उत्तराखण्ड सरकार के कामकाज का तरीका बड़ा अजीब है। एक ओर तो सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर राज्य में इन्वेस्टर समिट कराती है। दुनिया भर में उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल बनाने का ढोल पीटती है, लेकिन दूसरी तरफ हालत यह है कि पहले से स्थापित लघु उद्योग निरंतर बंद होते जा रहे हैं। अकेले सितंबर 2018 से लेकर जून 2019 तक दस माह के भीतर ही सात हजार से ज्यादा लघु उद्योग बंद हो गए। इससे हजारों लोगों की रोजी-रोटी भी खत्म हो गई। अगर सरकार ने इन लघु उद्योगों के लिए योजना बनाई होती तो यह विकराल स्थिति नहीं आती
उत्तराखण्ड सरकार पीछे की छोड़ और आगे की दौड़ वाली नीति पर चलती दिखाई दे रही है। प्रदेश में उद्योगों के लगातार बंद होने के कारणों को देखने के बजाए सरकार नए-नए रास्तों से राज्य में निवेश के नाम पर करोड़ों रुपए बहा रही है, जबकि विगत कई वर्षों से राज्य में छोटे और लघु उद्योग एक के बाद एक बंद होते जा रहे हैं। खास बात यह है कि इस बात का खुलासा राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैंकर्स समिति की बैठक में हुआ है। बैठक में यह बात सामने आई कि राज्य में सितंबर 2018 से लेकर जून 2019 तक के कुल दस माह में ही सात हजार दो सौ चौवालीस लघु उद्योग पूरी तरह से बंद हो चुके हैं, राज्य बनने के बाद लघु उद्योग लगातार बंद होते आ रहे हैं। मार्च 2019 से लेकर जून 2019 तक महज तीन माह में ही तीन हजार छह सौ बहत्तर लघु उद्योग प्रदेश में बंद हुए हैं। यह स्थिति तब की है कि जब मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत राज्य में चालीस हजार करोड़ के निवेश की बात कह रहे थे। राज्य में 14 हजार करोड़ के निवेश कार्य पूरे होने का दावा कर रहे थे। साफ है कि सरकार अपने प्रदेश के पूर्व में स्थापित लघु उद्योगां को नहीं संभाल पाई और दो वर्ष में ही बहुत बड़ी संख्या में लघु उद्योग बंद होते चले गए।
विगत 16 अगस्त को राज्य के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की अध्यक्षता में राज्य बैंकर्स समिति की बैठक हुई। बैठक में इंडस्ट्रीज एसोसिएशन उत्तराखण्ड के अध्यक्ष पंकज गुप्ता ने राज्य के सूक्ष्म और लघु उद्योगों का डाटा रखते हुये बताया कि राज्य में विगत दो वर्ष में ही 7244 उद्योग लगातार बंद होते गए। सितंबर 2018 में राज्य में एमएसएमई श्रेणी की 53560 औद्योगिक इकाइयां थी जो कि दिसंबर 2018 में घटकर 52750 ही रह गई। यानी महज चार माह में ही 810 औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी थी। इस तरह मार्च 2019 में 49988 औद्योगिक इकाइयों ही रह गई। यानी जनवरी 2019 से लेकर मार्च 2019 तक के कुल तीन माह में ही 2762 औद्योगिक इकाइयां पूरी तरह से बंद हो गई। इसी तरह जून 2019 में 46316 औद्योगिक इकाइयां रह गई। यानी अप्रैल 2019 से लेकर जून 2019 तक के कुल तीन माह में ही 3672 औद्योगिक इकाइंयां पूरी तरह से बंद हो गई हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि जो राज्य सरकार और खास तौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत प्रदेश में चालीस हजार करोड़ का निवेश होने का दावा करते रहे हैं, उनकी ही सरकार के सितंबर 2018 से लेकर जून 2019 तक के महज दस माह के कार्यकाल में 7244 सूक्ष्म और लघु औद्योगिक इकाइयां पूरी तरह से बंद होती चली गई। इसके बावजूद सरकार प्रदेश में औद्योगिक वातावरण के लिए सुखद माहौल का दावा करती रही और निवेशकों के लुभाने के लिए तमाम तरह के आयोजनो में करोड़ों लुटाती रही। सरकार के उद्योगों को सुविधाएं देने के दावों की पोल भी उसी वक्त ख्ुल गई जब बैठक में यह बात सामने आई कि प्रदेश का बाकी एनपीए 3 हजार 264 करोड़ तक पहुंच गया है जिसके चलते बैंक उद्योगो को ऋण देने में अनाकानी कर रहे हैं। पंकज गुप्ता ने बैठक में यह आरोप तक लगाया कि बैंक आवास, कøषि और अन्य ऋण नहीं दे रहे हैं।
सरकार के दावों की हकीकत तब सामने आई जब बैठक में जानकारी दी गई कि बैंक पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार और उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सोलर पावर प्लांट और होम स्टे योजना पर भी ऋण देने में आनाकानी कर रहे हैं। जबकि सरकार द्वारा 600 सोलर पावर प्लांट आंवटन किए गए हैं। लेकिन इनमें किसी एक को भी बैंकों द्वारा ऋण नहीं दिया गया है। इसी तरह से होम स्टे योजना के 94 प्रस्तावों में से बैंकों ने 42 प्रस्ताव ही निरस्त कर दिए हैं। इस तरह मात्र दस महीने में ही 7 हजार से भी ज्यादा उद्योगों के बंद होने से सरकार पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। जानकारां की मानें तो या तो सरकार प्रदेश में उद्योगों के लिए कोई खास योजना नहीं बना पा रही है या सरकार राज्य के उद्योगों को होने वाली परेशानियों और समस्याओं से अनजान बनी हुई है।
आश्चर्यजनक है कि पिछले वर्ष करोड़ों खर्च करके प्रदेश सरकार ने इनवेस्टर समिट का भव्य आयोजन किया था जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आये थे। उसी समय राज्य में पूर्व स्थापित लघु उद्योगों के उद्योगपतियों ने अपनी उपेक्षा का आरोप सरकार पर लगाया था। जब आयेजन हो रहा था ठीक उसी समय प्रदेश के तीन सौ उद्योगों पर पर्यावरण विभाग द्वारा कड़ी कार्यवाही की जा रही थी। पर्यावरण के मानकां को पूरा न करने पर इन तीन सौ उद्योगों को सील किये जाने के आदेश तक किए गए थे। इसी तरह से प्रदेश में विगत 18 वर्षों से एमएसएमई श्रेणी के उद्योगों के चलते प्रदेश सरकार अपनी प्रतिव्यक्ति आय में इजाफा दिखाकर निवेश का माहौल बेहतर होने का दावा करती रही है, लेकिन हकीकत में सरकार की नीतियों और उदासीनता के चलते आज 7 हजार से भी ज्यादा उद्योग बंद हो चुके हैं।
यह भी एक बड़ी विड़म्बना ही कही जा सकती है कि जो राज्य सरकार निवेश के नाम पर बड़े-बड़े दावे कर रही है उसके ही विभाग राज्य में स्थानीय उद्योगों के लिए कोई खास मोह नहीं रख रहे हैं। वेलनेस सेंटर के नाम पर स्थानीय निवेशकों को जिस तरह से सिड़कुल में चक्कर लगाए जा रहे हैं। वह अपने आप में यह साबित करने के लिए काफी है कि सरकार की करनी और कथनी में बहुत बड़ा अंतर है। नाम न छापने की शर्त पर राज्य के एक स्थानीय निवेशक का कहना है कि बाहरी प्रदेशां के निवेशकों के लिए तो अधिकारी हर वक्त तैयार रहते हैं, लेकिन राज्य के स्थानीय निवेशकों के लिए उनके पास समय ही नहीं है। छह महीने से सिड़कुल के अधिकारियों का स्थानांतरण हो रहा है। एक अधिकारी जब तक प्रोजेक्ट के प्रस्ताव को समझता है तब तक उसका स्थानांतरण कर दिया जाता है। नया अधिकारी आने पर उसे काम से शुरू करना पड़ता है। लेकिन जब तक वह कुछ समझ पाता है, उसका भी स्थांनातरण कर दिया जाता है।
स्थानीय निवेशकों का यह आरोप देखा जाये तो गलत नहीं है। इनवेस्टर समिट के बाद से सिड़कुल में लगातार स्थानांतरण किये गये। यहां तक कि जिन अधिकारियों के कांधां पर इनवेस्टर समिट आयोजन का जिम्मा था उनका भी स्थानांतरण किया गया। छह माह में सिडकुल के दो एमडी का स्थानांतरण कर दिया गया है। इसके चलते निवशकां के प्रस्तावों पर कोई ठोस निर्णय नहीं हो रहा है। यहां तक कि बुनियादी जरूरत भूमि के स्वामित्व और भू उपयेग परिवर्तन तक नहीं हो पा रहे हैं, फिर प्रस्तावों पर मुहर लगने में देरी होना तय है।
अभी हाल ही में सोलर पावर प्लांट योजना में सरकार के दावां की पोल खुल गई है। सरकार ने अभी तक यह तय ही नहीं किया है कि सोलर पावर प्लांटों के लिए चयनित भूमि का भू-उपयोग परिवर्तन किस आधार पर होगा, जबकि सरकार पांच मेगावाट के सोलर पावर प्लांट उत्तराखण्ड के खास तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित किये हुये है। इसमें सबसे बड़ी बाधा भू-उपयेग परिवर्तन की ही सामने आ रही है। पर्वतीय क्षेंत्रों में अधिकांश भूमि खेती में दर्ज है चाहे वह उसर ही क्यों न हो। उसका भू-उपयेग परिवर्तन किये बगैर सेलर पावर प्लांट स्थापित नहीं हो सकता। इसके लिए निवेशकों को लाखों खर्च करना पड़ेगा। इसके चलते सोलर पावर प्लांट की लागत में बहुत बड़ा इजाफा होना तय है। इसके अलावा सोलर पावर प्लांट से उत्पन होने वाली उर्जा के लिए पावर ग्रिड पर भी असमंजस बना हुआ है। टिहरी जिले के एक सोलर पावर प्लांट पर निवेश करने के इच्छुक स्थानीय करोबारी का कहना है कि सरकार ने दावा किया है कि वह सोलर पावर प्लांट तक पावर ग्रिड की लाइन लगाकर देगी, परंतु अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है। अगर पावर ग्रिड सोलर पावर प्लांट से कई किमी दूर होगी तो प्लांट से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा। यह नुकसान निवेशक को ही उठाना पड़ेगा।
अब सवाल सरकार की नीति और नीयत पर है। जहां सरकार राज्य में नए-नए निवेशकों को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन प्रदेश के स्थापित एमएसएमई श्रेणी के उद्योग बंदी की मार झेल रहे हैं। हाल ही में स्वयं मुख्यमंत्री राज्य में वेलनेस सिटी के नाम पर बंग्लुरू का दौरा कर चुके हैं, तो वहीं राज्य में बेलनेस उद्योग के नाम पर स्थानीय निवेशकों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास नहीं हो पा रहा है। इससे साफ है कि सरकार पीछे की छोड़ कर आगे की दौड़ में ही अपना पूरा फोकस रख रही है जिसके चलते प्रदेश के उद्योगों पर बंदी की मार पड़ रही है।
बात अपनी-अपनी
मैं उस बैठक में नहीं था इसलिए मुझे नहीं पता कि वहां क्या हुआ। पहले तो मैं मान ही नहीं सकता कि 7200 उद्योग बंद हुए हैं। आपको किसने इसका डाटा दिया है। पंकज गुप्ता तो देहरादून के अध्यक्ष हैं। उनके पास पूरे प्रदेश का डाटा नहीं है। फिर भी अगर कुछ उद्योग बंद हो रहे हैं, तो जीएसटी के कारण हो रहे होंगे। अब उनको जीएसटी का फायदा नहीं हो पा रहा होगा इसलिए वे बंद हो रहे हैं। फिर आजकल जिस तरह से मंदी का दौड़ है उससे भी कई छोटे-मोटे उद्योग बंद हो रहे हैं। मैं इस बारे में पूरी जानकारी लूंगा कि असल में पूरा डाटा है क्या?
कुवंर सिंह पंवार, औद्योगिक सलाहकार मुख्यमंत्री
हमने तो पहले ही कहा है कि मुख्यमंत्री प्रदेश में निवेश के नाम पर सफेद झूठ बोल रहे हैं। अब तो यह साबित हो गया है कि राज्य में दस महीने में ही 7 हजार से ज्यादा छोटे उद्योग बंद हो चुके हैं। सरकार करोड़ों खर्च करके निवेश के नाम पर जनता को ठग रही है, जबकि हकीकत कुछ और ही है। सात हजार उद्योग बंद होने का मतलब है कि हजारों लोगों की रोजी-रोटी छीन जाना। यह सरकार हर बात पर झूठ बोल रही है। राज्य में बेरोजगारी बढ़ रही है। निवेश के नाम पर छल हो रहा है। उद्योग बंद हो रहे हैं और सरकार सो रही है।
रघुनाथ सिंह नेगी, अध्यक्ष जन संघर्ष मोर्चा
सबसे पहली बात यह साफ कर दूं कि कोई भी उद्योग सरकारी सहायता पर नहीं चलते। सरकारी सुविधा या सहायता केवल एक बार उद्योग स्थापित करने के लिए मिलती है। उद्योग लगने के बाद उद्योग को स्वयं ही सर्वाइव करना पड़ता है। उत्तराखण्ड में इतने बड़े पैमाने पर छोटे उद्योग बंद हो रहे हैं तो इसके दो बड़े कारण हैं। एक कारण तो यह है कि इन उद्योगों को प्रदेश के बैंकों के ऋण देने में आनाकानी करना। देश के अन्य राज्यों में बैंकों ने अपनी मानसिकता बदली है लेकिन उत्तराखण्ड के बैंक आज भी उसी मानसिकता से काम कर रहे हैं। यहां के बैंक हमें कुछ समझते ही नहीं हैं। उनकी नजर में प्रदेश के उद्योगों का कोई सम्मान नहीं है। हम जरा-सा लोन ज्यादा ले लें तो बैंक अधिकारियों को लगने लगता है कि उनका पैसा डूब जाएगा। दूसरा कारण यह है कि आजकल मार्केट में पैसा ही नहीं है। लिक्विडिटी न होने से छोटे उद्योगों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है जिससे कई उद्योग लगातार बंद हो रहे हैं।
पंकज गुप्ता, अध्यक्ष इंडस्ट्रीज एसोशिएसन ऑफ उत्तराखण्ड