रामनगर विधानसभा सीट भाजपा-कांग्रेस के भीतर चल रहे अंदरूनी घमासान का केंद्र बिंदु हो सकती है। यहां से टिकट की चाह रखने वालों में कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष रणजीत रावत की राह में युवा नेता संजय नेगी की दावेदारी टिकट वितरण के समय हरीश रावत और प्रीतम सिंह गुट के बीच भारी विवाद का कारण बन सकती है। भाजपा में संकट नई बनाम पुरानी पीढ़ी का होने के पूरे आसार हैं। वर्तमान विधायक दीवान सिंह बिष्ट खासे अलोकप्रिय होने के चलते बैकफुट पर हैं। युवा नेता इंदर सिंह रावत और राकेश नैनवाल उनकी दावेदारी को चैलेंज करेंगे ही करेंगे। इन दोनों दलों के अलावा आम आदमी पार्टी से शिशुपाल सिंह रावत का मैदान में उतरना चुनावी रण को रोचक बनाने वाला होगा
उत्तराखण्ड राज्य विधानसभा चुनाव की आहट शुरू होते ही राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज हो चुकी हैं। द्वापर युग से अपनी ऐतिहासिकता संजोये नैनीताल जनपद के प्रमुख शहर रामनगर को ‘प्राचीन इन्द्रप्रस्थ’ का हिस्सा माना जाता है। रामनगर विधानसभा क्षेत्र में भी राजनीतिक दलों और दावेदारों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। पौड़ी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली रामनगर विधानसभा सीट के लिए जहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में अपने अंतर्विरोध हैं, वहीं आम आदमी पार्टी को छोड़कर अन्य राजनीतिक शक्तियां अभी पार्श्व में ही हैं। 2000 में उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद अस्तित्व में आई रामनगर विधानसभा सीट के लिए पहला विधानसभा चुनाव 2002 में हुआ। 2002 से 2017 तक हुए पांच विधानसभा चुनावों में तीन बार कांग्रेस और दो बार भाजपा ने इस सीट से विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया है।
2002 में उत्तराखण्ड राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के योगम्बर सिंह रावत ने भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट को हराया था। 2002 में नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्री मनोनीत होने के पश्चात योगम्बर सिंह रावत ने नारायण दत्त तिवारी के लिए सीट खाली कर दी थी। तब रामनगर उपचुनाव में नारायण दत्त तिवारी ने भाजपा के राम सिंह बिष्ट को हराया था। 2007 के विधानसभा चुनाव में दीवान सिंह बिष्ट ने योगम्बर सिंह रावत को हराकर 2002 की पराजय का बदला ले लिया था। 2012 के चुनाव में दीवान सिंह बिष्ट अपनी सीट बरकरार नहीं रख पाए और कांग्रेस की अमृता रावत के मुकाबले सैंतीस सौ वोटों से हार गए। 2017 के चुनाव में समीकरण काफी बदल चुके थे। 2012 में कांग्रेस से चुनी गई अमृता रावत अपने पति सतपाल महाराज के साथ भाजपा में जा चुकी थीं। 2017 में भी भाजपा ने दीवान सिंह बिष्ट पर अपना विश्वास दिखाया, जबकि उस वक्त हरीश रावत सरकार में सर्वशक्तिमान रणजीत रावत रामनगर से चुनाव मैदान में उतरे। रणजीत रावत को रामनगर से प्रत्याशी बनाने का जबर्दस्त विरोध उस वक्त कांग्रेस के अंदर था। कुछ मोदी लहर तो कुछ भीतरघात के चलते रणजीत रावत दीवान सिंह बिष्ट से मुकाबला आठ हजार छह सौ ग्यारह मतों के अंतर से हार गए। जातिगत समीकरणों में ठाकुर बाहुल्य इस सीट पर गढ़वाल क्षेत्र और सल्ट क्षेत्र के लोगों का दबदबा है। मुस्लिम मत भी अच्छी-खासी संख्या में हैं। जातिगत समीकरणों के चलते राजनीतिक दल इस विधानसभा सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी से परहेज करते हैं। राजनीतिक दलों की बात करें तो यहां भाजपा-कांग्रेस के लिए कमोवेश हालात 2017 की तरह ही हैं। दावेदारियां बहुत ज्यादा नहीं, लेकिन आपसी कलह ज्यादा है। सवाल यह है कि इन अंतर्विरोधों के मध्य राजनीतिक दल सामंजस्य बैठाएंगे कैसे? खासकर कांग्रेस के अंदर हरीश रावत-रणजीत रावत फैक्टर काफी प्रभाव डालेगा।
भाजपा-कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों में विधानसभा टिकट के लिए घमासान ज्यादा है। कुछ हद तक पुरानी और नई पीढ़ियों में टकराव है और टकराव ऐसा कि उभरता नया नेतृत्व इस बार कोई समझौता नहीं करना चाहता। कांग्रेस में अभी तक दो मुख्य दावेदारों के नाम सामने आए जिनमें कभी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीबी रहे और अब नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के करीबी या कहें कि उनके रणनीतिक सलाहकार वर्तमान में उत्तराखण्ड के चार कार्यकारी अध्यक्षों में से एक सल्ट से पूर्व विधायक रहे रणजीत रावत का नाम प्रमुख है। 2012 में अपनी परंपरागत सीट सल्ट में भाजपा के सुरेंद्र सिंह जीना से मिली करारी हार के बाद रणजीत रावत ने अपनी राजनीतिक जमीन रामनगर में तलाशनी शुरू कर दी थी। 2017 का विधानसभा चुनाव भी उन्होंने रामनगर से लड़ा, लेकिन पराजित हो गए थे। 2017 के विधानसभा चुनाव तक हरीश रावत की टीम के प्रमुख योद्धा रहे रणजीत रावत आज नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के प्रमुख रणनीतिकार बनकर उभरे हैं। कांग्रेस की प्रमुख नेत्री स्व इंदिरा हृदयेश के जाने के बाद कमजोर पड़ रहे प्रीतम सिंह को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो हरीश रावत के मुकाबले के साथ भविष्य में उनके लिए रणनीतियां बना सके। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद रणजीत रावत ने मुड़कर सल्ट की ओर नहीं देखा और अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे विक्रम रावत को सौंप दी। रणजीत रावत ने रामनगर के कांग्रेस संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत की है। कांग्रेस छोड़कर जाने वाले एक नेता का कहना है कि रामनगर में कांग्रेस अब व्यक्ति विशेष की पार्टी रह गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर पहले हरीश रावत के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन टिकट रणजीत रावत को मिला था। कांग्रेस पार्टी के सूत्र बताते हैं कि 2021 के सल्ट उपचुनाव में पार्टी रणजीत रावत को प्रत्याशी बनाने के पक्ष में थी, मगर रणजीत रावत ने स्वयं के लिए इनकार करते हुए अपने पुत्र के लिए टिकट मांगा था लेकिन हरीश रावत के हस्तक्षेप के बाद टिकट गंगा पंचोली को मिला था।
कांग्रेस के दूसरे दावेदार युवाओं में लोकप्रिय पूर्व ब्लॉक प्रमुख और वर्तमान में रामनगर ब्लॉक के ज्येष्ठ प्रमुख संजय नेगी हैं। 1996 में युवा अवस्था से सक्रिय संजय नेगी 1997 में रामनगर महाविद्यालय छात्रसंघ में सचिव पद के लिए चुने गए। 2003 में कांग्रेस की छात्र ईकाई एनएसयूआई रामनगर के नगर अध्यक्ष मनोनीत हुए थे। 2004 में युवक कांग्रेस नैनीताल की जिला ईकाई के सचिव, 2007 में युवा कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष और 2009 में नैनीताल जिले में युवा कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे। 2014 में सक्रिय रूप से चुनावी राजनीति में ताल ठोंककर रामनगर ब्लॉक प्रमुख चुने गए तथा विकास कार्यों में सक्रिय रहे। वर्तमान में रामनगर ब्लॉक में ज्येष्ठ प्रमुख हैं। पिछले पंचायत चुनाव में रामनगर ब्लॉक से ब्लॉक प्रमुख की सीट महिला आरक्षित थी। बीडीसी चुनाव में उनकी पत्नी भी उम्मीदवार थीं। अगर वो चुनाव जीत जाती तो सम्भवतः रामनगर की ब्लॉक प्रमुख मंजू नेगी होती। संजय नेगी के समर्थकों का आरोप है कि मंजू नेगी को हराने के लिए कांग्रेस के दूसरे गुट ने विपक्षियों का पूरा सहयोग किया था। संजय नेगी समर्थकों का कहना है कि संजय नेगी की 2017 में पुख्ता दावेदारी थी, लेकिन पार्टी ने बाहरी व्यक्ति को टिकट दिया जिसका खामियाजा कांग्रेस को सीट गंवाकर भुगतना पड़ा। वहीं रणजीत रावत समर्थक बाहरी होने के आरोपों को नकारते हुए कहते हैं कि रणजीत रावत जैसे कद को क्षेत्रीय दायरे में बांधकर देखना गलत है और रामनगर में रणजीत रावत को बाहरी कहना हास्यास्पद है। रामनगर सीट में कांग्रेस के लिए प्रत्याशी तय कर पाना आसान नहीं होगा। टिकट की लड़ाई में यहां हरीश रावत और प्रीतम सिंह की खींचतान देखने को मिल सकती है।
जहां तक भाजपा का प्रश्न है तो वर्तमान विधायक दीवान सिंह बिष्ट 2007 में भी भाजपा से विधायक रह चुके हैं। वर्तमान विधायक होने के नाते भाजपा अगर सीटिंग-गेटिंग फार्मूले के तहत टिकट बांटने की प्रक्रिया अपनाती है तो उन्हें पार्टी फिर से प्रत्याशी बना सकती है, लेकिन रामनगर विधानसभा क्षेत्र में समस्याओं का जस का तस रहना उनकी अलोकप्रियता का बड़ा कारण बन चुका है। रामनगर चिकित्सालय को पीपीपी मोड में देना और प्रस्तावित बस अड्डे का मामला अभी तक लम्बित रहना उनके खिलाफ जा सकते हैं। दो बार के विधायक रहे दीवान सिंह बिष्ट काम करने वाले जनप्रतिनिधि की छवि नहीं बना पाए। हालांकि उनका मृदुल एवं कुशल व्यवहार उनका सकारात्मक पक्ष जरूर है। ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में जिस प्रकार उनकी बहू ने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा उससे भी उनकी साख पार्टी में कम हुई है। हालांकि वे स्वयं पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ नहीं गए। जिस प्रकार भाजपा के सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी इस बार 25-30 वर्तमान विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को अवसर दे सकती है वहां पर दीवान सिंह बिष्ट को परेशानी आ सकती है। भाजपा में एक नए युवा चेहरा इंदर सिंह रावत का उभर कर सामने आया है। पूर्व सैनिक इंदर सिंह रावत युवा मोर्चे के पूर्व जिला मंत्री हैं और वर्तमान में सांसद प्रतिनिधि हैं। उनकी पत्नी रेखा रावत ब्लॉक प्रमुख चुनाव में विधायक दीवान सिंह बिष्ट की पुत्र वधू श्वेता बिष्ट को पराजित कर ब्लॉक प्रमुख चुनी गई थी। एक और नाम जो भाजपा की ओर से चर्चाओं में है वो है भाजपा के पूर्व जिलामंत्री राकेश नैनवाल का जिन्हें रामनगर में भाजपा का चाणक्य कहा जाता है। भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य राकेश नैनवाल संगठन में सुनियोजित तालमेल के लिए जाने जाते हैं। केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट के खास माने जाने वाले राकेश नैनवाल की काबिलियत पिछले ब्लॉक प्रमुख चुनावों में दिखी जब उन्होंने रामनगर के विधायक दीवान सिंह बिष्ट की बहू के मुकाबले रेखा रावत को पार्टी की प्रत्याशी घोषित कर चुनाव जितवाकर अपनी रणनीति का लोहा मनवाया था। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में पार्टी ने उन्हें चुनाव-प्रचार के लिए भेजा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे भुवन चंद्र खण्डूड़ी और 2019 के लोकसभा चुनावों में तीरथ सिंह रावत के चुनाव संयोजक रहे। भाजपा से ही दिनेश महरा की दावेदारी की भी चर्चा है। सल्ट विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले दिनेश महरा रामनगर विधानसभा क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। दिनेश महरा सल्ट में कांग्रेस के रणजीत रावत के खिलाफ राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे हैं और सल्ट में भाजपा को मजबूत करने का श्रेय दिनेश महरा और गणेश महरा बंधुओं को जाता है। 2012 में सल्ट विधानसभा से मजबूत दावेदार दिनेश महरा ने सुरेंद्र सिंह जीना को जिताने के लिए अपनी दावेदारी छोड़ दी थी। त्रिवेंद्र सरकार में दर्जा राज्यमंत्री रहे दिनेश महरा भी रामनगर विधानसभा क्षेत्र से मजबूत दावेदारों में हैं।
भाजपा-कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखण्ड क्रांति दल, सपा सहित कई पार्टियां हैं। आम आदमी पार्टी से इस बार कांग्रेस छोड़कर आप में गए शिशुपाल सिंह रावत की एकमात्र दावेदारी है। 2003 विधानसभा चुनाव में बुराड़ी से निर्दलीय चुनाव लड़े शिशुपाल सिंह रावत 2005 में उत्तराखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री टीपीएस रावत के जिला प्रतिनिधि रहे हैं। युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष और पौड़ी जिले की कांग्रेस जिला कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष और प्रदेश सचिव रहे शिशुपाल रावत लैंसडॉन से 2012 का चुनाव बसपा प्रत्याशी के रूप में लड़ चुके हैं। 2013 में रामनगर मंडी समिति के सभापति रहे शिशुपाल सिंह रावत हाल ही में कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे। उनका मानना है कि रामनगर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नहीं एक आदमी की पार्टी होकर रह गई है। ऐसे में उन्हें आप पार्टी ही बेहतर विकल्प दिखी। उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी पिछली बार भी विधानसभा चुनाव के मैदान में थे। लेकिन जितना संघर्ष वो क्षेत्र में जनता की समस्याओं के लिए करते दिखते हैं जनता ऐन चुनाव के वक्त उनके इन संघर्षों को भूल जाती है। पिछले चुनावों में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी रामनगर में कोई बड़ी शक्ति के रूप में उभर नहीं पाई है लेकिन अपनी संघर्ष की जिजीविषा दिखाते हुए प्रभात ध्यानी इस बार सम्भवतः फिर से 2021 में विधानसभा प्रत्याशी होंगे। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी राजीव अग्रवाल 10766 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। हालांकि ये वोट बसपा का न होकर राजीव अग्रवाल का व्यक्तिगत वोट माना गया था। इस बार राजीव अग्रवाल तटस्थ हैं। बहुजन समाज पार्टी से अभी कोई नाम उभर कर सामने नहीं आया है। उत्तराखण्ड क्रांति दल से किसी नए प्रत्याशी के नाम की चर्चा नहीं है। 2022 के विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों का चयन रामनगर विधानसभा क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पार्टियों के भविष्य का रुख तय करेगा। क्या भाजपा के अंदर नए चेहरे को जगह देकर पीढ़ीगत बदलाव होगा? और कांग्रेस में फिर वही पुरानी रार देखने को मिलेगी? फिर रामनगर की जनता कांग्रेस- भाजपा से इतर किसी अन्य दल के प्रत्याशी को अपना विधायक चुनेगी? इन सभी प्रश्नों का उत्तर भविष्य के गर्भ में है।
उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी पूरी ताकत के साथ 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी। रामनगर में जिसको भी प्रत्याशी बनाया जाएगा पार्टी उसे मजबूती से चुनाव लड़वाएगी।
प्रभात ध्यानी, नेता उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी
भाजपा से 2022 के चुनाव में मेरी सशक्त दावेदारी है। पार्टी मुझे टिकट देती है तो मैं पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। पार्टी को निर्णय करना है कि वो किसे प्रत्याशी बनाती है और पूरी पार्टी उसे मनोयोग से चुनाव में लड़वाएगी।
इंदर सिंह रावत, युवा नेता भाजपा
पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता हूं। लम्बे समय तक पार्टी की सेवा की है। कई बार अपनी महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार कर पार्टी द्वारा नए प्रत्याशियों के लिए कार्य किया है और उन्हें जिताने में पूरी मेहनत की है। लम्बे समय से रामनगर विधानसभा में सक्रिय हूं। जाहिर तौर पर मैं दावेदार हूं।
दिनेश महरा, पूर्व दर्जाधारी मंत्री भाजपा
2022 के विधानसभा चुनाव के लिए मैं मजबूती से अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर रहा हूं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी मेरी मजबूत दावेदारी थी किन्हीं कारणवश मुझे टिकट नहीं मिल पाया। कांग्रेस के संगठन का वृहद अनुभव है। ब्लॉक प्रमुख रह चुका हूं। वर्तमान में ज्येष्ठ प्रमुख हूं। रामनगर विधानसभा क्षेत्र के अधिकांश ग्राम प्रधानों से लेकर चुने जनप्रतिनिधियों तक का मुझे समर्थन है। कांग्रेस पार्टी मुझे प्रत्याशी बनाती है तो मैं निश्चित ही कांग्रेस के खाते में रामनगर विधानसभा सीट डालकर एक सीट बढ़ाने का काम करूंगा।
संजय नेगी, पूर्व ब्लॉक प्रमुख एवं वर्तमान ज्येष्ठ प्रमुख
मेरी दावेदारी निश्चित है। उत्तराखण्ड की जनता बदलाव चाहती है और आम आदमी पार्टी जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप बेहतर विकल्प उपलब्ध कराएगी।
शिशुपाल सिंह रावत, नेता आम आदमी पार्टी
मैं लम्बे समय से पार्टी में पूर्णकालिक हूं। एक गरीब परिवार से आया व्यक्ति हूं। ग्राम प्रधान से मैंने अपने राजनीतिक जीवन की यात्रा शुरू की। पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने युवाओं को सकारात्मक संदेश दिया है। आशा है विधानसभा चुनाव में पार्टी युवाओं को प्रतिनिधित्व दे उनकी ऊर्जा का इस्तेमाल पार्टी को भविष्य में मजबूत बनाने में करेगी। मेरी दावेदारी 2017 के चुनाव में भी थी, इस बार भी मैं मजबूती से अपनी दावेदारी रख रहा हूं बाकी तो पार्टी का निर्णय जो भी होगा वो सभी को स्वीकार होगा।
राकेश नैनवाल, सदस्य प्रदेश कार्यकारिणी भाजपा
पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं, जिसे पार्टी की आंतरिक रार कहा जा रहा है, वह रार बिल्कुल भी नहीं है। यह पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र है। हम कांग्रेस हैं। इस देश का संविधान ही हमारी आत्मा है। संविधान अभिव्यक्ति की आजादी देता है। इसी तरह हमारी पार्टी में भी सभी को अपनी बात रखने का मौका दिया जाता है। यहां भाजपा की तरह ‘मार्शल लॉ’ नहीं है, जहां दो लोग ही बोलेंगे, दो लोग जो कहेंगे वही होगा। जहां तक बात रही हरीश रावत जी से मेरे संबंधों की तो मैं एक प्रश्न उन लोगों से पूछना चाहता हूं जो लोग हमारे आपसी संबंधों लेकर सवाल उठाते हैं कि मैंने 35 साल अपने जीवन का या यूं कहूं अपनी पूरी जवानी उनके साथ सहयोग में लगाई है तो उसका क्रेडिट ये लोग क्यों नहीं देते या ये चीज क्यों नहीं देखते। देखिए मैं कई बार कह चुका हूं कि प्रीतम सिंह, किशोर उपाध्याय, रणजीत रावत, सब हरीश रावत जी के ही टीम के लोग हैं। उदाहरण दे रहा हूं कि देखिए अगर कोई सहयोगी, मेरे साथ पहले था अब नहीं है तो वो मेरी असफलता है। मैंने पार्टी से रामनगर विधानसभा टिकट की मांग की है। पार्टी में लोकतांत्रिक रास्ता अपनाया जाता है, सर्वे चल रहा है, पीसी बैठेगी, स्टैडिंग कमेटी बनेगी तब निर्णय होगा। जो पार्टी तय करेगी वह सबको मानना है, लेकिन जहां जब हमसे सुझाव, विचार, मत मांगा जाएगा तो वह भी दिया जाएगा, क्योंकि हम सब एक लोकतांत्रिक पार्टी के सदस्य हैं।
रणजीत रावत, कांग्रेस प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष