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Uttarakhand

आश्रमों की जमीन पर मुनाफे का खेल

धर्मनगरी हरिद्वार में आश्रमों की संपत्ति की लूट मची हुई है। यहां महज दस साल में ही सौ से ज्यादा ट्टार्मिक संपत्तियों पर कब्जे कर लिए गए हैं जिनमें सत्तर से ज्यादा जगहों पर आलीशान होटल बन गए हैं, कमर्शियल रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्स खड़े हो गए हैं। इसी श्रृंखला में घनश्याम भवन आश्रम भी जुड़ गया है। इसके संरक्षक बाबा रामजीवन दास ने संत परंपरा के विरुद्ध दान की बेशकीमती भूमि एक गृहस्थ युवक के नाम कर दी है। ऐसा करने से पहले जिलाट्टिकारी की अनुमति जरूरी थी। प्रशासन की इजाजत के बिना ही जमीन पर प्लॉटिंग कर दी गई। यही नहीं बल्कि इसकी आड़ में सरकारी जमीन तक को बेच दिया गया। इस संबंट्टा में हुई जांच रिपोर्ट में जमीन को सरकार में निहित करने और आरोपी पर मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की गई। लेकिन संत और सियासी गठजोड़ के चलते आरोपियों का बाल बाका भी नहीं हो रहा है

 

धर्मनगरी में हजारों की तादाद में स्थित आश्रम, धर्मशालाओं और अखाड़ों की बेशकीमती भूमि को ठिकाने लगाने का खेल बेरोकटोक जारी है। भू-माफिया ही नहीं बदली हुई परिस्थितियों में आश्रमों के संत भी श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान के धन से ट्रस्ट के नाम न खरीद कर अपने निजी नाम से जमीन खरीद रहे हैं। बाद में इन संपत्तियों को बेचकर प्रॉपर्टी डीलर बने हुए हैं। संत का चोला गेरुआ वस्त्र पहनकर संत होने का दावा तो करने वाले संत परम्परा के तमाम नियमों की अवहेलना करते हुए गृहस्थ व्यक्ति के नाम वसियत कर करोड़ों रुपए की संपत्ति खुर्द-बुर्द करने में लगे हैं। इसी के साथ ही सरकारी जमीनों पर भी कब्जे कर उन्हें बेचा जा रहा है।

ताजा मामला भी हरिद्वार के दूधाधारी चौक स्थित बाबा राम जीवन दास जी महात्यागी सेवा ट्रस्ट से जुड़ा हुआ है। घनश्याम भवन आश्रम के जगद्गुरु तथा ट्रस्ट के संरक्षक महंत ने अपनी खास समझे जाने वाली एक नजदीकी महिला के देहरादून निवासी पुत्र के नाम सारी संपत्ति कर दी है। यही नहीं सरकार को स्टाम्प ड्यूटी का चूना लगाते हुए यह संपत्ति रजिस्टर्ड बैनामे के बजाय महिला के पुत्र को केयरटेकर घोषित कर पावर ऑफ अटॉर्नी के नाम पर की गई। यह वह संपत्ति थी जो महंत रामाधार ने ट्रस्ट के अध्यक्ष पद पर रहते खरीदी थी। यह अलग बात है कि ट्रस्ट में आने वाले दान से मिले धन से तमाम संपत्तियां ट्रस्ट के नाम न खरीद कर महंत रामाधार ने अपने निजी नाम से क्रय की। खरीदी गई तमाम संपत्तियां महंत रामाधार ने अपने आपको सी-74, शिवाजी पार्क, पंजाबी बाग, दिल्ली का निवासी बताते हुए खरीदी। महंत रामाधार ने संरक्षक बाबा रामजीवन दास जी महात्यागी ट्रस्ट के तौर पर पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए मुनीन्द्र शान शर्मा के पक्ष में दान पत्र तैयार किए जिनमें भारत माता पुरम की गौशाला, पंजाबी बाग शिवाजी पार्क का मकान, हरिपुर की गौशाला, ज्वालापुर के बहादराबाद में 6 बीघा जमीन, तीन बीघा भूमि धनपुरा सहित सीताराम मंदिर आश्रम देहरादन, कौलागढ़ आश्रम तथा भूमि दो प्लाट क्रमशः 6 बीघा व 3 बीघा अपना बैंक खाता आश्रम तथा निजी सभी कुछ महिला पुत्र पर न्यौछावर कर डाला।

 

राजस्व उपनिरीक्षक की जांच रिपोर्ट : जमीन को सरकार में निहित करने की सिफारिश

कहा जा रहा है कि नियम अनुसार एक संत द्वारा इस प्रकार पावर ऑफ अटॉर्नी किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं की जा सकती है, अगर किया जाना आवश्यक भी था तो इससे पूर्व जिलाधिकारी की अनुमति ली जानी थी, लेकिन इस प्रकरण में जिलाधिकारी की कोई अनुमति नहीं ली गई। आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि संपत्ति के साथ-साथ ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष महंत रामाधार ने युवक के खाते में करोड़ों रुपए भी आरटीजीएस के माध्यम से भेजे हैं। यह मामला यहीं नहीं रूका, बल्कि जिस युवक के नाम पर संत द्वारा यह पावर ऑफ अटॉर्नी की गई उस युवक ने महंत की संपत्ति की आड़ में सरकारी संपत्ति को ही ठिकाने लगाना शुरू कर दिया। संत के इस कृत्य को लेकर बकायदा मुख्यमंत्री से शिकायत की गई है। आरोप लगाने वाले बाबा रामजीवनदास जी महात्यागी सेवा ट्रस्ट के वर्तमान अध्यक्ष महंत किशन दास ने युवक के नाम पावर ऑफ अटॉर्नी करने वाले ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष रामाधार और देहरादून निवासी युवक के ऊपर गंभीर आरोप लगाए हैं जिसके अनुसार महंत रामाधार दास देहरादून के मंदिर, हरिद्वार स्थित आश्रम एवं ट्रस्ट का संचालन एवं प्रयोग करते चले आ रहे थे। कुछ समय पूर्व संदेह हुआ कि जो पैसा आश्रम से दान द्वारा प्राप्त हो रहा है उसका सदुपयोग नहीं किया जा रहा है। जिसके बाद खुलासा हुआ कि महंत रामाधार द्वारा कुछ जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी करते हुए तमाम संपत्ति मुनीन्द्र शान शर्मा के नाम कर दी। जब इस संबंध में महंत रामाधार से जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि भूमि निजी नाम पर है। जबकि रामाधार दास अपने विद्यार्थी जीवन के पश्चात् संन्यास धारण कर संत प्रयाग दास जी के शिष्य हो गए और ट्रस्ट के अध्यक्ष बन गए। जो दान आश्रम में आने वाले भक्तों, गौसेवा, संत सेवा, विद्यार्थी सहयोग सहित धार्मिक कार्य के लिए ट्रस्ट को दिया गया उससे रामाधार ने निजी नाम से भूमि खरीद कर साधु समाज की धारणा को ही गलत ठहरा दिया। मंहत किशन दास द्वारा यह भी आरोप लगाया गया कि महाराज रामाधार दास को ब्लैकमेल कर तमाम संपत्ति षड्यंत्र के तहत हड़पी गई है। हालांकि यह जांच का विषय है।

महंत किशनदास द्वारा मुख्यमंत्री को दी गई शिकायत पर जांच करते हुए थाना बहादराबाद के उपनिरीक्षक आनंद मेहरा ने सितंबर 2022 में एसएसपी को भेजी जांच में खुलासा करते हुए कहा है कि महंत रामाधार द्वारा की गई पावर ऑफ अटॉर्नी के चलते मुनीन्द्र शान शर्मा ने मौके पर मौजूद 5 बीघा ट्रस्ट की भूमि व 10 बीघा सरकारी भूमि भी अवैध तरीके से बेच डाली है। उक्त भूमि की फर्जी रजिस्ट्री तहसील ज्वालापुर में की गई है। यही नहीं बल्कि प्रकरण की जांच करने वाले उपनिरीक्षक आनंद मेहरा ने बाबा रामजीवन महात्यागी सेवा ट्रस्ट की भूमि एवं सरकारी भूमि को अवैध रूप से धोखाधड़ी से बेचने पर ज्वालापुर तहसील में मुकदमा दर्ज किए जाने की संस्तुति की है। आनंद मेहरा ने अपनी जांच रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख किया कि जांच के दौरान महंत रामाधार से जब यह पूछा गया कि आपने वर्ष 1981-82 से ट्रस्ट का अध्यक्ष रहते हुए निजी संपत्ति का अर्जन किस प्रकार किया तो इस संबंध में महंत रामाधार कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दे पाए। साथ ही मुनीन्द्र शान शर्मा को की गई संपत्ति की वसीयत तथा पावर ऑफ अटॉनी किए जाने का कोई स्पष्ट कारण भी रामाधार दास नहीं बता पाए।

जांच अधिकारी द्वारा एसपी सिटी हरिद्वार को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में गड़बड़ झाला सामने आने के बावजूद कोई कार्रवाई न होना अपने आप में बड़ा सवाल है? सवाल यह है कि क्या करोड़ों रुपए की इस संपत्ति को ठिकाने लगाए जाने के खेल में शामिल आरोपियों पर कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है। सूत्र बता रहे हैं कि उप जिलाधिकारी हरिद्वार की पहल पर मुनीन्द्र शान शर्मा द्वारा बेची गई सरकारी भूमि पर फिलहाल जिला प्रशासन ने अपना बोर्ड लगा लिया है। लेकिन भू-माफिया, संत, अधिकारी की तिकड़ी के चलते यह मामला सुर्खियों में है। इस मामले में अगस्त 2022 में अपर जिलाधिकारी पीएल शाह द्वारा जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व को भेजे गए एक पत्र में स्पष्ट लिखा है कि रामाधार दास द्वारा की गई पावर ऑफ अटार्नी के चलते 23 विक्रय पत्रों के खिलाफ नियम अनुसार धारा 166/167 के अंतर्गत राज्य सरकार में निहित किया जाना चाहिए। इस संबंध में अपर जिलाधिकारी ने भी 29 अगस्त 2022 को न्यायालय में वाद योजित करने के निर्देश दिए हैं। अपर जिलाधिकारी इस संबंध में इन धारा 166 एवं 167 के अंतर्गत वाद योजित कर अवगत कराने का कष्ट करें। जिस प्रकरण में पुलिस-प्रशासन के तमाम आला अधिकारी कार्यवाही के निर्देश जारी करते रहे हैं उसमें कार्यवाही नहीं की जा रही है। परिणाम स्वरूप आज भी निजी भूमि की आड़ में सरकारी एवं ट्रस्ट की संपत्ति खुर्द-बुर्द किए जाने का खेल बदस्तूर जारी है।


अपर जिलाधिकारी के जिला शासकीय अधिवक्ता को निर्देश

संपत्ति विवाद में संतों की हत्या
धर्मनगरी में संपत्ति को लेकर संतों की हत्या किए जाने की शुरुआत दशकों पुरानी रही है। 90 के दशक की बात करें तो साल 1991 में एक संत की हत्या से धर्मनगरी में सनसनी फैली थी। 25 अक्टूबर, 1991 को रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य आश्रम के बाहर टहल रहे थे, तभी स्कूटर सवार लोगों ने उन्हें घेर लिया। उनको गोली मारी गई और फिर चाकू से गोदकर बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। संतों के कत्ल का यह सिलसिला यहीं से शुरू हुआ जो अभी तक बदस्तूर जारी है। 9 दिसंबर, 1993 को संत राघवाचार्य के साथी रंगाचार्य की भी ज्वालापुर में हत्या कर दी गई थी। बात करे अभी तक धर्मनगरी में हुई संतों की हत्याओं की तो चेतनदास कुटिया आश्रम में अमेरिकी साध्वी प्रेमानंद की दिसंबर 2000 में लूटपाट के बाद हत्या कर दी गई। 5 अप्रैल 2001 को बाबा सुतेंद्र बंगाली की हत्या की गई थी, वहीं 6 जून, 2001 को हरकी पैड़ी के सामने टापू में बाबा विष्णुगिरि समेत चार साधुओं की हत्या हुई। 26 जून 2001 को एक अन्य बाबा ब्रह्मानंद की हत्या हुई और इसी साल पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को दिनदहाड़े गोली से उड़ा दिया गया। 17 अगस्त 2002 बाबा हरियानंद, उनके शिष्य और एक अन्य संत नरेंद्र दास की भी हत्या की गई। 6 अगस्त, 2003 को संगमपुरी आश्रम के प्रख्यात संत प्रेमानंद उर्फ भोले बाबा गायब हो गए। 7 सितंबर 2003 को हत्या का खुलासा पुलिस ने किया और आरोपी गोपाल शर्मा को गिरफ्तार किया गया था। 28 दिसंबर 2004 को संत योगानंद के हत्यारों का आज तक पता नहीं चला। 15 मई 2006 को पीली कोठी के स्वामी अमृतानंद की हत्या कर संपत्ति पर सरकारी कब्जा कर लिया गया। 25 नवंबर 2006 को सुबह इंडिया टेम्पल के बाल स्वामी की गोली मारकर हत्या कर दी गई जिसमें तीन हत्यारों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, साजिश के तार अयोध्या से जुड़े बताए जा रहे थे। वहीं 8 फरवरी, 2008 को निरंजनी अखाड़े के 7 साधुओं को जहर देकर मार दिया गया था जिनके आरोपी आज तक नहीं पकड़े गए। 14 अप्रैल 2012 निर्वाणी अखाड़े के महंत सुधीर गिरि की रुड़की के बेलड़ा में हत्या हुई थी। 20 दिसंबर 2021 को महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत का रहस्य खुलना बाकी है। जिसकी सीबीआई जांच चल रही है।

बात अपनी-अपनी
यह प्रकरण मेरी जानकारी में है, इसकी जांच मेरे द्वारा थाना बहादराबाद से कराई गई थी। जांच में शिकायती पत्र में लिखे गए तथ्य सही पाए गए हैं। बस इतना तय होना है कि मुकदमा ज्वालापुर कोतवाली में दर्ज हो या थाना बहादराबाद में। इस संबंध में कप्तान साहब से चर्चा करने के उपरांत ही स्पष्ट बता पाऊंगा। लेकिन इतना तय मानिए कि इस संबंध में जल्द ही ठोस कार्यवाही कराई जाएगी।
स्वतंत्र कुमार, पुलिस अधीक्षक नगर, हरिद्वार

तहसीलदार की रिपोर्ट पर मेरे द्वारा कार्यवाही करते हुए पूरे प्रकरण के संबंध में अपर जिलाधिकारी महोदय को कार्यवाही के लिए संस्तुति की गई है। जो भी कार्यवाही में देरी हो रही है वह अपर जिलाधिकारी के स्तर से हो रही है। मेरे द्वारा एफआईआर दर्ज किए जाने के आदेश तहसीलदार को जारी किए गए हैं।
पूरण सिंह राणा, उप जिलाधिकारी, हरिद्वार

मेरे द्वारा अपने परिचित मुनीन्द्र शान शर्मा को अपनी भूमि की पावर ऑफ अटॉर्नी की गई थी। अगर उसके द्वारा पावर की आड़ में सरकारी भूमि बेची गई है तो उसका वह खुद जिम्मेदार है वैसे मैंने जानकारी मिलने पर एक पावर ऑफ अटॉर्नी निरस्त करा दी थी।
रामाट्टार दास, पूर्व अध्यक्ष बाबा रामजीवन दास जी महात्यागी सेवा ट्रस्ट, घनश्याम भवन आश्रम, दूट्टाट्टारी चौक हरिद्वार

महाराज रामाधार द्वारा तमाम संपत्ति संत व ट्रस्ट का अध्यक्ष रहते भक्तों द्वारा दान किए गए धार्मिक कार्यों हेतु दिए गए धन से निजी नाम से खरीदी। यह संत समाज का भी अपमान है। महाराज द्वारा जिस प्रकार वैष्णव सम्प्रदाय की संत परंपरा का उल्लघंन करते हुए तमाम संपत्ति मुनीन्द्र शान शर्मा एवं उसकी माता को पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से सौंपी गई है उसका मैं पुरजोर विरोध करता हूं। इस संबंध में मुख्यमंत्री जी को शिकायत दी गई है जल्द ही कार्यवाही कराई जाएगी।
केशव दास बैरागी, घनश्याम भवन, भूपतवाला हरिद्वार

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