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Uttarakhand

भ्रष्टाचार का गढ़ बना ऋषिकेश एम्स

स्वास्थ्य सेवाओं में अग्रणी ऋषिकेश का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स आज भ्रष्टाचार और अनियमिताओं का गढ़ बन चुका है। फर्जी तरीके से की गई भर्तियां, और मशीनी उपकरण आदि में हुए भ्रष्टाचार के मामले एम्स में विगत कई समय से चर्चाओं में थे। यहां तक कि राज्य सरकार दी गई भूमि में से छह एकड़ भूमि के ‘लापता’ होने के मामले में एम्स पहले ही गम्भीर सवालां के घेरे में आ चुका है। साथ ही संस्थान के ग्रुप सी के संविदाकर्मियां के प्रोविडेंट फंड का लाखां रुपए जमा न करने को लेकर भी एम्स प्रशासन पर सवालिया निशान लग चुके हैं। हालात इतने विकट हो चले हैं कि केंद्र सरकार के इस अग्रणी संस्थान पर केंद्र सरकार की ही जांच एजेंसी सीबीआई का शिकंजा कसने लगा है। माना जा रहा है कि विगत दो वर्ष से एम्स में चल रहे घोटालों और अनियमिताओं के मामलों का संज्ञान उच्च स्तर पर होने के बाद ही इस कार्यवाही को अंजाम दिया गया है

वर्ष 2003 में केंद्र की अटल सरकार के कार्यकाल में उत्तराखण्ड को एम्स की सौगात दी गई। वर्ष 2004 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री सुषमा स्वराज और केंद्रीय भूतल परिवहन और राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री भुवनचंद्र खण्डूड़ी द्वारा एम्स का शिलान्यास किया गया। हालांकि एम्स का पूरा निर्माण होने में वर्षों लग गए 2014 में मोदी सरकार आने के बाद इस एम्स की चाल में गति आई लेकिन विवादों का विकास स्वास्थ सेवाओं के विकास से कहीं ज्यादा इस संस्थान में देखने को मिला।

 

एम्स में चौतरफा फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ स्थानीय स्तर पर खासा रोष व्याप्त है। ऋषिकेश के सामाजिक कार्यकर्ता आशुतोष शर्मा लगातार इस मुद्दे पर एम्स प्रशासन और केंद्र सरकार को चेताते रहे हैं। नैनीताल हाईकोर्ट में इन मुद्दों को लेकर जनहित याचिका दायर करने वाले शर्मा के प्रयास अब कुछ रंग ला रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को उनके द्वारा मय प्रमाण भेजी गई शिकायतों के बाद केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई एक्टिव हो चली है। गत् सात फरवरी को सीबीआई की एक टीम ने एम्स में छापेमारी कर कई कम्प्यूटर हार्ड डिक्स जब्त की हैं। संस्थान द्वारा खरीदी गई दवाइयों के रिकॉर्ड भी सीबीआई ने अपने कब्जे में ले लिए हैं, साथ ही भर्ती प्रक्रिया एवं निर्माण कार्यों की बाबत मिली शिकायतों के आधार पर एम्स के अधिकारियों से घंटों पूछताछ भी की।

कभी कर्मचारियों की छंटनी और बाहरी राज्यां के कर्मचारियां की भर्ती तो कभी निर्माण कार्यों में अनियमिताओं की खबरों को लेकर एम्स ऋषिकेश विवादों का केंद्र बना रहा है। यहां तक कि संविदा और आउट सोर्सिंग कर्मचारियों का उत्पीड़न के बढ़ते मामलों के चलते आंदोलन तक एम्स में हुए। 2017 में एम्स का नया निदेशक डॉक्टर रविकांत को बनाया गया। उनके कार्यकाल में एम्स ने अति आधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं आरम्भ हुई।
लेकिन डॉ .रविकांत के कार्यकाल में जिस तेजी से एम्स ने नई ऊंचाइयों को छुआ उसी तेजी से संस्थान में भ्रष्टाचार, घोटाले और अनियमिताओं की बाढ़ सी भी आ गई जिसमें निर्माण कार्यों और चिकित्सीय उपकरण एवं मशीनरी आदि की खरीद पर कमीशन लेने, आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती में कमीशन आदि के मामले खूब गरमाते रहे। आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती के समय ली गई सिक्योरिटी धनराशि को हड़पने का भी आरोप जमकर चर्चाओं में रहा। जिस कर्मचारी ने आवाज उठाई उसे तुरंत बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, लेकिन उसकी सिक्योरिटी मनी वापस नहीं की गई।

विगत कुछ वर्षों से एम्स ऋषिकेश में आए तमाम चर्चित मामलों पर एक नजर डालें तो यह कहा जा सकता है कि ऋषिकेश का एम्स भ्रष्टाचार का गढ़ बनकर उभरा है। लापता हुई 6 एकड़ जमीन एम्स ऋषिकेश का शुरुआती घोटाला छह एकड़ जमीन का लापता होने के तौर पर देखा जा सकता है। यह एक घोटाला है या एम्स प्रशासन की काहिलता यह तो जांच का विषय है लेकिन आज एम्स को आंवटित छह एकड़ भूमि कहां है यह स्वयं एम्स को भी मालूम नहीं है। इसकी शुरुआत भी खासी दिलचस्प है। दरअसल, वर्ष 2004 एम्स को ऋषिकेश के पशुलोक विभाग की 100 .815 एकड़ भूमि एम्स के निर्माण के लिए हस्तातंरित की गई। लेकिन इस भूखंड को एम्स के निर्माण में कम पाया गया तब एम्स ऋषिकेश को 7 एकड़ अतिरिक्त भूमि आंवटित की गई। इस तरह से एम्स ऋषिकेश को कुल 107 .815 एकड़ भूमि हस्तांतरित की गई। पशुलोक विभाग के अभिलेखों में साफ तौर पर अंकित है कि एम्स ने 107 एकड़ भूमि पर कब्जा प्राप्त कर के उसमें चार दिवारी का निर्माण कर लिया है। लेकिन एम्स प्रशासन मात्र 101 एकड़ भूमि की बात ही स्वीकारता है।

केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान केंद्र पशुलोक ऋषिकेश के तत्कालीन उपनिदेशक रामानंद द्वारा 15 नवम्बर 2006 को तत्कालीन स्वास्थय एवं परिवार कल्याण सचिव को लिखे गए पत्र संख्या 4333-36 कृषि एम्स/0607 में स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि ‘‘एम्स द्वारा 107 एकड़ भूमि में एम्स ने बाउंड्रीवॉल का निर्माण कर लिया है।’’ इस पत्र से स्पष्ट होता है कि एम्स ऋषिकेश को 107 एकड़ भूमि प्राप्त हो चुकी है जिसमें चार दिवारी का निर्माण पूरा कर लिया गया है। लेकिन एम्स प्रशासन इसे मानने को तैयार नहीं। कुछ इसी तरह का पत्र केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान केंद,्र पशुलोक ऋषिकेश, के उपनिदेशक डॉक्टर कमल मेहरोत्रा द्वारा 22 जनवरी 2008 को प्रभागीय वनाधिकारी देहरादून को लिखा गया जिसमें एम्स को दी गई 7 एकड़ अतिरिक्त भूमि तथा मानचित्र पशुलोक कार्यालय को प्राप्त करवाने के लिए लिखा। ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने वर्ष 11 के अंक 39 में ‘एम्स की छह एकड़ जमीन हुई लापता’ शीर्षक से इस बड़े घोटाले का खुलासा किया था जिसमें तमाम प्रमाण और तथ्य समाने रखे थे।

प्रोविडेंट फंड घोटाला
केंद्र सरकार का संस्थान स्वयं केंद्र सरकार के नियमों का घोर उल्लंघन करता रहा है। जहां कर्मचारियों के प्रोविडेंट फंड को जमा न करने पर केंद्र सरकार का भविष्य निधि कार्यालय निजी कंपनियों कड़ी कानूनी कार्यवाही करता रहा है, वही एम्स ऋषिकेश तमाम नियमों का धता बताता रहा है। गौरतलब है कि ग्रुप सी के 67 संविदा कर्मचारियों के पीएफ का पैसा एम्स द्वारा जमा नहीं किया गया है। देहरादून के भविष्य निधि आयुक्त द्वारा एम्स को नेटिस भेजा जा चुका है जिसमें कहा गया है कि 2015 से अक्टूबर 2020 तक का सविंदाकर्मियों का प्रोविडेंट फंड की धनराशि 90 लाख 74 हजार 343 रुपए जमा नहीं की गई है। मामला खुलने पर जांच करने और धन को जमा करने की बात कहकर एम्स ने पल्ला झाड़ लिया। एम्स प्रशासन का कहना है कि इस प्रकार का नोटिस गलत था जिस पर केंद्र सरकार के ट्रिब्यूलन ने नोटिस पर रोक लगा दी है। अब मामला विचाराधीन है। एम्स के कानूनी अधिकारी प्रदीप कुमार बताते हैं कि ‘‘उक्त नोटिस गलत दिया गया है जिस पर ट्रिब्यूलन ने रोक लगा दी हे अब मामला ट्रिब्यूलन में चल रहा है।’’

निर्माण कार्यों में कमीशनखोरी
एम्स में निर्माण कार्यों में घोटाले और कमीशनखोरी के आरोप लगते रहे हैं। वर्ष 2020 में इंजीनियरिंग विभाग में मरम्मत और रंग-रोगन के काम को लेकर की जा रही कमीशनखोरी का एक ऑडियो क्लिप भी खूब चर्चाओं में रहा। इस ऑडियो क्लिप में रंग-रोगन करने वाले ठेकेदार और विभाग के दो अधिकारियों के बीच कमीशन को लेकर की गई कथित बातचीत सामने आई थी। पूरा मामला यूबी ब्लास्टर मशीन की खरीद को लेकर हो रही थी। यूबी ब्लास्टर वह मशीन है जिससे कमरे को पूरी तरह से सेनेटाइज करके हर तरह के बैक्ट्रीरिया से सुरक्षित रखा जाता है। इस ऑडियो क्लिप में निदेशक के कार्यालय के लिए भी एक यूबी ब्लास्टर मशीन खरीदने और जिस सामान की कीमत पचास हजार से एक लाख है, को पांच लाख में खरीदने की बात का भी जिक्र किया गया है।इस पूरी बातचीत का ऑडियो सामने आने पर एम्स में हड़कंप मच गया और एम्स प्रशासन जांच करने की बात कहकर मामले को रफा-दफा करने में जुट गया। हालांकि एम्स प्रशासन ने निर्माण विभाग में तैनात डीडीओ को अगले ही दिन पद से हटा दिया है लेकिन उक्त ऑडियो की क्या जांच हुई और एम्स प्रशासन ने इस पर क्या कार्यवाही की यह आज तक किसी को पता नहीं है। लेकिन जिस तरह से निर्माण विभाग में तैनात डीडीओ को तुरंत ही हटा दिया गया उससे तो साफ हो गया कि मामला बेहद गंभीर था लेकिन ऑडियो में जो कमीशनखोरी की बातें और बेवजह मशीनों की खरीद केवल कमीशनखेरी के लिए की जा रही थी, उन सवालों पर एम्स प्रशासन चुप्पी साधे रहा है।

स्टोनोग्राफ भर्ती घोटाला
एम्स ऋषिकेश में स्टोनोग्राफ भर्ती में भी बड़ा खेल रचे जाने का आरोप लग रहा है। इस मामले में अपने चहेतों को भर्ती प्रक्रिया में सफल नहीं होने पर एम्स प्रशासन पर परिणाम को दोबारा घोषित किए जाने के आरोप लगे हैं। पहले इसका परिणाम 27 फरवरी 2021 को घोषित किया गया लेकिन फिर से 1 फरवरी 2022 को इसी का दूसरा परिणाम घोषित किया गया है। इससे भर्ती में बड़ा खेल किए जाने की आशंका जताई जा रही है।
वर्ष 2017 में एम्स ऋषिकेश में स्टोनोग्राफ पद की भर्ती के लिए विज्ञप्ति जारी हुई थी। आरोप हे कि सर्विस रूल के नियमों से धता बताते हुए आयु सीमा 27 वर्ष के बजाय 35 वर्ष कर दी गई। इस परीक्षा परिणाम को 27 फरवरी 2021 को घोषित किया गया। परीक्षा परिणाम में 24 अभ्यार्थियों में से केवल 7 उम्मीदवारां का ही चयन हुआ और उनको नियुक्तियां दे दी गई।


आरोप है कि पूर्व में ही कई अभ्यर्थियों को चयन तय कर लिया गया था लेकिन वे परीक्षा परिणाम में सफल नहीं हो पाए तो उनको नौकरी देने के लिए फिर से 1 फरवरी 2022 को ‘कौशल परीक्षा’ करवाई गई। हैरत की बात यह है कि इस बार उन सभी 13 अभ्यर्थियों को इसमें शामिल कर लिया गया जो 27 फरवरी 2021 को बाहर हो गए थे। इसमें 10 लोगों का चयन किया गया। दिलचस्प बात यह हे कि इसमें चयनित होने वाले 10 अभ्यर्थी पहले से ही आउट सोर्सिंग के तहत कार्यरत थे। खास बात यह है कि नियम के अनुसार अगर भर्ती परीक्षा के बाद पदों पर नियुक्तियां नहीं हो पाती है तो दोबारा परीक्षा करवाई जाती है। इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। केवल ‘कोशल परीक्षा’ करवाकर सभी 10 अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया। इनमें कई नियमानुसार आयु छूट की सीमा में भी नहीं थे।

नियमित भर्तियों में भारी अनियमिताएं
बड़े पैमाने पर एम्स में नियमित भर्तियां की गई। इनमें जमकर भाई-भतीजा वाद के आरोप हैं। आरोप है कि निदेशक के परिजनों -रिश्तेदारों को नियुक्तियां दी गई है। एम्स में कार्यरत चिकित्सकों, प्रशासनिक अधिकारियों के रिश्तेदारों को भी तैनाती दी गई है। जिन लिपिक पदों पर तैनादी दी गई है वे आहर्ताएं या कोशल क्षमता पूरी नहीं कर पा रहे हैं तो उनको एक माह का समय आर्हता और अपना कौशल को बढ़ाने के लिए दिया गया है। इस पूरे घोटाले की शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को की गई है जिसमें नियुक्ति पाए व्यक्तियों के एम्स में तैनात अधिकारियों, चिकित्सकों और अन्य स्टाफ के रिश्तों का खुलासा किया गया है। सबसे हैरतनाक मामला एक परिवार का है जिसके पांच लोगों को एक साथ एम्स में नौकरी दी जा चुकी है। इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेजों संग एक शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक अब जा पहुंची है।

राजस्थान के 600 लोगों को नियुक्तियां
एक ओर उत्तराखण्ड प्रदेश में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है, वहीं इसके विपरीत उत्तराखण्ड में तैनात भारत सरकार के संस्थानों में बाहरी प्रदेश के युवाओं को जमकर सरकारी नौकरियां बांटी जा रही है। हाल ही में एम्स में इस तरह का मामला सुर्खियों में आया जिसमें राजस्थान प्रदेश के 600 लोगों को नर्सिंग संवर्ग के पदों पर नियक्तियां दी गई है जिसमें एक ही परिवार के छह लोगों को भी एक साथ नियक्तियां देने का खुलासा हुआ है। वर्ष 2018 से लेकर 2020 के अंतराल में 800 पदों के लिए भर्तियां निकाली गई जिसमें सभी प्रदेश के युवाओं ने आवेदन किए थे। हैरानी की इस बात की है कि जब 800 पदों में से 600 पदों के लिए राजस्थान के लोगों का चयन किया गया। एक साथ एक ही राज्य के सैकड़ां लोगों को एक ही स्थान पर नियुक्तियां देने का यह पहला मामला है जिससे प्रदेशभर में हंगामा मचा हुआ है। गम्भीर बात तो यह है कि नियमानुसार जिस राज्य में नर्सिंग पद पर कार्यरत किया जाए उसी राज्य के नर्सिंग कांउसिल में पंजीकरण करवाना जरूरी है लेकिन अभी तक एम्स में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ का पंजीकरण नहीं हो पाया है।

संदेह के घेरे में पूर्व निदेशक की भूमिका
एम्स के निदेशक डॉक्टर रविकांत के कार्यकाल में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। हालांकि डॉ रविकांत सेवानिवृत हो चुके हैं। उनके कार्यकाल में कई मामलों पर शिकायतें होती रही है लेकिन राजनीतिक रसूख और सत्ताधारियों से उनकी नजदीकियों के चलते उन पर कोई आंच नहीं आई। एम्स में भर्तियों पर सबसे ज्यादा सवाल उनके ही कार्यकाल में उठते रहे हैं। यहां तक कि नियम के विपरीत अपने लिए आवासीय बंगले का निर्माण करवाए जाने के आरोप भी रविकांत पर लग चुके हैं। लेकिन निदेशक पर कोई आंच नहीं आई है। जिस किसी ने सवाल खड़े किए हैं उनको कहीं न कहीं फायदा पहुंचाया गया है। ऋषिकेश के तमाम राजनीतिक लोगों की शिफारिशों पर तैनाती दी गई है। यहां तक कि मीडिया से जुड़े लोगों के परिजनों को भी एम्स में नियुक्तियां बांटी गई है जिससे घोटालों की खबरें सामने न आ पाए।

ऐसा नहीं है कि एम्स में हो रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की शिकायतें नहीं हुई हैं। ऋषिकेश के समाज सेवी आशुतोष शर्मा द्वारा विगत दो वर्षों से एम्स में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई जाती रही है। इन दो वर्षों में आशुतोष शर्मा ने करीब 200 आरटीआई के तहत जानकारियां एकत्र की जिसमें उनको अनेक जानकारियां नहीं दी गई हैं। सभी प्रमाण एकत्र करने के बाद आशुतोष शर्मा के प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा सचिव स्तर पर सभी अभिलेखों के साथ शिकायतें की जाती रही हैं। अब कोई कार्यवाही नहीं होती देख आशुतोष शर्मा ने नैनीताल हाईकोर्ट में एम्स ऋषिकेश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है जिस पर सुनवाई लंबित है। सीबीआई का छापा भी आशुतोष शर्मा की शिकायतों के चलते पड़ा है। माना जा रहा है कि सीबीआई एम्स के ऐसे कई मामलों को लेकर जांच कर रही है जो पूर्व निदेशक डॉक्टर रविकांत के कार्यकाल के हैं। खास तौर पर भर्तियों के मामले में सीबीआई की जांच बताई जा रही है।

बात अपनी-अपनी
किसी राज्य का कोटा फिक्स नहीं सीबीअई आई थी उनके पास कुछ इन्फॉरमेशन थी। वे कुछ डाक्यूमेंट लेकर गए हैं। जिसका हमें अभी तक पता नहीं है कि क्या इश्यु है। इस बारे में तो आपको सीबीआई ही ज्यादा बेहतर बताएगी। राजस्थान के लोगों की भर्ती के मामले में ऐसा कुछ नहीं है जैसा कहा जा रहा है। हमने चार एग्जाम करवाए हैं जिसमें फर्स्ट एग्जाम दिल्ली एम्स ने करवाया। जिनमें 200 सीटें नर्सेस की थी। इसमें 200 में से 112 राजस्थान के कैंडिडेट को मिली थी। सेकेंड एग्जाम हमने करवाया था जिसमें 60 प्रतिशत क्वालीफाइड राजस्थान के कैंडिडेट हुए हैं। थर्ड एग्जाम में मुश्किल से 18 प्रतिशत राजस्थान के कैंडिडेट क्वलीफाइड हुए। यह इसलिए हुआ कि मिनिस्टरी ने नर्सिंग एग्जाम में 80-20 का रेस्यो कर दिया था। 80 प्रतिशत फीमेल और 20 प्रतिशत मेल के लिए किया गया था। नर्सिंग स्टाफ का एग्जाम ऑल इंडिया लेबल पर हुआ था। एम्स ने किसी राज्य का कोई कोटा फिक्स नहीं किया था। भारत सरकार की भर्तियां होती हैं उसमें एसटी, एससी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस जैसे सभी रिजर्वेशन का पूरा नियम रखा गया था। अब राजस्थान वाले ज्यादा क्वालीफाइड कर रहे हैं तो हम इसमें क्या कर सकते हें।

राजस्थान में 200 से भी ज्यादा नर्सिंग कॉलेज है, बेहतर कोचिंग इंस्टीट्यूट हैं, जैसे कोटा राजस्थान में बहुत से हैं। उत्तराखण्ड में सिर्फ 22-23 नर्सिंग कॉलेज हैं। हर साल 10 हजार लोग निकल रहे हैं नर्सिंग में। उत्तराखण्ड में जीएनएम और एएनम हैं हमारे यहां जीएनएम और एएनम में तीन साल का अनुभव और 50 बेड के अस्पताल में काम करने का अनुभव जरूरी है।स्टेनोग्राफर का एग्जाम 2019 हो गया।2020 में कोविड के कारण हम कुछ नहीं कर पाए। जो क्वालीफाइड हो गए थे, हमने उनको स्क्लि टेस्ट करवाया। इसमें कुछ बच्चे स्क्लि टेस्ट क्वालीफाइड नहीं कर पाए तो हमने जिस तरह से स्टाफ सेलेक्शन कमीशन करता है, उसी तरह हमने उनको फिर से स्किल टेस्ट करवाया जिसमें वे क्वालीफाइड कर गए। हाईकोर्ट ने भी अपने यहां स्टोनोग्राफर में एग्जाम पास करने वाले कंडिडेट को भी सेकेंड चांस दिया है। हमने भी यही किया है। क्वालीफाइड करने वाले कंडिडेट को ही फिर से स्किल टेस्ट में चांस दिया है, कोई परीक्षा दोबारा नहीं करवाई है। निदेशक के आवास मामले में हमें कोई भी आरोप नहीं मिला है। आवास हमने सीपीडब्ल्यूडी से बनाया जिसके लिए टेंडर प्रक्रिया हुई। सेंटर गवर्नमेंट की एजेंसी से हमने काम करवाया है। इसमें कुछ हुआ है तो इसका मुझे नहीं मालूम।
हरीश थपलियाल, वरिष्ठ जन संपर्क अधिकारी एम्स ऋषिकेश

मैं एम्स का लॉ ऑफिसर हूं इसलिए मैं केवल लीगल मैटर पर ही बोल सकता हूं, अनियमिताओं के सवाल पर आपको हमारे पीआरओ ज्यादा बेहतर बता पाएंगे। मैं आपको पीआईएल के बारे में बता सकता हूं। यह काफी पहले की बात है। कोर्ट ने पीआईएल करने वाले को एमेंडमेंट कर के लाने को कहा था। इसके लिए दो हफ्ते का समय दिया गया था लेकिन अब तो कई महीने हो गए हैं। एमेंडमेंट हुआ है या नहीं यह हमारी जानकारी में नहीं है। सीबीआई की रेड के बारे में मैं इतना ही बता सकता हूं कि सीबीआई ने हमसे कुछ डाक्यूमेंट मांगे थे जो हमने उनको प्रोवाइड करवा दिए। यह जांच और कॉन्फिडेंसियल मैटर है जिसके कारण मैं आपको कुछ और नहीं बता सकता।
प्रदीप कुमार पांडे, विधिक अधिकारी एम्स ऋषिकेश

एम्स ऋषिकेश भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुका है। पूर्व निदेशक के कार्यकाल में सबसे ज्यादा घोटाले हुए हैं। हर भर्ती में जमकर भ्रष्टाचार किया गया है। एम्स में अधिकारियों, डॉक्टरों और अन्य स्टाफ के रिश्तेदारों को ही नियुक्तियां दी जाती रही है। आउट सोर्सिंग एंजेसी और एम्स प्रशासन आपस में मिले हुए हैं। रुपए लेकर भर्तियों में आउट सोर्सिंग के तहत नियुक्तियां दी जाती है। बाहरी प्रदेश के लोगों को ही आउट सोर्सिंग से नोकरी पर रख जाता है। उत्तराखण्ड के युवाओं को जबरन बाहर कर दिया जाता है। उन पर मुकदमें दर्ज करवाए गए हैं। कई मशीनों ओर उपकरणों की खरीद में धांधली की गई है। मेरे पास सभी प्रमाण हैं, जिनको लेकर मैंने अब नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। सीबीआई का छापा साफ बताता है कि एम्स में कितना बड़ा भ्रष्टाचार होता रहा है।
आशुतोष शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता

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