त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री पद से अवश्य हटाए गए, लेकिन इससे पहले वे अपने सलाहकारों और ओएसडियों पर कैसे मेहरबानी करते रहे, इसकी गूंज आज पूरे प्रदेश में है। वरिष्ठ पत्रकार उमेश कुमार शर्मा ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि त्रिवेंद्र सरकार में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे रमेश भट्ट और ओएसडी धीरेंद्र पंवार ने कौड़ियों के भाव सिंधवाल गांव में जमीन खरीदी। इस जमीन के रेट करोड़ों में पहुंचाने के लिए तत्काल वहां तक सड़क और पुल निर्माण किया गया। उमेश कुमार की याचिका पर हाईकोर्ट ने अब राज्य सरकार से तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। जाहिर है कि इससे राज्य सरकार के साथ ही भाजपा संगठन की भी परेशानी बढ़ सकती है
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में उनके सलाहकार की जमीनों तक पहुंचने के लिए सरकारी धन से बनाए गए पुल की गूंज अब नैनीताल हाईकोर्ट तक पहुंच चुकी है। पत्रकार और समाचार प्लस चैनल के प्रधान संपादक रहे उमेश कुमार शर्मा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है जिस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। साथ ही याचिकाकर्ता उमेश शर्मा को साक्ष्य तथा फोटो आदि न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।
दरअसल, पूरा मामला पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में देहरादून जिले के सिंधवाल गांव के लिए बनाए गए सड़क और भारी-भरकम पुल के निर्माण का है। इस मामले को उजागर करने वाले पत्रकार उमेश शर्मा का आरोप है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उनके मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट और ओएसडी धीरेंद पंवार द्वारा सिंधवाल गांव में कौड़ियों के भाव से जमीन खरीदी गई। इस जमीन तक पहुंचने के लिए सड़क और पुल का निर्माण करवाया गया। इसके चलते कोैड़ियों की जमीन करोड़ों की हो चुकी हैं। इससे यहां आरोप लगाया गया कि जमीनों के भाव बढ़ाने के लिए ही सरकारी खजाने से सड़क और पुल बनाया गया है जो कि केवल उसी जमीन तक ही पुहंचाई गई है जिसे खरीदा गया है।
इस मामले का सबसे पहले उमेश शर्मा ने खुलासा किया था और सूचना के अधिकार से जमीन के अभिलेख प्राप्त करके सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर आरोप लगाया था कि एक सोची-समझी साजिश के तहत सरकार ने सरकारी खजाने से करोड़ांे का पुल बनाकर अपने सलाहकारों को फायदा पुहंचाने का काम किया है। ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने वर्ष 12 के अंक 43 में ‘विवादांे में सीएम के करीबी’ शीर्षक से खुलासा किया था कि किस तरह से सिंधवाल गांव के लिए महज डेढ़ वर्ष में ही स्वीकृत करके न सिर्फ ढाई किलोमीटर सड़क का निर्माण करवाया गया, यहां तक कि भारी वाहन आवागमन के लिए 100 मीटर लंबे पुल का निर्माण भी करवाया गया। हैरत की बात यह है कि सिंधवाल गांव और नाही कला जैसे दुर्गम गांव के लिए सड़क की मांग वर्षों से की जाती रही है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही इन गांवों के लिए सड़क का प्रस्ताव कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियांे द्वारा भेजा जाता रहा है, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी इन गांवों के निवासियों को सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई।
पहली निर्वाचित कांग्रेस की तिवारी सरकार के समय राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के प्रयासों से सनगांव, नाही कला और सूर्यधार गांव के लिए सड़क का प्रस्ताव मुख्यमंत्री से स्वीकृत करवाया गया जिस पर काम आरंभ हुआ और वर्षों तक धीमी रफ्तार से काम होता रहा। आज तक केवल सूर्यधार के लिए ही सड़क बन पाई है, जबकि सनगांव तक के लिए आधी ही सड़क बन पाई है। बताया जाता है कि इसी सड़क से सिंधवाल गांव और नाही कला गांव को भी सनगांव होते हुए जोड़ा जाना था। हालांकि नाही कला गांव के लिए अब एक ग्रामीण सड़क का निर्माण हो रहा है और इस सड़क का मुख्य हेड इसी सिंधवाल गांव के लिए नए बनाए गए पुल के उत्तरी छोर से जोड़ा गया है।
यह मामला इसलिए अचानक सुर्खियों में तब आया, जब यह खुलासा हुआ कि तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट और ओएसडी धीरेंद्र सिंह पंवार ने साझेदारी के तहत सिंधवाल गांव में 1.4620 हेक्टेयर यानी लगभग 19 बीघा भूमि खरीदी। इस भूमि का बाजारी मूल्य 25 लाख 25 हजार रूपए बताया गया, जबकि सर्किल रेट प्रति हेक्टेयर 16 लाख 80 हजार रूपए विक्रय पत्र में अंकित किया गया है। हैरानी की बात यह हेै कि सिंधवाल गांव में जहां प्रॉपर्टी के रेट 40 से 50 लाख रुपए प्रति बीघा हैं जो कि सोशल मीडिया फेसबुक के ‘मार्किट प्लस’ पेज पर हर रोज प्रॉपर्टी डीलरों द्वारा विज्ञापन दिए जा रहे हैं, वहां महज 1 लाख 32 हजार रुपए बीघा जमीन बड़ी आसानी से खरीद ली गई। इस 19 बीघा भूमि के खरीदने पर सवाल इसलिए खड़े हुए कि जिस सिंधवाल गांव में आजादी के बाद भी एक इंच सड़क नहीं बनाई जा सकी, यहां तक कि अविभाजित उत्तर प्रदेश में हो या उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद गांव वालों को सड़क तक सरकारों ने मुहैया नहीं करवाई हो, वहां अचानक ही त्रिवेंद्र सरकार ने महज 18 माह के भीतर ही एक बड़ा भारी वाहन पुल और ढाई किलोमीटर लंबी सड़क को न केवल स्वीकृत किया बल्कि केवल 18 माह में ही निर्माण पूरा करके नया रिकॉर्ड तक बना डाला।
त्रिवेंद्र सरकार ने नाबार्ड से थानो के सिंधवाल गांव के लिए 6 करोड़ 74 लाख 78 हजार की लागत से ढाई किमी लंबी सड़क और बिडालना नदी पर एक 100 मीटर लंबा पुल स्वीकृत किया जिसके लिए कार्यदायी संस्था अस्थाई निर्माण खण्ड लोक निर्माण विभाग ऋषिकेश को बनाया गया तथा इसका टेंडर मैसर्स दून इंफ्रास्ट्रक्चर 2 ए वेस्ट रेस्ट कैम्प देहरादून को दिया गया। इस मामले में लोक निर्माण विभाग जिस पर सदेैव लेट- लतीफी और लापरवाही के आरोप लगते रहे हैं उसी विभाग ने महज 18 माह में ही सड़क और पुल का निर्माण रिकॉर्ड गति से करवा दिया। विभाग द्वारा लगाए गए साइन बोर्ड में पूरी जानकारी दी गई है। सड़क और पुल की कार्य निर्माण आरंभ की तिथि 29 मई 2018 तथा कार्य पूर्ण की तिथि 28 नवंबर 2019 अंकित की हुई है। यह अपने आप में ही एक रिकॉर्ड माना जा सकता है, क्योंकि आज तक केदारनाथ आपदा से क्षतिग्रस्त पुलों और सड़कों का पुनर्निर्माण नहीं हो पाया है। दर्जनों गांवों के लिए संपर्क पुल और पुलिया का निर्माण सरकार नहीं करवा पाई है, लेकिन सिंधवाल गांव के लिए 18 महीने में ही रिकॉर्ड गति से निर्माण करवाया गया जो कि कई सवाल भी खड़े करता है।
पत्रकार उमेश शर्मा का आरोप है कि रमेश भट्ट और धीरेंद्र सिंह पंवार द्वारा पुल स्वीकृत होने से पूर्व ही जमीनों का सौदा कर लिया गया था जिस तरह से अन्य कारोबारियों द्वारा सिंधवाल गांव में जमीनों के सौदे कर लिए गए थे, जबकि न तो इस गांव के लिए कोई सड़क थी और न ही नदी पर कोई पुल था। जैसे ही जमीनों के सौदे हुए तो सरकार ने सड़क और पुल भी स्वीकृत करने में देरी नहीं की। हालांकि रमेश भट्ट और धीरेंद्र पंवार द्वारा 16 नवंबर 2019 के विक्रय पत्र में भूमि पंजीकरण करवाया गया है। जिससे यह आरोप न लग सके कि पुल बनने से पूर्व जमीन खरीदी गई है। जबकि जमीनों के सौदे पुल और सड़क निर्माण से पूर्व ही होने की चर्चाएं हैं। साथ ही यह भी आरोप लगाया है कि अभी केवल 19 बीघा जमीन की रजिस्ट्रियां ही सार्वजनिक की गई हैं, जबकि कम से कम 45 बीघा जमीन खरीदी गई है। जिसका उल्लेख उमेश शर्मा द्वारा हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में भी किया गया है।
उमेश शर्मा का आरोप है कि इस मामले में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अपने सलाहकारांे और चहेतों के लिए इस तरह के काम कई बार किए हैं। सूर्यधार गांव में जब उनके चहेतों ने कौड़ियों के भाव जमीनें खरीद ली तब त्रिवेंद्र रावत ने सूर्यधार गांव के पास झील बनाए जाने की घोषणा की। इससे स्पष्ट हो गया है कि मुख्यमंत्री राज्य में बिल्डरों और भू-कारोबारियांे के लिए अपनी सरकार की नीतियां बनाते थे जिसमें सिंधवाल गांव के लिए सड़क और पुल का निर्माण किया गया है। अब मामले की गंूज हाईकोर्ट में सुनाई दे रही है। हाईकोर्ट ने जिस तरह से राज्य सरकार को तीन सप्ताह में इस मामले में जवाब दाखिल करने और उमेश शर्मा को सभी तथ्यों ओैर फोटोग्राफ को कोर्ट में प्रस्तुत करने का आदेश दिया है उससे तो लगता है कि राज्य सरकार की परेशानियां बढ़ सकती हैं।
साथ ही सत्ताधारी भाजपा अपने पूर्व मुख्यमंत्री जिनके चार साल का कार्यकाल के कामकाज को लेकर भाजपा विधानसभा चुनाव में जनता के बीच जाने वाली है उन्हीं मुख्यमंत्री के खिलाफ सरकार क्या निर्णय लेती है। यह बात तब और भी मजेदार हो जाती है कि पूर्व में त्रिवेंद्र रावत के भ्रष्टाचार के एक मामले में हाईकोर्ट नैनीताल ने सीबीआई जांच के आदेश तक जारी कर दिए थे और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अभी चल रही है। अब यह सिंधवाल गांव के पुल और जमीन की खरीद का मामला भी सरकार और भाजपा के गले की फांस बनता दिख रहा है।