- हरीश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
25 अगस्त सालम क्रांति का दिन है। इस दिन जैंती के धामदेवल में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं और तिरंगे झंडे को श्री राम सिंह धोनी, श्री प्रताप सिंह बोरा व श्री मर्च राम जी के नेतृत्व में फहराते हैं। सालम के दो नौजवान नर सिंह और टीका सिंह, झंडारोहण के साथ शहीद हो जाते हैं। सारा सालम क्षेत्र आजादी के नारों से गूंज उठता है। लोग ‘जय हिंद’ का उद्घोष करते हुए जगह-जगह ‘तिरंगा झंडा’ फहराते हैं। उसी ‘अगस्त क्रांति’ की याद में हर वर्ष जैंती में शहीद मेला लगता है
आज कांग्रेस के कमजोर होने की चर्चाएं लोगों के मध्य हैं। देश के स्वतंत्रता संग्राम को नेतृत्व देने वाली राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना लोकतंत्र व भारत, दोनों के हित में नहीं है। कांग्रेसजनों को अपने स्वाभाविक शक्ति स्रोतों तक पहुंचने की आवश्यकता है। ऐसा ही एक स्वाभाविक शक्ति स्रोत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितगण हैं। स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों व मान्यताओं से उनका स्वाभाविक लगाव होना चाहिए। उनके सुप्त पड़े इस लगाव को उकेरना आवश्यक है। इसी अभिप्राय को साधने के लिए हमने वर्ष 2020 और 2021 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के घरों एवं गांवों तक दर्जनों पदयात्राएं/सम्मान समारोह आयोजित किए। ऐसी ही एक पदयात्रा अल्मोड़ा जनपद के सालम क्षेत्र में आयोजित की गई।
गांधीजी के आह्नान पर उत्तराखण्ड सहित देश के सभी भागों में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा गूंज उठा। अल्मोड़ा में 4 स्थानों में व नैनीताल के कोटाबाग क्षेत्र में तिरंगा झंडा फहराने के वक्त अंग्रेजों ने गोलियां चलाई और कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हो गए। अल्मोड़ा जनपद में सल्ट, सालम, बौरा रौ व देघाट क्षेत्र में देश की आजादी की लड़ाई में लोगों ने अभूतपूर्व योगदान दिया। कितना अद्भुत संयोग है कि 9 अगस्त, 1942 में गांधी जी बॉम्बे/मुंबई के ग्वाटामाला ग्राउंड में अंग्रेजों भारत छोड़ो का आह्नान करते हैं और 19 अगस्त के दिन दूर देघाट के खल्डुआ क्षेत्र में लोग तिरंगा झंडा लेकर निकल पड़ते हैं। उनको रोकने के लिए अंग्रेजों की पुलिस आती है और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर गोली चलाती है। दो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री हरिकृष्ण उप्रेती व हीरामणि बड़ोला जी शहीद हो जाते हैं। आप अंदाज लगाएं एक तरफ मुंबई और वहां से दूर गढ़वाल एवं कुमाऊं के दोसान पर खल्डुआ, जहां सड़क भी सन् 1988-89 में पहुंची। उस समय कोई संचार का माध्यम नहीं था, केवल रेडियो। देश की आजादी के लिए लड़ने वालों का भावनात्मक वेतार का तार काम कर रहा था। देश के दूरस्थ अंचलों में भी लोग अंग्रेजों के सिपाहियों कै सामने डटकर खड़े हो गए और अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। जगह-जगह तिरंगा झंडा फहराया गया। अल्मोड़ा जिले के सल्ट क्षेत्र के देघाट क्षेत्र में खल्डुआ, सालम में जैंती, बौरा रौ क्षेत्र में चनौदा और सल्ट खुमाड़ में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के ऊपर गोली चलती है और लोग आजादी का गीत गाते हुए शहीद हो जाते हैं। 2 सितंबर के दिन नैनीताल जिले के डोन परेवा में श्री दिवान सिंह शहीद हो गये। 5 सितंबर को खुमाड़ में खीमानंद जी, गंगा दत्त जी, चूणामणि जी तथा बहादुर सिंह महरा जी शहीद हो गए।
25 अगस्त सालम क्रांति का दिन है। इस दिन जैंती के धामदेवल में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं और तिरंगे झंडे को श्री राम सिंह धोनी, श्री प्रताप सिंह बोरा व श्री मर्च राम जी के नेतृत्व में फहराते हैं। सालम के दो नौजवान नर सिंह और टीका सिंह, झंडारोहण के साथ शहीद हो जाते हैं। सारा सालम क्षेत्र आजादी के नारों से गूंज उठता है। लोग ‘जय हिंद’ का उद्घोष करते हुए जगह-जगह ‘तिरंगा झंडा’ फहराते हैं। उसी ‘अगस्त क्रांति’ की याद में हर वर्ष जैंती में शहीद मेला लगता है। उसमें लोग आगे बढ़कर बड़े जोश-खरोश से भाग लेते हैं। मैं याद करना चाहूंगा कि केदार सिंह कुंजवाल जी व देवकी कुंजवाल जी को, जिनकी प्रेरणा से मेला प्रारंभ हुआ। श्री केदार सिंह सर्वोदय कार्यकर्ता थे। गांधी विनोबा के रचनात्मक कार्यकर्ताओं में अग्रदूत थे। उन्होंने लोगों को खादी कातना, खादी के वस्त्र पहनने आदि सिखाने के लिए समितियां बनाकर गांव-गांव में स्वालंबन का प्रचार किया है। श्रीमती देवकी कुंजवाल आज भी इस कार्य को मिशन मोड में चला रही हैं। उनकी पहल पर निश्चय किया गया कि जहां टीका सिंह व नर सिंह शहीद हुए थे, वहीं शहीद स्मारक भी बनाया जाए और हर साल 25 अगस्त को मेला लगाया जाए। प्रारंभ में केवल कांग्रेस के लोग इकट्ठा होते थे। मुझे बेहद खुशी है कि अब यह मेला सर्वपक्षीय हो गया है। सभी पार्टियों के लोग आते हैं। मुझे सौभाग्य मिला है कि जब से राजनीति में आया खल्डुआ से लेकर जैंती, चनौदा, डोन परेवा और खुमाड़ के महान शहीद स्थल में लगने वाले शहीदी मेलों में सम्मिलित हुआ हूं। अपनी पुष्पांजलि देश के उन अमर शहीदों को अर्पित कर भारत माता की जय का उद्घोष कर पाया हूं। जैंती में शहीद स्थल धामदेवल तक सड़क चली गई है। धामदेवल के मैदान में अब आईटीआई के साथ शहीद स्मारक भी बना है। जैंती में तहसील, फॉरेस्ट का प्रशिक्षण संस्थान, पॉलिटेक्निक, डिग्री कॉलेज आदि सब कुछ है। श्री गोविंद सिंह कुंजवाल जी ने अपनी सशक्त पहल से इन संस्थाओं को स्वीकृत करवाया है। श्री गोविंद सिंह कुंजवाल जी ने अपने विधायक के कार्यकाल में जगह-जगह सड़कें भी पहुंचा दी हैं।
एक किंदवंती है, श्री राम सिंह धोनी जी ने सर्वप्रथम इसी भूमि से जय हिंद का नारा दिया था, जो बाद में सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत वासियों को संगठित करने के लिए एक कौमी नारे के रूप में उद्घोषित किया। 2020 में मैंने, गोविंद सिंह कुंजवाल जी से चर्चा की और तय किया कि इस बार शहीदों के गांव में जाकर वहां की मिट्टी को प्रणाम करेंगे। इन महावीरों ने हमको दासता से मुक्त कराने का संग्राम लड़ा। वह महासंग्राम था। गांधी उस महासंग्राम के नायक थे। हमने गांधी जी के भजनों के साथ उन सभी गांवों को छुआ जहां हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पैदा हुए। जैंती में 25 अगस्त को मेला लगता है। हमने 23 और 24 अगस्त में परिक्रमाएं आयोजित की। कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश भर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्मान समारोह आयोजित किये। मैंने अपने एक लेख में एक ऐसे अमर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री श्रीदेव सुमन के गांव जौल की अपनी पदयात्रा का भी उल्लेख किया है। हमारे साथियों ने बड़े पैमाने पर जगह-जगह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितगणों का सम्मान किया और उनके गांव व घर की पवित्र माटी को प्रणाम किया। हमारा अभियान महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मर्च राम जी के गांव कुठौली और उनके घर से प्रारंभ हुआ। मर्च राम जी के पुत्र प्रताप, कांग्रेस के अग्रणीय कार्यकर्ता हैं, 25 अगस्त को उनका हौसला देखने लायक होता है। हम उनके घर पर गए। वहां गांव के लोगों के साथ मर्च राम जी को स्मरण किया। सारे गांव वाले एकत्रित थे। यह गांव जैंती के शीर्ष पर बसा हुआ है, चारों तरफ देवदार और सुरई के वृक्षों से आच्छादित यह गांव स्वतंत्रता संग्राम की पवित्रता का द्योतक है।
हमने मर्च राम जी के पुत्रों व आश्रितों श्री प्रताप राम, श्री विनोद कुमार, श्री कुशी राम व श्याम लाल जी को सम्मानित किया और श्री मर्च राम जी को सारे ग्रामवासियों के साथ श्रद्धांजलि अर्पित की। कुठौली से हम गाजे-बाजे के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री धनपत सिंह जी के गांव सुनाड़ी पहुंचे। सारे गांव वाले उनके घर पर एकत्र थे। श्री धनपत सिंह व स्वतंत्रता संग्राम की जय-जयकार के साथ उनके पौत्र श्री त्रिलोक सिंह व पुत्रवधू श्रीमती प्रेमा देवी को सम्मानित किया। सुनाड़ी से हम लोग श्री उत्तम सिंह जंतवाल जी के गांव जैंती पहुंचे, वहां समस्त गांववासियों के साथ उत्तम सिंह जी के पुत्र राम सिंह जी को सम्मानित किया। वहां से चलकर हम लगभग 4 बजे ग्राम कांडे पहुंचे, कांडे ग्रामवासियों ने बड़ा भव्य आयोजन कर रखा था। वहां स्वर्गीय टीका सिंह जी एवं स्व ़श्री इंद्रमणि काण्डपाल जी के आश्रितों श्री किशन सिंह कन्याल और तारा दत्त कांडपाल जी को सम्मानित किया। स्वागत समारोह में गांव के लोगों का उत्साह देखने के लायक था, गांव के लोगों ने झोड़े गाकर हमारा स्वागत किया। हम लोग गाड़ियों से ग्राम दाड़मी पहुंचे। गाड़ियों का एक बड़ा कारवां हमारे साथ दाड़मी के लिए चल पड़ा, श्री गोविंद सिंह कुंजवाल, सांसद श्री प्रदीप टम्टा, पीतांबर पाण्डे जी, दिनेश कुंजवाल जी, दीवान सिंह भैंसोड़ा जी, प्रशांत भैंसोडा, दीवान सिंह सतवाल जी, गिरीश चंद्र जोशी जी, पान सिंह बर्गली जी, श्री रमेश बिष्ट, चंदन सिंह बिष्ट जी, प्रताप राम जी, दीवान सिंह बोरा, चतुर सिंह बोरा, आनंद राम जी, प्रेम बल्लभ बाबा, श्री किशन सिंह कन्याल, जीत सिंह धानक, मनोज रावत, रमेश सिंह बिष्ट, श्री शेर राम, प्रदीप बिष्ट, गोपाल महरा, भुवन गहरवाल, श्री गंगा सिंह धानक, नाथ सिंह धानक, मोहन कुंजवाल, किशोर कुंजवाल, चंदन सिंह बोरा सहित सभी कार्यकर्ता साथ थे। दिवान सिंह जी मूर्धन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रताप सिंह जी के बेटे हैं। प्रताप सिंह जी के प्रताप से पूरा दाड़मी गांव स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित था। अंग्रेजों की नजर में पूरा गांव बागी था। सत्यता यही थी कि श्री प्रताप सिंह बोरा एक जिंदा शेर थे। कांग्रेस के लिए जीवन पर्यंत समर्पित रहे। दाड़मी पहुंचने की सभी लोगों में होड़ लगी थी। बड़ी संख्या में स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता दाड़मी पहुंचे हुए थे। दाड़मी गांव में अगल-बगल के गांवों से आए हुए लोग भी एकत्रित थे। एक बहुत बड़ी सभा के बीच में हमने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय प्रताप सिंह जी के पुत्र श्री दीवान सिंह बोरा जी व श्री चतुर सिंह बोरा जी को सम्मानित किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हर सिंह जी के पुत्र मोहन सिंह बोरा जी, शेर सिंह जी के पुत्र कुंवर सिंह बोरा जी, गोविंद सिंह जी के पुत्र श्री मान सिंह बोरा जी, प्रेम सिंह जी के पुत्र लक्ष्मण सिंह जी, चंदन सिंह जी के पुत्र उत्तम सिंह जी, श्रीमती पनुली देवी जी के पुत्र श्री चंद्र सिंह जी और श्री पान सिंह जी के पुत्र उत्तम सिंह जी का भी सम्मान किया गया। दाड़मी में एक बड़ी सभा हुई और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने किस तरीके से उस समय अलख जगाई और कितना अत्याचार सहा, उन्होंने व उनके परिवारों ने वह सब बातें लोगों को बताई। गांव के लोगों ने उनके परिवारों पर हुए अत्याचार की कहानियां सुनाई। गांव के लोगों ने बताया कि अंग्रेज पूरी ताकत लगाकर भी गांव के लोगों का हौंसला नहीं तोड़ पाये। गांव के लोगों को शिकायत थी, उनके गांव सड़क बहुत देर से पहुंची। मैं भी सांसद के रूप में एक बार गांव तक पैदल ही गया था। दाड़मी में आज भी लगता है कि स्वतंत्रता संग्राम का माहौल है। प्रताप सिंह जी के साथ मेरी बहुत सारी स्मृतियां हैं। श्री बोरा निरंतर जीवनपर्यंत कांग्रेस के लिए काम करते रहे और कांग्रेस को लेकर के उनके मन में एक बड़ा जज्बा था। जहां भी आते थे, एक प्रेरणा और ऐसा प्रभाव छोड़कर के जाते थे, जिससे हमको लगता था कि ऐसे महावीर थे हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी। आज उनके पुत्र दिवान भी उतने ही जोश से कांग्रेस व समाज का काम करते हैं। लगभग 9 बजे के करीब हमारी सभा समाप्त हुई और खाना खाया, उसके बाद हम वापस जैंती लौट आए। 24 अगस्त को हमने बागद्योली में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जगत सिंह जी की पुत्री श्रीमती जानकी देवी जी का सम्मान किया। चौकुना में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नर सिंह धानक जी के आश्रित राम सिंह जी को सम्मानित किया। यह अवसर बड़ा ही भावनापूर्ण था। ये वहीं नर सिंह धानक है जो अंग्रेजों की गोली खाकर शहीद हुए थे। यहां से हम ग्राम बरम पहुंचे वहां भवान सिंह धानक जी के आश्रितों श्री जीत सिंह धानक जी, मोहन सिंह धानक जी को सम्मानित किया। यहां से हम ढोल-नगाड़ों के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री शिवदत्त गरूरानी जी, स्वर्गीय श्री गणेश नाथ गोस्वामी जी के गांव पुगाऊ पहुंचे। सभी गांवों में हमारे पहुंचने पर सारा गांव एकत्रित हो जाता था। सुधीर गरूरानी जी और श्री अर्जुन नाथ जी को सारे गांव ने मिलकर सम्मानित किया। यहां हम पैदल चलते हुए ग्राम तल्ला बिनौला पहुंचे, यह गांव महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह धोनी जी का गांव है। बिनौला में गांव वाले नीचे सड़क में हमारे आगमन के लिए पहुंचे थे। जय हिंद के उद्घोषक स्व. राम सिंह जी बाल्यकाल से ही विलक्षण व्यक्ति थे। जहां से राम सिंह जी ने स्वतंत्रता की लौ जगाई थी, उसी आंगन में हमने हल्की बूंदा-बांदी के बीच उनके आश्रित श्री जगदीश सिंह धोनी और श्री उमेश सिंह धोनी जी को सम्मानित किया। कैसी थी श्री राम सिंह धोनी जी की स्वतंत्रता की ललक उस पर बहुत सारी बातचीत हुई। इस दिन, पहले दिन से ज्यादा बड़ा कारवां था, लोग आगे बढ़कर इस यात्रा का भाग बनते जा रहे थे। मुझे बहुत अच्छा लगा कि हमारे साथी एक टक भाव से वक्ताओं की बातों को सुनते थे। ऐसा लगता था कि जैसे आजादी की लड़ाई का माहौल बन रहा है। कांग्रेसजनों की भुजाएं फड़क रही थी। उनको अपने गौरवशाली इतिहास पर गर्व की अनुभूति हो रही थी। इस स्वर्णिम इतिहास के ध्वजवाहक हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अद्भुत कृतियों को आने वाली पीढ़ियों तक ले जाना है। यह हमारा सामूहिक दायित्व है। हमको इस हेतु स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों तक पहुंचना चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितगण इस स्वर्णिम इतिहास के स्वभाविक ध्वजवाहक हैं।
हमारी सरकार ने 2015 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों के लिए सम्मान पेंशन लागू की। इस बार मेरी इच्छा थी कि कांग्रेस सत्ता में आएगी तो इस पेंशन को हम लगभग 3 गुना बढ़ाएंगे। यह सवाल पैंसे का नहीं है, यह सवाल है सम्मान का। हमें एक तथ्य नहीं भूलना चाहिए कि भारत की आजादी में ही नहीं बल्कि भारत को गांधी के सपनों का भारत बनाने में हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का बहुत बड़ा योगदान है। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमको समर्पित भाव से एक बार फिर से अपने आपको स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जन्म स्थल व उनके आश्रितों के साथ जोड़ना चाहिए। यह आजादी का अमृत कुंड़ है। कांग्रेस का इस कुंड़ से स्वाभाविक रिश्ता है। इस अमृत कुड़ का स्पर्श मात्र हमको बड़ी शक्ति देगा।