[gtranslate]
Uttarakhand

बेरोजगारी बढ़ाने की तरफ धामी सरकार के उठे कदम

प्रदेश सरकार, खास तौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव प्रचार और सरकार के गठन के बाद कई बार राज्य के युवाओं को रोजगार देने को अपनी प्राथमिकता बताया है। अपने घोषणा पत्र में पांच लाख लोगों को रोजगार देने का वादा भी भाजपा ने किया था लेकिन जिस तरह से स्वयं सरकार ही राज्य के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा कर रही है वह अपने आप में चौंकाने वाला है। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की है कि राज्य सरकार जहां एक तरफ सरकारी नौकरियों की भर्तियां खोल रही है तो दूसरी ओर रिक्त पड़े पदों को समाप्त करने की कार्यवाही कर रही है

सत्ता में आने के बाद प्रदेश के हजारों बेरोजगार युवाओं को रोजगार से जोड़ने और खाली पड़े सरकारी पदो पर भर्तियां खोलने का वादा कर सत्ता मे वापसी करने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार अपने ही दावों और वादांं से उलट करती दिखाई दे रही है। पांचवें राज्य वेतन आयोग ने तीन वर्ष से रिक्त पड़े पदों को समाप्त करने की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार ने कार्मिक विभाग को कार्यवाही करने के आदेश तक जारी कर दिए तो वहीं विभिन्न विभागों में कार्यरत संविदा और आउटसोर्सिंग पदों पर कार्यरत हजारां युवाओं को भी बेरोजगार किया जा रहा है। विधानसभा चुनाव से पूर्व जारी किए गए अपने चुनावी घोषणा पत्र में भाजपा ने राज्य के 5 लाख युवाओं को रोजगार से जोड़ने तथा सरकारी भर्तियों के जरिए रोजगार देने का वादा भाजपा ने किया था। जबकि सरकार गठन के बाद से लेकर अभी तक तकरीबन 6 हजार आउटसोर्सिंग के तहत रोजगार पाने वालों को सरकार बेरोजगार कर चुकी है।

सरकार और सरकारी मशीनरी किस कदर काम कर रही है इसका ज्वलंत प्रमाण इस बात से ही मिल जाता है कि मौजूदा समय में प्रदेश में फायर सीजन पीक पर है जिसके चलते बेशकीमती वन संपदा आग की भेंट चढ़ रही है। बावजूद इसके पांच हजार वन प्रहरियों की सेवाएं महज इसलिए समाप्त कर दी गई है कि विभाग के पास उनके वेतन के लिए बजट उपलब्ध नहीं है। इसके चलते वनों में आग लगने की घटनाओं को रोकने और उस पर नियंत्रण करने के लिए वन विभाग के सामने बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती तीरथ सिंह रावत सरकार के समय प्रदेश सभी वन प्रभागों में वन प्रहरियों के तैनाती का निर्णय लिया गया था। इसमें 10 हजार वन प्रहरी तैनात करने और उनको 8 हजार रुपए प्रति माह मानदेय दिए जाने का निर्णय हुआ था। इसके लिए 40 करोड़ का बजट भी तय किया गया था। इसमें स्थानीय युवाओं को वनों और वन्य जीवों के संरक्षण तथा जंगलों में गश्त करके वनों में होने वाली आग की घटनाओं को रोकने का काम दिया जाना था। सरकार का यह निर्णय तेजी से हो रहे पलायन ओैर युवाओं में वन संरक्षण को बढ़ावा दिए जाने के साथ-साथ उनको उनके ही गांवों के आस-पास रोजगार देने के लिए बहुत बेहतर था। हजारां बेरोजगार युवाओं का उनके ही गांवों में रोजगार मिलने की उम्मीद भी बढ़ गई थी। इसका असर यह हुआ कि कई युवा जो कि शहरों में होटल-ढाबां आदि में रोजगार पर थे वे अपने-अपने गांवों में लौटकर वन प्रहरी बन गए।

वन विभाग द्वारा प्रदेश के सभी वन प्रभागों में 5 हजार स्थानीय युवाओं को वन प्रहरी के तोर पर तेनात किया गया था। फिलहाल यह योजना 31 मार्च तक ही थी। सात माह तक चली इस योजना को 31 मार्च को खत्म कर दिया गया जिस से 5 हजार वन प्रहरियों की सेवाएं एक ही दिन में समाप्त हो गईं। विभाग के पास केवल एक ही तर्क है कि उनके पास 31 मार्च 2022 तक का ही बजट था जो कि खत्म हो गया है। इसके चलते वन प्रहरियों को वेतन देने के लिए विभाग के पास बजट नहीं है जबकि हकीकत में वन विभाग के पास वनाग्नि के नियंत्रण के लिए भारी-भरकम बजट है और इसके तहत विभाग वन वॉचर के पद पर अस्थायी तैनात करता रहा है। वन प्रहरी भी वन वॉचर का ही काम देखते थे। उल्लेखनीय मौजूदा समय में वनां में आग लगने की घटनाएं बड़ी तेजी से सामने आ रही है। बीते एक सप्ताह में आग लगने की अनेक बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 2021 में फायर सीजन में 2813 घटनाएं सामने आईं थीं। यहां तक कि वन की आग बुझाने के लिए सेना के हैलीकाप्टर की मदद तक ली गई थी। वन प्रहरियों के तैनाती से वनों में होने वाली आग की घटनाओं पर नियंत्रण करने में बेहद मदद मिल रही थी। वन प्रहरियों की मदद से आग को नियंत्रण करने के लिए नियंत्रित तरीके से आग लगाया जाना भी शामिल था।

‘बारोजगारी’ से बेरोजगारी का दंश

इसी तरह से कोरोनाकाल में कोरोना से निपटने और सेवाओं की बेहतरी के लिए स्वास्थ्य विभाग में आउटसोर्सिंग के तहत सेवाएं दे रहे अस्थाई कर्मचारियों की भी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। प्रदेश के कई सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में उपनल और पीआरडी के माध्यम से फार्मासिस्ट, नर्स, बार्ड ब्वॉय तथा अन्य संवर्गों में सैकड़ों युवाओं को तैनात किया गया था। यह नियुक्तियां एक वर्ष के अनुबंध के तहत की गई थी। अनुबंध खत्म होते ही इनको सेवाओं से हटा दिया गया है। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में 600 के करीब फार्मास्टि, नर्स और वार्ड ब्वॉय आदि पदों पर कार्यरत सभी आउटसोर्स कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। कोराना काल में जब कोरोना पीड़ित के सगे रिश्तेदार तक अपने मरीजों को हाथ नहीं लगा रहे थे। यहां तक कि चिकित्सक भी अपनी सुरक्षा को लेकर भयभीत थे तब यह आउटसोर्स कर्मचारी ही फ्रंटफुट पर रह कर करोना मरीजों को अपनी सेवाएं दे रहे थे। कोरोना की तीनों लहर के समय इन कर्मचारियों ने ही सबसे पहले मरीजों को अपनी सेवाएं दी लेकिन कोरोना के खत्म होते ही इनको बाहर कर दिया गया। इसके चलते इन सभी कर्मचारियों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।

हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और कर्मचारियों की भारी कमी होने के बावजूद इन कर्मचारियों को बाहर कर दिया गया है। जिसके चलते दून अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह चरमरा गई है। मरीजों की जांच और अनेक कार्य जैसे पंजीकरण, बिलिंग तक का काम समय पर नहीं हो पा रहा था। मरीजों को कई-कई घंटों तक अपने इलाज के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। कोरोना काल में अपनी जान जोखिम में डाल कर सेवाएं देने वाले इन कर्मचारियों के समर्थन में विपक्ष का पूरा साथ मिल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी आंदोलन को समर्थन दे चुके हैं। हरीश रावत तो इनके साथ धरने पर भी बैठ चुके हैं। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री धनसिंह रावत का कहना हे कि इस मामले को कैबिनेट में रखा जाएगा।

प्रदेश सरकार, खास तौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव प्रचार और सरकार के गठन के बाद कई बार राज्य के युवाओं को रोजगार देने को अपनी प्राथमिकता बताया है। अपने घोषणा पत्र में पांच लाख लोगों को रोजगार देने का वादा भी
भाजपा ने किया था लेकिन जिस तरह से स्वयं सरकार ही राज्य के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा कर रही है वह अपने आप में चौंकाने वाला है। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की है कि राज्य सरकार जहां एक तरफ सरकारी नौकरियों की भर्तियां खोल रही है तो दूसरी ओर रिक्त पड़े पदों को ही समाप्त करने की कार्यवाही कर रही है।

पंचम राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा स्वीकार कर लिए जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खासी नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने राज्य सरकार को साफ-साफ चेतावनी देते हुए कहा है कि एक सप्ताह के भीतर सरकार इस पर कोई ठोस कदम उठाए और इन पदों का समाप्त करने का निर्णय वापस ले नहीं तो वे इसके विरोध में उपवास करने को बाध्य हो जाएंगे।

You may also like

MERA DDDD DDD DD