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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने अवसर है यह सिद्ध करने का कि उनका ‘जीरो टॉलरेंस’ का नारा महज एक नारा नहीं वरन उनमें क्षमता है इसे धरातल में उतारने की। मुख्यमंत्री धामी ने जिस प्रकार उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग घोटाले में जांच के आदेश दिए और एसटीएफ ने त्वरित कार्रवाई कर खुलासा किया उसे ‘बर्रा के छत्ते’ में हाथ डालने जैसा माना जा रहा है। इसके बाद सीएम पर अन्य विभागों में हुई विवादास्पद भर्तियों पर भी कार्रवाई करने का दबाव बढ़ा है। यहीं पर उनकी राजनीतिक दृढ़ता और इच्छाशक्ति की परीक्षा होगी। अगर वह दबाव से मुक्त होकर भ्रष्टाचार की सफाई का काम कर गए तो उनका कद बढ़ना निश्चित है और अगर वह दबाव में समझौतों के शिकार हो गए तो उनका अन्य राजनेताओं की तरह समय के साथ राजनीतिक बियावन में खो जाने का खतरा भी कम नहीं है

‘सरकार के कुप्रबंधन के चलते हम अपनी जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा गंवाने को हैं। चयन प्रक्रिया में सुधार और पारदर्शिता की उम्मीद बेमानी है। यूं ही परीक्षा पेपर लीक होते रहे और परीक्षाओं पर सवाल उठते रहे तो प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने की उम्मीद व्यर्थ है। सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का हर्ष ऐसा होगा सोचा न था। हमारे भविष्य को अनिश्चितताओं की गहरी छाया में धकेलने के लिए हम जिम्मेदार ठहराए भी तो किसे?’ हल्द्वानी के मुकेश की यह व्यथा उत्तराखण्ड के उस हर युवा की व्यथा है जिसे उत्तराखण्ड में हो रही भर्तियों पर अनियमितता की खबरों ने परेशान कर रखा है। उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग, उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग, विधानसभा में नियुक्तियों का मामला सभी कहीं न कहीं सवालों के घेरे में है। सुरक्षित सरकारी नौकरी का विचार भर्तियों में धांधली की खबरों के बीच युवाओं का मनोबल तोड़ रहा है। पहले ही पलायन से त्रस्त उत्तराखण्ड में युवाओं के सब्र का बांध टूटने लगा है।

भर्तियों में भ्रष्टाचार की खबरों के बीच वह युवा आक्रोश कहीं नजर नहीं आता, कहीं वह प्रतिरोध के स्वर नहीं सुनाई दे रहे जो युवाओं के आक्रोश और चिंताओं को परिलक्षित करते हैं। युवाओं के भविष्य की चिंता के नाम पर आपस में गुत्थमगुत्थी करते राजनीतिक दल खासकर भाजपा और कांग्रेस सिर्फ अपना चेहरा बचाने की जुगत में हैं वर्ना युवाओं के भविष्य की चिंता होती तो ये चयन आयोगों को सशक्त व पारदर्शी बनाने की मजबूत व्यवस्था करते। चयन आयोगों को अपने लोगों को उपकृत करने का जरिया न बनाते। जिस प्रकार आयोग के सदस्यों की साख पर सवाल उठ रहे हैं उससे चयन आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना लाजमी है। उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों पर जिस तरह रोज खुलासे हो रहे हैं और हर भर्ती विवादों के घेरे में है। उसने आम जनमानस के बीच यह सवाल खड़ा कर दिया है कि अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन युवाओं को नौकरी देने के लिए किया गया है या नौकरी बेचने के लिए किया गया है।

उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग अपनी स्थापना के समय से हीं परीक्षाओं के मामले में विवाद में रहा है। हर दिन हो रहे नए खुलासे बताते हैं कि लंबे समय से सुनियोजित तरीके से यह खेल चल रहा था लेकिन आयोग के अध्यक्ष व सचिव चैन की नींद सोए थे। 2016 की बीपीडीओ की भर्ती परीक्षा, 2021 की स्नातक स्तर की भर्ती परीक्षा अब संदेह के घेरे में हैं। आयोग की साख पर धब्बा 2016 की बीपीडीओ परीक्षा में लगा था जिसमें प्रश्न पत्र लीक होने व एक ही परिवार के और एक ही गांव के कई युवाओं के परीक्षा में चयनित होने पर परीक्षा पर सवाल उठे थे। शिकायतों के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई और विजिलेंस जांच के आदेश हुए। जांच में ओएमआर सीट में गड़बड़ी की पुष्टि हुई लेकिन उस जांच के बाद क्या एक्शन हुआ किसी को पता नहीं। उस समय भी कहा जाता था कि गड़बड़ियां करने के लिए कुछ लोग ओएमआर सीट को अपने झोले में लेकर घूमते थे। जिस प्रकार इस प्रकरण में नाम खुल कर सामने आ रहे हैं उससे पता चलता है कि पेपर लीक घपले के आरोपियों की कितने गहरे स्तर तक पकड़ थी। हाकम सिंह, चंदन सिंह मनराल, शशिकांत जैसे लोग इन्हीं का फायदा उठा रहे थे। राजनेताओं और अफसरों का संरक्षण इन सभी को किसी न किसी स्तर पर जरूर रहा होगा। इस पेपर लीक प्रकरण में खास बात है कि प्रेस मालिक से लेकर सरकारी स्कूलों के शिक्षक, अदालतों के कुछ कर्मचारी, पुलिसकर्मी, सचिवालय के कुछ कर्मचारी, इंजीनियर कोचिंग संस्थान के मालिक और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त सरगनाओं का गठजोड़ उत्तराखण्ड के युवाओं का भविष्य तय कर रहा था।

उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद जिन-जिन संस्थानों को भर्ती एजेंसी बनाया गया वह कहीं न कहीं संदेह के घेरे में हैं। पंतनगर विश्वविद्यालय के एक कर्मचारी की गिरफ्तारी बताती है कि भ्रष्टाचार के इस आचरण से कोई अछूता नहीं था। हालांकि इस धांधली के केंद्र में आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन का नाम सामने आया है जो कि लखनऊ की कंपनी है जहां प्रश्न पत्र छपते हैं लेकिन इस नेटवर्क को संभालने वालों का जाल विस्तृत रूप से फैला था। आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन का मालिक राजेश चौहान जहां पेपर लीक में शामिल था वहीं इसी कंपनी का कर्मचारी अभिषेक वर्मा अपने स्तर से इस गड़बड़झाले में लिप्त था। आयोग की परिक्षाओं के प्रति, गंभीरता का पता इससे ही चलता है कि जिस व्यक्ति पर 2013 में टीइटी, परीक्षा के पेपर लीक करने का आरोप है उसी के संस्थान में आयोग अपनी ऑनलाइन परीक्षाएं संचालित करवा रहा था। नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर के पास एक रिजॉर्ट में परीक्षार्थियों को पेपर लीक करवा कर उनके उत्तर याद करवाने के एक आरोपी शशिकांत पर 2013 में टीईटी परीक्षा के पेपर लीक करवाने का आरोप है और उस पर मुकदमा भी चल रहा है उसके ही सेंटरों में में ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करना आयोग की मंशा पर सवाल खड़े करता है। इस बीच आयोग की कुछ और परीक्षाएं भी संदेह के घेरे में हैं। 2015 में पुलिस भर्ती की जांच विजिलेंस को सौंप दी गई है। कुछ अन्य परीक्षाओं की जांच करने की बात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कह रहे हैं।

उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षा में धांधली का मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जिस तेजी से संज्ञान लेकर मामला एसटीएफ को पुख्ता किया। एसटीएफ ने जिस तत्परता से काम कर 29 आरोपियों को पकड़ा उससे एसटीएफ की कार्यशैली की प्रशंसा निश्चित तौर पर की जानी चाहिए। एसएसपी, एसटीएफ अजय सिंह के नेतृत्व में एसटीएफ प्रशंसा की निश्चित तौर पर हकदार है। लेकिन सवाल कुछ आगे के लिए हैं। क्या उत्तराखड के राजनीतिक नेतृत्व, खासकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी में इस प्रकरण को अंजाम तक पहुंचाने की इच्छाशक्ति है। विधानसभा सचिवालय में नियुक्ति के मामले में भाजपा, आरएसएस से जुड़े व्यक्तियों की नियुक्ति का मामला सामने आने से सरकार की बड़ी फजीहत हुई है। हालांकि मुख्यमंत्री धामी का दावा है कि सरकार इसके मूल में जाएगी और दोषी कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो उसे बख्शा नहीं जाएगा। इस प्रकरण पर शोर मचाने वाली कांग्रेस भी दूध की धुली नहीं है। 2016 में बीपीडीओ की भर्ती में कांग्रेस के नेताओं खासकर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के एक सलाहकार की भूमिका पर उंगली उठी थी। एसटीएफ की भी अपनी सीमाएं हैं। सवाल है कि क्या पुष्कर सिंह धामी एसटीएफ को वह काम करने की स्वतंत्रता देंगे जिसकी इस प्रकरण तह में जाने की दरकार है? एक सामान्य धारणा बनती जा रही है अभी तक जितने लोग गिरफ्तार हुए हैं वे इस तालाब की छोटी मछलियां हैं।

इन आरोपियों पर क्या राजनीति या अफसरशाही का वरदहस्त था? इन सवालों के जवाब में ही भर्ती घोटाले की परिणति का भविष्य टिका है। अगर उसकी आंच राजनीतिज्ञों या अफसरशाही पर जाएगी तो वह आंच किसे झुलसाएगी? तो उन स्थितियों में पड़ने वाले दबाव मुख्यमंत्री या एसटीएफ झेल पाएंगे? सहकारिता और सहकारी बैंकों में हुई नियुक्तियों पर भी सवाल उठे थे कई जगह भर्ती रद्द भी करनी पड़ी थी। उत्तराखण्ड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने सहकारिता मंत्री डॉ धन सिंह रावत पर इस संबंध में आरोप लगाए थे। उसके बाद डॉ धन सिंह रावत के ही कुछ लोगों ने बद्री केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष के रूप में गणेश गोदियाल के समय अनियमितता के आरोप लगाकर उसकी जांच की मांग धन सिंह रावत से की थी। गणेश गोदियाल ने मुख्यमंत्री धामी से मिलकर धन सिंह रावत और अपने ऊपर लगे आरोपें की जांच की मांग की थी। उसके बाद इस प्रकरण पर सबका मौन चौंकाता है। दरअसल, इस वक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर दबाव बाहर से उतना नहीं है जितना अपनी पार्टी के भीतर से है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पूरे तेवरों के साथ भर्तियों में घोटाले की जांच की मांग कर ‘खाकी से लेकर खादी’ तक को न बख्शने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के सब बड़े नेता भर्ती घोटाले और विधानसभा में नियुक्तियों की उच्चतम या उच्च न्यायालय की निगरानी में सीबीआई से कराने की मांग कर रहे हैं।

डॉ धन सिंह रावत के कार्यकाल में उनके उच्च शिक्षा मंत्री रहते उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय में जिस प्रकार अपने चहेतों में पदों की बंदरबांट के आरोप लगे और सहकारिता में नियुक्तियों पर उंगली उठी, क्या उस पर भी मुख्यमंत्री जांच बिठाएंगे ऊपर से भले ही सब अच्छा नजर आ रहा हो लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा में अंतर्विरोध कम नहीं है। उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों में धांधली के आरोपों ने कई मोर्चे एक साथ खोल दिए हैं। अगर चर्चाओं पर यकीन किया जाए तो विधानसभा में नियुक्तियों का मामला अचानक उछाला ही इसलिए गया कि अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों में उठे विवाद से लोगों का ध्यान हटाया जा सके। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि उत्तराखण्ड का युवा इन खुलासों के प्रति उदासीन रहा। युवाओं और छात्रों के बलबूते अपनी राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के युवा और छात्र संगठन इस ओर आवाज उठाने की जहमत से बचते दिखे। हां छात्र संघ चुनाव कराने की मांग के ज्ञापन देते इन संगठन के लोग जरूर दिखे और वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् हो या फिर एनएसयूआई आदि उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों में भविष्य में होते रहेंगे। हो सकता है अन्य विभागों में भी कई खुलासे हों लेकिन सवाल यही है कि जांच अपने अंतिम मुकाम तक पहुंचेगी?

बहरहाल, यूपी ट्रिपल एससी घोटाले मामले में नया ट्विस्ट आ गया है। विधानसभा में उप नेता भुवन कापड़ी ने इस मामले की सीबीआई जांच कराने के लिए हाईकोर्ट में अपील की है। इतना ही नहीं कापड़ी ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र भी लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले की तरह ही यहां भी सीबीआई की जांच कराई जानी चाहिए। क्योंकि यह घोटाला बंगाल के घोटाले से भी अधिक बड़ा घोटाला है।

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