कुमाऊं मंडल की सोमेश्वर विधानसभा सीट में इस दफे मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना नजर आ रही है। यहां भाजपा एवं कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी भी इस सीट पर पूरी दमदारी से मैदान में उतरने की तैयारी में है। वर्तमान में यहां की विधायक रेखा आर्या धामी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद क्षेत्र में विकास के नाम पर खास कुछ कर पाने में विफल रही हैं। क्षेत्र में पेयजल की भारी किल्लत है, स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं। चार आईटीआई बंद हो चले हैं। सबसे बदहाल यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था है। पूरी विधानसभा क्षेत्र में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक का न होना राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। क्षेत्र की जनता अपनी विधायक से खासी आक्रोशित है जिसके चलते इस दफे रेखा आर्या के लिए चुनाव जीतना टेढ़ी खीर साबित होना तय है
उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनावों में बहुत अधिक समय नहीं बचा है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर से इन चुनावों की तैयारियों में जुट गए हैं। राजनीतिक दलों के साथ-साथ पार्टियों में दावेदारों ने भी अपनी-अपनी दावेदारी के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है। अल्मोड़ा जिले की सोमेश्वर विधानसभा में भी चुनाव पूर्व सरगर्मियां शुरू हो चुकी हैं। उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद सोमेश्वर विधानसभा अस्तित्व में आई। ये विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों और एक उपचुनाव पर नजर डालें तो यहां पर दो बार कांग्रेस और तीन बार भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश की कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या इस सीट से भाजपा की विधायक हैं। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों में यहां से रेखा आर्या की राह आसान नजर नहीं आ रही है।
उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में यहां पर कांग्रेस पार्टी के प्रदीप टम्टा ने जीत हासिल की थी। उन्होंने तब भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी राजेश कुमार आर्या को लगभग नौ सौ मतों के अंतर से हराया था। 2002 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने वर्तमान में अल्मोड़ा संसदीय सीट से सांसद अजय टम्टा की दावेदारी को नकार कर राजेश शुक्ला आर्या को अपना प्रत्याशी बनाया था। अजय टम्टा सबसे कम उम्र में अल्मोड़ा जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर रहने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। भाजपा की अंदरूनी राजनीति के चलते उनका टिकट कटने पर अजय टम्टा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनी किस्मत आजमाई लेकिन 1286 वोटों के साथ उन्हें पांचवें स्थान पर संतोष करना पड़ा। भाजपा की अंदरूनी
राजनीति में वर्तमान विधायक रेखा आर्या और अजय टम्टा एक- दूसरे से छत्तीस का रिश्ता रखते हैं। 2007 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अजय टम्टा को अपना प्रत्याशी बनाया। तब अजय टम्टा ने कांग्रेस के प्रदीप टम्टा को पराजित किया था। 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की ओर से अजय टम्टा और कांग्रेस से प्रदीप टम्टा लोकसभा उम्मीदवार थे। उस वक्त प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर भाजपा पराजित हो गई थी जिसमें अल्मोड़ा की सीट भी शामिल थी।
2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अजय टम्टा को फिर से अपना प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में रेखा आर्या कांग्रेस से सशक्त दावेदार थीं लेकिन गोविंद सिंह कुंजवाल और अन्य नेता किसी कांग्रेसी पृष्ठभूमि के व्यक्ति को टिकट के पक्ष में थे। उनके विरोध के चलते रेखा आर्या के बजाय राजेंद्र बाराकोटी को अपना प्रत्याशी बनाया। रेखा आर्या ने निर्दलीय चुनाव लड़ कांग्रेस प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। लेकिन वो अजय टम्टा से लगभग ढाई हजार वोटों से हार गईं। कुछ लोगों के लिए विचारधारा से ज्यादा सत्ता मायने रखती है। रेखा आर्या ने भी विचारधारा के ऊपर सत्ता को तरजीह दी और अजय टम्टा के विरोध के बावजूद पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी और संघ के बड़े नेताओं की कृपा से उन्हें 2013 में भाजपा में शामिल कर लिया गया। अजय टम्टा द्वारा रेखा आर्या का विरोध शायद अकारण नहीं था। 2014 के लोकसभा चुनावों में रेखा आर्या ने अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट दावेदारी कर सबको चौंका दिया और भगत सिंह कोश्यारी की बदौलत प्रत्याशियों के पैनल में आने में सफल रहीं लेकिन अजय टम्टा भाजपा के प्रत्याशी बन लोकसभा चुनावों में विजयी रहे।
टम्टा के लोकसभा सांसद बनने के बाद हुए सोमेश्वर विधानसभा उप चुनाव में रेखा आर्या को उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें प्रत्याशी बनाएगी लेकिन ऐसा न होता देख वे कांग्रेस में शामिल हो गई। भाजपा ने अल्मोड़ा जिला पंचायत अध्यक्ष और भाजपा अनुसूचित मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष मोहन राम आर्या को अपना प्रत्याशी बनाया। रेखा आर्या ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में उन्हें लगभग दस हजार मतों के अंतर से हरा दिया। 2016 कांग्रेस में हुई बड़ी बगावत के समय रेखा आर्या ने राजनीतिक नैतिकताओं को दरकिनार कर एक बार फिर अपनी राजनीतिक निष्ठा बदल भाजपा में शामिल हो गईं। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी के रूप में रेखा आर्या ने कांग्रेस पार्टी के राजेंद्र बारकोटी को सात सौ दस वोटों के मामूली अंतर से हरा दिया। बताया जाता है कि राजेंद्र बाराकोटी की पराजय में रेखा आर्या का कम राजेंद्र बाराकोटी के भाईयों के कुछ वक्तव्य जिम्मेदार थे जिनकी वजह से बाराकोटी अपने गृह क्षेत्र ताकुला से पिछड़ गए थे, वर्ना पूरी विधानसभा में वो रेखा आर्या से आगे थे।
पिछले इक्कीस सालों में इस विधानसभा के विकास पर दृष्टि डालें तो तस्वीर कुछ खास उम्मीद नहीं जगाती। राजनेताओं के मध्य विकास का श्रेय लेने की होड़ के बीच आम जनता स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी जैसी सुविधाओं से वंचित है। 2007 के बाद के 2014 से 2016 के दो वर्षों की छोड़ दें तो 2007 से इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा रहा है। पिछले साढ़े चार सालों की बात करें तो रेखा आर्या के मंत्री रहते धरातल पर विकास की हकीकत और विकास की घोषणाओं को ग्लैमराइज्ड तरीके से पेश करने के बीच विरोधाभास स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। समूची सोमेश्वर विधानसभा में एक भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का न होना सरकार और जनप्रतिनिधियों के दावों की पोल खोलता है। क्षेत्र में पीने के पानी की भी भारी किल्लत है। सरकारें ‘हर घर नल, हर घर जल’ के तहत कितने भी कागजी आंकड़ें पेश कर लें लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि कई गांव आज पीने के पानी की सुविधा से वंचित हैं और लोग आज भी प्राचीन नौलों पर निर्भर हैं। क्षेत्र में स्कूलों की हालत बेहद खराब है।
कई स्कूलों में मात्र एक शिक्षक से काम चलाना पड़ रहा है। करोड़ों की पंम्पिंग पेयजल योजनाएं फेल है। चनौंदा से ऊपर छह करोड़ लागत से बनी पम्पिंग योजना ढाई सालों से बंद पड़ी है, क्योंकि विभाग का कहना है कि वहां मोटर छोटी लग गई है। 2013 में बना अस्पताल भवन खंडहर पड़ा है। चार आईटीआई सोमेश्वर विधानसभा में खुले थे, तीन बंद हो चुके हैं। राज्यसभा सांसद और सोमेश्वर से पूर्व में विधायक रहे प्रदीप टम्टा का कहना है कि ‘क्षेत्र की विधायक और मंत्री रेखा आर्या के विकास के दावों के विपरीत सोमेश्वर में विकास कहीं ठहर सा गया है। 2002 से 2007 के बीच जो योजनाएं हम स्वीकृत व शुरू करवा कर जहां छोड़ गए थे वो उसी स्थिति में है जबकि 2007 से आज तक इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के वर्तमान मंत्री का ही प्रतिनिधित्व रहा है।’ प्रदीप टम्टा का कहना है कि 2014 में हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने एडिशनल प्राइमरी हेल्थ सेंटर को उच्चीकृत करवा 25 बेड का अस्पताल और 9 डॉक्टरों के पद स्वीकृत करवाए थे लेकिन वर्तमान प्रतिनिधि उसे आगे बढ़ा नहीं सकी।
उन्होंने सौ बेडों की स्वीकृति की घोषणा कर क्षेत्र की जनता को गुमराह करने का प्रयास किया लेकिन जब शासनादेश आया तो वो सिर्फ दस बेड की स्वीकृति का था। इसी प्रकार हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में चमोली के सिमली और अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर में 200 बेड वाले महिला बेस चिकित्सालय का शिलान्यास किया था लेकिन वो भी स्थानीय जनप्रतिनिधि की उपेक्षा की भेंट चढ़ गया, जबकि सिमली का महिला बेस चिकित्सालय बनकर तैयार है। हालांकि उसमें वर्तमान सरकार ने सौ बेड कम दिए हैं। ताकुला का पॉलीटेक्निक बंदी की कगार पर है। प्रदीप टम्टा की मानें तो वे उसका भवन बनवाकर और वहां कई टेªड खुलवाकर गए थे। पॉलीटेक्निक के भवन को भी किसी अन्य विभाग को देने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। ये विडम्बना ही है कि ताकुला उत्तराखण्ड का एकमात्र ऐसा ब्लॉक है जिसका अपने ब्लॉक मुख्यालय से सड़क संपर्क नहीं है। पंडित नारायण दत्त तिवारी की सरकार के समय 6 किलोमीटर का सड़क मार्ग स्वीकृत किया गया था। इस सड़क के धरातल पर उतरने का जनता को बरसों से इंतजार है। तीन किमी सड़क बनी भी। शेष तीन किमी पर वन विभाग ने आपत्ति उठा दी। उसका काम आज तक रूका हुआ है।
आम आदमी पार्टी के हरीश आर्या कहते हैं कि ‘विकास के नाम पर भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप सिर्फ अपनी कमियों को छिपाने के लिए है। इक्कीस सालों से भाजपा-कांग्रेस को ही सोमेश्वर की जनता ने चुना तो विकास न होने की जवाबदेही भी इन दलों की है। प्रदीप टम्टा तो यहां से विधायक, लोकसभा सांसद और अब राज्यसभा सांसद हैं। वह भाजपा की आलोचना कर अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते। रेखा आर्या तो पूरे पांच साल से मंत्री हैं। वे भी क्षेत्र में विकास न होने की जिम्मेदारी और जवाबदेही से बच नहीं सकती।’ 2022 का विधानसभा चुनाव सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती है। खासकर भाजपा और कांग्रेस के लिए। आम आदमी पार्टी का उदय दोनों दलों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बनता नजर आ रहा है। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है उसके सोमेश्वर सीट से दो दावेदार हैं। वर्तमान में राज्यसभा सांसद और चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत के करीबी प्रदीप टम्टा और 2017 में कांग्रेस प्रत्याशी रहे राजेेंद्र बाराकोटी। ‘नशा नहीं, रोजगागार दो’ और चिपको आंदोलन जैसे आंदोलन की तपिश से निकले प्रदीप टम्टा का संघर्ष उन ताकतों के खिलाफ ही था जिनके संरक्षण का आरोप कांग्रेस पर ही लगते रहे थे। आंदोलनकारी ताकतें सिर्फ आंदोलन तक ही सक्रिय रहीं। कालांतर में वो उत्तराखण्ड के राजनीतिक परिदृश्य के हाशिए में चली गईं। लेकिन प्रदीप टम्टा ने मुख्यधारा की राजनीति का विकल्प चुना और वो कांग्रेस में शामिल हो गये।
कांग्रेस के अल्मोड़ा जिलाध्यक्ष रहे राजेन्द्र बाराकोटी भी इस बार पुनः दावेदारों में हैं। हालांकि प्रदीप टम्टा और राजेन्द्र बाराकोटी, दोनों ही हरीश रावत खेमे के माने जाते हैं। इस बीच प्रदीप टम्टा की सोमेश्वर विधानसभा में अचानक सक्रियता को विधानसभा चुनाव में उनकी दावेदारी के तौर पर देखा जा रहा है। फिलहाल कांग्रेस के अंदर विवाद की स्थिति की संभावना न के बराबर है। वैसे प्रदीप टम्टा का पलड़ा भारी है। हरीश रावत के दलित मुख्यमंत्री की इच्छा पर प्रदीप टम्टा सबसे अनुकूल व्यक्ति हैं। यशपाल आर्या और संजीव आर्या की कांग्रेस में वापसी के चलते अपनी टिकट खतरे में देख नैनीताल की पूर्व विधायक सरिता आर्या की नजर भी सोमेश्वर सीट पर है। नैनीताल में एक पत्रकार वार्ता में सरिता आर्या ने पार्टी से मांग की है कि अगर पार्टी उन्हें नैनीताल से टिकट नहीं देती तो किसी अन्य सीट से उन्हें उम्मीदवार बनाया जाए।
भारतीय जनता पार्टी के अंदर रेखा आर्या को बड़ी चुनौती मिलती दिख नहीं रही है। यह अलग बात है कि धरातल पर उनके विरुद्ध भारी एन्टी इन्कमबेन्सी, उनकी राह में कांटे बो सकती है। 2003 में जिला पंचायत सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाली रेखा आर्या वैचारिक रूप से किसी भी राजनीतिक दल के लिए प्रतिबद्ध नहीं रही। परिस्थितियों के अनुसार अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को बदलने वाली रेखा आर्या त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल में सशक्त राज्यमंत्री थीं। बताया जाता है कि गैरसैण को कमिश्नरी का दर्जा देने के मामले में त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए सलाहकारों में से वे भी एक थी। रेखा आर्या का सत्तारूढ़ दलों के साथ रहना एक तरह से उनके आपराधिक पृष्ठभूमि वाले पति गिरधारी लाल साहू को राजनीतिक संरक्षण भी दिलाता है। साहू का लंबा आपराधिक इतिहास रहा है।
बताते हैं कि रेखा आर्या के अधीन मंत्रालयों में गिरधारी लाल साहू का पूरा हस्तक्षेप रहता है। रेखा आर्या का विवादो से लम्बा नाता रहा है। त्रिवेंद्र सरकार में मंत्री बनते ही उन्होंने अपनी हनक दिखानी शुरू कर दी थी जब वो एक सरकारी बैठक में अल्मोड़ा के जिलाधिकारी सविन बंसल से अपने हिस्ट्रीशीटर पति गिरधारी लाल साहू के मुकदमों का स्टेट्स मांग बैठी। जिलाधिकारी के दो टूक जवाब से कुपित रेखा आर्या ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए सविन बंसल और पुलिस अधीक्षक दिलीप सिंह कुंवर का स्थानांतरण करवा दिया था। अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को भी उनके कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा था। अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और अन्य नौकरशाही से उनके विवाद अक्सर सुर्खियों में बने रहते हैं। कांग्रेस और भाजपा के साथ-साथ इस दफे क्षेत्र में आम आदमी पार्टी भी खासी सक्रिय नजर आ रही है। आप से इस बार हरीश आर्या की दावेदारी पक्की है। सोमेश्वर विधानसभा प्रभारी हरीश आर्या को कर्नल कोठियाल सोमेश्वर रैली के दौरान आप पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं।
कुमाऊं केसरी खुशीराम आर्या के नाती हरीश आर्या की समृद्ध राजनीतिक विरासत है। खुशीराम 1946 से 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के नामित और निर्वाचित सदस्य रहे थे। खुशीराम आर्या दलितों के सुधार और उत्थान के लिए अपने सामाजिक योगदान के लिए जाने जाते हैं। हरीश आर्या ने 1996 में जिला पंचायत सदस्य के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था। आर्या ने कमीशन प्रथा के विरोध में जिला पंचायत सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया था जिसके परिणामस्वरूप कई अफसरों की नौकरी गई और कमीशन खोरी पर लगाम लगी। अन्ना आंदोलन से जुड़ने के बाद आर्या आप पार्टी से जुड़े और आम आदमी पार्टी के उत्तराखण्ड राज्य के पहले संयोजक बने। वे आप के फाउंडर सदस्य भी हैं। 2014 में आम आदमी पार्टी से अल्मोड़ा पिथौरागढ़ सीट से लोकसभा का चुनाव भी लड़े।
इस चुनाव में करारी हार के बाद आर्या कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये। सूत्र बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनावों में हरीश रावत ने उन्हें अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट से लोकसभा का टिकट देने का वादा किया था परंतु एन वक्त पर प्रदीप टम्टा टिकट पा गये। उसके बाद उन्होंने खुद को कांग्रेस की राजनीति से किनारा कर लिया था। सोमेश्वर सीट पर चुनावों के दौरान देखना दिलचस्प होगा कि रेखा आर्या अपने दो विधायक कार्यकाल की एन्टी इन्कमबेन्सी का मुकाबला कैसे करती है क्योंकि इस बार उनके लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं है।
पिछले चौदह सालों से भाजपा और वर्तमान प्रतिनिधि ही इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इन चौदह सालों में विकास कहीं ठहर गया है। हम विकास की जिन योजनाओं को शुरू करवाकर गए थे उन्हें भी भाजपा वाले आगे नहीं बढ़ा पाए। हमने विकास की जो नींव 2002 से 2007 के मध्य नारायण दत्त तिवारी के शासनकाल में रखी थी। भाजपा, उसके प्रतिनिधि उसको आगे बढ़ा नहीं पाए। सड़के बदहाल है, सोमेश्वर के अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को हमने स्वीकृत करवा कर 25 बेड की स्वीकृति करवाई थी। 9 डॉक्टर के पद भी स्वीकृत करवाए। वर्तमान विधायक ने सौ बेड के स्वीकृति की अफवाह फैलाकर जनता को गुमराह किया। शासनादेश आया दस बेड का। हमारे 25 बेड की स्वीकृति को 10 बेड में लाकर वो उसे ही अपनी उपलब्धि बता रही है। मेरे कार्यकाल में सोमेश्वर में डिग्री कॉलेज खुला, आईटीआई खुले। आईटीआई तीन तो बंद हो गए, पॉलीटेक्निक बंद होने की कगार पर है। जहां तक दावेदारी का प्रश्न है ये पार्टी का काम है इस पर मेरा बोलना उचित नहीं होगा।
प्रदीप टम्टा, राज्यसभा सांसद एवं पूर्व विधायक सोमेश्वर
पिछले 21 वर्षों में सोमेश्वर विधानसभा की तस्वीर कतई नहीं बदली है। इसके लिए कांग्रेस व भाजपा बराबर के जिम्मेदार हैं। सड़कों की हालत खराब है। जो बन भी रही हैं, उनकी गुणवत्ता आप खुद परख सकते हैं। पेयजल की योजनाएं सिर्फ कागजों की शान बढ़ा रही हैं। जनता पीने के पानी के लिए आज भी नौलों पर निर्भर है। जिस विधानसभा में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक न हो आप जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही का अंदाजा लगा सकते हैं। वर्तमान विधायक तो धनबल पर विश्वास करती है सो उन्होंने पैसा बहाना व दावतें देनी शुरू करवा दी है। लेकिन जनता का भाजपा- कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है। जनता इस बार आम आदमी पार्टी पर अपना विश्वास जताएगी।
हरीश आर्या, आम आदमी पार्टी