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Uttarakhand

खिसकते पहाड़ सिसकता जीवन

जोशीमठ में दिनोंदिन तेजी से दरकते मकान और खिसकते पहाड़ से जनजीवन सिसकने को मजबूर है। जोशीमठ की पीड़ा ने जता दिया है कि प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने के नतीजे कितने भयावह हो सकते हैं। तमाम सरकारें आईं और गईं लेकिन मानव निर्मित ऐसी आपदाओं से बेखबर रहीं। विकास के नाम पर बन रही योजनाओं का नतीजा अब किस ओर ले जाएगा यह सोचकर स्थानीय लोगों की रूह कांप रही है। ‘दि संडे पोस्ट’ टीम ने जब जोशीमठ की जमीनी हकीकत देखी तो ऐसा सच सामने आया जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं

 

जोशीमठ आपदा ने वर्तमान में देश का ध्यान अपनी ओर खींच रखा है। यहां सैकड़ों मकानों में आई दरारों से आशियाने असुरक्षित हो गए हैं। सोशल मीडिया में आई तस्वीरें ये तो बयां कर रही हैं कि लोगों के मकान धंस रहे हैं, लेकिन उन मकानों में रह रहे लोगों का दर्द शायद ही कोई महसूस कर पा रहा है। इसी दर्द को समझने के लिए ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम नोएडा से जोशीमठ के लिए रवाना हुई। नोएडा से ऋषिकेश तक चमचमाती सड़कों पर चलते हुए एहसास ही नहीं हुआ कि पहाड़ों के प्रवेश द्वार पर कब आ गए। लेकिन जैसे ही प्रवेश द्वार से दाखिल हुए तो पता चला कि जोशीमठ क्यों यह दंश झेल रहा है। विकास के नाम पर बनाई जा रही ‘ऑल वेदर रोड’ ने पहाड़ों की व्यथा बयां कर दी। पहाड़ों को काट कर बनाई गई ऑल वेदर रोड ऋषिकेश से लेकर जोशीमठ तक इस कदर क्षतिग्रस्त है कि कब दुर्घटना हो जाए कहा नहीं जा सकता। प्रत्येक 100 से 200 मीटर की दूरी पर भू-स्खलन हुआ है। पहाड़ों को काटकर व मशीन के जरिए जो सुरंग बनाई जा रही हैं इससे पहाड़ों को खासा नुकसान हुआ है। जैसे-तैसे जोशीमठ पहुंचे। वहां की जो तस्वीरें सामने आईं उसे ‘दि संडे पोस्ट’ हू-ब-हू पाठकों के सामने रख रहा है। अब हमने जोशीमठ की व्यथा को जानना चाहा।

वर्षों की जी-तोड़ मेहनत से बनाई गई मकानों और पुरखां द्वारा संजोई संपत्ति के आपदा की जद में आने के कारण लोगों के सामने अब अंधेरा ही अंधेरा पसरा है। लोग भविष्य को लेकर आशंकित हो चले हैं। विपदा की इस घड़ी में अपनी मेहनत से बनाए मकानों को स्वयं छोड़ने पर मजबूर हो चुके हैं। इन लोगों के सामने बसावट का विकल्प न होने के कारण दूसरे इलाकों में शरण लेना भी असंभव हो रहा है। दूसरी ओर लोगों को पुस्तैनी विरासत छोड़ने का गम भी सता रहा है। यह व्यथा एक परिवार की नहीं बल्कि पूरे जोशीमठ छोड़ने वाले परिवारों की है। लोगों को घरों के साथ मवेशियों को भी छोड़ कर राहत शिविरों में जाना बहुत ही कष्टदायी लग रहा है। यहां स्थानीय निवासियों की पीड़ा और उनकी आपबीती को बयां किया गया है।

 

नवीन पाण्डेय

कमरा एक, सदस्य अनेक
मेरा नाम नवीन पांडेय है। मेरा घर मनोहर बाग, जोशीमठ में है। मैं यहां का मूल निवासी हूं जो अब डेंजर जोन में आ चुका है। घर पर रेड क्रॉस का निशान प्रशासन द्वारा लगा दिया गया है। हमारे घर में 9 कमरे हैं। घर में पहली बार सितंबर माह में दरार आनी शुरू हुई थी लेकिन उसको मेरे पिताजी ने रिपेयर करा दिया था। दिसंबर के अंत में यह दरार बढ़नी शुरू हो गई थी और पिछले 10 दिनों में ये दरार इतनी बढ़ गई कि एक कमरे से दूसरे कमरे में आप देख सकते हैं। कमरों के दरवाजों ने अपना स्थान छोड़ दिया है। पूजा घर धंस गया है। किचन का हाल देखिए ऐसा लग रहा जैसे ब्लास्ट होने से फर्श पूरा ऊपर आ गया। जब मैं हाईस्कूल में था तब मेरा यह स्टडी रूम था, अब इसको देखिए इसके फर्श में इतनी बड़ी दरार आ चुकी है कि एक व्यक्ति पूरा समा जाए। पूरा घर एक साइड को झुक गया है। घर का सारा सामान रियतेदार के यहां शिफ्ट किया है। फैमिली को देहरादून शिफ्ट किया है। सरकार ने पास में ही 1 कमरा दे रखा है जिसमें मैं, मेरे माता-पिता और मेरे बड़े भाई रहते हैं। हमें घर को खाली करना मजबूरी हो गया। मकान कब ढह जाए पता नहीं। सरकार की ओर से मुआवजे की कोई बात नहीं हो रही है। हम लोगों को यह नहीं बताया जा रहा है कि कितने दिन रेस्टहाउस में रहना है। वहां सबसे बड़ी समस्या खाने को लेकर हो रही है। एक कमरे में खाना और उसी में बड़े परिवार के साथ रहना मुश्किल हो रहा है।

ठहराए गए होटल में खाने तक की व्यवस्था नहीं

गीता

मेरा नाम गीता है। मेरा घर मनोहर बाग में है। मेरा घर अभी नया बना है। थोड़ा-बहुत, छोटा-मोटा काम बचा है। जल्द ही उसको खत्म करना था। जो उत्तरायणी में 14 जनवरी को हमें घर में हवन करके गृह प्रवेश करना था। इसके लिए हम 8 से 9 लाख का फर्नीचर लाए हैं। लेकिन अचानक ही प्रशासन के अधिकारी रात को 9 बजे आते हैं, घर में रेडक्रॉस लगा देते हैं। कहते हैं आपको यहां बहुत खतरा है, तुरंत घर खाली कीजिए। हमने उनसे पूछा कि हमारी कोई रहने की व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि यह हमें नहीं पता बस आप तुरंत घर खाली कीजिए। अब रात को हम कहां जाए। मेरे पति बाहर थे, मैंने तुरंत अपने पति को बताया कि हमारे घर पर रेड क्रॉस लगा दिया गया है। मेरे पति मार्केट में ही थे, उन्होंने तुरंत हमें वहां बुला लिया कि कहीं किराए पर कमरा देखते हैं। इस तरह से बच्चों को तो रोड पर रात नहीं गुजारने देंगे। तभी हमें एसडीम मैडम मिली जो हमारी पड़ोसी भी हैं जिनसे हमारी खूब बहस हुई। जिसके बाद उन्होंने हमें होटल में कमरा दिलवाया। लेकिन जिस होटल में हमें ठहराया गया है उसमें भी दरार हैं। जबकि हम आठ लोग हैं, हम सबको उस कमरे में रखा हुआ है गाय-भैसों की तरह। वहां खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। हमें खाने-पीने के लिए पुराने घर में ही आना पड़ता है। मेरी बेटी का प्री-बोर्ड एग्जाम है उसने अपना एग्जाम कैंसिल कर दिया है। बेटी बोलती है मम्मी इस स्थिति में एग्जाम नहीं दे सकती हूं। वह मानसिक तनाव से गुजर रही है। हमें तीन दिन का टाइम मिला है, सामान हटाने के लिए। सामान कहां लेकर जाना है, कुछ पता नहीं है। हमें सरकार की ओर से कोई ट्रांसपोर्ट सुविधा नहीं मिल रही है। इस परिस्थिति में अपने आप को बहुत असहज महसूस कर रहे हैं।

 

सूरज

सूरज के घर अंधेरा
सूरज अपने पुश्तैनी मकान को लेकर परेशान हैं। वे कहते हैं- यह हमारा पुश्तैनी मकान है। हमें 80 वर्ष हो चुके हैं इस मकान में रहते हुए। दादा जी का बनाया हुआ मकान है। चार भाई इसमें एक साथ रहते हैं। यह मकान बड़े-बड़े भूकंप झेल गया है। बस यह जो चल रहा है इसको नहीं झेल पाया। अभी पिछले 10 दिनों से एक्टिविटी ज्यादा हो रही है इससे पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ है। रात-रात में दरारें बढ़ रही हैं। सुबह उठते हैं तो दरारें बढ़ी हुई मिलती हैं। बीती रात में भी ऐसा कुछ हुआ कि दरारें और ज्यादा बढ़ गई हैं। लगभग 25 ईंच की दरार पड़ गई है। पशुओं तक को परेशानी हो रही है। पशुओं को लेकर कहां जाएं। इसकी कोई व्यवस्था नहीं हो पा रही है। हमारा परिवार एक जगह रहता है। अब वह अलग हो गया है।

 

 

कपाट खुलने से पहले बंद हुई हमारी किस्मत

Pallavi

जब हमारी टीम जोशीमठ का मुआयना कर रही थी वहां पर कुछ लोग सकारात्मक भी थे। वे इस आपदा में सरकार के साथ हैं। यहां की निवासी पल्लवी कहती हैं- सरकार हर किसी की मदद नहीं कर सकती। जो लोग सक्षम हैं वे अस्थायी रूप से यहां से जा सकते हैं। हम लोगों ने आधा सामान यहां से गौचर शिफ्ट कर लिया है। आधा सामान सरकार से परमिशन लेकर बद्रीनाथ शिफ्ट कर रहे हैं। बद्रीनाथ में हमने 8 कमरों का एक मकान बनाया है। सोचा कि कपाट खुलेंगे तो उस मकान का उद्घाटन करेंगे, बस हमलोग कपाट खुलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन अब मजबूरी है जो इतना जल्द ही शिफ्ट करके जाना पड़ रहा है। हमारे घर में 2 जनवरी की आधी रात से दरार आनी शुरू हो गई। हमारे घर के पास आंटी रहती हैं वह कह रही थीं कि कोई अजीब-सी आवाज आई ऐसा लगा जैसे कोई चीज धमाका हुआ है। मैं मॉर्निंग में गई तो पूरे खेत में दरार आ रखी थी। फिर ये बढ़ती चली गई। 3 जनवरी की शाम को हमने भी देखा कि यहां कोई धमाका-सा हो रहा है और 4 को हमारे खेतों में भी बड़ी-सी दरार दिखने लगी। फिर हम अलर्ट हो गए। हमने सामान पैक करना शुरू कर दिया। बड़ी मुश्किल है एकदम से सब कुछ छोड़कर जाना। 50-60 साल से यहां रह रहे हैं। अब सब एकदम समेटना पड़ रहा है।

 

जोशीमठ आर्थिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र रहा है। तीर्थ एवं पर्यटन स्थलों का मुख्य द्वार है। इसके साथ ही बद्रीनाथ यात्रा का प्रमुख पड़ाव भी है। यही वजह है जो रोजगार के लिए जोशीमठ गया वह वहीं का होकर रह गया। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जोशीमठ की भार क्षमता से अधिक मकानों अथवा व्यावसायिक भवनों का निर्माण तथा बड़ी परियोजनाओं के निर्माण के चलते ही आज आपदा का दंश झेल रहा है। नगर में ड्रेनज सिस्टम न होने के चलते ही आज आपदा का दंश झेल रहा है। जल विद्युत परियोजना के निर्माण ने जोशीमठ को हिला रखा है। यही वजह है कि जोशीमठ अंदर से खोखला हो गया है जबकि अब मकानों में दरार आ गई तो परिवारों के सामने अंधेरा छा गया है। आपदा के कारण पुनर्वास का काम चुनौतीपूर्ण है क्योंकि जिले में पहले से आई आपदाग्रस्त गांवों का विस्थापन अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। देखते हैं वैज्ञानिकों की टीम
जोशीमठ का क्या हाल बताती है जिससे जोशीमठ का भविष्य तय होगा।

बद्रीनाथ की तर्ज पर मिले मुआवजा

उमेश कुमार

स्थानीय निवासी उमेश कुमार का कहना है कि जोशीमठ एक तपस्वी भूमि है। यहीं से फेमस पांच जगहों का द्वार है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, नरसिंह मंदिर, हेमकुंड साहिब और विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल औली में हम लोग छोटा-मोटा कारोबार करते हैं। ताकि पहाड़ों का पलायन यहां से न हो। लेकिन सरकार द्वारा इस बात को परे रखा जा रहा है कि घर टूट रहे हैं, इस बात का सरकार को कोई लेना- देना नहीं है। लेकिन इसका मुख्य कारण जो है वह है एनटीपीसी का प्रोजेक्ट। वास्तव में 2002 में शर्मा आयोग, मिश्रा आयोग की जो रिपोर्ट आई थी उसमें यह माना गया था कि जोशीमठ सेंसटिव जोन है। एक तो यहां प्रशासन ने अवैध होटल बनने दिए। दूसरा फिर कंपनी के साथ मिलकर एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) को टनल बनाने का कार्य करने दिए। बाईपास जल्दी बनाने के चक्कर में अंधाधुंध ब्लास्टिंग एनटीपीसी द्वारा की गई। सरकार कह रही है एनटीपीसी का काम बंद है लेकिन कोई काम बंद नहीं है। हैवी ब्लास्टिंग रात को होती है। रात को घरों में कंपन होता है क्योंकि वहां ब्लास्ट होता है। कल रात भी वहां ब्लास्ट हुआ है। इसका वीडियो आपको दिखा रहा हूं। देख लीजिए।सरकार अभी टेम्परेरी व्यवस्था कर रही है। बस हम सरकार से यह चाहते हैं कि एनटीपीसी के कार्य को बंद करवा दिया जाए। यदि शिफ्टिंग की जरूरत पड़ती है तो मकान के बदले मकान और बद्रीनाथ की तर्ज पर मुआवजा दिया जाए।

 

Mantarang

जब हम लोग मनतारंग नाम की महिला के घर पहुंचे तो देखा कि उनके घर के बाहर कमल के फूल का फोटो बना हुआ है और लिखा है कि ‘भारत माता का जो बढ़ाए मान वह है मोदी, भाजपा और कमल निशान।’ उन्होंने बताया कि वह भाजपा की कोर वोटर हैं। वह कहती हैं हम जाएं तो जाएं कहां। हमें यहीं रहना है, यहीं मरना है। हमें कमरा भी नहीं दे रहे हैं। मेरे पति पैरालाइज्ड हैं। मैं उनको लेकर कहां जाऊं। सरकार सुन नहीं रही है। मेरा एक बेटा है जो पागल की तरह है। प्रशासन के कितने लोग आ गए सिर्फ सब आ-जा रहे हैं। लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा है।

 

 

 

सिर्फ कागजों में बंद है एनटीपीसी

पत्नी संग विनोद प्रसाद

हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल रही है। यह सब एनटीपीसी के चलते हुआ है। देखिए सर! यह मेरा घर है जो 2016 में बना है। इसमें यह दरार अभी- अभी आई है। आप अंदर जाकर देखो आवाज आ रही। डर लग रहा है। सर रात में इतना बुरा हाल होता है कि साफ पता चलता है कि ब्लास्टिंग हो रही है। एनटीपीसी का काम चल रहा है सिर्फ कागजों में बंद हुआ है। रात को खूब ब्लास्टिंग होती है। सभी लोग जानते हैं, बस नाम लेने से डरते हैं। मैं आपको अपने पीछे के घर की तस्वीर दिखाता हूं इतनी तेज
ब्लास्टिंग होती है कि पूरी छत फट गई है। खेतों में भी दरार हो गई है।

 

 

 

-साथ में विजय साहनी और मुनि रमन

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