उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य की सड़कों को 30 नवंबर तक गड्ढामुक्त करने का अल्टीमेटम दिया है। साथ ही यही भी चेतावनी दी है कि काम पूरा नहीं होने पर जिम्मेदार अधिकारियों और इंजीनियरों को निलंबित करने की कार्रवाई की जाएगी। सड़कों को गड्ढामुक्त करने की ये चेतावनी बताती है कि राज्य बनने के 23 सालों के बाद भी सड़कों के मामलों में हमारा तंत्र कितना निकम्मा व गैरजिम्मेदार रवैया अपनाए हुए है। ये पहली बार नहीं है जब सड़कों को गड्ढामुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री को चेतावनी देनी पड़ी है लेकिन बेलगाम सरकारी तंत्र अपनी काहिली के चलते रोज नई सड़क दुर्घटनाओं को दावत दे रहा है। सैकड़ों लोगों की गई जानें इस तंत्र की नाकामियों को बयां करती है। साल दर साल सड़क दुर्घटनाएं और उससे होने वाली मौतें जहां डराती हैं वहीं विकास के नए आयाम गढ़ने के सरकारों और राजनीतिक दलों के दावों की पोल भी खोलती हैं
सड़कों को विकास की जीवन रेखा कहा जाता है। मगर उत्तराखण्ड के मैदानी क्षेत्रों खास कर पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की ये जीवन रेखा स्वयं खस्ताहाल नजर आ रही हैं और विकास की जीवन रेखा ये सड़कें अपनी दुर्दशा के चलते जीवन को लील रही हैं। ये सड़क दुर्घटनाएं कई परिवारों को खत्म कर चुकी हैं मगर ये सरकारी तंत्र के लिए महज दुर्घटनाओं से अधिक कुछ नहीं है। दुर्घटनाओं के बाद जांच, मुआवजा और मौखिक संवेदनाओं के साथ सरकारी तंत्र अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लते हैं। इन दुर्घटनाओं के प्रति सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता दिखाती है कि वो इन घटनाओं के प्रति कितना संजीदा है। नैनीताल जनपद के छीड़ाखान कीठा साहब मोटर मार्ग पर हादसे पर प्रशासन की संवेदनहीनता का आलम ये था कि हादसे की सूचना के चार घंटे बाद जिला प्रशासन की टीम घटना स्थल पर पहुंची। जिलाधिकारी वंदना सिंह की संवेदनहीनता तो इतनी थी कि हल्द्वानी में होते हुए भी वो दुर्घटना में घायल बच्चे को देखने सुशीला तिवारी अस्पताल में आठ घंटे बाद पहुंची। जब जिले की मुखिया का दुर्घटनाओं के प्रति ऐसा रवैया है तो अन्य विभागों की हालात आसानी से समझी जा सकती है। छीड़ाखान हादसे में डालकन्या निवासी तुलसी प्रसाद उनकी पत्नी रमा देवी और पुत्र तरुन पनेरू की घटना स्थल पर ही मौत हो गई जबकि एक बेटा योगेश पनेरू सुशीला तिवारी अस्पताल में गंभीर रूप से घायल अवस्था में मौत से संघर्ष कर रहा है।
छीड़ाखान-रीठा साहब मोटर मार्ग पर हुई इस सड़क दुर्घटना में नौ लोगों की मौत ने उत्तराखण्ड में सड़कों की खराब हालात और उनके रख-रखाव पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सुदूर क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछा देने का दावा करने वाली सरकारों और राजनेताओं ने इस बात पर ध्यान कभी नहीं दिया कि इन सड़कों की दशा सुचारू रूप से यातायात चलाने लायक है कि नहीं। उत्तराखण्ड में साल-दर-साल सड़क दुर्घनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। आज जब उत्तराखण्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी आल वेदर रोड परियोजना को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं और उत्तराखण्ड के भीतर तक ग्रामीण इलाकों में सड़कों का जाल बिछाने का दावा किया जा रहा है उनके बीच उत्तराखण्ड में सड़क दुर्घटनाओं और उससे होती मौतों का बढ़ता आंकड़ा एक अलग ही तस्वीर दिखाता है। राज्य में औसतन तीन लोग प्रतिदिन सड़क हादसे में अपनी जान गंवाते हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में मौत के मामले में उत्तराखण्ड आंठवें स्थान पर है।
2019 में 1352 सड़क दुर्घटनाओं में 867 लोगों ने अपनी जान गंवाई तथा 1457 लोग घायल हुए। 2020 में 1041 सड़क दुर्घटनाओं में 674 लोगों ने जान गंवाई 854 घायल हुए। 2021 में 1405 सड़क दुर्घटनाओं के चलते 820 लोग मौत के शिकार हुए तथा 1091 लोग घायल हुए। 2022 में सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा 1674 तक गया जिसमें 1042 मौत के शिकार हुए तथा 1613 लोग घायल हुए। 2023 में जनवरी से अक्टूबर तक 1367 दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। 2023 में अब तक नैनीताल जिले में ही 97 लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। जहां तक कुमाऊं मंडल का प्रश्न है पिछले 10 महीनों में 555 सड़क हादसों में 373 लोग मौत के मुंह में समा गए। खास बात ये है कि इनमें से अधिकांश हादसे मौसम की खराबी के चलते नहीं बल्कि साफ मौसम में सड़कों की दुर्दशा के चलते हुए। परिवहन विभाग निर्माण विभाग और प्रशासन की लापरवाही के चलते जहां सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े बढ़ते चले गए। सड़क दुर्घटनाओं के पीछे के कारणों में ओवर लोडिंग, गाड़ियों की फिटनेस को सही समय पर न जांचना जैसे भी कारण जिम्मेदार हैं लेकिन इसमें परिवहन विभाग की लापरवाही सबसे बड़ा कारण है जो अपनी इन मूल जिम्मेदारियों से हमेशा मुंह चुराता रहता है।
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद जनप्रतिनिधियों ने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में नई सड़कों के निर्माण और नई सड़कों को स्वीकृत कराने की होड़ रही लेकिन ये सड़कें निर्माण के किस स्तर तक पहुंची, उनकी गुणवत्ता और सड़कों की दशा पर उन्होंने ध्यान देना उचित नहीं समझा। हल्द्वानी-बरेली मार्ग को ही देखें तो तीन पानी से लालकुआं फोर लेन कंपनी न ही नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया इस मार्ग के निर्माण कार्य को पूर्ण करने के लिए संजीदा हैं। रुद्रपुर से वाया गौलापार होते हुए फोर लेन मार्ग 2017 में सदभाव कंपनी ने बनाना था। जिसे अक्टूबर 2019 में इस कार्य को पूरा करके देना था। लेकिन वो भी दो साल में 18 किलोमीटर का ही कार्य पूरा कर पाई। उसके बाद 2023 में नई कंपनी को कार्य दिया गया जिसे अप्रैल 2024 में इसे पूरा करके देना है लेकिन पेड़ कटान व भूमि हस्तांतरण की मंथर गति के चलते तय समय पर ये कंपनी कार्य पूरा कर पाएगी इसमें संदेह है। सुखद सफर की आस में इस मार्ग पर पिछले एक माह में 5 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों में तो हाल और भी बुरे हैं। जितने दुर्गम क्षेत्रों में जाएं सड़कें विकास की उतनी कहानी है। बरसात के दौरान आया सड़क में मलवा ज्यों की त्यों पड़ा है। उस मलबे के ऊपर उग चुकी ऊंची-ऊंची झाड़ियां बताती हैं कि हुक्मरानों की आंखें इनको नहीं देख पाती। खराब सड़कों का कोई सुध लेता नहीं है। उन्हें बस इंतजार है एक और नई सड़क दुर्घटना का। रेरा के नाम पर किसान आंदोलन में सक्रिय दिखने वाले सभी राजनीतिक दलों के लोग सड़कों की दुर्दशा पर कहीं भी आंदोलित नजर नहीं आते।
कुल मिलाकर उत्तराखण्ड में विकास की जीवन रेखा मानी जानी वाली सड़कें जानलेवा साबित हो रही हैं। विकास की दौड़ में सरकारों के लिए जर्जर सड़कों की गिनती भी ज्यादा महत्वपूर्ण है जिसमें वो अपनी विकास की गिनतियां बढ़ा कर दिखा सकें। भले ही उसकी काहिली कितनों के जीवन लील ले।
उत्तराखण्ड में सड़क निर्माण सेक्टर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। सत्तारूढ़ दल के नेताओं और सरकारी अधिकारियों ने राज्य के विनिर्माण क्षेत्र को दुधारी गाय बना दिया है जिनके लिए ये सिर्फ कमाई का साधन बन गया है जिसके चलते सड़कों की गुणवत्ता को ताक पर रख दिया है। उत्तराखण्ड में ये एक रिवाज बन गया है। किसी सड़क दुर्घटना के हो जाने पर सरकारें व प्रशासन अचानक नींद से जागता है। दुर्घटना की जांच मुआवजा, गड्ढामुक्त सड़कों की रिपोर्ट सब तेजी से होती है फिर समय बीतने के बाद न ही जांच रिपोर्ट का पता चलता है और फिर सभी स्थितियां सामान्य की ओर दिखती हैं। शायद तंत्र को फिर किसी नई दुर्घटना का इंतजार रहता है कुछ नया करने को।
यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष
बेतालघाट क्षेत्र में सड़कों की हालत जितनी खराब है उससे लगता नहीं कि विकास की जीवन रेखा मानी जानी वाली सड़कें स्वयं जीवंत हालत में हैं। सड़क बनाने के नाम पर महज खानापूर्ति है। वर्षों से सड़कों में डामरीकरण का कहीं पता नहीं है। सड़कों के किनारे सुराक्षात्मक उपायों का कहीं पता नहीं है ‘अगर कहीं कुछ दुर्घटना हुई तो उसके बाद सरकारी विभाग जागते जरूर हैं लेकिन कुछ समय बाद फिर वही स्थिति हो जाती है।
धीरज जोशी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य, बेतालघाट
ऐसा नहीं है कि अधिकारी और नेता सड़कों की इन जर्जर हालत से नावाकिफ हैं लेकिन उनकी इच्छाशक्ति की कमी इन्हें नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति की ओर धकेलती है। मुआवजे से आप किसी की जिंदगी का सौदा तो नहीं कर सकते अपना पूरा परिवार इस दुर्घटना में गंवा दिया उसके लिए मुआवजे का क्या मोल?
हरीश मटियाली, स्थानीय निवासी