डिलाईटियन गु्रप
सत्तर के दशक में देहरादून के गांधी रोड स्थित घंटाघर के नजदीक डिलाईट रेस्त्रां की स्थापना हुई थी। तब से लेकर कोरोनाकाल तक यह रेस्त्रां बुद्धिजीवियों का सबसे बड़ा ठिकाना रहा। देहरादून के पत्रकारों से लेकर साहित्यकारों और वामपंथियों तथा समाजवादियों का यह प्रिय स्थल है जहां पर आकर वह समसामयिक विषय पर चर्चा करते हैं। कोरोनाकाल में जब यह रेस्त्रां बंद हो गया तो यहां आवागमन करने वाले बुद्धिजीवियों ने इसकी याद को चिरस्थाई करने के लिए एक डिलाईटियन ग्रुप का गठन किया। जहां लोग हर रोज एकत्रित होते हैं और हर विषय पर चर्चा करते हैं
वरिष्ठ नागारिको की सबसे बड़ी समस्या होती है कि उम्र के एक पड़ाव के बाद उनकी अहमियत कम होने लगती है। ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक अपने परिवार में ही सिमट कर रह जाते हैं जिस कारण वे अपने संगी-साथियों से भी दूर होने लगते हैं। लेकिन आज भी कई ऐसे वरिष्ठ नागरिक हैं जो अपनी दिनचर्या में अपने पुराने साथियों और सहकर्मियों से नियमित मिलते रहे हैं। देश समाज के साथ-साथ तात्कालिक समस्याओं पर चर्चा कर, अपनी विचारों को आपस में साझा करके अपने आप को आज भी समाज से जोड़े हुए हैं।
देहरादून के दीनदयाल उपाध्याय पार्क में एक चाय की टपरी में ऐसा ही वरिष्ठ नागरिकों का समूह है जो आज भी नियमित अपने संगी-साथियों के साथ एकत्र होता है। इस समूह का नाम डिलाईटियन ग्रुप है जो वर्षों पूर्व शहर के एक ख्याति प्राप्त डिलाईट रेस्त्रां के नाम से चला आ रहा है। देहरादून के गांधी रोड घंटाघर के समीप में 1973 में डिलाईट रेस्त्रां की स्थापना की गई थी। यह रेस्त्रां अपने आप में नगर का एक नामचीन रेस्त्रां बन गया। इस में बड़े-बड़े नामचीन राजनीतिक और सामाजिक तथा साहित्य क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों का आना- जाना लगा रहता था। इस रेस्त्रां के संचालक और मालिक खन्ना जी के देहांत के बाद कुछ वर्ष के बाद कुमाऊं के वामपंथी विचारक किशन पाण्डे ने इसका संचालक अपने हाथों में लिया और 2020 तक इसका संचालन होता रहा।

हालांकि यह एक रेस्त्रां था लेकिन बदलते सामाजिक परिवेश और भौतिकवाद के चलते धीरे-धीरे डिलाईट रेस्त्रां अपनी भव्यता को कायम नहीं रख पाया, लेकिन यह बुद्धिजीवियों का एक स्थान के नाम पर विख्यात होता चला गया। इसमे ज्यादातर समाजवादी खेमे के लोगों का आना-जाना लगा रहता था। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अलावा प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक और नेता सुरेंद्र मोहन भी इसी डिलाईट रेस्त्रां में आते रहे और वामपंथी तथा अन्य वैचारिक क्षेत्र के लोगांे का एक नियमित मिलन और चर्चा करने का स्थान यह ‘डिलाईट रेस्त्रां’ बन गया। कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट और साहित्य कला क्षेत्र के लोगों का एक तरह से यह रेस्त्रां जरूरी स्थल बन गया।
जानकार बताते हैं कि आपातकाल के समय से ही इस रेस्त्रां में एलआईयू की खोजी नजरंे इस तरह से जुड़ी कि पृथक उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के दौरान भी इस रेस्त्रां में पुलिस की निगाहें लगी रहती थीं। नगर में कोई भी आंदोलन हो चाहे छात्र राजनीति का ही क्यों न हो, डिलाईट रेस्त्रां हमेशा से ही पुलिस और एलआईयू की निगरानी में ही रहा।
कोरोना महामारी के चलते 2020 में डिलाईट रेस्त्रां बंद हो गया और इसके संचालकों ने इसे किसी अन्य को किराए पर उठा दिया। इसी डिलाईट की याद को चिरस्थाई करने के लिए यहां आने वाले लोगों द्वारा एक डिलाईटियन ग्रुप का गठन किया गया और इसके ठीक सामने दीनदयाल उपाध्याय पार्क के बाहर राज्य आंदोलनकारी और पत्रकार रहे जयंत कंडवाल की चाय की टपरी को अपने समूह का नया ठिकाना बना दिया। आज इस ग्रुप के 40 से भी ज्यादा सदस्य हैं जिनमें साहित्यकार, रंगकर्मी, पत्रकार और राजनीतिक क्षेत्रों और श्रमिक संगठनों से जुड़े अनेक वरिष्ठ नागरिक नियमित एकत्र होते हैं और हर विषय पर चर्चा करते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार जो कभी देहरादून के चर्चित और ख्याती प्राप्त पत्रकार और संपादक रहे हैं, वे भी इस समूह में शामिल हैं। इनमें वरिष्ठ पत्रकार और संपादक रहे सुरेंद्र आर्य, रविंद्र नाथ कौशिक, संपादक द्विजेंद्र बहुगुणा, त्रिलोचन भट्ट और ‘युगवाणी’ के संपादक संजय कोठियाल जैसे वरिष्ठ पत्रकार हैं तो साहित्यकारों में जितेंद्र भारती, राजेंद्र गुप्ता, निरंजन सुयाल, चंदन सिंह नेगी, अरुण असफल और चंदन उपेक्षित, महर्षि नवेंदु आदि हैं जिनकी कविताएं और कहानियां आज भी प्रकाशित होती हैं।

समूह में रंगकर्मी और काल क्षेत्र से जुड़े सतीश धौलाखंडी, यशपाल शर्मा, जसदीप सकलानी के अलावा पर्यावरण क्षेत्र से जुड़े रमेश पालिवाल भी इससे जुड़े हैं। वामपंथी विचारक समर भंडारी, जीडी डंगवाल, और श्रमिक संगठनों से जुड़े जगदीश कुकरेती, गिरधर पांडे, राकेश पंत, दयाराम कोठारी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेंद्र अग्रवाल भी इस ग्रुप से जुड़े हुए हैं।
आज यह डिलाईटियन ग्रुप वरिष्ठ नगारिकों को ही नहीं समाज के अनेक तबके के युवाओं को भी भाने लगा है। कई युवा पत्रकार और अनेक क्षेत्रांे से जुड़े युवाआंे के अलावा पार्क में अध्ययन करने के लिए नियमित आने वाले छात्र भी इस ग्रुप में नियमित हो रही चर्चाओं में शामिल हो जाते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसी स्थान के ठीक सामने नगर का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध ‘खुशीराम पुस्तकालय’ है, जिसमें प्रतिदिन सैकड़ांे विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते हैं और स्थान न मिलने पर दीनदयाल पार्क में ही अपना अध्ययन पूरा करते हैं।