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Uttarakhand

कहीं बदलाव की मांग तो कहीं प्रत्याशियों का टोटा

आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस में खासी हलचल बढ़ गई है। जहां भाजपा में चुनावी सरगर्मियां ज्यादा देखने को मिल रही हैं तो वहीं कांग्रेस भी पीछे नहीं है।­­ भाजपा के भीतर कई दावेदारों की आहट सुनाई देने लगी है। हालांकि पार्टी सूत्रों के अनुसार अभी तक प्रदेश की पांचों सीटें पर किसी भी मौजूदा चेहरे पर बदलाव किए जाने की कोई चर्चा नहीं है और न ही अभी इसका कोई अंदेशा जताया जा रहा है। बावजूद इसके भाजपा भीतर टिहरी सीट को लेकर एक बड़ा वर्ग बदलाव किए जाने और किसी नए चेहरे पर दांव लगाए जाने की मांग भी कर रहा है। कांग्रेस के लिए टिहरी लोकसभा सीट पर 2012 में मिले वनवास को खत्म करने की चुनौती बनी हुई है। पहले आम चुनाव से लेकर 1989 तक टिहरी सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा। कुल 8 बार कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की। कांग्रेस के किसी नेता ने अभी तक टिहरी सीट पर अपनी दावेदारी खुले तौर पर तो नहीं की है लेकिन कई वरिष्ठ नेता, पूर्व विधायकों के नाम चर्चाओं में है जो संभावित दावेदार माने जा रहे हैं

 

 

टिहरी लोकसभा सीट पहाड़ और मैदान का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें 8 विधानसभा सीटें पहाड़ी भू-भाग की हैं तो 6 सीटें मैदानी क्षेत्र की है। यही भौगोलिक परिक्षेत्र टिहरी लोकसभा सीट को दिलचस्प बनाता हैं। जहां उत्तरकाशी जिले के पुरोला, गंगोत्री और यमनोत्री विधानसभा क्षेत्र तथा टिहरी जिले के टिहरी, घनशाली, प्रताप नगर, धनौल्टी विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से पर्वतीय क्षेत्र हैं तो वहीं देहरादून जिले की चकराता सीट पूरी तरह से पर्वतीय भू-भाग में है। मसूरी विधानसभा क्षेत्र दो भागों में बंटी हुई है जिसमें आधा क्षेत्र तो पहाड़ी है जबकि एक बड़ा हिस्सा मैदानी का है। इसी तरह से विकास नगर, सहसपुर, राजपुर रोड तथा रायपुर और कैंट विधानसभा सीट पूरी तरह से मैदानी क्षेत्र की विधानसभा सीटें हैं।

इतिहास
इस सीट पर कांग्रेस-भाजपा और वामपंथियों का कब्जा रहा है। कांग्रेस ने इस सीट पर लंबे समय तक राज किया तो भाजपा ने भी 6 बार इस सीट पर कब्जा किया। 2014 से लेकर मौजूदा समय तक यह सीट भाजपा के खाते में रही है। टिहरी राजपरिवार का इस सीट पर जबर्दस्त दबदबा है। 1952 में हुए आम चुनाव में टिहरी राजपरिवार की महारानी कमलेंदुमति शाह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीती थी तो 1957 के आम चुनाव में महारानी कमलेंदुमति शाह के पुत्र और टिहरी के राजा मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर यह सीट राजपरिवार के पास सुरक्षित रखी। 1962 व 1967 के लोकसभा चुनाव में भी मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस के खाते में टिहरी सीट को बरकरार रखा। वर्ष 1971 में कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिपूर्णानंद पैन्युली को टिकट देकर उम्मीदवार बनाया। तब पहली बार टिहरी राजपरिवार को हार का सामना करना पड़ा और महाराजा मानवेंद्र शाह जो कि निर्दलीय चुनाव में उतरे थे, को पैन्यूली से मात खानी पड़ी।

1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से अलग होकर हेमवती नंदन बहुगुणा ने लोकदल का गठन किया और जनता पार्टी को अपना समर्थन दिया था। जनता पार्टी ने त्रेपन सिंह नेगी को चुनाव में उतारा। करीब तीन दशक बाद पहली बार कांग्रेस के हाथांे से यह सीट निकल गई। वर्ष 1980 में कांग्रेस ने त्रेपन सिंह नेगी को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव में खड़ा कर टिहरी सीट पर दमदार वापसी की। इसी तरह से 1984 और 1989 में भी कांग्रेस के ब्रह्मदत्त ने टिहरी सीट पर लगातार दो बार जीत हासिल की।

वर्ष 1991 में महाराजा मानवेंद्र शाह भाजपा में शामिल हुए तब पहली बार भाजपा के खाते में टिहरी सीट आई। इसके बाद लगातार 1996, 1998, 1999 तथा 2004 में लगातार 4 बार
मानवेंद्र शाह ने इस सीट पर जीत हासिल की ओैर भाजपा के खाते में इस सीट को बनाए रखा। वर्ष 2007 में मानवेंद्र शाह की मृत्यु के बाद टिहरी सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के विजय बहुगुणा ने भाजपा के प्रत्याशी स्वर्गीय मानवेंद्र शाह के पुत्र मनुजेंद्र शाह को हराया। दिलचस्प बात यह हेै कि विजय बहुगुणा लगातार दो बार कांग्रेस के टिकट पर टिहरी सीट से चुनाव मानवेंद्र शाह से हारते रहे। मानवेंद्र शाह की मृत्यु के बाद उनका राजनीतिक हार का सिलसिला थमा। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भी विजय बहुगुणा ने भाजपा प्रत्याशी और प्रख्यात निशानेबाज जसपाल राणा को हराया।

2012 में विजय बहुगुणा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो टिहरी सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें उनके पुत्र साकेत बहुगुणा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन वे भाजपा की प्रत्याशी और मनुजेंद्र शाह की पत्नी महारानी माला राजलक्ष्मी से चुनाव हार गए और भाजपा के साथ-साथ टिहरी राजपरिवार के खाते में यह सीट फिर से वापस लौट आई।
2014 के लोकसभा चुनाव में फिर से माला राजलक्ष्मी ने कांग्रेस के साकेत बहुगुणा को करीब दो लाख मतों के अंतर से हराया। 2019 के चुनाव में तीसरी बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को तीन लाख के बहुत बड़े अंतर से चुनाव में हराकर लगातार तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुईं। इस तरह से कांग्रेस ने लोकसभा सीट पर 8 बार और भाजपा ने 7 बार जीत हासिल की तो एक बार निर्दलीय और एक बार जनता पार्टी ने भी इस सीट पर जीत हासिल कर चुके हैं। एक तरह से यह कहा जा सकता हेै कि टिहरी के मतदाताओं ने भाजपा-कांग्रेस दोनों को ही नेतृत्व करने का भरपूर अवसर दिया है। साथ ही सांसद को बदलने में भी देरी नहीं की है जिसके चलते कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा ने इस सीट का नेतृत्व किया है।

वर्तमान परिदृश्य
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों में खासी हलचल बढ़ गई हैं। जहां भाजपा में चुनावी सरगर्मियां ज्यादा देखने को मिल रही हैं तो वहीं कांग्रेस भी पीछे नहीं है। भाजपा के भीतर कई दावेदारों की आहट सुनाई देने लगी है। हालांकि भाजपा सूत्रों के अनुसार अभी तक प्रदेश की पांचों सीटांे पर किसी भी मौजूदा चेहरे पर बदलाव किए जाने की कोई चर्चा नहीं है और न ही अभी इसका कोई अंदेशा जताया जा रहा है। बावजूद इसके भाजपा भीतर टिहरी सीट को लेकर एक बड़ा वर्ग बदलाव किए जाने और किसी नए चेहरे पर दांव लगाए जाने की मांग भी कर रहा है।

इसके चलते टिहरी सीट से भाजपा से टिकट चाहने वालों की उम्मीदों को पंख लग रहे हैं और कई नेता दबी जुबान से अपनी दावेदारी करने की बात भी कह रहे हैं। खुलेतौर पर अभी किसी ने अपनी दावेदारी की है लेकिन जिस तरह से उनकी सक्रियता पार्टी पदाधिकारियों के साथ-साथ संगठन के दरवाजे तक होने लगी है उससे साफ है कि भाजपा में कई दावेदार हो सकते हैं।

महारानी माला राजलक्ष्मी: वर्तमान सांसद माला राजलक्ष्मी ने अपने संसदीय क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ा दी है जबकि विगत चार वर्षों से उन पर निष्क्रिय रहने के आरोप लगते रहे हैं। मतदाताओं में माला राजलक्ष्मी के प्रति रोष हर चुनाव में देखने को मिलता रहा है। बावजूद इसके हर चुनाव में उनकी जीत का अंतर पहले से कई कई गुना बढ़ा है। टिहरी, उत्तरकाशी जिले में आज भी राजपरिवार के प्रति मतदाताओं में भरोसा कायम है। 2007 के उपचुनाव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव में माला राजलक्ष्मी को मिले मतों के आंकड़ों को देखें तो उनके जीत का अंतर पहले से कई गुना ज्यादा रहा है। जहां 2012 केे उपचुनाव में भाजपा राजलक्ष्मी को 2 लाख 45 हजार 835 मत मिले तो कांग्रेस के साकेत बहुगुणा को 2 लाख 23 हजार 141 मत प्राप्त हुए। हार-जीत का अंतर 22694 रहा तो वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में माला राजलक्ष्मी को 4 लाख 46 हजार 743 मत प्राप्त हुए और साकेत बहुगुणा को महज 2 लाख 54 हजार 230 ही प्राप्त हो पाए। इसमें हार- जीत का अंतर 1 लाख 92 हजार 513 मतों का रहा।

माला राजलक्ष्मी का जीत के अंतर का सिलसिला कम नहीं हुआ और 2019 के चुनाव में उनको 5 लाख 65 हजार 333 वोट मिले जबकि कांग्रेस के प्रीतम सिंह को महज 2 लाख 64 हजार 747 मत ही मिल पाए। इस चुनावी जीत में माला राजलक्ष्मी ने प्रीतम सिंह को 3 लाख 586 मतों के भारी भरकम अंतर से पटखनी दी। चुनाव में जीत के इन आंकड़ों को देखने से साफ है कि टिहरी सीट के मतदाताओं में माला राजलक्ष्मी का मजबूत जनाधार बना हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि मतदाताओं में उनके प्रति रोष और नाराजगी होने के बावजूद चुनाव में बड़े अंतर से जीत हासिल करने में माला राजलक्ष्मी को कोई खास परेशानी नहीं हुई है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो माला की लगातार तीन बार जीत के कई राजनीतिक समीकरण हो सकते हैं जिसमें सबसे बड़ा कारण मोदी लहर का होना है। भाजपा सूत्रों की मानें तो माला राजलक्ष्मी प्रदेश में एक मात्र महिला सांसद हैं और जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 33 प्रतिशत महिला आरक्षण को लेकर अपनी सरकार की प्रतिबद्धता जता चुके हैं जिसमें महिला आरक्षण विधेयक को संसद से पास करवा चुके हैं उससे भाजपा में महिलाओं को ज्यादा स्थान देने का भी दबाव बन रहा है। इसके अलावा 2017 से लेकर 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लगातार दो बार जीत का सबसे बड़ा कारण महिला मतदाताओं का भाजपा को खुल कर वोट मिला है जिससे प्रदेश की राजनीति में पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है। जबकि पूर्व में हर पांच वर्ष से मतदाताओं में सत्ता परिवर्तन करने का चलन रहा है।

वैसे कहा तो यह भी जा रहा है कि स्वयं माला राजलक्ष्मी चुनाव लड़ना नहीं चाहती, इस बात में कहां तक सच्चाई है यह तो पता नहीं लेकिन चुनावी वर्ष में उनकी सक्रियता बढ़ी है जबकि पूर्व में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें एक सांसद के तौर पर उनकी जरूरत उनके क्षेत्र की जनता को सबसे ज्यादा थी लेकिन वे नजर नहीं आई। विगत कुछ वर्षों से प्रदेश भारी प्राकृतिक आपदा के दौर से गुजर रहा है उसमें माला राजलक्ष्मी की भूमिका ज्यादा देखने को नहीं मिली है। अब भाजपा में कई ऐसे चेहरे हैं जो टिहरी सीट पर अपनी दावेदारी की चाह रखते हैं। हालांकि अभी किसी ने खुलकर अपनी दावेदारी की बात को स्वीकार तो नहीं किया है परंतु जिस तरह से उनकी बॉडी लैंग्वेज में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है उससे यह बात तो साफ है कि टिकट बंटवारे के समय टिहरी सीट से माला राजलक्ष्मी के अलावा कई बड़े चेहरों के नाम भी होंगे।

टिहरी सीट में सबसे ज्यादा प्रभाव देहरादून की राजपुर रोड, रायपुर, कैंट, मसूरी विधानसभा क्षेत्र होने के चलते है। साथ ही विकास नगर, सहसपुर सीटांे का भी चुनावी फैेक्टर राजनीतिक हार-जीत में बड़ा प्रभाव डालता है। इसी के चलते भाजपा में कई नेता टिकट पाने की जुगत में हैं। पार्टी के कुछ बड़े चेहरे हैं जो टिहरी सीट पर दावेदारी कर सकते हैं या वे ज्यादा सक्रिय हैं। इनमें नेहा जोशी, मुन्ना सिंह चौहान, किशोर उपाध्याय, सुबोध उनियाल, प्रीतम सिंह पंवार और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम सबसे ज्यादा चर्चाओं में है।

नेहा जोशी: प्रदेश के कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की पुत्री नेहा जोशी सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है। मीडिया प्लेटफार्मों के अलावा टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून में नेहा जोशी कई कार्यक्रमों में शामिल होती रही हैं। अपने पिता गणेश जोशी के कई कार्यक्रमों मंे उनकी भागीदारी रही है। हाल ही में सुरकंडा देवी में नेहा जोशी द्वारा देवी पूजा और भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें मंत्री गणेश जोशी और उनका परिवार शामिल हुआ। सूत्रों की मानें तो गणेश जोशी अपनी पुत्री के लिए जी-जान से राजनीतिक जमीन तैयार करने में एक अर्से से लगे हुए हैं। नेहा को भाजपा युवा मोर्चा की राष्ट्रीय प्रभारी बनाए जाने के बाद वे नगर निगम देहरादून की मेयर का उम्मीदवार बनाने के लिए कमर कस चुके थे लेकिन नगर निगम के चुनाव आगे खिसकने से अब नेहा को टिहरी सीट से लोकसभा का टिकट दिलवाने के लिए लॉबिंग भी कर रहे हैं।

मुन्ना सिंह चौहान: विकास नगर के विधायक मुन्ना सिंह चौहान भी भाजपा में टिहरी सीट के प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। चौहान देहरादून की विकास नगर, सहसपुर ओैर चकराता तथा मसूरी में अपनी गहरी पैठ रखते हैं। पूर्व में मुन्ना सिंह चौहान बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। साथ ही उनकी धर्मपत्नी मधु चौहान लगातार दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं जिसका मुन्ना सिंह चौहान को राजनीतिक फायदा हो सकता है। सुबोध उनियाल: धामी सरकार में वन मंत्री सुबोध उनियाल टिहरी सीट से तीसरे सबसे बड़े दावेदार नेता माने जा रहे हैं। नरेंद्र नगर विधानसभा से लगातार दो बार जीत हासिल करके सुबोध उनियाल अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को लेकर खासे लोकप्रिय हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं में सुबोध उनियाल ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जो पूरी तरह से भाजपा में रम गए हैं। इसके चलते उनके साथ जुड़े कई कांग्रेसी कार्यकर्ता और स्थानीय नेताओं का भी एक बड़ा वर्ग जुड़ा हुआ है। साथ ही कैबिनेट मंत्री होने के चलते सुबोध के लिए राजनीतिक तौर पर बेहतर स्थिति बनी हुई है। हालांकि नरेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र पौड़ी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है,बावजूद इसके सुबोध उनियाल टिहरी लोकसभा सीट से प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। भाजपा सूत्रों की मानें तो टिहरी सीट पर पार्टी में उनियाल की दावेदारी सबसे आगे होगी।

त्रिवेंद्र सिंह रावत: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से पार्टी में कोई अहम पद या जिम्मेदारी नहीं मिली है। भाजपा भीतर यह माना जा रहा हेै कि उनको पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। साथ ही लोकसभा चुनाव में भी पार्टी उन्हें उम्मीदवार बना सकती है। वेैसे माना तो यह भी जा रहा है कि त्रिवेंद्र की पहली पंसद पौड़ी लोकसभा से चुनाव लड़ने की है लेकिन टिहरी लोकसभा सीट पर भी उनकी गहरी नजर बनी हुई है। विगत कुछ समय से त्रिवेंद्र रावत टिहरी लोकसभा क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। इस सीट पर अगर बदलाव होता है तो त्रिवेंद्र रावत भी अपनी दावेदारी कर सकते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह माना जा रहा हैे कि देहरादून शहर की चारों सीटांे पर उनकी मजबूत पकड़ है। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री होने के चलते उनको सबसे ज्यादा फायदा देहरादून शहर की सीटांे से मिल सकता है।

प्रीतम सिंह पंवार: कभी उक्रांद के वरिष्ठ नेता और विधायक रहे प्रीतम सिंह भाजपा के टिकट पर धनौल्टी सीट से विधानसभा का चुनाव जीत कर वर्तमान में विधायक हैं। 2002 में उत्तरकाशी और 2012 में यमनोत्री सीट से उक्रांद के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। 2017 में धनौल्टी सीट से निर्दलीय चुनाव जीते और 2022 में भाजपा में शामिल हो इस सीट पर फिर से चुनाव जीते जबकि 2022 में भाजपा के पूर्व विधायक महावीर सिंह रांगड़ पार्टी से बगावत करके चुनाव में खड़े हुए लेकिन वे प्रीतम सिंह पंवार का जीत का पहिया रोक नहीं पाए। प्रीतम सिंह पंवार टिहरी और उत्तरकाशी जिलों में अपनी खासी राजनीतिक पकड़ रखते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में टिहरी सीट से बड़े दावेदार भी माने जा रहे हैं।

 

किशोर उपाध्याय: कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए किशोर उपाध्याय का राजनीतिक वनवास 2022 में टिहरी सीट से भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतकर खत्म हुआ। टिहरी के पुराने राजनीतिक चेहरे के तौर पर किशोर को माना जाता रहा है। हालांकि अभी किशोर उपाध्याय ने टिहरी लोकसभा सीट से अपनी दावेदारी को खुलेतौर पर स्वीकार नहीं किया है लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी जिले की धनौल्टी, टिहरी, प्रतापनगर, घनशाली पुरोला, यमनोत्री विधानसभा क्षेत्रों में उपाध्याय का अपना एक जनाधार है जिससे वे इन क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं। सुबोध उनिलाय की ही तरह किशोर के साथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का भी एक बड़ा वर्ग आज भी बना हुआ है। अगर टिहरी सीट पर भाजपा चेहरा बदलती है तो माना जा रहा है कि किशोर उपाध्याय का नाम भी प्रमुख दावेदारों की सूची में जुड़ सकता है।

कांग्रेस के लिए टिहरी लोकसभा सीट पर 2012 में मिले वनवास को खत्म करने की चुनौती बनी हुई है। पहले आम चुनाव से लेकर 1989 तक एक तरह से टिहरी सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। कुल 8 बार कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की है। वर्ष 1991 से लेकर राज्य गठन के बाद 2004 तक लगातार पांच लोकसभा चुनाव से कांग्रेस को हार ही नसीब होती रही। कांग्रेस की हार का सिलसिला 2007 में महराजा मानवेंद्र शाह के निधन बाद हुए उपचुनाव में टूटा और विजय बहुगुणा पहली बार टिहरी से सांसद का चुनाव जीते। इसके बाद 2009 में भी विजय बहुगुणा ने कांग्रेस को इस सीट से जीत दिलवाई। 2012 के उपचुनाव में फिर से भाजपा के खाते में यह सीट वापस आ गई और तब से लेकर इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा बरकरार है। कांग्रेस के किसी नेता ने अभी तक टिहरी सीट पर अपनी दावेदारी खुलेतौर पर तो नहीं की है लेकिन कई वरिष्ठ नेता, पूर्व विधायकों के नाम चर्चाओं में हैं जो संभावित दावेदार माने जा रहे हैं।

शूरवीर सिंह सजवाण: सजवाण अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में विधायक रहे हैं। राज्य गठन के बाद 2002 में ऋषिकेश विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत तिवारी सरकार में सिंचाई मंत्री भी रह चुके हैं। कई बार कांग्रेस के प्रदेश संगठन में महामंत्री का दयित्व भी संभाल चुके हैं। हालांकि शूरवीर सिंह सजवाण 2002 के बाद कोई चुनाव नहीं जीत पाए। 2017 में कांग्रेस से बगावत करके देवप्रयाग विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन पांचवे स्थान पर खिसक गए। जबकि राज्य बनने से पूर्व वे इस सीट पर बड़े अंतर से चुनाव भी जीत चुके थे। कांग्रेस में टिहरी सीट पर सबसे बड़े दावेदार के तौर पर सजवाण का नाम चर्चाओं में है। टिहरी और उत्तरकाशी जिले में सजवाण का आज भी जनाधार शेष है। राजनीतिक तौर पर सजवाण कांग्रेस के एक मजबूत नेता हैं और पूर्व की राजनीति के प्रभाव चलते वे कांग्रेस के सबसे बड़े दावेदार हो सकते हैं।

प्रीतम सिंह: कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष रहे प्रीतम सिंह चकराता क्षेत्र के एक मात्र सर्वमान्य नेता के तौर पर अपनी पहचान वर्षों से बनाए हुए हैं। राज्य बनने के बाद प्रीतम सिंह इस सीट से कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं। क्षेत्र के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार से होने का सबसे ज्यादा फायदा प्रीतम को मिलता रहा है। पंचायत और क्षेत्र पंचायत के साथ ही जिला पंचायत तक प्रीतम और उनके परिवार का दखल रहा है। टिहरी संसदीय सीट से वे 2019 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं जिसमें उनकी 3 लाख से भी ज्यादा मतों से करारी हार हुई है। टिहरी संसदीय क्षेत्र की 14 विधनसभा सीटांे में केवल चकराता ही एक मात्र ऐसी सीट थी जिसमें प्रीतम सिंह को भाजपा से ज्यादा मत मिले थे शेष सभी 13 सीटांे पर उन्हें कम वोट हासिल हुए। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो प्रीतम सिंह 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं लेकिन यह भी माना जा रहा है कि प्रीतम सिंह आखिरी समय में अपना निर्णय बदल सकते हैं। इसके चलते उनको कांग्रेस में दूसरा सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा है।

नव प्रभात: पछवादून के दिग्गज नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे नव प्रभात टिहरी लोकसभा क्षेत्र से दो बार सांसद रहे ब्रह्मदत्त के पुत्र हैं। प्रभात कांग्रेस के तीसरे बड़े दावेदार माने जा रहे हैं। तिवारी सरकार में वन और पर्यावरण मंत्री रहे नव प्रभात अपने ही पिता की विरासत के एक मात्र राजनेता हैं। विकास नगर और सहसपुर सीट पर उनका मजबूत जनाधार है। दो बार विकास नगर सीट से चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस के कई सांगठनिक पदों पर काम कर चुके हैं। नव प्रभात को टिहरी लोकसभा सीट से कांग्रेस के तीसरा सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा है।

भाजपा के संभावित उम्मीदवार
पार्टी का जो भी निर्णय होगा उसका सम्मान किया जाएगा।
सुबोध उनियाल, वन मंत्री

पार्टी अगर चहेगी तो किशोर उपाध्याय लोकसभा चुनाव लड़ेगा। यह पार्टी का विषय है पार्टी किसे उम्मीदवार बनाती है। अगर मुझे पार्टी से टिकट मिलेगा तो जरूर चुनाव लड़ंूगा।
किशोर उपाध्याय, विधायक, टिहरी

चुनाव में उम्मीदवार बनना तो पार्टी का विषय है। अगर पार्टी मुझे चुनाव में उम्मीदवार बनाती है तो मैं जरूर चुनाव लड़ूंगा। मैं दो बार उत्तरकाशी से और दो बार धनौल्टी से विधानसभा का चुनाव जीता हूं। मेरा पुराना क्षेत्र रहा है और लगातार क्षेत्र के मतदाताओं से मेरा जनसंपर्क बना हुआ है।
प्रीतम सिंह पंवार, विधायक, धनौल्टी

भारतीय जनता पार्टी और खास तौर पर प्रधानमंत्री मोदी जी का फोकस महिलाओं में नई लीडरशिप, महिलाओं को राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ने और उनके डेवलपमेंट करने का रहा है। मोदी जी ने महिला आरक्षण विधेयक भी पास करवाया जो कि उनकी इसी सोच का हिस्सा है। मैं एक लंबे समय से भाजपा की राजनीति में आ गई थी वर्तमान में मैं उत्तराखण्ड से पहली महिला कार्यकर्ता हूं जो राष्ट्रीय महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष नियुक्त हुई हूं और मुझे राजस्थान की प्रभारी बनाया गया है। मैं टिहरी लोकसभा क्षेत्र की निवासी हूं और मैं लंबे समय से पार्टी के संगठन में काम कर चुकी हंू। मेरा क्षेत्र के सभी 14 विधानसभाओं के साथ-साथ 57 संगठन के मंडलांे में कार्यक्रम और कार्यकताओं के साथ ही क्षेत्र की जनता संग सीधा संवाद रहता है। चुनावी रणनीति और राजनीति तो पार्टी का विषय है जो पाटी आदेश करेगी उसे ही हमें फॉलो करना है। लेनिक यह जरूर है कि 2024 के लेाकसभा चुनाव में टिहरी लेाकसभा सीट से मैं एक दावेदार हूं।
नेहा जोशी, राष्ट्रीय प्रभारी, भाजपा युवा मोर्चा

कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी
मेैं अपनी पारिवारिक परिस्थितियों के कारण लोकसभा चुनाव में टिकट का दावेदार ही नहीं हूं। मेरी सोच हमेशा से रही है कि पार्टी में नई लीडरशिप को अवसर दिया जाए। मैं कांग्रेस पार्टी में काम करने का इच्छुक हूं और रहूंगा। मैं केवल उस स्थिति में चुनाव लड़ सकता हूं कि जब पार्टी में कोई अन्य दावेदार नहीं मिल रहा हो। अन्यथा मैं चुनाव ही नहीं लड़ना चाहता और न ही मैंने पार्टी में इसके लिए कोई दावेदारी की है।
नव प्रभात, पूर्व कैबिनेट मंत्री

मैं कोई दावेदार नही हूूं और न ही मैंने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी में दावेदारी की है।
प्रीतम सिंह, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष

मैं टिहरी सीट से दावेदार नहीं हूं। मुझे पार्टी ने उस समय चुनाव लड़वाया था जब समूचे उत्तराखण्ड में ‘राज्य नहीं तो चुनाव नहीं’ का नारा गूंज रहा था। तब हर कोई चुनाव लड़ने से घबरा रहा था। मैं उस विषम परिस्थिति में डट कर चुनाव लड़ा और जीता। मेरा यह मानना है कि पार्टी जिसे भी टिकट दे उसे चुनाव लड़ना चाहिए। हमारे पास संसाधनांे की जरूर कमी है लेकिन कार्यकर्ता और आम जनता कांग्रेस के साथ खड़ी है। इसलिए पार्टी जो आदेश करेगी हमें उसका पालन करना ही चाहिए और हम करेंगे। अगर पार्टी मुझे टिकट देती है तो मैं चुनाव लडूंगा।
शूरवीर सिंह सजवाण, पूर्व विधायक

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