सूचना अधिकार के तहत सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के निजी स्टाफ और सलाहकारों से संबंधित जो जानकारी मिली वह हैरतनाक है। एक ओर तो राजकोष खाली होने का राग अलापती सरकार कर्मचारियों का वेतन देने के लिए कर्ज लेती है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ में दर्जनों लोगों का जमावड़ा कर उन्हें मोटा वेतन और आवास जैसी सुविधाएं दी गई हैं। खास बात यह है कि इनमें से कुछ भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं तो कुछ विवादों में रहे हैं। किसी पर सरकारी सेवा में रहते घोटाले के आरोप लगे तो किसी की निजी कंपनी पर गैर कानूनी ढंग से लेन-देन के। आलीशान सुविधाएं पाकर कोई भी मीडियाकर्मियों को हड़का देता है, तो कोई खुलेआम अपने परिवार को सरकारी खर्च से हवाई सैर करवाता है। एक छोटे से राज्य में सलाहकारों और ओएसडियों की फौज खड़ी कर देने की देशभर में चर्चा है
त्रिवेंद्र रावत सरकार के हालात अजीब हो चले हैं। जहां एक ओर सरकार कर्मचारियों को वेतन देने के लिए करोड़ों का कर्ज लेकर किसी तरह से काम चला रही है, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ पर प्रति वर्ष करोड़ां रुपए लुटाए जा रहे हैं। एक छोटे से राज्य जिसकी कुल आबादी महज एक करोड़ के आस-पास है, मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ में दर्जनों लोगों की फौज का जमावड़ा कर सरकारी के खजाने को लुटाया जा रहा है। मुख्यमंत्री की इस फौज में सरकारी विभागों से प्रतिनियुक्ति में आए हुए अधिकारियों के अलावा भाजपा के कई नेताओं को और मुख्यमंत्री के करीबियों को निजी स्टाफ के तौर पर तैनात किया गया है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से कइयों का वेतन एक लाख से भी अधिक है तो कइयों को सरकारी भवन तक आवंटित किए गए हैं।
समाचार पोर्टल ‘पर्वतजन’ द्वारा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कार्यालय से सूचना अधिकार के तहत जो जानकारी ली गई वह बहुत ही दिलचस्प है। जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री के स्टाफ में तीन दर्जन अधिकारियों को तैनात किया गया है। जिनको प्रतिमाह करोड़ों रुपए सरकारी खजाने से वेतन दिया जा रहा है। इनमें से 20 स्टाफ शासकीय सेवाआें का है, लेकिन 40 के लगभग स्टाफ पूरी तरह से राजनीतिक रखा गया है। इन सबको नियमित वेतन, ग्रेड वेतन और कई सुविधाएं दी जा रही हैं। कई ऐसे हैं जिनको आवासीय सुविधा तक दी गई है।
इन सबमें एक बात यह भी सामने आई है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के सत्ता में आसीन होते ही कई भाजपा नेताओं और चहेतों को मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ में भर्ती किया गया। पूर्व में ‘दि संडे पोस्ट’ ने ‘चहेतों पर लुटा खजाना’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था जिसमें एक ही दिन में दो दर्जन स्टाफ की नियुक्तियां की गई थी और बकायदा इनके लिए वेतनमान निर्धारित किए गए थे। इन सभी पदों को एक निश्चित ग्रेड पे, वेतनमान दिए जाने के भी आदेश जारी किए गए हैं। इनमें मीडिया कॉर्डिनेटर को 7600 ग्रेड पे, विशेष कार्याधिकारी को 6000 ग्रेड पे एवं जनसंपर्क अधिकारी को 5400 और प्रोटोकाल अधिकारी को भी 5400 का ग्रेड पे निश्चित किया गया। निजी सहायक पद के लिए 4200 ग्रेड पे और अनुसेवकों को 1800 का ग्रेड पे तय किय गया। इसके अलावा उप संपादक सोशल मीडिया के पदों के लिए रुपए 50 हजार का वेतन निश्चित किया गया।
इन सबके बावजूद मुख्यमंत्री के निजी स्टाफ में नियुक्तियां होती रही ओैर अब 38 ऐसे कार्मिक हैं जो मुख्यमंत्री के स्टाफ में कार्यरत हैं। जगदीश चंद्र खुल्वे, रमेश भट्ट एवं नरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री के स्टाफ के तौर पर आवास की सुविधा दी गई है। शेष अन्य 7 ओएसडी के बारे में ऐसी कोई जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय ने सूचना में नहीं दी है और न ही मुख्यमंत्री कार्यालय के कई अधिकारियों के कार्य का लेखा-जोखा अपने पास रखा है।
अगर मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात स्टाफ की सूची पर नजर डालें तो शासन की तरफ से 3 अपर मुख्य सचिव, 2 सचिव, 3 अपर सचिव, 3 निजी सचिव, 3 निजी अपर सचिव, 4 समीक्षा अधिकारी सहित कुल 18 अधिकारी तैनात हैं। इसके अलावा 10 ओएसडी, 8 निजी सहायक, 4 पीआरओ, 3 सोशल मीडिया उप समन्वयक, 1 मीडिया कोर्डिनेटर, 1 मीडिया सलाहकार, 4 सलाहकार, 1 प्रोटोकाल अधिकारी एवं 3 अनुसेवक सहित 41 का स्टाफ तैनात किया गया है।
मुख्यमंत्री के नौ ओएसडी हैं। इनमें धीरेंद्र पंवार, जगदीश चंद्र खुल्वे, गोपाल सिंह रावत, अभय सिंह रावत, देवेन्द्र सिंह रावत, विकास कुमार, दर्शन सिंह रावत, उर्वादत्त भट्ट, शैलेंद्र त्यागी और मोहन सिंह बिष्ट शामिल हैं। इन सभी को 80 से 90 हजार रुपए का वेतन और सुविधाएं दी जा रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारियों को प्रतिवर्ष 1 करोड़ 8 लाख रुपए सरकारी खजाने से वेतन दिया जा रहा है और सुविधाओं का खर्च भी जोड़ दें तो प्रतिवर्ष करीब डेढ करोड़ रुपए मुख्यमंत्री के ओएसडियां पर ही खर्च हो रहे हैं।
भ्रष्टाचार और विवादों से नातामुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के सलाहकारों और विशेष कार्याधिकारियों की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। एक ओएसडी पर भ्रष्टाचार के मामलां में चार्जशीट स्वंय उनके ही विभाग द्वारा दी गई है। एक ओएसडी पर फाइनेंस कंपनी के तौर पर अवैध कारोबार करने का अरोप लग रहा है। एक अन्य ओएसडी पर सरकारी खर्च से अपने परिवार को उत्तराखण्ड के हवाई दर्शन करवाने का अरोप है। इसी तरह एक ओएसडी पर अवैध खनन को संरक्षण देने का गंभीर आरोप है।
मुख्यमंत्री के औद्योगिक विकास सलाहकार कुंवर सिंह पंवार जो कि सोशल ग्रुप ऑफ कंपनी के चेयरमैंन हैं, की सोशल म्युचुअल बेनिफिट कंपनी लिमिटेड पर गैर कानूनी ढंग से लेनदेन करने का आरोप लगा है। कुछ समय पूर्व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा 12 फाइनेंस कंपनियों को गैर कानूनी तरीके से लेनदेन करने का और अनाधिकøत ढंग से आर्थिक गतिविधियां संचालित करने का दोषी पाया गया जिसमें एक सोशल म्युचुअल बेनिफिट कंपनी लिमिटेड का भी नाम सामने आया है। इस प्रकरण में कार्यवाही के लिए एसटीएफ को निर्देश तक दिए गए। लेकिन इस मामले के उजागर होने के बाद मामला दबा दिया गया और पंवार द्वारा समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करवाया गया जिसमें उनकी कंपनी सोशल म्युचुअल बेनिफिट कंपनी लिमिटेड द्वारा रिजर्व बैंक से किसी प्रकार का कोई सहयोग और निर्देश नहीं लेने की बात कही गई थी।
एक अन्य ओएसडी जगदीश चंद्र खुल्वे कृषि विभाग से प्रतिनियुक्ति पर मुख्यमंत्री के ओएसडी बने हैं। खुल्वे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के सबसे करीबी अधिकारी माने जाते हैं। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में कृषि मंत्री रहे त्रिवेंद्र रावत के तत्कालीन ओएसडी यही जगदीश चंद खुल्वे रह चुके हैं। इन पर कृषि विभाग में कृषि भूमि संरक्षण अधिकारी के पद पर रहते हुए लाखों के घोटाले का आरोप तक लग चुका है ओैर बकायदा इसके लिए कøषि विभाग द्वारा खुल्वे को चार्जशीट भी किया जा चुका है।
बावजूद इसके खुल्वे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के सबसे खास ओएसडी के पद पर प्रतिनियुक्त किए गए हैं। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप पर कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है। मुख्यमंत्री के एक अन्य ओएसडी पर डोईवाला विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन को सरंक्षण देने का आरोप है। साथ ही अवैध खनन को सरंक्षण देने के लिए मानकों में बदलाव किए जाने का भी आरोप उन पर लग चुका है। अवैध खनन में पुलिस के बजाय खनन विभाग द्वारा कार्यवाही किए जाने का जो आदेश हुआ उसके पीछे मुख्यमंत्री के इन्हीं ओएसडी का हाथ बताया जा रहा है।
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट पर मीडिया कर्मियों के साथ बदसलूकी करने के आरोप लगते रहे हैं। स्थानीय मीडिया की अपेक्षा राष्ट्रीय मीडिया को ज्यादा तवज्जो देने की रणनीति के पीछे भी रमेश भट्ट का हाथ बताया जाता है। सरकार का रैबार कार्यक्रम रहा हो या मुख्यमंत्री के बजट को लेकर जनता से विचार करने का विषय, हर मामले में रमेश भट्ट द्वारा उत्तराखण्ड के मीडिया को दोयम दर्जे के तौर पर ही देखा गया। हाल ही में छाये रहे उत्तरा पंत बहुगुणा प्रकरण में भी रमेश भट्ट पर प्रदेश के मीडियाकर्मियों को धमकाने के आरोप लगे हैं जबकि पूरे प्रकरण में सरकार की सबसे ज्यादा फजीहत हुई है। रमेश भट्ट को सरकारी आवास और अन्य सुविधायें भी दी गई हैं।
ओएसडी उर्वादत्त भट्ट पर पार्टी कार्यालय में जनता दरबार में जहर खाकर आत्महत्या करने वाले व्यापारी को फर्जी तरीके से मुख्यमंत्री राहत कोष से 50 हजार रुपए दिलवाए जाने में सहयोग करने का आरोप लग चुका है।
सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि जब-जब सरकार और खास तोर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति के नाम पर भड़ास निकाली गई तब-तब भाजपा की आईटी सेल अपना काम नहीं कर पाई और न ही सरकार का पक्ष सही तरीके से रख पाई। हालांकि मुख्यमंत्री कार्यालय में तीन-तीन सोशल मीडिया समन्वयकां को तैनात किया गया है और इनको सरकारी खजाने से प्रति माह 50 हजार रुपए का वेतन दिया जा रहा है। बावजूद इसके सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया में चल रहे प्रचार की काट करने के लिए इस टीम का कोई फायदा नहीं मिलता दिखाई दिया।
उत्तरा पंत बहुगुणा के मामले में जिस तरह सोशल मीडिया में मुख्यमंत्री को एक खलनायक के तौर पर प्रचारित किया गया उसकी काट करने में न तो मुख्यमंत्री की जम्बो टीम सामने आ पाई और न ही सोशल मीडिया समन्वयकों की रणनीति ही काम आ सकी। यही नहीं कई बार फर्जी खबरों को सोशल मीडिया में चलाने का आरोपी इसी सोशल मीडिया समन्वयक टीम पर लग चुका है। उत्तरकाशी के नौगांव में एक बच्चे के उपचार के लिए मुख्यमंत्री की सोशल मीडिया टीम ने देर रात को मुख्यमंत्री द्वारा चिकित्साधिकारी को बच्चे के इलाज के लिए आदेश देने की खबर प्रस्तुत की। लेकिन अगले ही दिन सारा झूठ सामने आ गया। इसी तरह से उत्तरा पंत बहुगुणा के माफी मांगने के बयान को तोड़ मरोड़ कर सोशल मीडिया में डाला गया। उसकी असल हकीकत तब सामने आ गई जब सोशल मीडिया में उत्तरा बहुगुणा का पूरा वीडियो सामने आया। जिससे साफ हो गया कि मुख्यमंत्री का सोशल मीडिया कार्यालय पूरी तरह फ्लॉप हुआ है।
मुख्यमंत्री की टीम पर अपना प्रचार करने और अपना जनाधार बढ़ाये जाने के आरोप भी लग चुके हैं। यही नहीं संवैधानिक पदों पर तैनात टीम के लोग अपने स्वागत और सत्कार के कार्यक्रमों को ज्यादा तरजीह देने के लिए भी चर्चित रहे हैं। आरोप तो यह भी लगाया जाता है कि भाजपा की आजीवन सहयोग निधि जुटाने में मुख्यमंत्री के सलाहकारों, ओएसडियों और पीआरओ द्वारा भी सहयोग किया गया। थराली उपचुनाव में भी भाजपा का प्रचार करने और बैठक लेने में मुख्यमंत्री की निजी टीम जिनको सरकारी खजाने से वेतन दिया जा रहा है, को लगाया गया। ओएसडी उर्वादत्त भट्ट पर सरकारी खर्च से अपने परिवार को हवाई सैर कराने का आरोप लग चुका है। जब मामले में सरकार की फजीहत हुई तो सरकार की तरफ से बयान आया कि इस तरह की हवाई यात्राओं का खर्च मुख्यमंत्री राहत कोष से पूरा किया जाएगा। हालांकि अभी यह पता नहीं चल पाया है कि उर्वादत्त भट्ट के परिवार को हवाई दौरे करवाए जाने के खर्च को मुख्यमंत्री राहत कोष से दिया गया है या नहीं, लेकिन इतना तो तय है कि सरकारी खजाने को हर तरह से चपत लागने में मुख्यमंत्री की निजी टीम पूरी तरह से लगी हुई है।
जब तक राजा तब तक फौजी
मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात किए गए सभी गैरसरकारी व्यक्तियों की नियुक्ति को-टर्मिनस है। जरूरी नहीं कि मुख्यमंत्री बदले जाने पर उनकी सेवाएं भी सलामत रहें। यानी जब तक राजा तब तक फौज। इनमें शैलेंद्र त्यागी, परमजीत सिंह, बुद्धि सिंह रावत, संदीप सिंह को जन संपर्क अधिकारी बनाया गया है। जिनको प्रति पीआरओ 63 हजार रुपए का वेतन दिया जा रहा है। एक वर्ष में पीआरओ पर 30 लाख से भी अधिक खर्च सरकारी खजाने से किया जा रहा है। इसी तरह से नितिन रावत, पंकज कुमार नैथानी और पारितोष सेठ को सोशल मीडिया उप समन्वयक बनाया गया है और यह सभी को-टर्मिनस पद हैं। इन सभी को 50-50 हजार प्रति माह का वेतन निर्धारित किया गया है। जिससे प्रति वर्ष 18 लाख रुपए वेतन आदि के नाम पर लुटाया जा रहा है। ये सभी भाजपा कार्यकर्ता और भाजपा नेताओं के चहेते लेग हैं जिनको सरकार में एडजस्ट कर रोजगार दिया गया है।
मुख्यमंत्री के 8 निजी सहायकों को इस पद पर रखा गया है। इनमें सुरेश जुयाल, विपिन सिंह, राजेन्द्र कुमार क्षेत्री, राय सिंह नेगी, रविन्द्र कुमार, संजय कुमार थापा, विक्रम रावत, चंद्रशेखर तिवारी शामिल हैं। इन सभी निजी सहायकां को प्रति माह 33 हजार 40 रुपए के हिसाब से प्रति वर्ष 32 लाख से भी अधिक का वेतन दिया जा रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि यह सभी निजी सहायक पद को-टर्मिनस पद हैं। साफ है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं और अपने खास और चहेतां को इस पद पर रोजगार देने के लिए ही तैनात किया गया। इसके चलते सरकारी खजाने से लाखों रुपए केवल भाजपा कार्यकर्ताओं को वेतन आदि के नाम पर लुटाया जा रहा है।
अनुसेवक के भी तीन पद हैं जिनमे ंदो पद को-टर्मिनस और एक पद पुनर्नियुक्ति के आधार पर भरा गया है। इनमें शेर सिंह बोहरा,महेश सिंह रावत को-टर्मिनस के आधार पर तैनाती पाए हुए हैं तो जगदीश प्रसाद गौड़ को सेवानिवृति के बाद देबारा सरकारी सेवा में पुनर्नियुक्ति दी गई है। इन सभी को प्रति अनुसेवक 20403 रुपए प्रति माह वेतन दिया जा रहा है जो कि प्रति वर्ष 7 लाख से भी अधिक सरकारी खजाने से दिया जा रहा है। इस प्रकार से मुख्यमंत्री के जम्बो निजी स्टाफ के लिए तकरीबन एक करोड़ 95 लाख रुपए हर वर्ष सरकारी खजाने से दिए जा रहे हैं। अगर इन सभी को अन्य सुविधाएं जैसे आवास, वाहन, कार्यालय और अन्य स्टाफ का खर्च भी जोड़ें तो खर्च का आंकड़ा कई लाख तक पहुंच सकता है।