मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने पौड़ी कमिश्नरी के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में विकास योजनाओं की जो झड़ियां लगाई वह लोगों को पच नहीं पा रहा है। कारण कि सीएम की कथनी और करनी में फर्क साफ नजर आ रहा है। एक तरफ तो वे पौड़ी में कमिश्नरी की स्वर्ण जयंती मानते हैं और दूसरी ओर कमिश्नर को देहरादून में बैठने की छूट भी दे देते हैं। मुख्यमंत्री की नीति और नीयत में खोट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जो पलायन आयोग पौड़ी में बनाया गया था, वह भी बहुत जल्दी ही देहरादून में शिफ्ट हो गया। ऐसे में भला कौन राज्य सरकार और मुख्यमंत्री के दावों और वादों पर यकीन करेगा
गढ़वाल मंडल का मुख्यालय पौड़ी कमिश्नरी भले ही अपनी स्थापना के पचास वर्ष पूरे होने पर स्वर्ण जयंती मना रहा हो, लेकिन हकीकत में विगत 20 वर्षों से पौड़ी ने खूब आंसू बहाए हैं। कभी एक दर्जन से भी ज्यादा सरकारी विभागों से गुलजार रहने वाला पोड़ी शहर आज वीरानी और बगैर अधिकारियों के बदहाल होता जा रहा है। हैरानी तो इस बात की है कि स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पौड़ी जिले के लिए करोड़ों की योजनाओं की घोषणा तो करते हैं, लेकिन उसी पौड़ी के अधिकारियों के देहरादून में स्थापित हो चुके कैम्प कार्यालयों को पोड़ी लौटाने की बात तक करने से उन्हें परहेज है इससे सरकार की नीयत और नीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
पोड़ी शहर का इतिहास ब्रिटिश शासनकाल से भी पुराना है। अंग्रेजों ने 1839 में स्वतंत्र गढ़वाल जिला बनाया और पोड़ी शहर को जिला मुख्यालय के तौर पर पहचान दी। तब से पोड़ी शहर ब्रिटिशकाल के दौरान उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र का एक अति महत्वपूर्ण स्थान बन गया। इसके बाद पोड़ी में अंग्रेजों ने न्यायालय की स्थापना की। तत्कालीन पौड़ी में कोई सड़क आदि की सुविधा न होने के चलते पैदल या घोड़े की सवारी से ही आवागमन होता था। न्यायालय बनने के बाद इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया था। माना जाता है कि तत्कालीन गढ़वाल क्षेत्र के पोड़ी शहर का नाम प्रातःकाल में लेना अशुभ माना जाता था, क्योंकि पोड़ी में वही जाता था जो कानून के शिंकजे में कसा हुआ हो। इसलिए तत्कालीन समाज की प्रचलित लोकोक्तियों में कहा जाता है कि जिससे विवाद हो या जिसको भयभीत करना हो उसे कहा जाता था कि एक न एक दिन मैं तुझे पोड़ी की सैर तो कराऊंगा ही। यानी उस पर कोई न कोई मुकदमा किया जाएगा जिसके लिए उसे पौड़ी शहर जाना ही पड़ेगा।
बहरहाल यह तो पोड़ी शहर की प्रचलित कथाएं हैं। 29 जून 1969 को पोड़ी को गढ़वाल कमिश्नरी का दर्जा देकर इसे मुख्यालय बनाया गया। इसके पहले कमिश्नर एससी सिंघा बने। सिंघा ने गढ़वाल आयुक्त के तौर पर बड़े सराहनीय काम किए। आज उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा के आवागमन के लिए जो व्यवस्था दिखाई दे रही है उस व्यवस्था को लागू करने वाले सिंघा ही थे। उनके ही प्रयासों के चलते चारधाम यात्रा संयुक्त रोटेशन व्यवस्था लागू करवाई गई जिसके चलते आज वाहनों के संचालन में कोई विवाद नहीं हुआ है।
सिंघा के बाद अभी तक कुल 31 आयुक्त गढ़वाल कमिश्नरी को मिले हैं। लेकिन हैरत की बात यह है कि सबसे पहले पौड़ी शहर से पलायन करने वाले भी आयुक्त ही रहे हैं। 1982 में पोड़ी शहर से पलायन करने वाले पहले आयुक्त एके विश्वास थे। विश्वास द्वारा देहरादून में गढ़वाल आयुक्त कैम्प कार्यालय खोला गया जो आज स्वतंत्र आयुक्त कार्यालय बन चुका है। या कहें कि शासन की नाक के नीचे बगैर अनुमति के ही आयुक्त कार्यालय स्थापित हो चुका है।
- 1961 मं पहले गढ़वाल आयुक्त बने एलसी सिंघा अपने पूरे कार्यालय पौड़ी में बैठे।
- 1982 में गढ़वाल से आयुक्त कार्यालय देहरादून कैंप कार्यालय के रूप में शिफ्ट हुआ।
- तब से आज तक सभी आयुक्त देहरादून में ही डेरा जमाए रहे।
- राज्य बनने के साथ ही 27 मंडलीय कार्यालय भी पौड़ी से शिफ्ट हो गए।
- सीएम त्रिवेंद्र रावत द्वारा गठित पलायन आयोग भी पौड़ी से देहादून पलायन कर गया।
देहरादून शहर अधिकारियों को इतना रास आया कि इसके बाद तकरीबन हर आयुक्त देहरादून स्थित कैम्प कार्यालय में ही बैठता रहा। वे गर्मियों में एक तरह से पर्यटन आयुक्त के तौर पर मूल कार्यालय पौड़ी में कुछ समय के लिए चले जाते थे। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी सभी आयुक्त देहरादून कैम्प कार्यालय से ही आयुक्त का कामकाज देखने लगे। इसका यह प्रभाव पड़ा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के दौरान तत्कालीन सूचना महानिदेशक और गढ़वाल आयुक्त विनोद शर्मा ने तो देहरादून स्थित गढ़वाल कमिश्नर के कैम्प कार्यालय को पूरी तरह से गढ़वाल आयुक्त कार्यालय के तौर पर स्थापित कर दिया। तब से गढ़वाल कमिश्नरी का मुख्यालय देहरादून हो गया।
सरकार और शासन की भारी अनदेखी के चलते राज्य बनने के बाद आयुक्त कार्यालय को बगैर अधिसूचित किए देहरादून स्थानांतरित कर दिया गया। इसके पीछे सरकार और सचिवालय में बैठे उच्च पदस्थां का भी बड़ा हाथ रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि जिस उत्तर प्रदेश में गढ़वाल आयुक्त को केवल आयुक्त का ही प्रभार दिया जाता था जिसके चलते वह पौड़ी में बैठता था, वहीं राज्य बनने के बाद ऐसे अधिकारियों को आयुक्त बनाया गया जिनके पास कई विभाग थे। उन सभी के कार्यालय देहरादून में रहे। जिस कारण आयुक्त पोड़ी बैठने में असमर्थ हो जाते थे। सरकार भी भलीभांति यह जानती थी कि आयुक्त को कई विभाग दिए गए हैं और इसके चलते उसका देहरादून और पोड़ी में बैठना असंभव है। बावजूद इसके कार्यों का वितरण इसी तरह से किया जाता रहा है।
आयुक्तों के पलायन के बाद मंडलीय कार्यालयों से भी अधिकारियों ने अपना पलायन आरंभ कर दिया। राज्य बनने से पूर्व जो 27 मंडलीय कार्यालयों के विभाग पौड़ी में थे, वे अधिकारी एक-एक कर देहरादून और अन्य स्थानों में अपने कार्यालय बनाकर स्थानांतरित होते चले गए। आज कई मंडलीय कार्यालय भले ही पोड़ी में हैं, लेकिन नाम मात्र के लिए ही उनमें अधिकतर चतुर्थ श्रेणी के ही कर्मचारी बचे हुए हैं, जबकि अधिकारी वर्ग देहरादून और श्रीनगर चले गए हैं। इनमें सबसे बड़ा पलायन गढ़वाल रेंज के डीआईजी पोड़ी का हुआ है। राज्य बनने के बाद एक तरह से डीआईजी कैम्प कार्यालय देहरादून में बना दिया गया। तब से लेकर आज तक कोई भी डीआईजी पोड़ी बैठा हो यह जानकारी में नहीं है। पूर्व पुलिस महानिदेशक एके गोस्वामी जब डीआईजी के पद पर थे, तो वे ही ऐसे डीआईजी रहे जो पोड़ी और देहादून में नियमित बैठते रहे हैं। उनके बाद किसी भी अधिकारी ने पोड़ी का रुख नहीं किया। यहां तक कि रेंज की मीटिंगें तक देहरादून में ही होती रही हैं। वेसे शासन के तौर पर पोड़ी में 27 मंडलीय विभाग स्वीकøत हैं, लेकिन जानकारी के अनुसार महज 13 ही ऐसे विभाग हैं जिनमें कोई अधिकारी है, जबकि अधिकतर में अधिकारी निदेशक आदि कैंप कार्यालय या प्रतिनियुक्ति पर देहरादून में हैं। पौड़ी को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। इनमें कøषि निदेशक, संयुक्त निदेशक, उन उप निदेशक जेसे अधिकारी हैं जो देहरादून में भव्य कार्यालयां में ही बैठते हैं।
सबसे खास बात तो यह हे कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा राज्य के पलायन को रोकने के लिए ‘पलायन आयोग’ का गठन किया गया। इसका कार्यालय पौड़ी में स्थापित किया गया, लेकिन कुछ माह बाद ही पालायन आयोग का कार्यालय देहरादून में स्थानांतरित हो गया। जब इस पर खासा हंगामा हुआ तो नाम के लिए पौड़ी स्थित कार्यालय में दो कर्मचारी बैठाए गए हैं।
पोड़ी में चल रहे मंडलीय कार्यालयों की सूची को देखें तो आज महज 15 ऐसे कार्यालय हैं जिनसे जनता के सीधे सरोकार है। इनमें मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल वृत पौड़ी, वन संरक्षक गढ़वाल वृत पौड़ी, महाप्रबंधक जल संस्थान पौड़ी, मुख्य अभियंता लोक निर्माण पौड़ी, मुख्य अभियंता उत्तराखण्ड पेयजल निगम पौड़ी, मुख्यअभियंता सिंचाई श्रीनगर, अपर निदेशक पशुपालन पौड़ी, संयुक्त निदेशक कøषि गढ़वाल मंडल पौड़ी, संयुक्त निदेशक उद्यान गढ़वाल मंडल पौड़ी, अपर निदेशक प्राथमिक शिक्षा गढ़वाल मंडल पौड़ी, अपर निदेशक बेसिक शिक्षा गढ़वाल मंडल पौड़ी, संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा श्रीनगर, उपनिदेश अर्थ एवं सांख्यिकी गढ़वाल मंडल पौड़ी, सहायक निदेशक खेल गढ़वाल मंडल पौड़ी, अपर निदेशक चिकित्सा गढ़वाल मंडल पौड़ी। यह सभी विभाग पौड़ी में अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही स्थापित रहे है। लेकिन जेसे ही गढ़वाल मंडल आयुक्त का यहां से पलायन हुआ वैसे ही लगभग सभी विभागों के अधिकारियों ने अपनी सुविधानुसार अपने कैम्प कार्यालयां का गठन किया और वहां से कार्य करने लगे। ऐसा भी नहीं है कि सभी विभाग अधिकारीविहीन हैं। दिखावे के लिए कभी-कभी दो चार घंटां के लिए अधिकारी आते हैं, लेकिन इसके लिए भी महीनों का समय लग जाता है। आज महाप्रबंधक, निदेशक, मुख्य अभियंता श्रेणी के उच्चाधिकारी देहरादून में ही बैठकर मंडलीय कार्यों को देख रहे हैं।
वर्तमान गढ़वाल आयुक्त द्वारा गढ़वाल कमिश्नरी के पचास वर्ष पूरे होने पर स्वर्ण जयंती कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें मुख्यमंत्री ने भी शिरकत की और पौड़ी शहर और जिले के लिए करोड़ों की योजनाओं की झड़ी लगा दी। इसमें दो सौ करोड़ की लागत से पौड़ी में अवस्थापना के कार्य किए जाएंगे। साथ ही पौड़ी में साहसिक खेल निदेशालय की स्थापना और सीता माता सर्किट को विकसित करने की घोषणा की गई है।
सबसे हैरत की बात तो यह है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय में सरकार ने देवप्रयाग में एनसीसी अकादमी की स्थापना का निर्णय लिया था जिसके लिए भूमि तक का चयन किया जा चुका है, लेकिन मौजूदा सरकार ने इस अकादमी को पौड़ी में स्थानांतरति करने का निर्णय लिया है। सरकार अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल में पोड़ी शहर में उत्तर प्रदेश के समय से स्थापित कार्यालयों में अधिकारियों ओैर आयुक्त को बैठने के लिए एक भी आदेश जारी नहीं करवा पाई है। वहीं सरकार पूर्व सरकार द्वारा घोषित एनसीसी अकादमी को पोड़ी ले जाए जाने के लिए त्वरित निर्णय ले रही है, जबकि पोड़ी में इसकी मांग तक नहीं की गई। अब सरकार के इस निर्णय का टिहरी जिले में भारी विरोध होना आरंभ हो गया है।
स्थानीय जनता सरकार की कार्यशैली से नाराज दिखाई दे रही है। जिस तरह से मुख्यमंत्री द्वारा पौड़ी को 200 करोड़ की सौगातें दी गई हैं उससे जनता में खासा उत्साह तो दिखाई दे रहा है लेकिन विगत 18 वर्षों से शासन और सरकार की अनदेखी से जनता उन घोषणाओं को पूरा होने पर आशंकाएं जता रही है।
स्थानीय जनता की आंशकाएं निर्मूल नहीं हैं। सरकार पौड़ी से कुछ किमी दूर श्रीनगर के नजदीक सुमाड़ी गांव में एनआईटी को लेकर लापरवाह बनी हुई है, जबकि हाईकोर्ट नैनीताल सरकार को इस मामले पर फटकार लगा चुका है। अब तो यह मामला संसद में पौड़ी के सांसद तीरथ सिंह रावत भी उठा चुके हैं। स्थानीय जनता मुख्यमंत्री के इसी लचर स्वभाव के चलते सरकार की घोषणाओं से आशंकित है। अब देखना दिलचस्प होगा कि पौड़ी कमिश्नरी के स्वर्ण जयंती वर्ष को ऐतिहासिक तौर पर मनाने का निर्णय करने वाले आयुक्त गढ़वाल बीबीआर पुरुषोत्तम के केंद्र में जाने के बाद सरकार किस अधिकारी को गढ़वाल आयुक्त का पद देती है और क्या पद के साथ यह आदेश भी जारी होगा कि आयुक्त अपने पूरे कार्यकाल में पौड़ी में ही बैठेगा। साथ ही यह भी देखना दिलचस्प होगा कि देहरादून में ईसी रोड स्थित गढ़वाल आयुक्त कार्यालय सरकार कब तक समाप्त कर पाती है।