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Uttarakhand

पटरी से उतरी पौड़ी की स्वास्थ्य व्यवस्था

स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल/भाग-दो

जिस पौड़ी जिले ने उत्तराखण्ड ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश को भी मुख्यमंत्री दिए। एक-से बढ़कर एक बड़े नेता पैदा किए, वहां स्वास्थ्य सुविट्टााओं का बुरा हाल है। राज्य के पहले मेडिकल काॅलेज श्रीनगर में भी पर्याप्त स्वास्थ्य सुविट्टााओं, स्टाफ और डाॅक्टरों की कमी है। ऐसे में गढ़वाल के विभिन्न जिलों से यहां इलाज के लिए आने वाले लोगों को निराशा ही मिलती है। आखिरकार थक-हारकर लोग देहरादून या दिल्ली का रुख करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पताल कहीं फार्मासिस्टों के भरोसे चल रहे हैं, तो कहीं 45 वर्षों से अस्पताल भवन ही नहीं बन पाया है। राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जो कि स्वास्थ्यमंत्री का दायित्व भी संभाले हुए हैं, इसी पौड़ी जिले के निवासी हैं

उ­त्तराखण्ड के पौड़ी जिले को लेकर कहा जाता है कि यहां मुख्यमंत्रियों की फैक्ट्री है। भुवन चंद्र खण्डूड़ी, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और अब त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इसी जिले के निवासी हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पौड़ी जिले से ही निकलकर ऊंचे मुकाम हासिल किये। केंद्र और यूपी में भी इस जिले के नेता मंत्री रहे। शासन-प्रशासन, ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा आदि तमाम क्षेत्रों में पौड़ी जिले की प्रतिभाएं अपना लोहा मनवाती आ रही हैं, लेकिन कहा जाता है कि ‘दीपक तले अंधेरा।’ शिक्षा और स्वास्थ्य के बड़े संस्थान पौड़ी जिले में हैं। गढ़वाल मंडल के हृदय स्थल कहे जाने वाले श्रीनगर में केंद्रीय विश्व विद्यालय और मेडिकल काॅलेज भी है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हालत पौड़ी जिले में भी अन्य पर्वतीय जिलों की तरह ही बदहाल है।

जिले के अस्पतालों में दवाइयां नहीं हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में एक्सपायरी डेट की दवाइयां तक लोगों को दी जा रही हैं। अभी हाल में जिले के पाटीसैंण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक्सपायरी डेट की दवाइयां दिए जाने पर राज्य की एक नई पार्टी के महासचिव डाॅ मुकेश पंत के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने अस्पताल में धरना-प्रदर्शन भी किया। जिले के कई अस्पतालों में डाॅक्टरों और स्टाफ की भारी कमी है।

डाॅक्टरों की कमी के चलते पौड़ी जिले मेें चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है। जिले में सीएमओ के अधीन डाॅक्टरों के 355 पदों में से मात्र 184 ही रेगुलर चिकित्सक हैं। बाकी पद रिक्त हैं। डाॅक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए विभाग द्वारा 48 एलोपैथिक डाॅक्टर बाॅन्ड के आधार पर तैनात किए गए हैं। लेकिन इनमें से 28 डाॅक्टरों की हरिद्वार कुंभ में ड्यूटी लगा दी गई है। जनपद में कुल 34 ही विशेषज्ञ डाॅक्टर हैं।

गढ़वाल मंडल के चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी व टिहरी जिलों की लगभग 15 लाख की आबादी के लिए बेस अस्पताल श्रीकोट ही स्वास्थ्य सुविधाएं देता है। लेकिन यहां आए दिन सामने आ रही अव्यवस्थाओं को देखते हुए यही लगता है कि बेस अस्पताल को खुद इलाज की जरूरत है।

पहाड़ी क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से बनाए गए प्रदेश के पहले राजकीय मेडिकल काॅलेज की स्थिति को देखकर यहां दूर-दूर से इलाज के लिए आए लोग हताश हो जाते हैं। लोग अब यहां तक कहने लगे हैं कि इससे अच्छा इलाज तो मेडिकल काॅलेज बनने से पहले होता था। यहां पर डाॅक्टर अच्छे और जिम्मेदारी से मरीज को देखते थे, लेकिन अब सब कामचलाऊ हो चुका है। रेडियोलाॅजिस्ट न होने की वजह से एमआरआई मशीन विभाग नहीं खरीद पा रहा है।
एमसीआई मानकों के अनुसार रेडियोलाॅजिस्ट का होना जरूरी है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर यहां जांच के उपकरण आए दिन खराब रहते हैं, तो कभी इन्हें ऑपरेटर करने वाली फैकल्टी का अभाव रहता है। जिससे मरीजों को भारी राशि खर्च कर निजी क्लीनिकों, देहरादून या अन्य जगह की शरण लेनी पड़ती है। लेकिन सवाल यह है कि गरीब आदमी आखिर कहां जाए।

मुख्यमंत्री के गृह जनपद पौड़ी के चार अस्पतालों को निजी हाथों में सांैप दिया गया है। पौड़ी, जिला महिला अस्पताल पौड़ी, समुदायिक स्वास्थ केंद्र घंड़ियाल और सामुदायिक स्वस्थ केंद्र पाबौ सरकार ने पीपीपी मोड पर दे दिए हैं। खिर्सू ब्लाॅक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की बात की जाए तो स्टाफ की कमी हमेशा से ही रही है। 10 डाॅक्टर के पद स्वीकृत हैं, जिसमें कि सिर्फ 3 ही कार्यरत हैं। स्टाफ नर्स के 5 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सभी रिक्त हैं। लैब टेक्नीशियन के न होने से यहां पर मशीन जंक खा रही है। स्वास्थ्य केंद्र में अल्ट्रासाउंड मशीन भी नहीं है।

श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत सुमाड़ी का अस्पताल जो कि 10 ग्राम सभाओं का एकमात्र राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय है, इस एलोपैथिक चिकित्सालय का भवन निर्माण सन् 2001 में हुआ था। आज भवन की स्थिति देखते हुए यहां पर भी निर्माण कार्य में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया, स्टाफ क्वार्टर में अगर देखा जाए तो दरारें पड़ चुकी हैं। फर्श टूट चुका है। स्टाफ के नाम पर मात्र एक फार्मेसिस्ट, एक महिला फोर्थ क्लास और एक सफाईकर्मी है। स्टाफ क्वार्टरों में सिर्फ सफाईकर्मी के अलावा और कोई नहीं रहता है। स्टाफ क्वार्टरों की स्थिति देखकर यह लगता है कि यहां कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है। बताया जाता है कि डाॅक्टर का पद स्वीकृत होने के बावजूद डाॅक्टर कभी-कभार यहां पर अपनी हाजिरी भरने आ जाते हैं और उसके बाद चले जाते हैं। कई गांव वालों का यह कहना है कि हमने तो कभी डाॅक्टर को देखा ही नहीं है। यह हाल प्रदेश के मुख्यमंत्री जिनके पास स्वास्थ्य मंत्रालय भी है, उनके जनपद का है।

अगर बात श्रीनगर की करें तो राजकीय संयुक्त उपजिला चिकित्सालय में डाॅक्टरों के 29 पद स्वीकृत हैं। उसके सापेक्ष 14 डाॅक्टर की कार्यरत हंै। यहां पर मुख्य चिकित्सा अधीक्षक का पद भी कई समय से खली पड़ा हुआ है, डाॅक्टरों के 9 पद के सापेक्ष 4 ही कार्यरत हैं, जिसमें कि 2 बाॅन्डधारी और 2 संविदा पर हैं। स्टाफ नर्स के 19 पद स्वीकृत हैं जिसमें मात्र 7 ही कार्यरत हैं, लैब टेक्नीशियन के 2 पद के सापेक्ष 2 ही कार्यरत हैं। कक्ष सेवक के 23 पदों के सापेक्ष 7 ही कार्यरत हैं। सफाई सेवक के स्वीकृत 5 पदों में से सिर्फ 1 ही कार्यरत है।

मुख्यमंत्री के गृह जनपद की विधानसभा लैंसडाउन क्षेत्र रिखणीखाल के द्वारी में 1975 का अस्पताल जो कि 9 ग्राम सभाओं का एकमात्र राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय है आज भी किराए के भवन पर चल रहा है। यह चिकित्सालय सिर्फ एक फार्मासिस्ट के भरोसे चल रहा है, इस अस्पताल में न तो डाॅक्टर हंै, न वार्ड ब्वाॅय और न ही सफाई कर्मचारी है। भगवान भरोसे हैं पहाड़ों के अस्पताल।

नावेतली ग्राम प्रधान महिपाल रावत का कहना है कि सरकार ने 9 ग्राम सभाओं को सिर्फ फार्मेसिस्ट के भरोसे छोड़ रखा है। पिछले 45 सालों से अभी तक भवन का कोई निर्माण नहीं हो पाया।

बात अपनी-अपनी

डाॅक्टरों की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है। एक माह में जनपद में पूरे डाॅक्टर आ जाएंगे। खिर्सू में भी लैब टेक्नीशियन की व्यवस्था कर दी गई है। जिन भवनों की हालत ठीक नहीं है उनको जल्दी ठीक किया जाएगा।
डाॅ. मनोज शर्मा, मुख्य चिकित्सा अधिकारी पौड़ी

मेडिकल काॅलेज और बेस चिकित्सालय में डाॅक्टर एवं अन्य स्टाफ पूरा है, फिलहाल एमसीआई की टीम यहां पर विजिट चल रहा है, तो पूरा स्टाफ आज एमसीआई टीम के साथ ही व्यस्त है।
डाॅ. एसएमएस रावत, प्राचार्य मेडिकल काॅलेज श्रीनगर

यहां पर डाॅक्टर कभी-कभी आते हैं और अपनी उपस्थिति दर्ज करके चले जाते हैं। सिर्फ फार्मासिस्ट ही यहां पर दवाई देते हैं।
मनोज प्रकाश, क्षेत्र पंचायत सदस्य सुमाड़ी

हमारे श्रीकोट और ग्राम पंचायत के हाॅस्पिटल की हालत बहुत ही बदहाल है। श्रीकोट बहुत पुराना हाॅस्पिटल है, लेकिन यहां स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पहले से भी खराब है। सरकार को इस पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है।
रविंद्र रावत, पूर्व प्रधान सौड़ गजेली, श्रीनगर गढ़वाल

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