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Uttarakhand

श्रीलंका टापू : उत्तराखण्ड का अंधेरा महाद्वीप

  •       गोपाल बोरा
लालकुआं विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा श्रीलंका टापू के वाशिंदे कई दशकों से दर्द झेलते आए हैं। बरसात का मौसम उनकी जिंदगी में दर्दनाक दास्ता बनकर आता है। यहां के लोगों का महत्व उस समय बढ़ जाता है जब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव आते हैं। इन चुनावों में यहां के मतदाताओं से लोकलुभावन वायदे कर वोट ले ली जाती हैं। लेकिन इनका दुर्भाग्य है कि आजादी के 75 सालों बाद भी उनके लिए न सड़क है, न ही बिजली। शायद यही वजह है कि इसे ‘अंधेरा महाद्वीप’ कहा जाता है। गोला नदी की उफनती धारा पार कर जिंदगी की जद्दोजहद में लगे लोग उस समय देश-दुनिया से कट जाते हैं जब बरसात का मौसम आता है
बिंदुखत्ता लालकुआं के श्रीलंका टापू की समस्याएं आज भी विकराल हैं। यहां के वाशिंदे समस्याओं के भंवर जाल में फंसकर अपने दिन व्यतीत कर रहे हैं। यह एक ऐसा छोटा-सा गांव है जो बरसात के दिनों में दुनिया से अलग-थलग पड़ जाता है। खासतौर से बरसात के दिनों में यह गांव विशेष सुर्खियों में रहता है, वोट बैंक के रूप में यहां के लोगों का उपयोग तो किया जाता है लेकिन यहां बसे लोगों की समस्याओं के निदान की ओर आज तक किसी ने भी ईमानदारी से प्रयास नहीं किए हैं। यही कारण है कि यह गांव उपेक्षा का घोर दंश झेल रहा है। गौला नदी के पार बसा यह छोटा-सा गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। शिक्षा, यातायात, विद्युत, स्वास्थ्य आदि तमाम सुविधाओं से वंचित इस गांव के लोगों को सामान्य सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भी गौला नदी पार करनी पड़ती है और बरसात के दिनों में जब नदी का बेग बढ़ जाता है तो यह गांव मुख्यधारा से पूरी तरह अलग-अलग हो जाता है उन दिनों यहां की समस्याएं और विकराल हो जाती हैं। बताया जाता है कि वर्ष 1984 में आई भयंकर बाढ़ के चलते खुरियाखत्ता का यह हिस्सा पूरी तरह कट गया था जो श्रीलंका टापू के नाम से आज जाना जाता है। यहां निवास करने वाले लोग खेती-बाड़ी से अपना जीवन-यापन करते हैं तथा अपने दैनिक वस्तुओं की पूर्ति के लिए जान जोखिम में डालकर गौला नदी पार कर अपने दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए भी यहां के लोगों को गौला नदी पार करनी पड़ती है। कभी-कभी तो नदी में पानी अधिक होने पर कमर तक पानी को पार कर जाना पड़ता है यदि पानी का बहाव ज्यादा तीव्र हो तो किच्छा के रास्ते इन्हें लगभग तीस किलोमीटर की यात्रा तय कर लालकुआं आना पड़ता है। आवश्यकता की एक छोटी-सी सामग्री प्राप्त करने में इस तरह से इनका पूरा दिन व्यतीत हो जाता है।
यहां के लोग खेती एवं पशुपालन के कार्यों पर निर्भर हैं किंतु इन लोगों के साथ एक विकराल समस्या यह भी है कि कभी- कभार इनके द्वारा मेहनत से तैयार की गई खेती को जंगली जानवर चौपट कर जाते हैं। इस गांव में लगभग 40 परिवार निवास करते हैं और इनके लिए कोई भी सरकारी सुविधा जैसे सड़क, बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है। श्रीलंका टापू के निवासी जो वर्षों से यहां मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं तथा पत्राचार कर रहे हैं। ऐसे लोगों की आवाज बने रमेश सिंह राणा ने बताया कि जब हम कहीं श्रीलंका टापू के नाम से अपना परिचय देते हैं तो लोग हमें अजीब नजरों से देखते हैं। कई बार तो हमारे साथ गलत व्यवहार भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि बिंदुखत्ता के नाम से आने वाली तमाम सुविधाएं हम तक नहीं पहुंचती हैं और मूल बिंदुखत्ता में ही सिमट कर रह जाती हैं। पूर्व में विधायक ने यहां सामुदायिक भवन एवं प्राइमरी स्कूल तथा सीमेंट रोड भी बनाया था जिसमें सिर्फ रोड ही बचा है और बाकी भवन बरसों बीत गए बाढ़ की चपेट में बह गए। सरकारी सुविधा के नाम पर यहां दुग्ध संघ द्वारा खोला गया दूध कलेक्शन सेंटर मात्र ही है जिससे डेढ़ सौ लीटर से अधिक दूध नैनीताल सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ में जाता है। इसको आप किसी प्रकार की सुविधा कह सकते हैं। बिजली के लिए यहां रह रहे लगभग 50 परिवार बरसों से गुहार लगा रहे हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है।
इसके अलावा वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजेंद्र खनवाल भी ऐसे ही शख्स हैं जो श्रीलंका टापू की दयनीय दशा को संज्ञान में लेते हुए यहां तमाम मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की मांग को लेकर आवाज बुलंद करते रहे हैं। खनवाल ने श्रीलंका टापू बिंदुखत्ता में विद्युतीकरण की मांग को लेकर स्थानीय लोगों के साथ अधीक्षण अभियंता को ज्ञापन देकर शीघ्र विद्युतीकरण की मांग की है। वे लंबे समय से विद्युतीकरण की मांग कर रहे हैं। 2005- 06 में इसके लिए सर्वे भी किया जा चुका है। इसके बाद भी यहां विद्युत लाइन आज तक नहीं पहुंची है। लोग अंधेरे में जीने को मजबूर हैं। इसके चलते ही लोग अब इस इलाके को ‘अंधेरा महाद्वीप’ कहने लगे हैं। वे कहते हैं कि यदि यहां निवास करने वाले लोगों की समस्याओं के निदान की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है तो वे व्यापक जन आंदोलन चलाएंगे।
    श्रीलंका टापू कई सालों से बिंदुखत्ता का एरिया रहा है। यहां काफी प्रयासों के बाद भी विद्युतीकरण नहीं हो रहा था। विद्युतीकरण पर रोक लगी थी। लेकिन 17 साल बाद अब हम इस रोक को हटवाने में कामयाब हो गए हैं। फिलहाल विद्युतीकरण के लिए सबसे बड़ी अड़चन बिंदुखत्ता और श्रीलंका टापू के बीचोबीच गोला नदी का होना है। बिंदुखत्ता में तो बिजली है लेकिन गौलापार बिजली नहीं जा सकती है। जिसके कारण श्रीलंका टापू अंधेरे में रह रहा है। हमने प्लान किया है कि गौला नदी के दोनों तरफ दो टावर लगवाकर उस तरीके से श्रीलंका टापू में बिजली पहुंचाई जाएगी। यहां सबसे बड़ी समस्या फॉरेस्ट लैंड है। फॉरेस्ट का मानना है कि लोगों का उनकी जमीन पर अतिक्रमण है। लोग बरसों से यहां रहते हैं वे हटाए नहीं जा सकते हैं। इसलिए अब हम उनको जमीनों का हक देने के लिए भी काम कर रहे हैं। जल्द ही श्रीलंका टापू रेवेन्यू विलेज बन जाएगा और तमाम समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
मोहन सिंह बिष्ट, विधायक लालकुआं

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