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Uttarakhand

निर्दलियों की चौंकाने वाली जीत

उत्तराखण्ड में 70 विधानसभा सीटों पर इस बार नाम वापसी के बाद 632 प्रत्याशी मैदान में शेष रह गए थे। इनमें 391 प्रत्याशी गढ़वाल मंडल के सात जिलों की 41 सीटों पर ताल ठोक रहे थे, जबकि कुमाऊं मंडल की 29 सीटों पर 241 प्रत्याशी मैदान में डटे रहे। जिनमें भाजपा, कांग्रेस, बसपा, यूकेडी और आम आदमी पार्टी के साथ ही कई प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लड़े थे। हालांकि अधिकतर सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को सिर्फ वोटकटवा कहकर मुख्य पार्टियों के प्रत्याशी अपनी जीत के दावे जरूर करते रहे लेकिन दो निर्दलीय वोटकटवा से आगे निकल कर जीत दर्ज करा गए। राज्य में अब तक 5 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। जिनमें निर्दलीय प्रत्याशी दो बार किंग मेकर बनकर सामने आए हैं। निर्दलीय प्रत्याशी अधिकतर भाजपा और कांग्रेस के बागी रहे। हालांकि कई विधायक ऐसे भी बने जो न भाजपा के थे, न कांग्रेस के। प्रदेश के पिछले 4 विधानसभा चुनाव की बात करें तो निर्दलीय अब तक दो बार हैट्रिक मार चुके हैं। उत्तराखण्ड के अब तक के इतिहास में दो बार जनता ने खंडित जनादेश दिया है। 2007 में किसी भी पार्टी की बहुमत में विधायक जीतकर नहीं आए। तब भाजपा ने सरकार बनाई। लेकिन निर्दलियों के समर्थन के बिना सरकार नहीं बनी थी।

सेटिंग गेटिंग के खेल में तब भाजपा को एक निर्दलीय को मंत्री पद देना पड़ा था। इसी तरह 2012 में भी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस बन कर आई। लेकिन वह भी बहुमत नहीं ला पाई थी जिस चलते 2007 की तरह कांग्रेस को भी 2012 में निर्दलियों का सहारा लेना पड़ा और एक निर्दलीय को मंत्री पद देना पड़ा। 2002 में पहली बार चुनाव हुए तो कांग्रेस की सरकार बनी। तब कांग्रेस को बहुमत मिला। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में भी तीन निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बने थे। लक्सर से कुंवर प्रणव चैंपियन तो जसपुर से डॉक्टर शैलेंद्र मोहन सिंघल और धारचूला से गगन सिंह रजवार निर्दलीय जीत थे। 2007 में जब दूसरे विधानसभा चुनाव हुए तो स्पष्ट जनादेश नहीं मिल सका। तब सबसे बड़ी पार्टी भाजपा बनकर सामने आई। 70 विधानसभा सीटों में 35 विधानसभा सीट भाजपा को मिली, जबकि कांग्रेस इस चुनाव में 22 सीटों पर जीती और दूसरे नंबर पर रही। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के सात उम्मीदवार जीते तो उत्तराखंड क्रांति दल के तीन प्रत्याशी इस चुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंचे। जितने विधायक यूकेडी के जीते उतने ही निर्दलीय जीते।

इस तरह तेरह विधानसभा सीट बसपा, यूकेडी और निर्दलीय को चली गई। भाजपा बहुमत हासिल करने के 36 के आंकड़े से महज एक ही सीट से चूक गई थी। तब यूकेडी के तत्कालीन विधायक दिवाकर भट्ट को मंत्री बनाया गया। इस दौरान तीन
निर्दलीय विधायक बनकर आए। जिनमें पौडी से यशपाल बेनाम, नंदप्रयाग से राजेंद्र भंडारी और धारचूला से गगन सिंह रजवार शामिल थे। तब निर्दलीय में से ही एक विधायक राजेंद्र भंडारी को भी मंत्री बनाया गया। इस चुनाव में पौड़ी से यशपाल बेनाम ने भाजपा के त्रिवेंद्र सिंह रावत को कड़ी टक्कर दी थी। त्रिवेंद्र सिंह रावत यशपाल बेनाम से महज 11 वोटों से चुनाव हार गए थे। तब भाजपा ने बहुत कोशिश की यशपाल बेनाम अपनी सीट मुख्यमंत्री के लिए छोड़ दें, क्योंकि अगर ऐसा होता तो भाजपा को एक विधायक की कमी पूरी हो जाती। लेकिन तब यशपाल बेनाम नहीं माने। उन्होंने अपनी सीट छोड़ने से स्पष्ट इनकार कर दिया। इसके बाद भाजपा ने कांग्रेस के टीपीएस रावत को अपने पाले में लाकर इस्तीफा दिलाया। इस सीट पर हुए उपचुनाव में बीसी खण्डूड़ी बतौर सीएम चुनाव जीते थे।

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर किसी पार्टी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला। कुल 70 विधानसभा सीटों में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस बन कर उभरी कांग्रेस को इस चुनाव में 32 विधानसभा सीटें मिली, जबकि दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी रही। तब भाजपा को कांग्रेस से एक कम यानी कि 31 विधानसभा सीट मिली। जबकि बसपा को 3 सीटों पर जीत मिली। उत्तराखण्ड क्रांति दल 2012 के विधानसभा चुनाव में एक ही सीट तक सिमट गई। हालांकि, बाद में उक्रांद के विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए, जबकि निर्दलियों ने एक बार फिर 3 विधानसभा सीट जीतकर आश्चर्यचकित कर दिया। निर्दलीय विधायक बनने वालों में देवप्रयाग से मंत्री प्रसाद नैथानी, टिहरी से दिनेश धनै तो लालकुआं से हरीश्चंद्र दुर्गापाल आदि थे। कांग्रेस सरकार में दो निर्दलियों मंत्री प्रसाद नैथानी और हरीशचंद्र दुर्गापाल को मंत्री बनाया गया था।

निर्दलीयों की जीत में लक्सर पहले नंबर पर है। यहां निर्दलीय प्रत्याशी उमेश कुमार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के प्रत्याशियों से मजबूती से चुनाव लड़ कर सामने आए। पत्रकारिता से निकले उमेश कुमार पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। विवादित छवि के उमेश कुमार ने भाजपा के दिग्गज नेता कुंवर प्रणव चैंपियन की पत्नी देवयानी को करारी शिकस्त दे सबको चौंका दिया है। यमुनोत्री विधानसभा सीट से कांग्रेस ने दीपक बिलजवाल को प्रत्याशी बनाया था। इसके अलावा भाजपा ने यहां से केदार सिंह रावत को टिकट दिया। लेकिन दोनों पर कांग्रेस के बागी उम्मीदवार संजय डोभाल भारी पड़ गए। संजय डोभाल 2017 में भी कांग्रेस के टिकट पर प्रबल दावेदार थे। लेकिन उन्हें तब भी टिकट नहीं मिला। इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिलजवाल को दे दिया। जिससे संजय डोभाल निर्दलीय ही मैदान में उतर आए थे। फिलहाल डोभाल ने जीत हासिल कर ली हैं।

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