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  •     भारती पाण्डेय

उत्तराखण्ड बने बाइस वर्ष हो चुके हैं। इन बाइस वर्षों में विकास के नाम पर खरबों की परियोजनाएं बनी। मात्र कुछ करोड़ का पहला बजट बढ़कर लगभग साठ हजार करोड़ पहुंच गया लेकिन प्रदेश का न तो इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधरा, न ही पलायन रूका। इस बदहाली को राज्य के 16 हजार 783 सौ गांवों की दुर्दशा से समझा जा सकता है। विगत बाइस वर्षों में सरकार ने इन गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ने का महा अभियान शुरू कर राज्यभर में सड़कों का जाल तो बिछा डाला लेकिन इन सड़कों को दुरुस्त रखने में कोताही बरती। नतीजा यह कि ये बदहाल सड़कें बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन चुकी हैं। पिछले महीने 22 फरवरी की रात चंपावत जिले के सूखीडांग-डाडा मोटर मार्ग में घटी ऐसी ही दुर्घटना में चौदह लोगों की जान चली गई

उत्तराखण्ड राज्य में परिवहन और यातायात का संकट उत्तर प्रदेश में रहने के समय से रहा है। राज्य गठन के बाद विकास के नाम पर पलायन से खाली हो चुके गांवों में सड़कें तो अब पहुंचती जा रही हैं लेकिन एक बार निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने के बाद उन सड़कों की देखरेख की तरफ से सरकार और प्रशासन पूरी तरह उदासीन रहते आया है। नतीजा राज्य में आए दिन सड़क हादसों के रूप में सामने आता है। चंपावत जिले के ढेकढुंगा के समीप सूखीढांग-डांडा-मीडार सड़क (सूखीढांग से करीब 25 किमी दूर और चंपावत से 76 किलोमीटर दूर) पर गत् 22 फरवरी की रात दस से साढ़े दस बजे के बीच हुई मैक्स दुर्घटना ने 14 लोगों की जान ले ली जिसमें 8 पुरुषों एवं 5 महिलाओं एवं 1 बच्ची की मौत हुई है और 2 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। दरअसल ककनई गांव के निवासी मनोज सिंह का विवाह संपन्न होने के बाद वापस लौट रही बारात की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। जिसने मौके पर ही 14 लोगों की जान ले ली जिससे विवाह समारोह मातम में परिवर्तित हो गया। यह दुर्घटना चौदह वर्ष पूर्व 2008 में अमरूबैंड में हुए रोडवेज बस हादसे के बाद सूखीढांग का यह दूसरा बड़ा हादसा है। 16 जुलाई, 2008 में सूखीढांग के अमरूबैंड में थल से दिल्ली जा रही रोडवेज की बस के ऊपर चट्टान गिर जाने से बस में सवार 17 यात्रियों की मौके पर ही जान चली गई थी। वर्ष 2017 में नववर्ष के पहले दिन ही एक जीप के खाई में गिरने से 06 लोगों की मौत हो गई थी और 10 घायल हुए थे। वर्ष 2019 में 27 जनवरी को अंतिम संस्कार के लिए शव को रामेश्वर ले जा रहा एक पिकअप वाहन बाराकोट के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग से गहरी खाई में गिर गया जिसमें मिर्तोली गांव के आठ ग्रामीणों की मौके पर ही जानें चली गई थी और एक अन्य गंभीर रूप से घायल व्यक्ति की कुछ दिनों बाद उपचार के दौरान मृत्यु हो गई थी।

चंपावत जिले में बीते एक दशक में (वर्ष 2011 से अब तक) सड़क हादसों ने 157 लोगों की जानें ले ली हैं। वर्ष 2011 में सड़क दुर्घटना में 15, वर्ष 2012 में 18, वर्ष 2013 में 16, वर्ष 2014 में 08, वर्ष 2015 में 08, वर्ष 2016 में 14, वर्ष 2017 में 17, वर्ष 2018 में सर्वाधिक 34, वर्ष 2019 में 19, वर्ष 2020 में 02, वर्ष 2021 में 04 और वर्ष 2022 फरवरी माह में ही कुल 16 लोगों की जानें चली गई हैं। सूखीढांग में हुए इस हादसे ने उत्तराखण्ड में परिवहन, संचार और स्वास्थ्य सेवाओं का सच सामने ला दिया है। दरअसल, यह बड़ा जानलेवा हादसा जिस सड़क पर हुआ है उसका निर्माण लगभग 2-3 वर्ष पूर्व ही हुआ है लेकिन अभी तक भी यह सड़क अनाधिकृत और खस्ताहाल है। हालांकि सूखीढांग-डांडा-मीडार सड़क को स्वीकृति तो कई वर्ष पूर्व ही मिल चुकी है परन्तु इसके लिए आज तक कभी भी पर्याप्त बजट जारी नहीं किया गया है। सड़क तो कट गई लेकिन बजट की कमी और लापरवाही के कारण आज तक इस सड़क के एक बड़े हिस्से पर डामरीकरण नहीं हो पाया है और न ही यह सड़क पूर्ण रूप से तैयार है।

उत्तराखण्ड राज्य में जब 17, 18, 19 अक्टूबर 2021 को अतिवृष्टि के कारण आई आपदा ने तबाही मचाई थी तब ऑल वेदर रोड, जिसका सरकार दंभ भरती है, के ध्वस्त हो जाने के कारण इसी सड़क ने हल्द्वानी, रीठा साहिब, चम्पावत, लोहाघाट, पिथौरागढ़ को आपस में जोड़कर परिवहन में अहम भूमिका निभाई थी। इतनी महत्वपूर्ण सड़क होने के बावजूद इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। यहां तक कि इस सड़क पर परिवहन विभाग ने वाहन संचालन के लिए कोई एनओसी जारी नहीं की है। लेकिन इस निर्माणाधीन सड़क पर यातायात बेरोक-टोक जारी है। इस सड़क पर नियम का उल्लघंन सिर्फ वाहन संचालन करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ओवरलोडिंग भी बहुत आम है। कई बार चालक अधिक कमाई के लोभ चलते तो कई बार यातयात के कम साधन होने के कारण पहाड़ों में ओवरलोडिंग बहुत अधिक पाई जाती है। दुर्घटनाग्रस्त हुई मैक्स में भी ओवरलोडिंग की गई थी। इस मैक्स वाहन को चालक समेत 9 यात्री बैठाने की अनुमति प्राप्त थी लेकिन इसके बावजूद भी इसमें 16 यात्री सवार थे जिनमें से 14 बाराती और एक लिफ्ट लेकर सवार हुई महिला शिक्षिका बसंती देवी (36 वर्ष) और उनकी बेटी थी। चालक और अन्य यात्रियों ने शिक्षिका और उनकी 4 साल की बेटी को बैठाने से मना किया लेकिन यातायात के साधन सीमित होने के कारण मजबूरन उन्हें लिफ्ट देनी पड़ी जिसकी कीमत उनकी जान ले गई। बसंती देवी प्राथमिक विद्यालय डांडा में शिक्षिका थी और उनके पति राजकीय इंटर कॉलेज धौन में शिक्षक हैं। बसंती देवी उस दिन अपनी चार वर्षीय बेटी के साथ टनकपुर से डांडा लौट रही थीं।

उन्हें डांडा से जाने वाली बारात की यह मैक्स दिखाई दी जिससे उन्होंने लिफ्ट ली। परन्तु दुर्भाग्यवश वह वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया बारातियों समेत दोनों मां बेटी को अपनी जानें गंवानी पड़ी। रेस्क्यू के दौरान जब मृतका बसंती देवी का शव निकाला गया तो उनकी बेटी ने उनकी बांहों में लिपटकर दम तोड़ा था। सूखीढांग-डांडा-मीडार सड़क पर यह मैक्स हादसा रात्रि 10ः50 बजे हुआ लेकिन संचार व्यवस्था के दोषों के चलते ऐसी आपातकाल की स्थिति में भी सूचना नहीं भेजी जा सकी। डिजिटल इंडिया और स्मार्ट हो रहे इस दौर में भी इस क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क मिल पाना बेहद मुश्किल है। यहां कभी-कभी, कहीं-कहीं पर ही बीएसएनएल और जिओ सिम के नेटवर्क ही मिल पाते हैं। संचार सेवाओं की कमी के कारण रात्रि 10ः50 बजे हुई दुर्घटना की जानकारी गांव में देर रात पहुंची जिसके चलते 01ः05 बजे ग्रामीण दुर्घटनास्थल पर पहुंच पाए। पुलिस कंट्रोल रूम में हादसे की जानकारी रात्रि 02ः55 बजे पहुंची और सुबह 05ः00 बजे पाटी, टनकपुर, चम्पावत और रीठा साहिब की एसडीआरएफ और पुलिस टीम दुर्घटनास्थल पर पहुंची।

इस बीच रात्रि 1 बजे से सुबह के 5 बजे तक लोग टॉर्च और मोबाइल के सहारे अपने परिजनों को खोजते रहे। लेकिन 300 मीटर गहरी खाई में वे 15 लोगों में से केवल 07 लोगों को ही ढूंढ़ पाए। प्रातः 6ः15 बजे एम्बुलेंस दुर्घटनास्थल पर पहुंची जिसमें एक घायल व्यक्ति को उप जिला अस्पताल टनकपुर उपचार के लिए भेजा गया जो दुर्घटनास्थल से 49 किलोमीटर दूर है। घटनास्थल के आस-पास कोई ऐसा नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है जहां आपातकाल में प्राथमिक उपचार ही किया जा सके। दुर्घटना में घायल हुए एक व्यक्ति त्रिलोक राम (42) को सिर पर काफी चोट आने के कारण उपचार के लिए 49 किलोमीटर दूर टनकपुर भेजा गया तो वहीं दूसरे घायल व्यक्ति (चालक) प्रकाश राम को सुबह पहले 76 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल चम्पावत में भर्ती कराया गया परन्तु अल्ट्रासाउंड के बाद तुरंत ही हाइयर सेंटर हल्द्वानी रेफर कर दिया गया। प्रातः 09ः00 बजे एसपी चम्पावत देवेन्द्र पींचा और टनकपुर के एसडीएम हिमांशु कफल्टिया घटनास्थल पर पहुंचे और उसके बाद 09ः15 बजे से खाई से शवों को निकाले जाने की प्रक्रिया शुरू की गई।

इस दुर्घटना में जिनके पतियों की जानें गई उनमें से अधिकांश महिलाओं को इस अनहोनी की खबर भी लगभग 10 घंटे बाद मिली। मृतक लक्ष्मण सिंह, श्यामलाल, ईश्वर सिंह, पुष्पा देवी, समेत कुछ लोगों के परिवारों को उनके मरने की सूचना 10 घंटे बाद प्राप्त हुई। नेटवर्क की दिक्कत के कारण गांव में संपर्क नहीं हो पाया। मृतक श्यामलाल के बेटे हिमेश ने बताया कि उनके पिता के मरने की सूचना सुबह करीब 8ः00 बजे मिली। हालांकि क्षेत्र के विधायक, पूर्व विधायक से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री, देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, कांग्रेस के शीर्ष दिग्गज नेता सभी शोक जता चुके हैं परन्तु दुर्भाग्यवश पूरे उत्तराखण्ड में सड़कों, स्वास्थ्य सेवाओं, संचार की बेहाल स्थिति को सुधारने के प्रयास कहीं भी दूर तक नजर नहीं आ पाते। खानापूर्ति करते हुए जनपद चंपावत के डीएम ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश अवश्य दे दिए हैं।

दिल दहला देने वाले आंकड़े 
प्रदेश में जिस तरह से हर वर्ष सड़क दुर्घटनाओं के मामले बढ़ रहे हैं उससे लगता है कि उत्तराखण्ड में सड़कों पर यात्रा करना मौत को दावत देना बन गया है। दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़े हर किसी को विचलित कर रहे हैं जिसमें चलते स्वयं सुप्रीम कोर्ट को भी सामने आ सड़क सुरक्षा समिति को सड़कों पर सुरक्षा के इंतजाम मजबूत करने के आदेश देने को मजबूर होना पड़ रहा है। प्रदेश के सड़क सुरक्षा सेल के 2015-21 तक के सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों को देखें तो महज छह वर्षों के आंकड़े ही बेहद डराने वाले हैं। इन वर्षों में 8 हजार 460 सड़क दुर्घटनाओं में 5 हजार 312 लोगों की मौत हुई है और 8 हजार 340 लोग इनमें घायल हुए हैं। राज्य में बढ़ते सड़क हादसों को लेकर देश का सुप्रीम कोर्ट भी खासा नाराज है। पिछले वर्ष 31 अक्टूबर को चकराता क्षेत्र के त्यूणी मार्ग पर भीषण सड़क दुर्घटना का मामला सामने आया था जिसमें 13 यात्री मारे गए थे। इस भीषण सड़क हादसे का स्वयं संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट की सड़क सुरक्षा समिति ने प्रदेश सरकार से रिपोर्ट देने को कहा था। राज्य सरकार की ओर से समिति को भेजे गए जवाब के बाद समिति ने प्रदेश सरकार को सड़कों पर सुरक्षा के मजबूत इंतजाम करने का आदेश दिया है। इससे यह तो साफ हो गया है कि प्रदेश में सड़कों पर सुरक्षा के मजबूत इंतजाम तक नहीं किए गए हैं। हैरत की बात यह कि ऐसा जब पूरा सरकारी अमला प्रदेश को पर्यटक और तीर्थ प्रदेश बनाए जाने की बात तो करता है लेकिन सड़कों में सुरक्षा के इंतजाम करने में नाकाम रहता है। सुप्रीम कोर्ट की सड़क सुरक्षा समिति का आदेश प्रदेश की यातायात व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए काफी है।

चारधाम यात्रा मार्ग के दो प्रमुख मार्ग ऋषिकेश-गंगोत्री और ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग सदैव से सड़क दुर्घटनाओं के लिए कुख्यात रहे हैं। इनमें ऋषिकेश-गंगोत्री मार्ग का एक छोटा-सा हिस्सा ताछला मोड़ हमेशा से सड़क दुर्घटनाओं के लिए यमराज का मोड़ माना जाता रहा है। 2009 में टिहरी गढ़वाल मोटर ऑनर्स के तत्कालीन सचिव जितेंद्र सिंह नेगी ने ‘दि संड़े पोस्ट’ को जानकारी देते हुए बताया था कि ताछला बैंड पर सबसे पहले वर्ष 1962 में पहली बस दुर्घटना हुई जिसमें 21 लोग मारे गए थे। मरने वालों में देवप्रयाग विधानसभा सीट के पहले विधायक और तत्कालीन जिला पंचायत टिहरी जो कि तब जिला परिषद कहलाती थी, के अध्यक्ष सते सिंह राणा भी थे। तब से लेकर आज तक इसी इलाके में सौ से भी अधिक वाहन दुर्घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें लगभग 500 व्यक्तियों की दर्दनाक मौतें हो चुकी हैं। 1962 से लेकर 2008 तक टिहरी गढ़वाल मोटर ऑनर्स के अभिलेखों के अनुसार 14 बस दुर्घटनाएं इस क्षेत्र में हो चुकी थी।

इसी तरह से ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग का साकनीधार तोताघाटी का इलाका भी सड़क दुर्घटनाओं के लिए कुख्यात रहा है। इस क्षेत्र में तो बड़ी तादात में ट्रक, जीप, कार मोटर साईकिल और बसें गहरी खाई में गिर कर दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं जिसमें सैकड़ों लेग मौत के मुंह में समा गए। राज्य बनने के बाद से 2008 तक महज नौ वर्षों में ही इस एक किमी के सड़क क्षेत्र में अनेक वाहन दुर्घटनाओं में 250 लोग मारे जा चुके थे जिनका आंकड़ा 2008 के बाद बढ़ता ही गया है। दोनों ही स्थान टिहरी जिले के अंतर्गत आते हैं। राज्य के सड़क सुरक्षा सेल के आंकड़ों के अनुसार 2016-21 तक 6 वर्ष में 214 सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 302 लोग मारे जा चुके हैं। इसी तरह से देहरादून का देहरादून-मसूरी और मसूरी से धनौल्टी मार्ग भी सड़क दुर्घनाओं का पर्याय बन चुका है। हर वर्ष पर्यटक सरजन में मसूरी-धनौल्टी मार्ग के सुवाखोली में कई वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। देहरादून जिले में सड़क सुरक्षा सेल से प्राप्त आंकड़ों में केवल छह वर्ष में ही 1 हजार 370 सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें 652 लोग मारे जा चुके हैं।

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