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Uttarakhand

उत्तराखण्ड की बेटी का रिवर्स माइग्रेशन

उत्तराखण्ड राज्य स्थापना के बाद से ही पलायन बड़ा मुद्दा रहा है। यहां से रोजगार की तलाश में युवा महानगरों की ओर कूच कर रहे हैं। ऐसी ही एक युवा बीना नेगी मिश्रा हैं जिन्होंने एमबीए की पढ़ाई की और इसके बाद वह दिल्ली स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर बनीं। फिलहाल अपनी लग्जरी लाइफ त्याग दी और रिवर्स माइग्रेशन कर उत्तराखण्ड के युवाओं के मट्टय आदर्श उदाहरण पेश किया है। एक दशक से ज्यादा समय तक दिल्ली में नौकरी करने के बाद अब वह उत्तराखण्ड के एक गांव को गोद लेकर उसे मिशन एजुकेशन के तहत डेवलप कर रही हैं। बीना अपने पति सुमन मिश्रा के अलावा एनसीआर में नौकरी कर रहे राहुल रावत और आलोक सोनी को भी इस मिशन में अपने साथ लेकर ‘हमारा गांव-घर फाउंडेशन’ बनाया है। इसके तहत रुद्रप्रयाग जिले के मणिगुह गांव को उत्तराखण्ड का पहला लाइब्रेरी विलेज बनाने का अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान में गांव के हर घर में लाइब्रेरी स्थापित होंगी

उत्तराखण्ड के विकास और यहां के जन आंदोलनों में महिलाओं का विशेष योगदान रहा है। एक बार फिर उत्तराखण्ड की यह एक ‘बेटी ने यहां शिक्षा’, पलायन और रोजगार जैसी समस्याओं से दो हाथ करने की ठानी है। उत्तराखण्ड की बेटी है बीना नेगी मिश्रा। बीना ने युवाओं का भविष्य उज्ज्वल करने के मद्देनजर एक फाउंडेशन की स्थापना की है। जिसका नाम है ‘हमारा गांव घर फाउंडेशन’। ‘हमारा गांव-घर फाउंडेशन’ एक ऐसा ही प्रयास है जो उत्तराखण्ड में शिक्षा और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है। इस फाउंडेशन का उद्देश्य उत्तराखण्ड में नए विकसित गांव तैयार करना है। जहां विकसित शहरों की अनियंत्रित भीड़ को आकर्षित कर रोजगार और शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सके। अपने कार्य की शुरुआत उन्होंने रुद्रप्रयाग जिले के ‘मणिगुह’ गांव से की है। जिसे वह उत्तराखण्ड का पहला पुस्तकालय गांव बनाने के प्रयास में जुटी हैं।

बीना नेगी मिश्रा बताती हैं कि उनको यह प्रेरणा महाराष्ट्र में स्थित पुस्ककांचा गांव से मिली। जहां इस गांव को पुस्तकों का गांव बनाया गया है। गांव में पुस्तकालयों का निर्माण कोई नई बात नहीं है लेकिन इस से यहां के बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों का लगाव नगण्य होता है। पढ़ना एक संस्कृति है जो धीरे-धीरे विकसित होती है। जब पुस्तकालय आप के व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाये और लोग आप को इस नाम से जोड़कर देखने लगें तब यह सम्भावना थोड़ी बढ़ जाती है। बीना बताती हैं कि गांव के बच्चों के लिए स्मार्ट क्लास और मुफ्त कंप्यूटर शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी और गांव का सौंदर्यीकरण भी किया जाएगा। इन युवाओं के प्रयास में लोग बढ़- चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। ललित मोहन थपलियाल, भगवान सिंह जैसे वरिष्ठ लेखकों के निजी संग्रह की चुनिंदा किताबें जहां इस पुस्तकालय में उपलब्ध होंगी वहीं अविनाश मिश्रा और देवी प्रसाद मिश्रा जैसे कवियों के निजी संग्रह से भी इस पुस्तकालय में पुस्तकें उपलब्ध होगी। इस पुस्तकालय में विभिन्न विषयों पर किताबों के साथ- साथ कुछ दुर्लभ पांडुलिपियां, और विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए जरूरी पाठ्य- पुस्तकें भी रखने की योजना है।

गांव के बच्चों को किताबों के लिए मीलों दूर अगस्त्यमुनि और रुद्रप्रयाग शहर जाना पड़ता था जिस में उनका काफी समय बर्बाद होता था। अब यह पुस्तकालय गांव में बनने के बाद शहर के बच्चों के लिए भी गांव एक अच्छा और सस्ता विकल्प बनेगा। यह गांव उत्तराखण्ड ही नहीं पूरे भारत से पर्यटकों और लेखकों को अपनी तरफ आकर्षित करेगा। इस फाउंडेशन के सदस्य और बीना नेगी मिश्रा के पति ‘सुमन मिश्रा’ बताते हैं कि प्राइवेट कंपनियों में लगातार 13 साल काम करने के बाद हमारी पत्नी बीना को आखि़रकार यह एहसास हुआ कि यहां जिंदगी व्यर्थ बर्बाद की जा रही है। एक दिन अचानक उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया। रात को हमारी बात हुई और सुबह-सुबह त्यागपत्र देकर उन्होंने फोन किया कि मैं तैयार हूं।

कई महीनों की लंबी चर्चाओं, यात्राओं और मित्रों से बातचीत के बाद यह तय हुआ कि उत्तराखण्ड के गांव, जहां मूलभूत सुविधाओं और शिक्षा का अभाव है वहां जाकर कार्य किया जाए। हम ने जब दूसरी संस्थाओं का सर्वे किया तो इस नतीजे पर पहुंचे कि सिर्फ शिक्षा या सिर्फ पर्यटन यहां सफल नहीं हो सकता। हमें नए गांव तैयार करने पड़ेंगे जिन्हें थोड़ी मेहनत कर के इस लायक बनाया जाए कि यहां लोग आयें जिससे इस क्षेत्र का समुचित विकास हो। खैर! हमने यह निश्चय किया कि उत्तराखण्ड के एक गांव को इस राज्य का पहला ‘पुस्तकालय गांव’ बनाया जाय। जहां एक सेंट्रल लाइब्रेरी के अलावा जगह-जगह पढ़ने की व्यवस्था हो। सेंट्रल लाइब्रेरी में दुर्लभ किताबें और कुछ पांडुलिपियाँ भी उपलब्ध हों। हर घर में जरूरी किताबें हों और बच्चों को स्मार्ट क्लास के अलावा उन्हें कंप्यूटर की शिक्षा भी दी जाए। इस उद्देश्य को लेकर सभी ने मिलकर कार्य शुरू किया। गांव का चयन किया गया- मणिगुह-जहां अगस्त्यमुनि शहर से आधे घंटे में पहुंचा जा सकता है।

मणिगुह गांव बीना की नानी का गांव है यहां उसका बचपन बीता है। मणिगुह से बीना को विशेष स्नेह था। वह बचपन में एक ख्वाब देखा करती थी कि किसी तरह यहां के बच्चे अच्छी पढ़ाई करें और महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे। सुमन मिश्रा के अनुसार ‘हम अपने मित्रों से लाइब्रेरी के लिए किताबें भी आमंत्रित करते हैं। आप भी अपनी किताबें संस्था को डोनेट कर सकते हैं जिनका उपयोग लाइब्रेरी बनाने में किया जा रहा है। यह किताबें साहित्य, कला, संस्कृति, विज्ञान और दर्शन पर हों तो बेहतर रहेगा। आप हमें सूचित करेंगे तो हम आप से किताबें लेने खुद आयेंगे। आभा जी ने अभी हमारा ‘गांव- घर फाउंडेशन’ को 200 किताबें दान की हैं। इसी के साथ ही प्रसिद्ध लेखक भगवान सिंह जिन्होंने ‘अपने-अपने राम’ पुस्तक लिखी, उन्होंने भी लाइब्रेरी के लिए किताबें भेजवाई हैं।

‘सदानीरा’ पत्रिका के संपादक अविनाश मिश्रा ने भी 200 किताबें लाइब्रेरी के लिए दी है। इसके अलावा देवी प्रसाद मिश्रा जिनकी ‘मुसलमान’ कविता खासी चर्चित रही है, उन्होंने भी बहुत सी किताबें यहां दान में भेजी है। गढ़वाली नाटककार ललित मोहन थपलियाल प्रसिद्ध नाटककार रहे हैं। उनकी कई किताबें आईं जिनको फिलहाल उनकी बेटी आभा थपलियाल ने लाकर हमें लाइब्रेरी के लिए दिया है।’ वह बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि यह फाउंडेशन सिर्फ एक गांव को गोद लेकर विकसित करेगा बल्कि फाउंडेशन का उद्देश्य इस प्रकार के कई गांवों को विकसित करना है जो भविष्य में पर्यटन और रोजगार को आकर्षित कर सके।

मणिगुह गांव अगस्त्यमुनि शहर से करीब पंद्रह किलोमीटर पर स्थित है जहां सुंदर जंगल, पहाड़ी खेत और वहां के लोगों की सरल जीवनशैली आप का मन मोह लेते है। यहां संतरे, खुमानी और अन्य फल खूब होते हैं और जैविक खेती तथा पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। बीना के साथ ही उनके पति सुमन मिश्रा तथा पोखरी में रहने वाले राहुल रावत, जो दिल्ली की एक सीए फर्म में कार्यरत हैं, भी इस लाइब्रेरी में अपना योगदान दे रहे हैं। इसके अलावा ‘फॉर्च्यूनर इंडिया’ और ‘दि हिंदुस्तान टाइम्स’ के सीनियर फोटोग्राफर रहे आलोक सोनी भी हमारा गांव-घर फाउंडेशन के सक्रिय सदस्यों में शामिल हैं।

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