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प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेजों में अगले सत्र से एमबीबीएस की पढ़ाई अंग्रेजी के साथ हिंदी माध्यम से भी होगी। इसके लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। समिति मध्य प्रदेश सरकार के मेडिकल कॉलेजों में लागू एमबीबीएस के हिंदी पाठ्यक्रम का अध्ययन कर उत्तराखण्ड के लिए नए पाठ्यक्रम का प्रारूप तैयार कर रही है। जबकि प्रदेश का माध्यमिक शिक्षा विभाग ऐसा है जो अभी कुछ विषयों में अंग्रेजी का मोह त्यागने को तैयार नहीं। हालांकि अंग्रेजी का यह मोह ज्यादा पुराना नहीं है। 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने कक्षा 6 से 10 तक विज्ञान वर्ग में अंग्रेजी की अनिवार्यता का आदेश दिया था। यह आदेश उन छात्रों के लिए ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ साबित हुआ जिन्होंने हिंदी को ही अब तक प्राथमिकता दी थी। ‘दि संडे पोस्ट’ ने इस बाबत 4 जुलाई को एक समाचार प्रकाशित किया जिसमें छात्रों के साथ ही अध्यापकों की अंग्रेजी अध्ययन में आ रही समस्याओं को सरकार के समक्ष रखा गया। इसके बाद विद्यालयी शिक्षा निदेशालय ने 27 जुलाई को विज्ञान वर्ग में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने और आगे से यह परीक्षा अंग्रेजी के साथ ही हिंदी में कराने को प्रदेश के सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियां को आदेश दिए। लेकिन निदेशालय के आदेशों का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। अधिकतर सीईओ ने मनमानी कर कहीं हिंदी तो कहीं अंग्रेजी में परीक्षा कराई। इससे उन छात्रों का भविष्य दांव पर लग गया है जिन्होंने परीक्षा की तैयारी हिंदी में की और उनका पेपर इंग्लिश में आया

विषयः कक्षा 3 से 12 तक विज्ञान विषय के पठन-पाठन के संबंध में
उपरोक्त विषयक अवगत कराना है कि वर्तमान में शासनादेश संख्या 403 दिनांक 23 अगस्त 2017 के द्वारा कक्षा 3 से क्रमशः रूप से अंग्रेजी माध्यम से विज्ञान विषय का अध्ययन कराए जाने का प्राविधान है। इस संबंध में विभिन्न स्तर से प्राप्त फीडबैक से ज्ञात हुआ है कि विज्ञान विषय को अंग्रेजी माध्यम से पठन-पाठन में कठिनाई उत्पन्न हो रही है। दिनांक 22 जून 2022 की विभागीय समीक्षा-बैठक में विज्ञान विषय को अंग्रेजी माध्यम से अध्यापन कराए जाने से हो रही कठिनाई पर व्यापक विचार-विमर्श के उपरांत निर्णय लिया गया है कि शासन की स्वीकृति उपरांत विज्ञान विषय को अंग्रेजी व हिंदी दोनों माध्यमों से अध्ययन कराया जाए। अतः निर्देशित किया जाता है कि विद्यालय विज्ञान विषय को अंग्रेजी हिंदी माध्यम में अध्यापन कराने हेतु आवश्यक कार्रवाई करे। साथ ही कार्रवाई से महानिदेशालय को भी अवगत कराए।

 


शिक्षा निदेशालय द्वारा चारह माह पूर्व दिया गया आदेश

27 जुलाई 2022 को उक्त पत्र उत्तराखण्ड के विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने प्रदेश के समस्त मुख्य शिक्षा अधिकारियों को लिखा था। यह आदेश उस समय दिया गया जब पूरे प्रदेश के विद्यालयों से कक्षा नौ और दस में विज्ञान वर्ग में अनिवार्य रूप से अंग्रेजी पढ़ाए जाने का विरोध हो रहा था। विरोध करने वाले छात्रों का कहना था कि उन्हें अंग्रेजी में विज्ञान विषय को पढ़ने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके चलते विज्ञान विषय को अंग्रेजी की बजाए हिंदी में पढ़ाने की
स्वीकृति दी जाए। छात्रों की इस मांग को राजकीय शिक्षक संघ ने मुख्य मुद्दा बनाते हुए शिक्षा विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। यही नहीं बल्कि अध्यापक वर्ग भी दबे मन से विज्ञान वर्ग को अंग्रेजी में पढ़ाने के खिलाफ थे।

इसके बाद 27 जुलाई 2022 को शिक्षा महानिदेशालय से उक्त निर्णय लिया गया था। लेकिन महानिदेशालय को क्या पता था कि 4 माह बाद भी उनके आदेश पूरी तरह लागू नहीं हो पाएंगे। अभी भी बहुत से स्कूलों में पुराने पैटर्न पर ही शिक्षा व्यवस्था चलाई जा रही है। विज्ञान वर्ग की अंग्रेजी में अनिवार्यता को खत्म करने के बाद भी कई जिलों के मुख्य शिक्षा अधिकारी अभी भी अपनी मनमानी कर रहे हैं। वह विज्ञान वर्ग की परीक्षा हिंदी की बजाय अंग्रेजी में करा रहे हैं। हालांकि कुछ जनपदों में मुख्य शिक्षा अधिकारियों ने हिंदी और अंग्रेजी दोनों को परीक्षा में विकल्प के तौर पर रखा है। लेकिन सवाल उन स्कूलों के हजारों छात्रों का है जिन्होंने विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक के 4 माह पहले आदेश हो जाने के बाद विज्ञान वर्ग को हिंदी में पढ़ना शुरू कर दिया था। तब उन्हें पूरी उम्मीद थी कि आगामी अर्द्धवार्षिक परीक्षा में इस विषय की परीक्षा हिंदी में ही होगी। लेकिन उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब गत् 1 नवंबर को कक्षा 9 और 10 का परीक्षा पेपर हिंदी की बजाए अंग्रेजी में उनके सामने रखा गया। एक बारगी अध्यापकों को भी यकीन नहीं हुआ। क्योंकि उन्हें बताया जा चुका था कि अर्द्धवार्षिक परीक्षा हिंदी में ही होगी जिसके बाद उन्होंने अपने छात्रों को विज्ञान वर्ग की पढ़ाई हिंदी में करानी शुरू कर दी थी। बावजूद इसके वह विज्ञान वर्ग की परीक्षा अंग्रेजी में कराने को मजबूर हो गए। इससे छात्रों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गए हैं। जबकि इससे पहले 21 अक्टूबर को कक्षा 6 से 8 तक के विज्ञान विषय की परीक्षा भी अंग्रेजी में कराई गई। इस बात की पुष्टि अल्मोड़ा जिले के अधिकतर अध्यापक कर रहे हैं।

इस बाबत अल्मोड़ा के जिला राजकीय संघ ने तो प्रदेश के विद्यालयी शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर अपना विरोध भी जताया है। राजकीय शिक्षा संघ अल्मोड़ा के अध्यक्ष भारतेन्दु
जोशी ने अपने पत्र में छात्रों के इस दर्द की पूरी दास्तान लिखी है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि गत् दिनों अर्द्धवार्षिक परीक्षा के पेपर केवल अंग्रेजी माध्यम से प्राप्त होने के चलते छात्रों का मनोबल क्षीर्ण हुआ है। साथ ही हिंदी अनुवाद में समय की हानि भी हुई।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृह क्षेत्र खटीमा के इंटर कॉलेज की एक अध्यापिका एकता रस्तोगी ने भी इस मामले में आपबीती के दौरान ऐसे ही कड़वे अनुभव से गुजरने की बात कही है। एकता रस्तोगी ने उधम सिंह नगर के मुख्य शिक्षा अधिकारी को इस बाबत बकायदा पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने कहा है कि 27 जुलाई 2022 को विद्यालयी शिक्षा निदेशालय की तरफ से यह आदेश मिल जाने के बाद कक्षा 9 और 10 में हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यमों में परीक्षा होगी तो उन्होंने अपने छात्रों को हिंदी में विज्ञान वर्ग को पढ़ाना शुरू कर दिया था। पूरे चार महीने विज्ञान को हिंदी में पढ़ने के बाद जब परीक्षा पेपर केवल अंग्रेजी में आया तो उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। उन्होंने आगामी वार्षिक परीक्षा में विज्ञान विषय के परीक्षा पेपर को द्विभाषी स्वरूप में उपलब्ध कराने की अपील की है।

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की जद्दोजहद के बीच पांच वर्ष पूर्व त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के द्वारा एक आदेश जारी हुआ था, जो अब कई शिक्षकों के लिए गले की फांस बन गया है, तो वहीं छात्रों के लिए इस आदेश


आदेशों का पूरी तरह नहीं हुआ पालन तो राजकीय शिक्षक संघ ने शिक्षा विभाग को लिखा पत्र

के तहत पढ़ाई करना भी किसी मुश्किल हालतों से सामना करने जैसा है। तब शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई एनसीईआरटी पुस्तकों के माध्यम से होने का निर्देश था। लेकिन इसी आदेश में एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि कक्षा 6 से छात्रों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ाया जाएगा। कक्षा 6 से शुरू हुआ यह सिलेबस अब कक्षा 10 तक जा पंहुचा है जहां अंग्रेजी में विज्ञान विषय पढ़ाया जा रहा है। लेकिन इस सिलेबस के तहत न केवल छात्रों को बल्कि अध्यापकों को भी असहज होना पड़ रहा है। अंग्रेजी में विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए शिक्षकों को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। इससे शिक्षकों के सामने ऊहापोह की स्थिति है। वे सरकार से यह भी मना नहीं कर सकते हैं कि वे अंग्रेजी में विज्ञान नहीं पढ़ा सकते हैं तो दूसरी तरफ वे छात्रों को भी इस विषय में अंग्रेजी में निपुण करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं। राजकीय विद्यालयों में विगत वर्षों के विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाने के अनुभव भी उत्साहवर्धक नहीं रहे। खास बात यह है कि इस विषय के छात्र ज्यादातर अनुत्तीर्ण हो रहे हैं जो सरकार के लिए चिंता का विषय है।

शिक्षकों का कहना है कि दसवीं में जब अंग्रेजी अनिवार्य विषय नहीं है, ऐसे में विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाए जाने की व्यवस्था ठीक नहीं है। इससे खासकर हिंदी से हाईस्कूल करने वाले छात्र-छात्राओं को दिक्कतें होंगी। भले ही विभाग ने स्कूलों को विज्ञान विषय को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने के निर्देश दिए हों, लेकिन शुरुआत में ही इस विषय की सभी मासिक परीक्षाएं हिंदी माध्यम से कराई गईं। यहां तक कि विभाग ने स्कूलों को पेपर भी हिंदी माध्यम वाले भेजे। तब विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के चलते शिक्षक और छात्र यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन्हें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ना है या पहले की तरह हिंदी माध्यम से। चौंकाने वाली बात यह है कि यह नीति 2017 से शुरू हुई और 2019 तक उत्तराखण्ड के सरकारी एवं अशासकीय स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई कहीं अंग्रेजी और कहीं हिंदी माध्यम से कराई जाती रही। जबकि विज्ञान वर्ग में अंग्रेजी पढ़ाना और इसी भाषा में परीक्षा दिया जाना अनिवार्य किया गया था। इसे शिक्षा विभाग की लापरवाही का ही नतीजा माना जाता रहा। इसी तरह की लापरवाही इन दिनों जारी है। शिक्षा निदेशालय के 22 जुलाई के आदेशों को अभी तक पूरी तरह लागू न करके हीला हवाली किए जाने से शिक्षा विभाग सवालों के घेरे में है।

 

बंशीधर तिवारी, निदेशक विद्यालय शिक्षा

राजकीय शिक्षक संघ कुमाऊं के जनरल सेक्रेटरी डॉ कैलाश सिंह डोलिया का कहना है कि छात्रों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ना है कि नहीं यह छात्रों पर छोड़ा जाना चाहिए। इससे उन छात्रों को फायदा होगा जिनकी अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत नहीं है, साथ ही वह सरकार से मांग करते हैं कि सभी स्कूलों में अंग्रेजी स्पीकिंग को लेकर छात्रों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। जिससे छात्रों की पकड़ अंग्रेजी भाषा में बोलचाल पर मजबूत हो सके। जहां तक शिक्षकों का विषय है तो ज्यादातर शिक्षकों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि विज्ञान विषय अंग्रेजी शब्दों पर ज्यादा आधारित है लेकिन छात्रों को उनकी पंसद के हिसाब से हिंदी या अंग्रेजी में पढ़ाया जाना चाहिए था। कई शिक्षकों का मानना है कि न उन्हें और न ही बच्चों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में समझ आता है तो माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों को बिना प्रशिक्षण के विज्ञान विषय को सभी के लिए अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना तर्कसंगत नहीं है। ऐसे में उत्तराखण्ड में शिक्षा के तीन निदेशालय विशेष रूप से प्रशिक्षण के लिए अलग निदेशालय केवल सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाने के लिए ही बनाया गया प्रतीत होता है। डॉ डोलिया के अनुसार अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण निदेशालय विज्ञान को अंग्रेजी में संचालित करने के शासन के निर्णय को धरातल पर पहुंचाने के लिए किसी भी प्रकार की तैयारी नहीं कर सका है और इस वर्ष तो शिक्षकों के प्रशिक्षणों हेतु केंद्र सरकार द्वारा कोई धनराशि भी नहीं दी जा रही है। ऐसे में विद्यार्थियों का भविष्य विज्ञान जैसे विषय में अंधकार में ही डूबता नजर आ रहा है। सवाल यह है कि एक तरफ तो सरकार अटल आदर्श विद्यालयों के लिए विशेष रूप से अंग्रेजी माध्यम में पठन-पाठन कराने वाले शिक्षकों की ही नियुक्ति की बात कर रही है तो फिर अन्य विद्यालयों में विज्ञान को बिना किसी तैयारी के अंग्रेजी माध्यम से कैसे पढ़ाया जा सकता है?

बात अपनी-अपनी

छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाएगा। अगर आदेश होने के बाद भी स्कूलों में इंग्लिश में ही एग्जाम दिलाए गए हैं तो यह गलत है। एजुकेशन डायरेक्टर के आदेशों का अनुपालन किसने नहीं किया, चूक कहां से हुई है इसकी जांच कराई जाएगी।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड

सभी स्कूलों में साइंस को हिंदी में पढ़ाने और हिंदी में ही परीक्षा दिलाने के आदेश दिए जा चुके हैं। इसके अलावा एक ऑप्शन यह भी है कि अगर कोई स्कूल इस विषय को इंग्लिश में पढ़ा रहा है तो वह इसकी परीक्षा के पेपर इंग्लिश में भी ले सकता है।
धन सिंह रावत, शिक्षा मंत्री उत्तराखण्ड

हमारे आदेशों का अधिकतर पालन हो रहा है। कई जगह हाफ एयरली एग्जाम इंग्लिश में कराए गए हैं और कई जगह हिंदी में तो कई स्कूलों में दोनों भाषाओ में पेपर दिए गए थे। केवल इंग्लिश में पेपर मिलने की शिकायत ज्यादातर अल्मोड़ा और उधमसिंह नगर से आ रही है। हमने स्कूल की च्वॉइस के आधार पर हिंदी-इंग्लिश दोनों में एग्जाम कराने का ऑप्शन रखा था। अगली बार जब वार्षिक परीक्षा होगी तो उसमें हम एक ही परीक्षा पेपर में द्विभाषी स्वरूप देंगे, जिसमें दोनों भाषाओं में परीक्षा पेपर दिए जाएंगे
बंशीधर तिवारी, निदेशक विद्यालयी शिक्षा निदेशालय उत्तराखण्ड

वर्ष 2016-17 में शिक्षा विभाग ने निर्णय लिया था कि प्रदेश में कक्षा तीन से 12वीं तक के छात्र-छात्राओं को विज्ञान विषय की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से करवाई जाएगी। अभी भी विज्ञान की किताबें अंग्रेजी माध्यम में प्रकाशित होती हैं। छात्रों व शिक्षकों की ओर से इस बात पर जोर दिया जा रहा था कि विज्ञान विषय अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी उपलब्ध होनी चाहिए, ताकि छात्रों को पढ़ने में आसानी हो सके। अगले सत्र से इन कक्षाओं की विज्ञान विषय की पुस्तकें दोनों माध्यमों में प्रकाशित की जाएंगी।
आर.के. कुंवर, निदेशक माध्यमिक शिक्षा निदेशालय उत्तराखण्ड

एससीईआरटी की तरफ से कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक के विज्ञान वर्ग के परीक्षा पेपर हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में तैयार किये गए थे। पेपर तैयार करके हमारे निदेशालय की तरफ से प्रदेश के सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को सीडी और पेन ड्राइव में डाउनलोड करके भेज दिए थे। मुख्य शिक्षा अधिकारियों ने कौन-से विद्यालय में किस भाषा में पेपर भेजे है, यह उनसे पता करके ही पता चलेगा। यह विद्यालयों की सुविधानुसार किया गया होगा। अगर जरूरत पड़ी तो इसकी जांच भी कराई जा सकती है।
सीमा जौनसारी, निदेशक प्रदेश अकादमिक शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण

 

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