भाजपा-कांग्रेस में महत्वपूर्ण मंत्रालयों का जिम्मा संभालते रहे दिग्गज नेता हरक सिंह रावत अक्सर विवादों के केंद्र में रहते हैं। चाहे वह असम की एक महिला इंदिरा देवराऊ उर्फ जैनी द्वारा लगाया गया रेप का आरोप हो या हरीश रावत सरकार के दौरान बगावत करने और स्टिंग कांड का मामला रहा हो। कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में वन मंत्री रहते हरक सिंह ने अधिकारियों को खुली छूट दे रखी थी जिसकी बदौलत घोटाले-दर-घोटाले हुए। वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों और हरक सिंह रावत का गठजोड़ भी सामने आ रहा है। इस समय हरक सीबीआई और विजिलेंस के निशाने पर हैं। उनके पुत्र को वन विभाग से मिले जेनरेटर सेट परेशानी का सबब बनकर सामने आए हैं, यह तो एक बानगी भर है। अभी और भी कई रहस्यों से पर्दा उठना बाकी है। बहरहाल, बहुचर्चित टाइगर सफारी के निर्माण की सीबीआई जांच के आदेश हरक सिंह को परेशानी में डाल सकते हैं

कहावत है कि ‘जब बाड़ ही खेत को खाने लग जाए तो बेचारा खेत क्या करे?’ ये कहावत उत्तराखण्ड के वन विभाग पर पूरी तरह सटीक बैठती है। प्रदेश के 60 फीसदी भू-भाग पर वन होने के बावजूद आज वन विभाग अपनी कारगुजारियों से बाज नहीं आ रहा है। जिस वन की सुरक्षा का दायित्व वन विभाग के अफसरों पर है वे वनों में भ्रष्टाचार की जड़ें जमाने से बाज नहीं आ रहे हैं। प्रदेश में वन अधिनियम के नियमों के विपरीत हो रहे कार्य इसका उदाहरण है। जिस वन आच्छादित क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा विभाग पर है वह हरे पेड़ों का अवैध कटान कराने में सबसे आगे है। एक तरफ विभाग बाहरी प्रदेशों के लोगों को रोजगार देकर स्थानीय बेरोजगारों के हकों पर डाका डाल रहा है तो दूसरी तरफ खनन पट्टों और पेड़ों के कटान-छटान से करोड़ों के राजस्व की हानि से विभागीय अधिकारियों पर कार्यवाही होती रही है। बावजूद इसके वनों में अवैध निर्माण और कटान नहीं रूक रहा है। विभागीय लापरवाही के सामने हाईकोर्ट के आदेश भी बौने साबित होते नजर आ रहे हैं।
होता रहा अवैध निर्माण-कटान
उत्तराखण्ड में नाप खेत और अवैध निर्माण के कारण वन विभाग के अधिकारियों की मानमानी के चलते कई मामले न्यायालय तक भी पुहंचे हैं। कॉर्बेट नेशलन पार्क कानागढ़ वन प्रभाग से लेकर लैंसडाउन प्रभाग तक अवैध निर्माण के चलते जमकर वन संपदा को हानि पहंुचाई जाती रही है जिसका खुलासा वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित पांच सदस्यीय टीम की जांच रिपोर्ट में सामने आ चुका है। जिस पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। पाखरो टाईगर सफारी का मामला तो सबसे ज्यादा चर्चित रहा है जिस पर कई अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही और मुकदमे भी दर्ज किए गए हैं।
विकास नगर तहसील के रूद्रपुर गांव में हॉट बाजार के निर्माण के लिए 16 पेड़ांे को काटने की ही जरूरत थी लेकिन 121 पेड़ांे को काट दिया गया। स्थानीय लोगों ने इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने प्रभागीय वनअधिकारी से जवाब तलब करते हुए पूछा है कि जब 16 पेड़ांे को काटने की अनुमति थी तो 121 पेड़ किस तरह से काटे गए? इस मामले में यह भी साफ हो गया है कि स्वयं वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के चलते वनांे का दोहन किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा वन भूमि से अवैध अतिक्रमण हटाने के कड़े निर्देश के बाद विभाग द्वारा प्रदेश की वन भूमि पर सैकड़ांे अवैध मजारें और धार्मिक स्थलो ंको हटाया गया है लेकिन इसमें भी विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। प्रदेश के प्रमुख वन सरंक्षक अनूप मलिक द्वारा विभागीय समीक्षा बैठक में सैटेलाइट तस्वीर के माध्यम से राजाजी टाईगर रिजर्व में 34 एकड़ वन भूमि में वन गुज्जरों द्वारा खेती किए जाने का खुलासा हुआ है। शिवालिक वृत और राजाजी टाईगर रिजर्व में आज भी कई स्थानांे में वनांे के भीतर खेती की जा रही है। जबकि नियम के अनुसार वन भूमि में इस तरह की गतिविधियां पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। ऋषिकेश रेंज में मंसा देवी क्षेत्र में यूकेलिप्टस के पेड़ों को वन स्थापित किया गया था जिसके रखरखाव और सुरक्षा के लिए ग्रामीणों को पेड़ांे के बीच फसलों और पशुचारे को उगाने के लिए अनुमति दी गई थी। इस क्षेत्र को टांेगिया श्रेणी में रखा गया था। लेकिन इस क्षेत्र में एक-एक करके पेड़ों का पूरी तरह से सफाया कर दिया गया और आज पूरे मंसा देवी क्षेत्र में सैकड़ों आवासीय भवन स्थापति हो चुके हैं।
कैग रिपोर्ट से सामने आया सच वन विभाग अपने ही आंकड़ों को छुपाने का भी काम करता रहा है। कैग की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। जंगलों की आग से निपटने के लिए भरपूर बजट होने के बावजूद विभाग द्वारा जरूरी उपकरणों को खरीदा ही नहीं गया। जिसके चलते क्रू स्टेशनों में आग बुझाने के अति आवश्यक उपकरण तक नहीं थे। कर्मचारियों के पास अग्निरोधक वर्दी, जूते और टॉर्च जेैसी सामान्य सुविधा तक मुहैया नहीं करवाई गई। कैग ने अपनी रिपोर्ट में अल्मोड़ा और बागेश्वर जैसे अति संवेदनशील वन प्रभागांे की हकीकत खोल कर रख दी। कैग ने अपनी जांच में यह पाया कि विभाग ने प्रदेश में वनाग्नि के आंकड़ों और फीडबैक को भारतीय वन सर्वेक्षण के साथ साझा करने में कोताही बरती है जबकि देश के सभी राज्य अपने फीडबैक और आंकड़ों को भारतीय वन सर्वेक्षण के साथ साझा करते हैं। जबकि वन विभाग ने 2018 से 2020 तक तीन वर्षों में केवल 2018 का ही फीडबैक भारतीय वन सर्वेक्षण के साथ साझा किया है।
दवाग्नि से दहकते पहाड़
प्रदेश में वनाग्नि के मामले बेहताशा बढ़े हैं। विगत दो वर्षों में देश में वनों में लगने वाली आग की घटनाओं में उत्तराखण्ड 6ठवें स्थान पर आया है जबकि हिमालयी राज्यों में पहले नंबर पर उत्तराखण्ड को रखा गया है। नवंबर 2020 से जून 2021 में उत्तराखण्ड में 21,447 घटनाएं हुई हैं तो नवंबर 2021 से जून 2022 तक प्रदेश में 12,995 मामले वनों में दवाग्नि के सामने आ चुके हैं। वर्ष 2021 में वन विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ांे को देखें तो इस वर्ष फायर सीजन में 2813 मामले वनों में आग लगने के सामने आ चुके हैं जिसमें 3943-88 हेक्टेयर का भारी नुकसान हुआ है। गौर करने वाली बात यह हैे कि स्वयं वन विभाग मान रहा हैे कि उसके पास बजट की कोई कमी नहीं है बावजूद इसके प्रदेश में वनों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं जिस पर विभाग लगाम लगाने में नाकामयाब ही रहा है।
खनन पट्टों में हुई 417 करोड़ की राजस्व हानि
पूर्व में भी कैग की एक रिपोर्ट में वन विभाग की लापरवाही से करोड़ों का नुकसान होने की बात सामने आई है। वन विभाग के अधिकारियों द्वारा खनन के लिए दिए गए पट्टे पर दी गई वन भूमि का पट्टेधारकों से किराया तक नहीं वसूला गया। इससे राज्य सरकार को 417 करोड़ के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा। राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में वन भूमि के चालू पट्टों के नवीनीकरण, नए पट्टों की स्वीकृति तथा वन भूमि के प्रीमियम और लीज किराए की गणना के लिए नीति बनाई थी। नीति में कई शर्तें और नियम बनाए गए जिनका पालन तक नहीं किया गया। जबकि नीति के अनुसार वन भूमि में खनन के पट्टों के लिए एक मुश्त प्रीमियम और वार्षिक पट्टा किराया देने का प्रावधान किया गया था लेकिन उसका भी पालन नहीं किया गया जिससे राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ।
कटान-छटान न होने से हुआ 330 करोड़ का नुकसान
केैग ने अपनी रिपोर्ट में यह साफ किया कि साल के वनों के कटान के लिए छांटने की प्रक्रिया वन विभाग के अधिकारियों द्वारा नहीं की गई जिससे साल के पेड़ांे का कटान नहीं हो पाया और राज्य को 330 करोड़ से भी ज्यादा के राजस्व का नुकसान हुआ। साथ ही राज्य को 28 करोड़ के रॉयल्टी का भी नुकसान हुआ। साल के वनों में पुराने और बड़े पेड़ों के चलते नए पेड़ सही तरीके से नहीं पनप पाते जिसके लिए नियमित तौर पर इन पेड़ों की कटाई और छंटाई करना जरूरी है। इसलिए विभाग साल के पुराने पेड़ों को काटता है जिससे राजस्व की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही रॉयल्टी के नाम पर करोड़ांे का राजस्व भी मिलता है।
बाहरी बेरोजगारों को मिला रोजगार
वन विभाग स्थानीय बेरोजगारों के साथ इस तरह से छल करता रहा है। प्रदेश के बेरोजगार युवाओं के हकों पर डाका डाला जाता रहा है। वन विकास निगम में जमकर बाहरी प्रदेशों के युवाओं को तैनाती दी गई है। यह सभी पद फील्ड में कार्य करने के नाम पर भरे गए थे लेकिन कार्यालयों में चपरासी और कंप्यूटर ऑपरेटर तथा अन्य कामों के लिए तैनात किया गया है। यह मामला भी अचानक से सुर्खियों में तब आया जब वन विकास निगम के एमडी केएस राव द्वारा अपनी सेवानिवृति से महज एक दिन पूर्व अचानक से 306 आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को सेवा मुक्त कर दिया गया लेकिन उन्होंने अगले ही दिन अचानक से अपने ही आदेश को पलटते हुए उनकी पुनः बहाली का आदेश जारी कर दिया। प्रदेश के स्थानीय बेरोजगारों की जगह उत्तर प्रदेश, बिहार आदि बाहरी राज्यों के युवाओं का आउटसोर्सिंग से भर्ती करके वन महकमा प्रदेश के बेरोजगारों का भी हक छीनने में लगा हुआ है। वन विकास निगम कर्मचारी महासंघ द्वारा वन मंत्री सुबोध उनियाल से इसकी शिकायत की है जिस पर वन मंत्री द्वारा इन सभी पदों के कर्मचारियों और मामले की जांच करवाए जाने के लिए प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु को आदेश जारी कर दिए गए हैं।
हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना
प्रदेश का वन महकमा इतना निरंकुश हो चुका है कि हाईकोर्ट के आदेश भी इसके लिए कोई महत्व नहीं रखते। वन क्षेत्राधिकारियों के पद पर उप वनक्षेत्राधिकारियों को तैनाती देने के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा अप्रैल 2023 में ही वन क्षेत्राधिकारियों को तैनात करने के आदेश जारी किए थे लेकिन हाईकोर्ट के आदेश तक का पालन नहीं किया गया। दरअसल, वन विभाग में 52 वन क्षेत्राधिकारी ऐसे हैं जिनको रेंजों में कार्य देने के बजाय विभागीय कार्यालयों में बैठा दिया गया है। एक तरह से इनको बाबूगिरी का काम सौंप दिया गया जबकि इनके रेंजांे में उप वनक्षेत्राधिकारियों को तैनाती दी गई। विभागीय अधिकारियों की मनमानी के खिलाफ कई रेंजर हाईकोर्ट की शरण में चले गए। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की और तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक रहे विनोद सिंघल को दो बार सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत तौर पर न्यायालय में उपस्थित रहने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने वन विभाग को स्पष्ट तौर पर डिप्टी रेंजरों की तैनाती को नियम विरुद्ध मानते हुए रेंजरों को चार्ज दिए जाने का आदेश तो दिया ही साथ ही जिन अधिकारियों द्वारा नियम विरुद्ध रेजरों के स्थान पर डिप्टी रंेजरांे को तैनाती दी है उनके खिलाफ कार्यवाही करने का भी आदेश जारी किया था।
हाईकोर्ट की फटकार के बाद वन विभाग ने सभी डिप्टी रेंजरों को तैनाती से हटा तो दिया लेकिन महज 11 ही रेंजरों को रेंज कार्यालयों में तैनाती दी गई शेष 41 रेंजरों को तैनाती अभी तक नहीं दी गई है।
विवाद का कारण बने पोस्टिंग-तबादले
इस तरह से अपने चहेते अधिकारियों और कर्मचारियों को तबादले और मनमाफिक पोस्टिंग के नाम पर वन विभाग में कई बार विवाद सामने आ चुके हैं। हालांकि इन विवादों को विभागीय स्तर पर स्थानांतरण की रूटीन कार्यवाही के नाम पर सामान्य बताया जाता रहा है लेकिन हकीकत में पूरे वन महकमा अपने ही उच्चधिकारयांे के बीच गुटबाजी में फंसता हुआ नजर आता है। देहरादून जिले के चकराता वन प्रभाग के कनासर रेंज और उत्तरकाशी जिले के पुरोला टौंस वन प्रभाग में सूखे और नाप खेत की आड़ में हजारों हरे-भरे पेड़ जिसमें देवदार और कैल जेैसे संरक्षित प्रजाति के पेड़ थे, को जमकर काटा जाता रहा। आरोप है कि यह पूरा खेल विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से खेला जाता रहा। भाजपा नेता और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रहे राम शरण नौटियाल द्वारा इस मामले का एक वीडियो सोशल मीडिया में जारी किया जिससे हंगामा मच गया।
वीडियो के वायरल होने के बाद वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इस मामले की जांच के आदेश दिए। दोनों ही प्रभागों में पेड़ों का कटान इतने बड़े पैमाने में किया गया कि चकराता के कनासर रेंज में वन विभाग द्वारा 3 हजार स्लीपरों को अलग- अलग स्थानों से बरामद किया गया जबकि पुरोला टौंस वन प्रभाग में वन विभाग द्वारा 788 सूखे पेड़ों का कटान किया गया था। सांद्रा, देवता, कोटीगाड़, रेजो में 108 हरे भरे देवदार के पेड़ों को भी काट दिया गया। टौंस पुरोला वन प्रभाग में विगत तीन वर्षों से इन पेड़ों का कटान होता रहा लेकिन अति दूरस्थ क्षेत्र होने के चलते मामला सामने नहीं आ सका।
मामले के सामने आने के बाद भी वन विभाग अधिकारियों को बचाने की जुगत में जुट गया है। इस पूरे मामले की जांच उन्हीं अधिकारियों को सोैंप दी जिनके कार्यकाल में इन क्षेत्रों में वनों का कटान किया गया। विभागीय अधिकारियों पर ही सवाल खड़े होने पर प्रमुख वन सरंक्षक अनूप मलिक द्वारा इस मामले की जांच के आदेश दिए गए। जांच रिपोर्ट के आ जाने के बाद प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु द्वारा टौंस वन प्रभाग के डीएफओ सुबोध काला, प्रभारी एसडीओ विजय सैनी, डिप्टी रेंजर ज्ञानेंद्र जुआंठा, प्रीतम सिंह तोमर तथा वन दरोगा विजय पाल पंवार, लाखीराम आर्य, भरत सिंह तोमर को भी निलंबित कर दिया गया। जबकि चकराता वन प्रभाग के वनाधिकारी महेंद्र सिंह गुसाई को निलंबित करते हुए उनको बागेश्वर कार्यालय में अटैच कर दिया। साथ ही वन दरोगा प्रमोद कुमार, आशीष चंद्र और तीन वन रक्षकों को निलंबित कर दिया। इसके अलावा पुरोला वाले प्रकरण में भी कार्रवाई की गई है।
बढ़ा वन्य जीव संघर्ष
वन विभाग की कार्यशैली की बात करंे तो राज्य बनने के बाद जहां वन विभाग को और भी अधिक मजबूत तंत्र के साथ काम करना था उसके विपरीत पूरा वन महकमा ही घोर उदासीनता बरतता रहा है। अभी हाल में राज्य में बाघांे की संख्या बढ़ने पर वन विभाग अपनी उपलब्धि बताते हुए नहीं थक रहा है। राज्य में 2023 की गणना के अनुसार 442 बाघ हैं। जो अपने आप में एक सुखद बात तो है लेकिन इसी उत्तराखण्ड में विगत 22 वर्षों में 181 बाघों की मौतें हुई है। जिसमें 6 बाघों को तो शिकारियों द्वारा मारा गया है। अपने ही राज्य में दो दशक के अंतराल में बड़ी संख्या में बाघों के मारे जाने के बावजूद वन महकमे पर गंभीर सवाल तो खड़े होते हैं।
प्रदेश के पहाड़ी जिलों में सबसे ज्यादा मानव और वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं हो रही हैं। हर दिन किसी न किसी क्षेत्र में भालू और गुलदार यानी तेंदुए द्वारा स्थानीय ग्रामीणों को घायल करने या उनकी हत्या करने के मामले बढ़ रहे हैं। इस वर्ष पौड़ी जिले के रिखणीखाल क्षेत्र में एक बाघिन और उसके दोे शावकों द्वारा जो तांडव मचाया गया वह किसी से छुपा नहीं है। दो व्यक्तियों की बाघ द्वारा हत्या होने के चलते इस क्षेत्र में दिन में भी कर्फ्यू-सा लग गया था। एक माह तक स्कूलों में छुट्टी तक करनी पड़ गई थी। लेकिन वन विभाग बाघिन और उसके शावकों को खोजने में असमर्थ ही रहा।

हरक पर जांच की आंच
कॉर्बेट टाईगर रिजर्व के कालागढ़ वन प्रभाग के पाखरो रेंज में टाइगर सफारी के निर्माण के नाम पर किए गए भ्रष्टाचार औेर अनियमितता के मामले में पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत के ठिकानों पर विजिलेंस के छापे और बाद में सीबीआई जांच के आदेशों से सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं। विजिलेंस ने कॉर्बेट पार्क के धन से खरीदे गए लाखांे रुपए के दो जेनरेटर बरामद किए हैं। ये जेनरेटर हरक सिंह रावत के पुत्र तुषित रावत के विकास नगर तहसील के अंतर्गत शंकरपुर स्थित दून इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस तथा छिद्दरवाला स्थित अमरावती पेट्रोल पंप में लगाए हुए थे। हरक सिंह रावत का कहना है कि जब वे वन मंत्री थे तो उनके सरकारी आवास और कैम्प कार्यालय में वन विभाग द्वारा ये जेनरेटर सेट लगाए गए थे जिसमें एक जेनरेटर को कोरोना महामारी के दौरान जिलाधिकारी देहरादून द्वारा उनके पुत्र के मेडिकल कॉलेज को कोविड अस्पताल बनाने के दौरान लगाया गया था। हरक सिंह रावत सफाई देते हुए कहते हैं कि जब वे वन मंत्री नहीं रहे तो उन्होंने वन विभाग को जेनरेटर वापस लेने के लिए पत्र लिखा था लेकिन तत्कालीन डीएफओ किशनचंद के जेल जाने के बाद जेनरेटर की वापसी की प्रक्रिया रूक गई। लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है कि जब वन मंत्री के सरकारी आवास पर जेनरेटर लगाए गए थे तो उनमें से एक
जेनरेटर किस तरह से उनके पुत्र के पेट्रोल पंप में लगाया गया।
इस मामले में तत्कालीन उप वन संरक्षक किशन चंद की भूमिका पर सबसे ज्यादा सवाल खड़े हुए थे क्योंकि उनके ही कार्यकाल में वन मंत्री को कॉर्बेट पार्क के सरकारी खजाने से यह दोनों जेनरेटर खरीदे गए और वन मंत्री हरक सिंह रावत के सरकारी आवास और कैम्प कार्यालय में लगाए गए थे। वर्ष 2020 में कॉर्बेट नेशनल पार्क के कालागढ़ वन प्रभाग के पाखरो रेंज में गैर अनुमति टाईगर सफारी का निर्माण किया गया और इसे प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा गया। केंद्र सरकार द्वारा इसकी अनुमति 2021 में दी गई थी। बावजूद इसके पहले ही बगैर अनुमति और वित्तीय स्वीकृति के पाखरो रेंज में टाईगर सफारी का निर्माण आरंभ कर दिया गया जिसमें हजारों पेड़ों को काटा गया और निर्माण कार्यों में धांधली के आरोप लगे।
इस मामले में राज्य सरकार द्वारा विजिलेंस की जांच करवाई गई। जांच के बाद सरकार द्वारा तत्कालीन उप वन संरक्षक किशन चंद्र और तत्कालीन मुख्य वन जीव प्रतिपालक जेएस सुहाग और कॉर्बेट के तत्कालीन निदेशक राहुल को मुख्यालय अटैच किया गया था। इसके अलावा पाखरो रेंज के रेंजर को भी निलंबित किया गया था। इस पूरे मामले में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत पर किशन चंद को बचाए जाने के आरोप भी लगे थे। किशन चंद पर आय से अधिक संपति के अलावा कई अन्य मामलों में भी जांच चल रही थी। बावजूद इसके किशन चंद को रिटायर होने दिया गया। माना जा रहा है कि किशन चंद्र और उनके परिजनों के पास आय से 375 गुणा अधिक संपति है जो कि जांच में पाई गई है। ऐसे दागी अधिकारी को वन मंत्री से सरंक्षण मिलता रहा है।
हरक सिंह रावत पर कैबिनेट मंत्री रहते उनके विभागों में भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोप लगते रहे हैं। श्रम मंत्रालय के आधीन उत्तराखण्ड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में लाखों रुपए की साइकिलें मंहगे दामों में खरीदने और श्रमिकों के दिए उपकरणांे में जमकर घोटाले के आरोप लगाए गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बोर्ड का पुनर्गठन किया जिसमें हरक सिंह रावत को बोर्ड पदेन अध्यक्ष के पद से हटाकर कर्मकार बोर्ड का नए अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल को बनाया गया। उन्होंने बोर्ड में रावत के कार्यकाल की जांच करवाए जाने के लिए ऑडिट का आदेश दिया जिसमें कई अनियमिताओं का खुलासा भी हुआ। जिसमें बगैर अनुमति के 38 अन्य कर्मचरियों की भर्तियां किए जाने और श्रमिकों को दी जाने वाली लाखांे रुपए की साइकिलों की जमकर बंदरबांट (जिसमें श्रमिकों की बजाय राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को साइकिलें बांटने के भी आरोप लगे) बोर्ड द्वारा हरक सिंह रावत के पुत्र के शंकरपुर मेडिकल कॉलेज को श्रमिकों के इलाज के लिए भी सूचिबद्ध किया जाना शामिल है। सबसे बड़ा घोटाला बोर्ड द्वारा कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए तीन अलग-अलग चैकांे द्वारा भुगतान कर जाना रहा। कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति तक नहीं हुई है। बावजूद इसके बोर्ड द्वारा जो भुगतान ईएसआई को देना था वह सीधा इस मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए राज्य की निर्माण एजेंसी ब्रिडकुल को दे दिया गया।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तो इसे हरक सिंह रावत का सबसे बड़ा घोटाला बताते हुए सरकार पर ही सवाल खड़े किए और तत्कालीन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कम से कम 400 करोड़ का बड़ा घोटाला बताया था। दिलचस्प बात यह हेै कि हरक सिंह रावत पर विजिलेंस के छापे को लेकर अब समूची कांग्रेस हरक सिंह रावत के बचाव में उतर आई है और इसे बदले की राजनीति से प्रेरित कार्यवाही बता रही है। हरक सिंह रावत पर विजिलेंस की कार्यवाही से प्रदेश की राजनीति में भी खासी हलचल देखने को मिल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरक सिंह के बीच जुबानी जंग भी शुरू हो गई है। जहां त्रिवेंद्र रावत इसे भ्रष्टाचार पर एक्शन की बात कहकर हरक सिंह रावत पर निशाना साधने में पीछे नहीं है। उन्होंने तो यहां तक कहा हैे कि शिशुपाल पर भगवान कृष्ण ने सौ गलतियों के बाद ही चक्र चलाया था। जांच चल रही है जांच की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अगर कोर्ट सीबीआई जांच करवाने की बात कह रहा है तो सीबीआई जांच होनी चाहिए। जबकि हरक सिंह रावत पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर भी कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर मैं भ्रष्ट था तो त्रिवेंद्र रावत भी भ्रष्ट थे क्योंकि वे मुख्यमंत्री थे। अगर जांच करवानी है तो सूर्यधार झील की जांच करवाई जानी चाहिए। साथ ही हरक सिंह रावत ने यहां तक आरोप लगाया हैे कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत कोई कारोबार नहीं करते हैं और न ही वे ठेकेदार हैं। उनकी पत्नी बेसिक स्कूल में सरकारी अध्यापक है तो किस तरह से उन्होंने देहरादून में अपना मकान और करोड़ों की संपति बनाई है? और आज तक उनकी पत्नी का देहरादून से बाहर स्थानांतरण क्यों नहीं हुआ?
नो कमेंट्स!
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री
पहले क्यों कार्यवाई नहीं हुई इस पर मैं कैसे बोल सकता हूं, मेरे संज्ञान मे जैसे ही मामला आया तो मैंने तुरंत कार्यवाई की है। जो भी संबंधित है उस पर कार्यवाई की गई है, इस मामले मे वन ठेकेदारों और जो भी दोषी होगा सब पर कार्यवाई होगी। इस मामले की विस्तृत जांच हो रही है, जांच के बाद ही पता चलेगा।
अनूप मलिक, प्रमुख वन संरक्षक, उत्तराखण्ड