गंगा हमेशा से जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी मानी गई है। यह 2 हजार 525 किलोमीटर लंबी गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक बहती है। लगातार प्रदूषण ने इसे खासा नुकसान पहुंचाया है। जो गंगा कभी एकदम साफ थी, वह अब गंदी नजर आने लगी है। इसे फिर से पावन और निर्मल करने के प्रति केंद्र सरकार खासी गंभीर है। वर्ष 2014 में ‘नमामि गंगे’ परियोजना को इसी उद्देश्य से लाया गया। इस परियोजना के तहत पांच राज्यों में 344 प्रोजेक्ट बनाए गए। जिनमें से 35 प्रोजेक्ट उत्तराखण्ड में शुरू हुए। गंगा की सहायक नदियों में आज भी कार्य जारी है। जबकि सरकार द्वारा दावा किया जा रहा है कि उत्तराखण्ड में 35 में से 32 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं। देखने में आ रहा है कि आज भी कई गंदे नाले ऐसे हैं जो गंगा में प्रवाहित किए जा रहे हैं। इससे गंगा की पवित्रता पर सवाल बरकरार है
करोड़ों सनातन धर्म के मतावलंबियों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल करने के लिए बड़ी-बड़ी परियोजनाएं चलाई गईं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक हर किसी ने गंगा नदी को प्रदूषण से मुक्त करके निर्मल करने का बीड़ा उठाया है। इन परियोजनाओं में अरबों रुपए अभी तक खर्च हो चुके हैं लेकिन गंगा की हालत आज भी जस की तस बनी हुई है। उत्तराखण्ड में भी पूर्व में निशंक सरकार द्वारा गंगा और इसकी सहायक नदियों को स्वच्छ रखने के लिए ‘स्पर्श गंगा’ कार्यक्रम चलाया गया था जिसमें करोड़ों रुपए खर्च किए गए। प्रसिद्ध अभिनेत्री और भाजपा सांसद हेमा मालिनी को इसका ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया था। इस कार्यक्रम से विश्वविद्यालयों के साथ ही राज्य के विद्यालयों के छात्रों को भी इससे जोड़ा गया लेकिन इससे ज्यादा कुछ और नहीं हो पाया।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने देहरादून -रिस्पना नदी को स्वच्छ रखने के लिए ‘रिस्पना से ऋषिपर्ण’ कार्यक्रम चलाया। रिस्पना नदी के उद्गम स्थल से लेकर दीप नगर तक दो लाख पौधे लगाए जाने का दावा किया गया। हकीकत में देखे तो आज रिस्पना के हालात पहले से भी बदतर हो चले हैं। गौर करने वाली बात यह है कि कुछ वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री मोदी के पसंदीदा ‘मन की बात’ कार्यक्रम में दीप नगर की एक बालिका द्वारा रिस्पना नदी पर हो रहे प्रदूषण के निराकरण के लिए पत्र लिखा गया था। इसके बाद सरकारी अमला हरकत में तो आया लेकिन बैठकें और मीटिंग करके ही शांत बैठ गया। यही रिस्पना नदी विंदाल नदी के साथ मिलकर सुसवा नदी के रूप में सौंग नदी से मिलती हुई सीधे गंगा में गिरती है। जिससे गंगा नदी भी प्रदूषित हो रही है। अब नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत इन नदियों के उद्धार के लिए करोड़ों की योजनाएं आरंभ हो रही हैं तो ऐसे में उम्मीद लगाई जाने कि मोदी सरकार का यह ड्रीम प्रोजेक्ट मूर्त रूप से धरातल पर उतरेगा और गंगा तथा इसकी सहायक नदियों को स्वच्छ और निर्मल करेगा।
विभागीय अधिकारियों की माने तो स्वर्गाश्रम, नीलकंठ, श्रीनगर, श्रीकोट गंगानाली और रूद्रप्रयाग, बदरीनाथ, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, जोशीमठ तथा टिहरी जिले में मुनी की रेती,
तपोवन, ढालवाला तथा उत्तरकाशी के ज्ञानसू, नैनीताल के रामनगर, देहरादून जिले के ऋषिकेश-देहरादून में सीरेजस स्टिस्टम, सीरेज पम्पिंग स्टेशन और नालों की टैपिंग योजनाएं चलाई जा रही है। हरिद्वार के जगजीतपुर और सराई में भी यही योजना चलाई जा रही हैं। इन सभी नगरों- उपनगरों में गंगा में गिरने वाले प्रदूषित सभी चिन्ह् 61 नालों को इंटर सैप्शन एवं डाईवर्जन द्वारा परिशोधन करने के लिए टैप करके 140 एमएलडी क्षमता के 34 एसटीपी यानी सिवरेज ट्रीटमेंट सिस्टम से जोड़कर शोधित किया जा रहा है। साथ ही 15 प्राथमिक शहरों में नमामि गंगे के अंतर्गत विकसित सीवरेज शोधन क्षमता के सापेक्ष लक्षित कुल हाउस होल्ड में से लगभग 99 प्रतिशत होल्ड सीवर लाइन से जोड़े जा चुके हैं।
गंगा नदी से जुड़ने वाली सहायक नदियों को भी इस कार्यक्रम में शामिल किया गया है। कई ऐसे नदी-नाले हैं जो सीधे तौर पर गंगा नदी से नहीं जुड़ते लेकिन सहायक नदियों से जुड़े होते हैं। उनको भी स्वच्छ करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे कार्यक्रम से जोड़ा गया है जिसमें कुमाऊं में ऊधमसिंह नगर जिले के भेला, ढेला, किच्छा, कोसी, नंधौर एवं पिलखर नदियों के पुनरूद्धार के लिए इस योजना में शामिल किया गया है। इसके लिए 199 ़36 करोड़ की लागत की परियोजनाओं पर काम चल रहा है जिसमें 17 प्रदूषित नालों को इंटर सैप्शन एवं डाईवर्जन कर 30-30 एमएलडी क्षमता के 9 सीवरेज ट्रीटमेंट सिस्टम से जोड़कर शोधित करने की योजना है। इसके अलावा रूद्रप्रयाग के गौरीकुंड और तिलवाड़ा में प्रदूषित जल परिशोधन के लिए 23 ़37 करोड़ की लागत से आईएलडी एवं 22 केएलडी की क्षमता के 5 एसटीपी की परियोजना स्वीकृत की गई है।
इसी तरह से देहरादून की सुसवा नदी में प्रदूषण नियंत्रण के लिए 78 ़99 करोड़ की आईएलडी एवं 15 केएलडी की क्षमता की एसटीपी परियोजना को भी स्वीकृति मिल चुकी है। यही की रिस्पना और बिंदाल नदियां में 177 नाले मिलते हैं। जिनमें देहरादून जैसे विशाल महानगर का हजारों टन कूड़ा-करकट और प्रदूषित पानी होता है, को टैप कर दिया गया है लेकिन दौड़वाला क्षेत्र से सुसवा नदी में प्रदूषित पानी गिरता है जो सौंग नदी से होते हुए गंगा नदी में समाहित होता है। इसके लिए सुसवा नदी के लिए एसटीपी परियोजना को स्वीकृति दी गई है।
गंगा और इसकी सहायक नदियों के तटों पर बसे नगरों में 295 ़85 लाख की लागत से 24 स्नान घाटों और 26 मोक्षधाम यानी श्मशान घाटों का भी निर्माण किया गया है। जिनमें चमोली जिले के बदरीनाथ धाम, पौड़ी जिले के यमकेश्वर, हरिद्वार के चंडीघाट और ऊधमसिंह नगर में भी मोक्षधाम और स्नान घाटों का निर्माण उत्तराखण्ड और भारत सरकार के उपक्रम वैप्काफस लिमिटेड द्वारा विकसित किया जा रहा है। हरिद्वार के जगजीतपुर में 68 एमएलडी क्षमता के एसटीपी से शोधित जल का पुनः उपयोग करके हरिद्वार में ही 1200 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई के लिए जल उपलब्ध करवाया जा रहा है।