राज्य के ख्याति प्राप्त पर्यटन नगरी रानीखेत में इस वर्ष शरदोत्सव का आयोजन रद्द होने से नाना प्रकार की चर्चाओं का बाजार भी गर्म है। कहा जा रहा है कि शरदोत्सव आयोजित न हो पाने के पीछे राजनीतिक कारण हैं। सूत्रों की मानें तो सत्ताधारी दल के एक प्रभावशाली नेता आयोजन समिति के संयोजक विमल सती संग राजनीतिक विद्वेष रखते हैं। चूंकि सती इस शरदोत्सव कमेटी के कर्ताधर्ता थे इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से संकेतों में प्रशासन को भी समझा दिया गया कि शरदोत्सव के संबंध में कोई बैठक न की जाए
उत्तर प्रदेश के समय से मशहूर रानीखेत का शरदोत्सव इस वर्ष नहीं होगा। शरदोत्सव का आयोजित न होना कोई बड़ी खबर नहीं है लेकिन इसके आयोजित न होने के पीछे जो राजनीतिक कारण हैं शायद वे चिन्ह्त करने वाले जरूर हैं। ऐसा नहीं है कि पहले कभी परिस्थितियोंवश किसी वर्ष दूसरा आयोजन नहीं हुए हों लेकिन यह पहली मर्तबा है कि शरदोत्सव आयोजन के लिए सेना के नरसिंह मैदान की सैन्य अधिकारियों द्वारा इजाजत देने के बावजूद शरदोत्सव की संस्कृति समिति के संयोजक विमल सती को सैन्य अधिकारियों को लिखना पड़ा कि इस वर्ष आयोजन होना संभव नहीं है। राज्य के ख्याति प्राप्त पर्यटन नगरी रानीखेत में इस आयोजन के रद्द होने से मायूसी के साथ-साथ नाना प्रकार की चर्चाओं का बाजार भी गर्म है। कहा जा रहा है कि इस वर्ष शरदोत्सव आयोजित न हो पाने के लिए राजनीतिक कारण जिम्मेदार हैं। सूत्रों की मानें तो सत्ताधारी दल के एक प्रभावशाली नेता इस आयोजन समिति के संयोजक विमल सती संग राजनीतिक विद्वेष रखते हैं। वरिष्ठ पत्रकार और सांस्कृतिककर्मी विमल सती चूंकि इस शरदोत्सव कमेटी के कर्ताधर्ता थे इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से संकेतों में प्रशासन को भी समझा दिया गया कि शरदोत्सव के संबंध में कोई बैठक न की जाए। खास बात यह है कि शरदोत्सव के आयोजन के लिए कुछ लोगों को उन विमल सती की सांस्कृतिक समिति के संयोजक के इस्तीफे के रूप में बलि चाहिए थी जिन्होंने रानीखेत ही नहीं वरन पूरे रानीखेत उपमंडल में संस्कृति और परंपराओं को उत्सवों, कवि सम्मेलनों के माध्यम से जीवित रखा है। यह है रानीखेत की नई राजनीतिक फिजा। रानीखेत यदि प्राकृतिक सौंदर्य एवं समृद्ध सांस्कृतिक राजनीतिक विरासत होने के बावजूद अपना वह मुकाम हासिल नहीं कर पाया जिसका वह वास्तविक हकदार है तो इसके पीछे ऐसे ही राजनीतिक कारण रहे हैं जो इस पर्यटन नगरी की प्रगति में इन दिनों ज्यादा बाधक बनते स्पष्ट नजर आ रहे हैं।
गौरतलब है कि रानीखेत में शरदोत्सव की शानदार परंपरा रही है, जब नैनीताल, अल्मोड़ा जैसे शहरों में शरदोत्सव कई वर्षों तक आयोजित नहीं हुए, रानीखेत ने इस परंपरा को कायम रखा। रानीखेत में शरदोत्सव एक तरह से आम जनता का ही उत्सव होता है क्योंकि सही मायने में इस उत्सव को जनता ही आयोजित करती है। अल्मोड़ा, नैनीताल में जहां नगर पालिकाएं इसे आयोजित करती हैं, वहीं रानीखेत में प्रशासन के सहयोग से जनता के हाथ में इसकी कमान रहती है। रानीखेत के मानस का आमतौर पर चरित्र उत्सवधर्मी रहा है। शायद यही वजह है कि शरदोत्सव, ग्रीष्मोत्सव, रामलीला, कृष्ण जन्माष्टमी, नन्दाष्टमी सहित अनेक उत्सव पूरी सहभागिता के साथ मनाए जाते रहे हैं।
रानीखेत को ब्रिटिश शासकों ने उसके प्राकृतिक सौंदर्य स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु के कारण अपना ठिकाना बनाया था। उत्सव मनाने में अंग्रेज हिंदुस्तानियों से कम नहीं थे और उनकी इसी उत्सवधर्मी सोच ने शुरू की शरदोत्सव के आयोजन की परंपरा। मनोरंजन के इंडोर और आउटडोर साधनों के साथ उत्सवों की शुरूआत ‘मीट्स’ और ‘वीक’ के रूप में शुरू हुई। 1925 के मध्य ब्रिटिशर्स इसे ‘रानीखेत वीक’ या सितंबर वीक के रूप में मनाते थे। ‘रानीखेत वीक’ का आयोजन जून माह में किया जाता था जो कालांतर में ग्रीष्म महोत्सव के नाम से जाना जाने लगा। ‘सितंबर वीक’ का आयोजन सितंबर-अक्टूबर माह में किया जाता था जिसे शरद ऋतु चलते शरदोत्सव का नाम दे दिया गया। ऐसे ही आयोजन नैनीताल में भी किए जाते थे। इन उत्सवों में हार्स रेस, यूरोपीय देशों के लोकनृत्य, गीत, पोला जैसे आयोजन किए जाते थे। हालांकि इन उत्सवों में भारतीय प्रतिभाग तो नहीं कर सकते हैं लेकिन दर्शकों के रूप में भारतीयों की मौजूदगी हमेशा रहती थी। रानीखेत शरदोत्सव के महत्व को इस रूप में समझा जा सकता कि देश के शीर्ष पदों पर रही नामचीन हस्तियां इसके उद्घाटन-समापन समरोह की शोभा बढ़ा चुकी हैं।

1971 में रानीखेत शरदोत्सव का शुभारंभ करती तत्कालीन प्रयधानमंत्री इंदिरा गांधी। साथ में तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठीए पंडित मदन मोहन उपाध्याय और केसी पंत
1958 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत, 1970 में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी, 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, 1975 में मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा, 1980 में केसी पंत, 1994 में गुलाम नबी आजाद सहित कई हस्तियां ग्रीष्मोत्सव- शरदोत्सव का हिस्सा बनीं। वर्ष 2003 के बाद दस वर्षों तक कतिपय कारणों से शरदोत्सव की पंरपरा अवरुद्ध जरूर रही लेकिन उसके राजनीतिक कारण कतई नहीं थे। 2014 से इसके आयोजन की परंपरा फिर शुरू हुई। सीमित संसाधनों से छावनी परिषद के तत्कालीन मुख्य अधिशाषी अधिकारी प्रमोद सिंह ने इसे आयोजित करवाया। 2015 में तत्कालीन उपजिलाधिकारी एवी वाजपेयी ने तीन दिवसीय शरदोत्सव का आयोजन करवाया। 2019 में तत्कालीन संयुक्त मजिस्ट्रेट नरेंद्र भंडारी ने ‘रानीखेत महोत्सव’ नाम से भव्य आयोजन करवाया। 2020-21 में कोविड महामारी के चलते इस उत्सव का आयोजन बाधित रहा। शरदोत्सव के माध्यम से संस्कृति, खेल और अन्य कलाओं के प्रतिभावान युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है जिनको इनके आयोजन न होने से निराशा ही मिलती है।
इस वर्ष रानीखेत शरदोत्सव के आयोजन पर जिस प्रकार राजनीति हावी हुई है उससे आने वाले समय के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता।
इसी राजनीति के चलते रानीखेत ने बहुत कुछ खोया है। आपसी भाईचारे को तो काफी हद तक चोट पहुंचाई ही है, रानीखेत के अपने अस्तित्व पर संकट खड़ा किया है। शहरवासियों का कहना है कि यदि उत्सव जैसे अवसरों को राजनीतिक द्वेष के रूप में निशाना बनाया जाएगा तो राजनीतिज्ञ भी कहां इसकी ताप से बचेंगे। यह पहला अवसर होगा जब सांस्कृतिक समिति के संयोजक पर निशाना साधते हुए शरदोत्सव आयोजित करने के दरवाजे बंद कर दिए गए। शहर रानीखेत के एक वरिष्ठ नागरिक कहते हैं कि ‘दरअसल नेताओं के नई पीढ़ी के शार्गिद स्वयं को रानीखेत का भाग्यविधाता मान बैठे हैं। वरना रानीखेत में चंद्रभान गुप्त, गोविंद सिंह माहरा, जसवंत सिंह, पूरन सिंह माहरा, बची सिंह रावत, अजय भट्ट, करन माहरा जैसे राजीतिज्ञ भी रहे जिन्होंने कभी भी अपने राजनीतिक हितों को रानीखेत के हितों से ऊपर नहीं रखा, न ही राजनीतिक द्वेष के चलते किसी भी प्रकार के आयोजनों में बाधा उत्पन्न की।’
जिस प्रकार की परिपाटी कुछ राजनीतिज्ञों और उनके शार्गिंदों ने रानीखेत में शुरू की है उसके परिणाम भविष्य में रानीखेत के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। समृद्ध परंपराओं पर संकीर्ण राजनीति का साया किसी भी शहर के लिए अच्छा संकेत नहीं है। रानीखेत में आयोजित शरदोत्सव और ग्रीष्मोत्सव की खासियत है कि ये आयोजन के लिए राजनीतिज्ञों के आर्थिक सहयोग के मोहताज नहीं रहे हैं। एकाध अवसरों को छोड़ दें तो शरदोत्सव समिति ने प्रशासन के सहयोग से आयोजन के लिए आर्थिक संसाधन स्वयं जुटाए हैं। इस आयोजन के न होने पर उन लोगों की चुप्पी आश्चर्यजनक है जो रानीखेत के हर अच्छे काम का श्रेय लेने से पीछे नहीं हटते।
सवाल है कि क्या रानीखेत के प्रबुद्ध नागरिक, जनप्रतिनिधि अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के चलते रानीखेत के हित उन राजनीतिज्ञों और उनके शार्गिदों के हाथों में रख देंगे जिनके लिए राजनीति का सीधा सा मतलब प्रतिशोध है और उन्हें आज विमल सती की बलि चाहिए कल इन्हीं कथित देवताओं को किसी और का बलिदान चाहिए होगी। शरदोत्सव तो महज एक शुरुआत है अगर आमजन, रानीखेत के राजनीतिज्ञों, प्रबुद्ध नागरिकों की चुप्पी यूं ही बनी रही और तटस्थता के नाम स्वयं को निष्पक्ष दिखाने की कोशिश यूं ही रहीं तो राष्ट्रीय स्तर की हॉकी, प्रदेश स्तरीय फुटबाल जैसे आयोजनों को सिर्फ स्मृतियों में रखने वाला शहर बहुत कुछ और खो चुका होगा।
बात अपनी-अपनी
रानीखेत शरदोत्सव की मुझे जानकारी नहीं है। मुझे आयोजकों द्वारा इसकी बाबत बताना चाहिए था। एक कमेटी बननी चाहिए थी जो शायद बनी भी होगी, लेकिन कमेटी ने भी मुझसे इस शरदोत्सव का जिक्र तक नहीं किया। अगर वह मुझसे बात करते तो हम डीएम और एसडीएम सब से परमिशन ले लेते। अब तो वैसे भी दिसंबर आ गया है। अब तो ठंड ज्यादा हो गई है, शरदोत्सव नहीं हो पाएगा। हमारी संस्कृति के लिए उत्सव होने जरूरी हैं। चाहे वह शरदोत्सव हो या ग्रीष्मोत्सव, मैं इनके पक्ष में हूं।
प्रमोद नैनवाल, विधायक रानीखेत
हमने भी रानीखेत में उत्सव नाम से दो बार कार्यक्रम कराए हैं। मल्टीप्लेक्स हॉल में कराए गए यह कार्यक्रम बहुत ही उत्साहवर्धक रहे। जिसके लिए 8 लाख रुपए अपनी विधायक निधि से दिए। लेकिन रानीखेत के शरदोत्सव में राजनीति हो रही है जो कि नहीं होनी चाहिए। एक बार मेरे साथ भी ऐसे ही राजनीति की गई थी। जब आचार संहिता का नाम देकर मुझे शरदोत्सव में निमंत्रण नहीं दिया गया था। जबकि उसी दिन अल्मोड़ा में एक मेले का उद्घाटन रघुराज सिंह चौहान से कराया गया था। इस कार्यक्रम में रंगकर्मी, लेखक और पत्रकार विमल सती जी के लिए जिस तरह से बातें की जा रही हैं वह बहुत गलत है। एक पत्रकार, लेखक और रंगकर्मी ही हमारी संस्कृति को प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस कार्यक्रम की अगवानी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी कर चुकी हैं उसको निरस्त नहीं कराना चाहिए।
करण माहरा, प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस
रानीखेत शरदोत्सव के लिए हमने पूरी तैयारी कर ली थी बकायदा एक कमेटी भी बना ली थी। उत्सव के लिए सेना ने भी अपने मैदान देने की स्वीकृति दे दी थी लेकिन प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए हैं क्योंकि मेले में लॉ एंड ऑर्डर का मामला होता है जो प्रशासन के बिना नहीं हो सकता। इसके चलते ही हमने रानीखेत शरदोत्सव को न कराने का निर्णय लिया है। हमने सेना द्वारा नवंबर तक अपने मैदान देने को भी लिखकर दे दिया है कि अब हमारा शरदोत्सव नहीं होगा
विमल सती, संयोजक शरदोत्सव संस्कृति समिति रानीखेत
हम सांस्कृतिक समिति के नेतृत्व में जिलाधिकारी महोदय से मिलने गए थे। शरदोत्सव के प्रति उनका रवैया बहुत ही सकारात्मक था। उसके बाद हम सभी कमांडेंट से नरसिंह ग्राउंड के लिए मिलने गए थे। उनके कार्यालय द्वारा भी मैदान की लिखित स्वीकृति प्रदान कर दी गई थी। परंतु इतना होने के पश्चात संकीर्ण राजनीति के चलते शरदोत्सव न हो पाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
संदीप गोयल, उपाध्यक्ष व्यापार मंडल रानीखेत
रानीखेत अपने शरदोत्सव के लिए देश की आजादी के बाद से जाना जाता रहा है। परंतु इस वर्ष एक छोटी मानसिकता को लेकर यह भारत विख्यात शरदोत्सव राजनीति की भेंट चढ़ गया। रानीखेत का शरदोत्सव जब प्रथम बार शुरू हुआ था तब मेरे पिता पंडित मदन मोहन उपाध्याय जी उत्तर प्रदेश के वयोवृद्ध नेता और उत्तराखण्ड के लौह पुरुष पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी को इस शरदोत्सव के उद्घाटन के लिए लेकर आए थे। उसके बाद 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने भी रानीखेत महोत्सव का उद्घाटन किया है। सारी बात का निचोड़ यह है कि जिस महोत्सव का उद्घाटन इतनी महान विभूतियों ने किया था, वही नहीं हो रहा है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
हिमांशु उपाध्याय, समाजसेवी रानीखेत
दुर्भाग्यपूर्ण है, वर्षों की परंपरा रही है। स्थानीय प्रतिभाओं को मौका मिलता था प्रतिभा को मंच तक लाने का। यह आम नागरिकों का उत्सव है, जिसे मिल-जुलकर करना चाहिए। ग्राउंड का उपलब्ध होने के बाद भी शरदोत्सव न होना निराशापूर्ण है।
विमला रावत, मीडिया प्रभारी भाजपा उत्तराखण्ड