और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी पर ब्लैकमेलिंग करने, उत्तराखण्ड में बाहर से आकर बसे नागरिकों से जबरन वसूली करने और बड़े पैमाने पर बेनामी संपत्ति बनाने के आरोप लगाते हुए देश के तीन बड़े अखबारों ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’, ‘दि पायनियर’ एवं ‘दि स्टेटसमेन’ अखबार में श्री तिवारी की बाबत छपे बड़े-बड़े समाचारों की कटिंग लगाकर, कमिश्नर कुमाऊं से जांच करने को कहा। श्री तिवारी ने इससे आक्रोशित होकर इन समाचार पत्रों को कानूनी नोटिस भेजा तो सारा माजरा साफ हो गया। तीनों अखबारों की कटिंग फर्जी थी। बाद में स्वयं ‘दि पायनियर’ ने पत्र लिखकर यह स्पष्ट कर दिया कि कोई ऐसा समाचार उनके प्रतिष्ठित अखबार में कभी प्रकाशित नहीं हुआ था। बहरहाल, अल्मोड़ा पुलिस ने इस प्रकरण की जांच की। पुलिस ने शिकायतकर्ता वकीलों के दिल्ली पहुंच बयान दर्ज किए जिसमें एक वकील ने स्पष्ट बयान दे डाला कि दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अफसर ए.वी. प्रेमनाथ उनके क्लाइंट है और उन्हें यह जानकारी उनके द्वारा दी गई है।
श्री तिवारी पर ए.वी. प्रेमनाथ की मेहरबानी का कारण फर्जी तरीके से आशा प्रेमनाथ द्वारा खरीदे जाने का सच सामने आने के बाद शुरू हुई जब श्री तिवारी ने इसे बड़ा मुद्दा बना शासन स्तर पर आशा प्रेमनाथ को गिरफ्तार करने, अवैध संपत्ति को जब्त करने का अभियान शुरू किया। इस अभियान और हमारे समाचार का नतीजा रहा कि आशा प्रेमनाथ पर कोतवाली अल्मोड़ा में एफआईआर दर्ज हुई, सौ नाली जमीन जब्त कर ली गई और आशा प्रेमनाथ के खिलाफ अल्मोड़ा जिला एवं सत्र न्यायालय में मुकदमा 2011 में शुरू हो गया।
संपादक पर लगाया हत्या का आरोप
पीसी तिवारी पर जघन्य फर्जी आरोप लगाने के बाद एक बार फिर ए.वी. प्रेमनाथ ने ‘दि संडे पोस्ट’ के संपादक को निशाने पर लिया। इस बार ‘दि संडे पोस्ट’ के कार्यालय में जम्मू-कश्मीर की पुलिस का एक दस्ता आ पहुंचा। इंस्पेक्टर जहीर इकबाल इस दस्ते के मुखिया थे। उन्होंने बताया कि एक रियाज अहमद नाम का व्यक्ति जनवरी, 2003 में कश्मीर घाटी से लापता हो गया है। उसकी बाबत जानकारी पाने के लिए अखबारों में सितंबर, 2018 में कश्मीर पुलिस ने विज्ञापन छपवाया। इस विज्ञापन के बाद उन्हें दो पत्र मिले जिनमें बताया गया है कि इस व्यक्ति रियाज अहमद की हत्या अपूर्व द्वारा अल्मोड़ा के जंगलों में की गई है। यह पत्र भी फर्जी नाम और फर्जी पतों से भेजे गए थे। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उत्तराखण्ड जाकर इन फर्जी नाम और पतों की तलाश की तो कुछ हाथ नहीं आया। इन फर्जी शिकायतों में जो कुछ मेरी बाबत लिखा गया उससे ए.वी. प्रेमनाथ की घृणित और आपराधिक मानसिकता एक बार फिर से सामने आ गई। इन शिकायती पत्रों के अनुसार उनकी पत्नी गीतिका क्वीरा 2003 में कश्मीर घाटी घूमने गई थीं जहां उनकी मुलाकात इस व्यक्ति रियाज अहमद से हुई। दोनों के मध्य नाजायज संबंध बन गए जिसकी खबर लगने पर अपूर्व रियाज अहमद को उत्तराखण्ड बुलाकर अल्मोड़ा के जंगलों में उसकी हत्या करवा दी। इस प्रकार की कहानी बॉलीवुड की किसी तीसरे दर्ज की फिल्म समान थी। तथ्यों की जांच-पड़ताल कर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तो केस बंद कर दिया।
अपने भाई और भाभी को भी नहीं बख्शा
इसके बाद अपूर्व ने इस व्यक्ति ए.वी. प्रेमनाथ के काले कारनामों को पब्लिक डोमेन में डालने का फैसला लिया। 2018 में उन्होंने ‘ए.वी. प्रेमनाथ का काला संसार’ नाम से तीन वीडियो बना यू-ट्यूब में डाले। इन वीडियोज को देखने के बाद एक शख्स डॉ. श्रीहरि और उनकी पत्नी श्रीमती देवकी देवी ‘दि संडे पोस्ट’ के दफ्तर आए। डॉ. श्रीहरि केंद्रीय विद्यालय, दिल्ली में अध्यापक हैं और उनकी पत्नी अमेटी स्कूल में लाइब्रेरियन हैं। डॉ. श्रीहरि ने जो बताया वह खासा चौंकाने वाला था। डॉ. श्रीहरि इस व्यक्ति ए.वी. प्रेमनाथ की सगी बुआ के लड़के हैं। डॉ श्रीहरि और उनकी पत्नी का भी इस व्यक्ति ने फर्जी शिकायती पत्रों, फर्जी ईमेल इत्यादि के माध्यम से जीना दूभर कर रखा है। बकौल डॉ. श्रीहरि ए.वी. प्रेमनाथ अपने कालेधन को उनके नाम पर इन्वेस्ट करना चाहता है। मना करने पर उसने इस दंपती को भी अपने निशाने पर लिया। डॉ. श्रीहरि की पत्नी के पास और उनकी बाबत ऐसी ईमेल और पत्र भेजे गए जिनमें श्रीमती देवकी देवी का चरित्र हनन के मनगढं़त किस्से, भद्दी गालियां इत्यादि लिखी गईं हैं। यह है ए.वी. प्रेमनाथ का ‘दि संडे पोस्ट’ के संपादक अपूर्व के पीछे हाथ धोकर पड़ने के कारणों का सच।
जज अभिषेक कुमार और आईपीएस अमित श्रीवास्तव ऐसे बने शिकार
अब बात सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका की जिसमें उत्तराखण्ड के वरिष्ठ आईपीएस अमित श्रीवास्तव, उनके जूनियर सब इंस्पेक्टर मनोहर सिंह दौसानी और सब इंस्पेक्टर श्याम सिंह रावत को खरबों के बैंक घोटाले में लिप्त होने, एक कथित विहिसल ब्लोवर मोहन सिंह की हत्या करवाने के आरोप लगाए गए हैं। इस याचिका में खरबों के काले धंधों का मास्टर माइंड श्री अमित श्रीवास्तव आईपीएस को बताया गया है और उनके कथित काले धंधों का रखवाला या एसोसिएट अपूर्व और उनकी पत्नी को बताया गया है। इस याचिका में जम्मू-कश्मीर से 2003 में गायब हुए व्यक्ति रियाज अहमद की हत्या अपूर्व द्वारा करवाए जाने का भी आरोप है। चूंकि आरोप बेहद संगीन हैं जिनमें मुख्य आरोपी एक वरिष्ठ पुलिस अफसर को बनाया गया है। यह याचिका माननीय मुख्य न्यायाधीश भारत, न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच के समक्ष पांच मार्च को सुनी गई। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता निशांत रोहेल जिसने स्वयं को विहिसल ब्लोवर बताया है, के वकील ने इस याचिका को वापस लेने की पेशकश माननीय उच्चतम न्यायालय से की। लेकिन याचिका में लगे आरोप इतने गंभीर प्रवृत्ति के हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील न मानते हुए इस याचिका को एडमिट करने का फैसला ले लिया है। यहां यह बात गौरतलब है कि याचिकाकर्ता निशांत रोहेल ने अमित श्रीवास्तव, अपूर्व, उनकी पत्नी आदि को इसमें पार्टी नहीं बताते हुए वित्त सचिव, भारत सरकार, केंद्रीय सतर्कता आयोग और सीबीआई को पार्टी बनाया है। मीडिया में प्रकाशित समाचारों के अनुसार सुनवाई के दौरान माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अमित श्रीवास्तव आदि को पार्टी न बनाए जाने पर प्रश्न याचिकाकर्ता के वकील से पूछा तो उन्होंने याचिका वापस लेने की बात कही जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया। क्योंकि आरोप बेहद संगीन है और एक सीनियर आईपीएस अफसर पर लगाए गए हैं। इसलिए तुरंत ही यह खबर वायरल हो गई।
अब समझिए ए.वी. प्रेमनाथ के टारगेट में श्री अमित कुमार और उनकी पुलिस टीम के दो अफसर क्यों आए। इसके तार जुड़े हैं ए.वी. प्रेमनाथ की पत्नी द्वारा फर्जी कागजात के आधार पर मैणी गांव, जिला अल्मोड़ा में खरीदी गई सौ नाली जमीन से, जिसका भांडाफोड़ ‘दि संडे पोस्ट’ ने 2011 में किया था और जिसके चलते श्रीमती आशा प्रेमनाथ और उनके एक सहयोगी चंद्रमोहन सेठी के खिलाफ अल्मोड़ा की पुलिस कोतवाली में आपराधिक मामला दर्ज हुआ। इस मामले की सुनवाई अल्मोड़ा जिला एवं न्यायालय में चल रही है। श्रीमती आशा प्रेमनाथ ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए तमाम प्रयास वर्ष 2011 यानी एफआईआर दर्ज होने के साल से ही करती रही हैं। लेकिन वे कभी भी पुलिस अथवा न्यायालय में पेश नहीं हुई। गैरजमानती वारंट जारी होने पर उन्होंने हाईकोर्ट से स्टे लेने का प्रयास इत्यादि सब कर लिया। यह मामला सेशन कोर्ट में मंद गति से चलता रहा। इस बीच जनवरी 2021 में इस मामले की सुनवाई कर रहे सीनियर सिविल जज अल्मोड़ा श्री अभिषेक कुमार ने आशा प्रेमनाथ के साथ एक सह अभियुक्त चंद्रमोहन सेठी के कनाडा जा बसने और एड्स जैसे रोग से पीड़ित होने के चलते उनकी पत्रावली को इस केस से अलग करते हुए मुकदमा आगे बढ़ाने के लिए आशा यादव उर्फ आशा प्रेमनाथ के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिए। श्री एवी प्रेमनाथ के निशाने पर अब सीनियर जज साहब आ गए। उनको टारगेट में लाने के लिए एक महिला कुसुम चौधरी यादव के नाम से जज साहब के खिलाफ नाना प्रकार के गंभीर आरोप लगाते हुए ईमेल हाईकोर्ट नैनीताल के वरिष्ठ न्यायाधीशों को भेजी गई। गौर कीजिएगा 15 जनवरी, 2021 को सीनियर सिविल जज अल्मोड़ा की कोर्ट ने आशा प्रेमनाथ उर्फ आशा यादव के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किए। आशा यादव ने इस वारंट पर रोक लगाने संबंधी याचिका हाईकोर्ट नैनीताल में तत्काल लगाई। माननीय उच्च न्यायाल, नैनीताल के विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद शर्मा ने यह याचिका 25 जनवरी, 2021 को यह कहते हुए खारिज कर डाली कि “Looking to the conduct of the applicant and the manner in which proceedings have been taken by her; despite the culmination of the investigation and commencement of the trial, she is avoiding to surrender and present herself before the case, hence this court is not inclined to exercise, its discretionary jurisdiction under section 482 of cr.p.c. consequently the case lacks merits and the same is dismissed”(याचिकाकर्ता के व्यवहार एवं उनके आचरण को देखते हुए कि पूरी जांच के दौरान और केस की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट में सरेंडर नहीं किया, यह कोर्ट उनकी याचिका खारिज करती है।)
इस आदेश के बाद ही कुसुम चौधरी नामक महिला के नाम पर एक ईमेल रनकहमेवनिजजंतांंदक/हउंपसण्बवउ बना। इस आईडी से सीनियर सिविल जज, अल्मोड़ा श्री अभिषेक कुमार के खिलाफ ईमेल उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भेजी गई और हाईकोर्ट उत्तराखण्ड में कुसुम चौधरी के द्वारा जज अभिषेक कुमार को आशा यादव वाले केस की सुनवाई रोकने की मांग की गई। जज श्रीवास्तव पर इस महिला ने आशा यादव के साथ दूसरे अभियुक्त चंद्रमोहन सेठी को फेवर करने का आरोप लगाया था। उच्च आदर्शों और सिद्धांतों का पालन करते हुए हाईकोर्ट, नैनीताल ने जज अभिषेक कुमार को 23 फरवरी 2021 को सस्पेंड कर डाला। साथ ही इस मामले की जांच हाईकोर्ट को विजिलेंस पुलिस, को मई, 2021 में दिए गए। यहां से इन्ट्री होती है अमित श्रीवास्तव, आईपीएस की जो उस समय हाईकोर्ट नैनीताल में बतौर एस.पी. विजिलेंस तैनात थे। सब इंस्पेक्टर मनोहर सिंह दौसानी एवं सब इंस्पेक्टर श्याम सिंह रावत भी विजिलेंस विभाग में तैनात थे। हाईकोर्ट, नैनीताल के आदेशानुसार इस टीम ने जब अपनी जांच शुरू की तो यह बात सामने आई कि कुसुम चौधरी यादव नामक महिला जिसने जज अभिषेक कुमार श्रीवास्तव पर आरोप लगाए, उसके पीछे ए.वी. प्रेमनाथ, उनकी पत्नी आशा यादव उर्फ आशा प्रेमनाथ थे। इस जांच में यह भी सामने आया कि कुसुम यादव के नाम पर लिखा गया मोबाइल नंबर का प्रयोग एवी प्रेमनाथ अपने नोकिया 53102020 क्नंस ैपउ और छवापं 216 क्नंस ैपउ वाले फोन से किया करते थे यानी इन मोबाइल फोन में एक सिम ए.वी. प्रेमनाथ के नाम का तो दूसरा सिम कुसुम चौधरी यादव के नाम का चलता है। यह है इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस का कमाल। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल ने निलंबित सीनियर जज सिविल अभिषेक कुमार की तत्काल बहाली कर डाली और इस षड्यंत्र को रचने वाले दिल्ली सरकार में संयुक्त सचिव ए.वी. प्रेमनाथ, उनकी पत्नी आशा प्रेमनाथ और कुसुम चौधरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए। इन तीनों के ही खिलाफ हल्द्वानी विजिलेंस सेक्टर पुलिस ने 01 जून, 2021 को एफआईआर दर्ज की। इन तीनों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुए। आशा प्रेमनाथ और ए.वी. प्रेमनाथ ने इन वारंट के खिलाफ हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर ले लिया है जबकि कुसुम चौधरी को 22 फरवरी, 2022 में उत्तराखण्ड पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अब वह भी जमानत पर है। विजिलेंस पुलिस ने अपनी जांच और उसके बाद दर्ज एफआईआर में यह लिखा है कि ‘श्री ए.वी. प्रेमनाथ दिल्ली, अंडमान व निकोबार दीप समूह सिविल सर्विसेज ;क्।छप्ब्ैद्ध सेवा के अधिकारी हैं तथा इनके विरुद्ध एफआईआर नं. 34/2002 धारा 420/467/468/471/ 120बी भादवि एवं 13(1)(डी) सपठित 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 थाना एंटी करप्शन ब्यूरो, राज्य बनाम ए.वी. प्रेमनाथ आदि माननीय विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)-02/;।ब्ठद्ध क्म्स्भ्प् के न्यायालय में विचाराधीन है। उक्त मुकदमे में उभय पक्षों के बीच धोखाधड़ी एवं अन्य आपराधिक कृत्य से संबंधित वाद अन्य न्यायालयों में भी प्रचलित है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाकर्ता के प्रेमनाथ से जुड़े हैं तार
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में लगे आरोप अत्यंत गंभीर प्रवृत्ति के हैं इसलिए बीते एक सप्ताह ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम ने इस पर काम किया तो दो चौंकाने वाला तथ्य सामने आए हैं। पहला तथ्य याचिकाकर्ता निशांत रोहेल की बाबत हैं जिन्होंने पूरी याचिका मे जहां कहीं भी उनका नाम था, उसे नीचे लिखे गए अपने पते को याचिका से हटाया है। केवल शपथ पत्र जो ऐसी याचिकाओं में डाला जाना जरूरी होता है, उसमें उन्होंने अपना पता निशांत रोहेल पुत्र स्व. श्री किशन रोहेल, निवासी अस्मालपुर, नई बस्ती, मुजफ्फरनगर दर्शाया है। ‘दि संडे पोस्ट’ के रोविंग एसोसिएट एडिटर आकाश नागर और अमित कुमार ने मुजफ्फरनगर जाकर इस पते को तलाशा तो पता चला इस नाम का कोई व्यक्ति इस गांव में नहीं रहता। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास ग्राम प्रधान का रिकॉर्डेड बयान और इस गांव की वोटर लिस्ट भी हैं जिसमें इस नाम का कोई भी जिक्र नहीं है। अन्य स्रोतों से पता चला है कि संभवतः यह व्यक्ति कुसुम चौधरी का भांजा है। इसे प्रमाणित करने का काम हम कर रहे हैं। आईपीएस अमित श्रीवास्तव पर इस याचिका में जिस विहिसल ब्लोवर मोहन सिंह की हत्या का आरोप लगाया गया है। उनकी बाबत जानकारी हमारे कुमाऊं ब्यूरो प्रमुख संजय स्वार एवं अखबार के राज्य प्रभारी दिव्य रावत ने जुटाई है। स्व. मोहन सिंह के भतीजे श्री सुरेंद्र कोरंगा का बयान रिकॉर्ड किया जिसमें उन्होंने ऐसी किसी हत्या की साजिश से स्पष्ट इंकार किया है। साथ ही एक चौंकाने वाली जानकारी भी हाथ आई है कि मृतक स्वयं मोहन सिंह के साढू भाई श्री गोपाल बिष्ट हैं। यह वही गोपाल बिष्ट हैं जिनके खाते में लाखों रुपया डालकर प्रेमनाथ की पत्नी के एनजीओ ने रानीखेत के मजखाली इलाके में जमीन खरीदी थी। हल्द्वानी विजिलेंस सेक्टर पुलिस की जज अभिषेक कुमार प्रकरण में भी इन्हीं गोपाल बिष्ट का नाम जज के खिलाफ साजिश रचने वालों में शामिल पाया गया था।
यानी एक सामान्य सड़क दुर्घटना का हत्या का नाम देने के पीछे भी ग्रेट ए.वी. प्रेमनाथ का नाम सीधे सामने आ जाता है। हमने इतना कर लिया बाकी उम्मीद है पुलिस अपने विशाल तंत्र का उपयोग कर दूध का दूध, पानी का पानी कर ही लेगी।
हां एक बात और, इस मानसिक रूप से विक्षिप्त और आपराधिक दिमाग वाले व्यक्ति ए.वी. प्रेमनाथ की यह कार्य विधि ;डवकने व्चतमदकपद्ध यानी काम करने का तरीका रहा है कि जो कोई भी इसके खिलाफ जाता है यह व्यक्ति उसके लिए षड्यंत्र रचना, उसकी बाबत घटिया आरोप लगाना शुरू कर देता है। 2011 में जब ‘दि संडे पोस्ट’ ने आशा प्रेमनाथ द्वारा फर्जीवाड़ा कर जमीन खरीदने का समाचार प्रकाशित किया था तब से इसने संपादक के चरित्र हनन के साथ-साथ उत्तराखण्ड के तत्कालीन राजस्व सचिव श्री मंजुल कुमार जोशी आईएएस पर भी गंभीर मिथ्या आरोप लगाए थे। अब ऐसे ही आरोप श्री अमित श्रीवास्तव आईपीएस और उनकी टीम पर इसने लगाए हैं।