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Uttarakhand

गंगा की अविरल धारा को रोकने पर गूंगी बनी श्री गंगा सभा

गंगा की अविरल धारा को रोकने पर गूंगी बनी श्री गंगा सभा

मां गंगा की अविरल धारा को रोकने का पहला प्रयास 1914 में ब्रिटिश हुकूमत ने किया था। तब महामना मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार में श्री गंगा सभा का गठन कर एक भीषण जन आंदोलन के जरिए ब्रिटिश सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। तत्कालीन ले. गवर्नर सर मेस्टन ने हरकी पैड़ी से होकर निकलने वाली गंगा की जिस धारा को निर्बाध बहने दिए जाने का निर्णय लिया था, उत्तराखण्ड सरकार ने उसे स्कैप चैनल घोषित कर दिया। ऐसा गंगा में खनन पर एनजीटी की रोक को निष्प्रभावी बनाने की नीयत से किया गया।

आश्चर्य यह कि गंगा के नाम पर करोड़ों का चंदा एकत्रित करने वाली श्री गंगा सभा इस मुद्दे पर खामोश है गंगा नदी के उद्गम स्थल गौमुख से मात्र 140 किमी दूर हिंदू धर्म आस्था की नगरी हरिद्वार में एक संस्था है ‘श्री गंगा सभा’। 1916 में इस संस्था का गठन प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष रहे, भारत रत्न से सम्मानित पंडित महामना मदन मोहन मालवीय ने की थी। तत्कालीन अंग्रेज हुकुमत ने 1914 में हरिद्वार के निकट भीमगोडा में गंगा पर एक बांध बनाने का निर्णय लिया जिसके विरोध में महामना ने श्री गंगा सभा की स्थापना कर बड़ा जन आंदोलन शुरू किया।

इस आंदोलन के आगे ब्रिटिश हुकूमत ने घुटने टेक यह निर्णय लिया कि हरकी पैड़ी, ब्रह्मघाट एवं अन्य घाटों में गंगा की धारा अविरल रखी जाएगी। ब्रिटिश हुकूमत को पीछे हटने के लिए मजबूर करने वाली श्री गंगा सभा आज मां गंगा के नाम पर करोड़ों का चंदा इक्कठा करने तक सीमित हो चुकी है। उत्तराखण्ड सरकार ने 1914 में ब्रिटिश हुकूमत के बदनीयत इरादों से कहीं आगे बढ़ हरकी पैड़ी-ब्रह्मकुण्ड से बहले वाली गंगा का स्वरूप ही बदल डाला है, लेकिन श्री गंगा सभा समेत हरिद्वार का साधु समाज खामोश है।

गौरतलब है कि 2016 में हरीश रावत सरकार द्वारा शासनादेश जारी कर गंगा के उस स्थल को स्कैप चैनल घोषित कर दिया था जिसको ब्रिटिश सरकार भी गंगा मानकर अपने कदम पीछे हटा चुकी थी। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गंगा नदी एवं इसकी सहायक नदियों के मध्य से 200 मीटर तक के क्षेत्र को प्रतिबंधित जोन निर्धारित करते हुए तमाम तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगाई हुई थी। एनजीटी के इन आदेशों से ऋषिकेश से लेकर हरिद्वार में हरकी पैड़ी से मायापुर डाउनस्ट्रीम तक तमाम तरह के निर्माण कार्यों और गंगा में खनन पर रोक लगा दी गई है।

वर्ष 2016 में रावत सरकार ने ब्रह्मकुंड हरकी पैडी के घाटों को छूकर बहती हुई धारा को सर्वानंद घाट से श्मशान घाट, डीडी एवं हरकी पैड़ी से होते हुए डाम कोठी तक, डाम कोठी के पश्चात सती घाट कनाल होते हुए दक्ष मंदिर तक बहने वाले गंगा के पौराणिक नाम और महत्व को बदलते हुए ‘स्कैप चैनल’ घोषित कर दिया। इससे एनजीटी के आदेश निष्प्रभावी हो गए और खनन माफिया को भारी राहत पहुंची। उस समय कुछ सामाजिक संस्थाओं द्वारा भले ही राज्य सरकार शासनादेश के विरोध में आवाज बुलंद की गई हो, लेकिन श्री गंगा सभा और हरिद्वार का संत समाज खामोश बैठा रहा। चार वर्ष बीतने को हैं।

2021 में कुंभ का आयोजन सिर पर है बावजूद इसके अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कुंभ में होने वाले शाही स्नान गंगा में संपन्न होंगे या फिर स्कैप चैनल में। संतों की उदासीनता और राज्य सरकार के खनन माफियाओं संग गठजोड़ के खिलाफ ओबीसी महासभा के प्रदेश संयोजक विजय सिंह पाल ने अब आवाज बुलंद की है। विजय सिंह पाल के मुताबिक सर्वानंद घाट से मायापुर तक और कनाल होते हुए दक्ष मंदिर तक बहने वाली जिस गंगा को राज्य सरकार द्वारा 2016 में स्कैप चैनल घोषित किया गया था वह भारतीय संविधान की धरा 363 के विरुद्ध है।

संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संविधान लागू होने से पूर्व जो अनुबंध ब्रिटिश हुकूमत और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, सरकारों के मध्य हुए हों, उनको नहीं बदला जा सकता। बावजूद इसके तत्कालीन हरीश रावत सरकार द्वारा गंगा को स्कैप चैनल घोषित किए जाने से सनातनधर्मियों की श्रद्धा को ठेस पहुंची है और बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि 2021 में धर्मनगरी में होने जा रहे कुंभ मेले का स्नान जो हर की पैड़ी पर होना तय है, तो क्या वह राज्य सरकार के मुताबिक गंगा में न होकर स्कैप चैनल में होगा?

‘दि संडे पोस्ट’ के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार दिसंबर 1916 को अंग्रेजी हुकूमत व देश के राजा, महाराजाओं एवं हिंदू महासभा के मध्य एक अनुबंध हुआ जिसका शासनादेश अंग्रेजी हुकूमत के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 28 अप्रैल 1917 को जारी किया गया है। इस अनुबंध से पूर्व बुलाई बैठक में पंडित मदन मोहन मालवीय सहित देशभर के राजा-महाराजाओं, तकनीकी विशेषज्ञों और पंडा समाज से जुड़े प्रतिनिधियों के साथ-साथ हिंदू सभा से जुड़े पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया था। दो दिवसीय बैठक के बाद उपस्थित राजा-महाराजाओं, हिंदू सभा से जुड़े पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए अंग्रेजी हुकूमत के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर मेस्टन ने कहा था ‘योर हाईनेस महाराजाओं आज हिंदू धर्म को निकट से प्रभावित करने वाले एक प्रश्न के समाधन में सहयोग के लिए आकर आपने मुझे ऋणी बना दिया है।

आप सभी महाराजाओं की अनुमति से शीघ्रता से सहमति पर पहुंचने के लिए मैं प्रस्तावित करता हूं कि यहां पर उपस्थित प्रत्येक सज्जन को अपने विचार असंतोष व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया जाए। यदि नए कार्यों से उसे कोई असंतोष है तो अपने सुझाव बताएं जिससे उनके अथवा उस समुदाय जिसका वह प्रतिनिधित्व करते हैं, के मस्तिष्क में चल रहे असंतोष का समापन हो सके। उसके बाद सारे मामले को आपके सम्मुख रखने के लिए अनुमति देंगे।’ वर्ष 1916 में गंगा की अविरलता के लिए हुए अनुबंध से पूर्व हुई बैठक में विचार रखते हुए महाराजा कासिम बाजार ने कहा था कि गंगा सभी हिंदुओं की मां है। हरिद्वार से सागर तक उसका जल सभी घरेलू उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाता है।

हरिद्वार में उसकी तीन धाराएं हैं एक धारा घाटों को पवित्र करती है, दूसरी मायापुर को पानी देती है और तीसरी धारा नए कार्य के द्वारा अब बंद हो जाएगी। हम एक स्वतंत्र धारा चाहते हैं जिससे शुद्ध पानी इसमें प्रवाहित होता रहे। हम सरकार को ज्ञापन दे चुके हैं जिसमें मांग की गई है कि सागर दीप तक अविरल प्रवाह के लिए केवल एक धारा होनी चाहिए। हम शुद्ध पानी चाहते हैं, लेकिन हम सामान्य जन हैं इसलिए यह नहीं बता सकते कि यह कैसे होगा। अनुबंध के अनुसार लेफ्टिनेंट गवर्नर ने उनसे पूछा क्या आप गंगा के पूरे पानी का प्रवाह इसी प्रकार चाहते हैं अथवा उसके एक भाग को नहर में मोड़ने के लिए अनुमति देंगे।

महाराज ने उत्तर दिया कि वह गंगा के संपूर्ण जल का प्रवाह हिमालय से सागर तक चाहते हैं। अनुबंध से पूर्व हुई बैठक में महाराजा दरभंगा ने कहा वह 12 महीने गंगा का निर्बाध प्रवाह चाहते हैं। तब धर्मनगरी के सर्वानंद घाट से एक धारा को हरकी पैडी के घाटों तक लाया गया जो ब्रह्मकुंड होते हुए मायापुर डैम तक निर्बाध बहती है। आज सर्वानंद घाट के नाम से प्रसिद्ध गंगा की धारा जिसको उस समय हुए अनुबंध में जलमार्ग संख्या-एक बताया गया को खुला रखने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था।

अब उसी अविरल धारा सामाजिक संस्थाओं अथवा पंडा समाज से जुड़े गंगा सभा के पदाधिकारियों से कोई सुझाव लिए बगैर शासनादेश जारी कर गंगा को उसके मूल स्वरूप से बदलकर स्कैप चैनल घोषित कर दिया गया। राज्य की मौजूदा त्रिवेंद्र रावत सरकार ने 2016 में जारी किए गये स्कैप चैनल घोषित किए जाने संबंधी शासनादेश को वापस लिये जाने के तमाम दावे-वादे किए। इसके बावजूद अभी तक 2016 के शासनादेश को निरस्त न किए जाने से राज्य सकरार के खिलाफ भी गंगा प्रेमियों का गुस्सा धीरे-धीरे सुलग रहा है।

बात अपनी-अपनी

यह मामला मुझसे पूर्व का है, सर्वानंद घाट से हर की पैड़ी की ओर बहने वाली जलधारा को स्कैप चैनल घोषित क्यों किया गया मैं अभी नहीं बता सकती। जानकारी करने के उपरांत ही कुछ कहा जा सकता है। हां स्कैप चैनल घोषित की गई जलधारा के संबंध में जारी शासनादेश को निरस्त करने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है। भूपेंद्र कौर ओलख, सचिव, सिंचाई उत्तराखण्ड शासन

राष्ट्र के स्वाभिमान की गौरवपूर्ण धारा पतित पावनी मां गांगा को स्कैप चैनल या नहर कहकर तिरष्कृत करके भू-माफियाओं के दबाव में सरकारों ने जिस तरह से राष्ट्र भक्ति की नई परिभाषा गढ़ने की शुरुआत की है उससे आहत होकर मुझे मां गंगा की मान मर्यादा की खातिर पुनः उसी भावना को राष्ट्र के सामने रखने की सूझी। अंग्रेजों ने तो हिंदू भावनाओं को सम्मान दिया, परंतु वर्तमान हिंदूवादियों ने मां गंगा को भोग का विषय समझ उसके व्यवसायिक दोहन को ही धर्म का आचरण समझ लिया है। विजय सिंह पाल, प्रदेश संयोजक, ओबीसी महासभा उत्तराखण्ड

हरकी पैड़ी पर हम सब व्यापारियों और करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था है जो स्नान हरकी पैड़ी पर स्थित ब्रह्मकुंड में होगा, उसी स्नान का महत्व है। हो सकता है सरकार ने किन्ही कारणों से नाम बदल दिया हो, पर हम सबकी आस्था केवल हरकी पैड़ी ब्रह्मकुंड के स्नान पर ही है। शिव कुमार कश्यप, जिला अध्यक्ष, व्यापार मंडल हरिद्वार

हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार गंगा जी का नाम बदले या न बदले, हम हमेशा से कुंभ स्नान हरकी पैड़ी पर करते आए हैं और वहीं करेंगे। नरेंद्र गिरी, अध्यक्ष, अखाड़ा परिषद

गंगा का नाम बदलकर स्कैप चैनल रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत खुद हरकी पैड़ी पर आकर अपनी गलती मान चुके हैं। उन्होंने वर्तमान मुख्यमंत्री से अपील की है कि वह गंगा का नाम पुराणों के आधार पर रखें। हम लोगों की करीब डेढ़ महीने पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात हुई थी जिसमें उन्होंने हमें आश्वासन दिया था कि जब अलकनंदा होटल के पास बन रही इमारत का कार्य पूरा हो जाएगा तो हम अध्यादेश लाकर गंगा का पौराणिक नाम ही रखेंगे। हम लोग इस सावन तक प्रतीक्षा में है। यदि सरकार ने हरकी पैड़ी पर गंगा का नाम न बदला तो हम आंदोलन के लिए उतारू हो जाएंगे।प्रदीप झा, अध्यक्ष, श्री गंगा सभा हरिद्वार

-अहसान अंसारी

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