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  • संजय स्वार

हल्द्वानी नगर निगम को 25 से 60 वार्डों में विस्तारित करने की रणनीति अपनाकर भाजपा फिर से यहां काबिज तो हो गई, लेकिन जनता को सुविधाएं देने के नाम पर ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो रही हैं। अपने एक वर्षीय कार्यकाल में निगम के मेयर जोगेन्द्र रौतेला और पार्षद जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए हैं

नगर निगम हल्द्वानी अपना एक वर्षीय कार्यकाल पूरा कर चुका है। भाजपानीत निगम के मेयर और पार्षद भले ही यह मान सकते हैं कि इस एक वर्ष के दौरान उत्साहजनक कार्य हुए, लेकिन निगम में नये जुड़े क्षेत्रों और पुराने क्षेत्रों के लोगों से बातचीत करने पर लगता नहीं कि नगर निगम की उपलब्धियां इतनी खास हों कि मेयर और साठ वार्डों के पार्षद अपने कार्यों पर गुमान कर सकंे। 2 दिसंबर 2018 को अस्तित्व में आया नगर निगम का बोर्ड मेयर डाॅ ़ जोगेेन्द्र पाल सिंह रौतेला और पार्षदों के मध्य विवादों के कारण ज्यादा चर्चित रहा, खासकर कांग्रेस से जुड़े पार्षदों और मेयर के मध्य चल रही खींचतान ने नगर निगम हल्द्वानी की व्यवस्थाओं को सामान्य नहीं होने दिया है। शायद ही बोर्ड की कोई बैठक होगी जो मेयर और पार्षदों की खींचतान का शिकार न हुई हो। इन खींचतानों में सबसे ज्यादा नुकसान नगर निगम के अंतर्गत आने वाले उन नागरिकों का हुआ है जो ट्रिपल इंजन यानी ‘नरेंद्र, त्रिवेन्द्र, जोगेंद्र’ जैसी उपमाओं के बीच विकास व सुविधाओं की अपेक्षा कर रहे थे।

2011 में अस्तित्व में आए नगर निगम में पहले 25 वार्ड थे जिसका क्षेत्रफल 1416 हेक्टेयर था तथा जनसंख्या 171500 के लगभग थी। 2018 में नगर निगम के विस्तार के साथ इसमें 36 नए गांवों को जोड़ा गया जिसमें वार्डों की संख्या बढ़कर 60 हो गई साथ ही 2842 ़927 हेक्टेयर का नया क्षेत्रफल तथा एक लाख दस हजार के लगभग जनसंख्या इसमें सम्मिलित हुई। कुल मिलाकर पुराने क्षेत्रफल से दोगुना क्षेत्रफल इसमें और सम्मिलित हो गया। साठ वार्डों की कुल जनसंख्या लगभग दो लाख बहत्तर हजार के आस-पास है। अपने अनुकूल चुनावी लाभ के लिए भारतीय जनता पार्टी ने इसमें नये ग्रामीण क्षेत्र जुड़वाए जो उसके लिए चुनाव में लाभदायक सिद्ध हुआ वर्ना पुराने नगर निगम की सीमाओं के अंदर तो कांग्रेस प्रत्याशी सुमित हृदयेश दस हजार मतों से आगे रहे थे। नगर निगम के विस्तार के साथ उत्तराखण्ड सरकार ने आश्वासन दिया था कि दस वर्षों तक अतिरिक्त जुड़े क्षेत्र के लोगों से किसी भी प्रकार का कोई टैक्स नहीं लिया जाएगा। निगम में नये शामिल हुए छत्तीस गांवों में बिजली, पानी, स्ट्रीट लाइट, सड़कों सहित अन्य बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी भी अब नगर निगम पर आ गई है। लेकिन अगले दस वर्षों तक कोई टैक्स नहीं लेने की नीति के चलते इन क्षेत्रों के विकास के लिए धनराशि की व्यवस्था करना निगम के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है।

मेयर बनने के बाद ‘दि संडे पोस्ट’ से एक साक्षात्कार में मेयर डाॅ ़ जोगेन्द्र पाल सिंह रौतेला ने अपने भविष्य की योजनाओं का एक खाका पेश किया था जिनमें सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, विद्युत शवदाह गृह, हैबिटेट सेंटर, पेयजल योजनाओं का पुनर्गठन उनकी प्राथमिकताओं में थे, लेकिन एक साल बाद इन योजनाओं पर कोई प्रगति नजर नहीं आती है। अमृत योजना के अंतर्गत सीवर व्यवस्था और पेयजल योजनाओं का कार्य जरूर हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुप्रचारित योजना का सबसे बुरा हाल नगर निगम हल्द्वानी में है। नये जुड़े क्षेत्रों में सफाई का हाल भगवान भरोसे है। यहां कूड़ा उठाने की निगम अपने स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं कर पाया है। पहले से कूड़ा उठाने का कार्य कर रही स्वयं सेवी संस्थाओं पर ही नागरिक निर्भर हैं। नए वार्डों में सफाईकर्मी रखने की व्यवस्था भी सिर्फ प्र्रस्ताव तक ही सिमटी है। स्थानीय निवासी प्रताप सिंह का कहना है नगर निगम से जुड़ने पर लगा था कि नगर निमग की व्यवस्थाओं का लाभ मिलेगा, लेकिन एक साल बाद भी स्थिति नहीं बदली है। सिर्फ कागजों में नए क्षेत्र नगर निगम में शािमल हुए हैं। बाकी सब पहले जैसा ही है। नगर निगम बनने के बाद विस्तारित क्षेत्रों के विकास के लिए बजट की व्यवस्था सबसे टेढ़ी खीर है, क्योंकि पिछले एक वर्ष में नगर निगम की आय में बढ़ोतरी नहीं हुई है। विकास कार्यों के लिए वो पूर्णतया प्रदेश व केंद्र सरकार के अनुदानों पर निर्भर है। नगर निगम के अंतर्गत आने वाले 134 से अधिक आंतरिक मार्ग खस्ताहाल हैं और नए जुड़े क्षेत्र में भी सड़कों का हाल बुरा है। जगह-जगह गड्ढे नगर निगम की नाकामियों की कहानी कहते हैं। इन आंतरिक व नगर निगम के अंतर्गत आने वाले मार्गों के लिए पैच वर्क के लिए ही धनराशि नहीं है। फिर नए सिरे से इन्हें बनाने के लिए 40 करोड़ रुपये की दरकार है जिसके लिए नगर निगम शासन पर निर्भर है। पूर्व ब्लाॅक प्रमुख भोला दत्त भट्ट का कहना है कि राजनीतिक लाभ के लिए भाजपा ने 36 गांवों को नगर निगम में शामिल तो करवा लिया, लेकिन चुने जाने के बाद मेयर ने इन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया। पहले ग्रामीण क्षेत्र को राज्य व केंद्र द्वारा वित्त पोषित योजनाओं का लाभ मिल जाता था, परंतु अब नगर निगम में शामिल होने के बाद इन योजनाओं का लाभ मिलना बंद हो गया है। विकास कार्य ठप पड़े हैं। पहले ग्राम पंचायतों के माध्यम से विकास कार्य हो जाते थे। पूरे क्षेत्र में नहरों, सड़कों का बुरा हाल है। सफाई व्यवस्था चैपट है।

स्ट्रीट लाइट व्यवस्था का हाल पूरे नगर निगम क्षेत्र में चैपट है। नई स्ट्रीट लाइट लगाना तो दूर पुरानी लगी लाइटों को भी ठीक नहीं किया जा सकता है। नए जुड़े क्षेत्रों में पथ प्रकाश व्यवस्था सिर्फ टेंडर प्रक्रिया तक ही सीमित है। कांग्रेस नेता महेश शर्मा का कहना है जिला पंचायत के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में हमने पथ प्रकाश व्यवस्था के लिए सोलर लाइटें लगाई थी। नगर निगम में शामिल होने के बाद उनकी दुर्दशा हो गई है। नई लाइट्स तो निगम ने लगवाई नहीं पुराने सोलर ऊर्जा संचालित लाइट्स के सुचारू रहने की व्यवस्था भी नगर निगम नहीं कर सकता है। बैटरी के अभाव में सभी स्ट्रीक लाइट खराब पड़ी हंै। पहले जो विकास हो रहा था वो भी रुक गया है। नगर निगम अपने आर्थिक संसाधन तो विकसित कर नहीं सका है, परंतु उसके जो आय के साधन हो सकते थे वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। जिला पंचायत के समय विभिन्न क्षेत्रों में लगने वाले हाट बाजार एक अच्छी आय का साधन थे, लेकिन हाट बाजार की स्पष्ट नीति न होने के कारण नगर निगम में ये हाट तो लग रहे हैं, लेकिन इसमें तहबाजारी के तहत लिया जाने वाला शुल्क कहां जा रहा है ये किसी को पता नहीं। नगर निगम के इस राजस्व की बंदरबांट पर किसी का ध्यान नहीं है। नगर निगम की आय का बड़ा स्रोत दुकानों से आने वाला किराया है। एक बार व्यापारियों के विरोध के बाद निगम इन दुकानों के किराए को बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। तिकोनिया में बुद्ध पार्क के निकट बनाई दुकानों का किराया तय नहीं कर उनसे तहबाजारी शुल्क ही वसूला जा रहा है। आरोप लग रहे हैं कि मेयर ने इसमें अपनों को ही उपकृत किया है। टंªचिंग ग्राउंड हल्द्वानी की एक बड़ी समस्या है। गौलापार बाईपास स्थित ट्रचिंग ग्राउंड कूड़े में लगने वाली आग का जहरीला धुंआ लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है। साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए किए दावे सब हवा में ही हैं। इतने बड़े नगर निगम के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का न होना आश्चर्यजनक है। इसकी धीमी प्रक्रिया भी नगर निगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है। मेयर ने विस्तारित नगर निगम का दायरा बड़ा होने के कारण दो क्षेत्रीय कार्यालय खोलने की बात कही थी जिससे सुदूर क्षेत्रों के लोगों को अपनी हर समस्या के लिए नगर निगम मुख्यालय में न आना पड़े, लेकिन ये वादा सिर्फ चुनावी वादा ही होकर रह गया। निगम की अकर्मण्यता को इस बार बरसात के मौसम में सबको झेलना पड़ा। नालियेां की समय पर सफाई न होने से पूरे हल्द्वानी में जलभराव की स्थिति पैदा हो गई। समय पर फाॅगिंग न होने से डेंगू का कहर पूरे हल्द्वानी को झेलना पड़ा। खाली भूमि पर पार्क व खेल मैदान विकास करने की योजनाओं को अभी क्रियान्वयन का इंतजार है। वाडों में विकास कार्य न होने के चलते पार्षदों का आयुक्त से विकास निधि जारी करने की मांग करना नगर निगम के खस्ताहाल को उजागर करने के लिए काफी है।

 

‘निगम की निधि से निगम चलाना मुश्किल’

आप अपने एक वर्ष के कार्यकाल का मूल्यांकन किस रूप में करते हैं?

हल्द्वानी नगर निगम के मेयर डाॅ. जोगेंद्र पाल
सिंह रौतेला से बातचीत

 

प्रथम वर्ष का कार्यकाल नियोजन संबंधी होता है। लगभग इस वर्ष हमने अब सम्मिलित क्षेत्र में पथ प्रकाश, घर-घर से कूड़ा इकट्ठा करने के लिए वाहनों और सफाई कर्मचारियों की व्यवस्था करने का कार्य किया है। इसमें हमें फंड प्राप्त हो चुके हैं। इस वित्तीय वर्ष में ये कार्य क्रियान्वित हो जाएंगे। नव सम्मिलित क्षेत्र व पुराने नगर निगम क्षेत्र में पेयजल सीवरेज के नियोजन के लिए अमृत योजना के कार्य चल रहे हैं। साथ ही नगर निगम के स्तर से विकास कार्य करवाए जा रहे हैं।

साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट, कम्पोस्ट प्लांट, विद्युत शवदाह गृह, एक अच्छा हैबिटेट सेंटर आपके ड्रीम प्रोजेक्ट में से थे। इनमें किस स्तर पर प्रगति हुई है?

साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट के कार्य का पार्ट वन तो मेरे पहले कार्यकाल में डोर डू डोर कलेक्शन के रूप में पूर्ण हो चुका था, जहां तक कम्पोस्ट प्लांट का सवाल है उसकी चारदीवारी बन रही है। उसकी आरएफपी हमारे पास है। उसको भी हम फ्लोट करने जा रहे हैं। जहां तक विद्युत शवदाह गृह की बात है, उसका शासनादेश अपेक्षित है। हम सभी चीजों को लेकर चल रहे हैं और जो हमने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादे किए थे उन्हें पांच वर्ष के कार्यकाल में पूरा कर देंगे।

नव सम्मिलित क्षेत्रों के लेागों की शिकायत है कि जब वो ग्रामीण क्षेत्र में थे तो पंचायत निधियों से विकास हो जाता था। लेकिन नगर निगम में शािमल होने के बाद विकास ठप हंै, क्या कहेंगे?

दो विषय हैं। नगर निगम सिर्फ शहरी सुविधाएं देता है। शहरी सुविधाओं में मुख्य रूप से पथ प्रकाश सुविधा, दूसरा स्वच्छता जिसमें घर-घर जा कर कूड़ा इकट्ठा करना तथा पेयजल व सीवर सुविधा प्रदान करना है। जिसमें नियोजन संबंधी कार्य पूर्ण हो चुका है। हमें फंड भी उपलब्ध हो चुके हैं। शीघ्र ही इनका क्रियान्वयन शुरू हो जाएगा। जहां तक ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के वित्त पोषण में फर्क है, तो 2020-21 में पंद्रहवें केंद्रीय वित्त आयोग से हमें नये जुड़े क्षेत्रों के लिए भी धनराशि मिलने लगेगी।

क्या पिछले एक वर्ष में निगम ने अपने स्रोतों से आय बढ़ाई है?
पूर्व नगर निगम क्षेत्र में होर्डिंग्स से आय बढ़ाने का प्रयास किया है। कुछ टैक्सों को भी रिव्यू कर रहे हैं। हर चार वर्षों में सेल्फ असेस्मेंट रिव्यू करने का प्रावधान है और भी अन्य स्रोत हैं। हम पंजीकरण शुल्क भी लगाने जा रहे हैं। कुछ दुकानें जिनका प्रीमियम लिया गया था, परंतु किराया नहीं लिया गया था उनसे किराया लेने जा रहे हैं। लेकिन सिर्फ निगम की निधि से निगम चलाना मुश्किल है। इसके लिए राज्य व केंद्र सरकार से वित्त पोषण आवश्यक है।

नगर निगम के अंतर्गत आंतरिक मार्ग खस्ताहाल हैं। इनको सुट्टाारने के लिए आप क्या कर रहे हैं?
कुछ जगह सीवर व पेयजल योजनाओं पर कार्य चल रहा है इसलिए सड़कें सही नहीं हैं। इनमें कार्य होने के बाद पैच वर्क से ठीक किया जा रहा है। जहां तक आंतरिक सड़कों का सवाल है। नगर निगम के संबंध में 2015 में एक शासनादेश आया था, लेकिन इसमें न तो संसाधन उपलब्ध कराए गये और न ही मानव श्रम उपलब्ध कराया गया। अभी शारसनादेश में एक संशोधन किया गया। जिसमें 10 मीटर से अधिक चैड़ी सड़कों को लोक निर्माण विभाग बनाएगा। हमारी सरकार ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में सड़कों के निर्माण व रख-रखाव के लिए 10-20 करोड़ के प्रस्ताव मांगे थे, परंतु ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि हल्द्वानी की विधायक डाॅ ़ इंदिरा हृदयेश ने कोई प्रस्ताव नहीं दिया।

हाट बाजार जिला पंचायत की आय का जरिया था, परंतु नगर निगम की कोई नीति नहीं है। जिस कारण जो राजस्व नगर निगम को मिलना चाहिए था वो कुछ खास लोगों की जेब में जा रहा है?
देखिए, इस हेतु बायलाॅज बनाना पड़ता है। ये लंबी प्रक्रिया है। पहले बायलाॅज बनाकर इसे नगर निगम बोर्ड में रखकर इसका प्रकाशन करके आपत्तियां मांगी जाती हैं। फिर उनका निस्तारण करके पुनः बोर्ड की सहमति के लिए रखा जाता है फिर उसका गजट नोटिफिकेशन होता है। इस माह के अंत तक प्रक्रिया पूरी करके गजट नोटिफिकेशन जारी हो जाएगा।

हल्द्वानी में अतिक्रमण व पार्किंग की समस्या प्रमुख है अतिक्रमण में तो पार्षदों के संबंधी भी शामिल हैं इसमें निगम मूक दर्शक क्यों बना रहता है?
जहां तक अतिक्रमण का प्रश्न है, जानकारी मिलते ही निगम व प्राधिकरण की टीमें संयुक्त रूप से कार्रवाई करती हैं, लेकिन अतिक्रमण लोगों की आदत में शुमार हो चुका है। इसमें हर नागरिक से सहयोग अपेक्षित है क्योंकि इससे असुविधा आम जनता को ही होती है। पार्किंग के लिए नगर निगम दीर्घकालीन योजना पर काम कर रहा है।

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