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Uttarakhand

‘‘भैजी कख छा हमारी ग्रीष्मकालीन राजधानी’’ सवाल से मुख्यमंत्री पर भारी दबाब

देहरादून। गैरसैंण का मुद्दा प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर उभर कर सामने आ चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने साफ कर दिया है कि 2022 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई तो गैरसैंण को राजधानी बनाएगी। यही नहीं हरीश रावत ने यह भी साफ किया है कि 2024 तक गैरसंैण को पूरी तरह से राजधानी के तौर पर स्थापित कर दिया जाएगा। हरीश रावत के इस नए दांव से प्रदेश भाजपा संगठन असहज दिखाई देने लगी है। भाजपा हरीश रावत को छपास रोगी और मीडिया में रहने की ललक बताकर उनके नए दांव को हल्का करने का प्रयास कर रही है। साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर भी हरीश रावत के नए दांव की तपिश का असर देखने को मिल रहा है। सरकार हरीश रावत के दांव की काट के लिए कोई बड़ा फैसला ले सकती है। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गैरसैंण में ध्वजारोहण कर हरीश रावत को जवाब दे सकते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा प्रदेश सरकार के घोषित ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसेंैण की यात्रा पर निकले हैं। उनका कहना है कि सरकार गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया है औेर इसका नोटिफिकेशन भी निकाला है। लेकिन आज तक न तो गैरसेैंण में विधानसभा का कोई बोर्ड लगाया गया है और न ही इतने महीनों बाद भी राजधानी के नाम पर कोई काम यहां किया गया है।

हरीश रावत द्वारा गैरसेैंण में ही गढ़वाली बोली में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर तंज कसते हुए पूछा है कि ‘‘भैजी कख छा हमारी ग्रीष्मकालीन राजधानी’’। गढ़वाली शैली में पूछे गए सवाल से प्रदेश की राजनीति में खासी गरमाहट दिखाई देने लगी है। उनका कहना है कि सितंबर तक ग्रीष्मकाल माना जाता है औेर इस पूरे समय में सरकार ने गैरसैंण को लेकर कोई काम तक नहीं किया, केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा और नोटिफिकेशन कर चुप्पी साध कर बैठ गई है।

अब गैरसेैंण एक बार फिर प्रदेश की राजनीतिक पटल पर तेजी से उभर चुका है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो हरीश रावत के इस नए दांव से प्रदेश सरकार औेर भाजपा संगठन बुरी तरह हिल चुका है। माना जा रहा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस गैरसैंण के मुद्दे पर मतदाताओं में अपना स्थान बनाने में जुट गई है, जबकि भाजपा के लिए अब कोई बड़ा राजनीतिक फैसला लेना अति महत्वपूर्ण हो चुका है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश सरकार खास तौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की राजनीति पर ही इसका सबसे बड़ा असर पड़ सकता है। मुख्यमंत्री द्वारा अचानक ही गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने की घोषणा की थी, जबकि इसके लिए न तो सरकार ओैर न ही संगठन से कोई बात की गई थी। अचानक ही उन्होंने सदन में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने की घोषणा कर सभी को चैंका दिया।

एक तरह से यह मुख्यमंत्री का व्यक्तिगत निर्णय था जिसका बड़ा असर देखने को मिला। मुख्यमंत्री की छवि और उनकी पहाड़ प्रेम को लेकर उनके पक्ष में तमाम तरह के कसीदे पढ़े गए और और उन्हें मुख्यमंत्री माना गया जिसने वर्षों पुराने मुद्दे को हल करने का सफल प्रयास किया। भाजपा संगठन भी मुख्यमंत्री के समर्थन में आ गया, जबकि चर्चाएं तो यहां तक थी कि स्वयं सरकार औेर संगठन के भीतर कई ऐसे स्वर भी उठे थे जो इस निर्णय से खुश नहीं थे। लेकिन राजनीतिक तौर पर इसका बड़ा फायदा देखते हुए भाजपा इस घोषणा को हाथोंहाथ लिया। इसे सरकार ओैर मुख्यमंत्री की एक बड़ी पहल बताकर कांग्रेस पर जबरदस्त नैेतिक बढ़त हासिल करने में कमयाब रही।

कांग्रेस भी मुख्यमंत्री के निर्णय को लेकर खासी असहज दिखाई देने लगी और राजनीतिक तौर पर इस मुद्दे को अपने पक्ष में करने के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों द्वारा गैरसेंैण में किए गए कामों का जमकर प्रचार करने लगी। चाहे वह विधानसभा भवन निर्माण की बात हो या पहली बार कैबिनेट बैठक होने की बात, कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के इस नए दांव से अपने को झुलसने से बचाने का भरपूर प्रयास किया। कांग्रेस को भी जमकर समर्थन मिला और जनकारांे ने इसे राजधानी बनने की दिशा में एक बड़ी पहल बताकर भविष्य में गैरसेंैण को स्थायी राजधानीबनाए जाने की संभावनाओं के तौर पर भी देखा जाने लगा।

                       

गैरसैंण को लेकर भाजपा में उठे विरोध के स्वर को लेकर राजनीतिक जानकारों का मानना था कि सरकार और संगठन में गैरसैंण के चलते जो विरोध के दबे स्वर उभर रहे थे वे इसकी टाइमिंग को लेकर ही नाराज थे। उनका मानना था कि 2022 के विधानसभा चुनाव से बहुत पहले ही इस तरह की घोषणा का राजनीतिक लाभ बरकरार नहीं रखा जा सकता। मतदाताओं के मन में इस घोषणा का बड़ा असर बना हुआ है, वह आगे भी बरकरार रहेगा या नहीं इस पर कोई कह नहीं सकता। संभवतः यह बात राजनीेतिक तौर पर सही भी मानी जा सकती है क्योंकि इसी के चलते त्रिवेंद्र रावत सरकार की घोषणा के बाद हालातों को कांगे्रस अपने पक्ष में पलटने के लिए ही गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की बात कह चुकी है। हरीश रावत ने इसी संभावनाओं को भांपते हुए घोषणा कर दी कि 2022 में कांग्रेस की सरकार आती है तो कांग्रेस गैरसैंण को पूर्ण राजधानी बनाएगी और 2024 तक गैरसैंण प्रदेश की राजधानी के तोैर पर स्थापित हो जाएगा।

अब सरकार और संगठन पर हरीश रावत के इस नए दांव की कांट करने का भारी दबाव बन चुका है। इस मामले में कांग्रेस की नैतिक बढ़त रोकने के लिए तमाम तरह के तर्क देने लगा है। इसमें हरीश रावत को कांग्रेस में कमजोर और छपास रोगी होने, किसी भी तरह से चर्चाआंे में रहने की बात कहकर मामले को हल्का करने में लगा हुआ है, जबकि चर्चा है कि भाजपा और संगठन के पास इसकी काट करने के लिए कोई ऐसा मुददा नहीं है जो गैरसैंण पर भाजपा और प्रदेश सरकार की नैतिक बढ़त को विधानसभा चुनाव में बरकरार रखा जा सके।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो भले ही सरकार गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई हो, लेकिन सबसे बड़ा सवाल आज भी यही है कि पूर्ण और स्थायी राजधानी कहां है। क्योंकि देहरादून तो आज भी अस्थाई राजधानी ही है। ग्रीष्मकालीन राजधानी का तो अस्तित्व सामने आ चुका हैे, लेकिन 20 वर्षों में आज भी स्थायी राजधानी सामने नहीं आ पाई है। कांग्रेस इसी बात को लेकर 2022 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के बीच जाने वाली है जिसमें सराकार और संगठन कमजोर साबित हो सकता है।

इसके अलावा हरीश रावत के गैरसैंण को पूर्ण राजधानी बनाने की घोषणा से भी अब सरकार और भाजपा पर भारी दबाव बन चुका है जिसकी काट के लिए संगठन और सरकार लगातार विचार कर रहे हैं। हो सकता है जल्द ही सरकार इसके लिए गैरसैंण में निर्माण आदी पर खास ध्यान दे या फिर गैरसैंण को लेकर कोई नया रुख सामने रख सकती है। माना तो यह भी जा रहा है कि स्वतंत्रता दिवस के दिन स्वयं मुख्यमंत्री गैरसैंण में घ्वजारोहरण कर कोई न कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं।

फिलहाल उत्तराखण्ड के लिए सुखद बात यह है कि भले गैरसेैंण प्रदेश की राजनीति के केंद्र में केवल नारों और वोटों तक ही सीमित रहा हो लेकिन अब गैरसैंण प्रदेश की राजनीति में सबसे बड़े जो कि सीधे मतदाताओं को प्रभावित करता हो ऐसे मुद्दे के तौर पर बनकर उभर चुका है। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा संगठन और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत इस नए उभर चुके मुद्दे को किस तरह से अपने पक्ष में बरकरार रख पाते हैं। साथ ही कांग्रेस को भी देखना होगा कि कमजोर विपक्ष होने के साथ ही वह इस मुद्दे को अपने पक्ष में कब तक बरकरार रख पाती है, क्यांेकि यह भी माना जा रहा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में हर हाल में जीत पक्की करने के लिए हो सकता है कि गैरसेैंण पूर्ण राजधानी के तौर पर चुनाव से पहले ही सामने आ सकता है।

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