उत्तराखण्ड की जेल में एक कैदी मार दिया जाता है। प्रदेश सरकार इस मौत पर खड़े हो रहे सवालों का जवाब तलाशने के बजाय पूरे प्रकरण की लीपापोती में जुट जाती है। सरकार का यह रवैया उच्च न्यायालय को खासा नागवार गुजरता है और वह मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के साथ-साथ नैनीताल जिले के पुलिस कप्तान एवं उपकप्तान के तबादले का निर्देश सरकार को दे देता है। हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी राज्य सरकार का दोषी जेलर एवं जेलकर्मियों पर कार्रवाई न करना कई सवाल खड़े कर रहा है। हाईकोर्ट के निर्देश के खिलाफ सरकार का आनन- फानन में सुप्रीम कोर्ट की शरण लेना पूरे प्रकरण में किसी बड़े दबाव की तरफ इशारा कर रहा है
इसी साल मार्च माह में हल्द्वानी जेल में एक कैदी की मौत का मामला सामने आया जिसमें कैदी के परिजनों का आरोप है कि कैदी की जेल में बड़ी निर्ममता से हत्या की गई और आईजी जेल सहित मित्र पुलिस का गठजोड़ दोषियों को बचाने में जुटा हुआ है। संवेदनहीनता की इंतेहा यह है कि नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देशों को दरकिनार करते हुए कैदी की मौत के आरोपी बताए जा रहे बंदी रक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई के बजाय उनको बचाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। हाईकोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद आरोपी बंदी रक्षक आज भी हल्द्वानी जेल में ही ड्यूटी बजा रहे हैं।
मृतक कैदी प्रवेश कुमार की पत्नी ने जेल के ही कुछ सिपाहियों पर अपने पति की हत्या करने का आरोप लगाकर हल्द्वानी कोतवाली में तहरीर दी। इस पर जब कोई कार्रवाई नहीं की गई तो यह मामला सीजेएम कोर्ट से होते हुए नैनीताल हाईकोर्ट तक जा पहुंचा। हाईकोर्ट द्वारा प्रकरण में लंबी सुनवाई के पश्चात सीबीआई जांच के निर्देश जारी किए गए। साथ ही कैदी प्रवेश की मौत की जांच को लेकर हुई लापरवाही के चलते नैनीताल एसएसपी सहित सीओ हल्द्वानी को भी ट्रांसफर किए जाने के निर्देश जारी किए। इससे आईपीएस लाॅबी में हड़कंप मच गया। हाईकोर्ट के निर्देश का पालन किए जाने के बजाय एसएसपी नैनीताल एवं सीओ हल्द्वानी पर कार्रवाई से बचते हुए उत्तराखण्ड सरकार हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची है। यही नहीं अभी तक भी सीओ और एसएसपी के खिलाफ कोई कार्रवाई न किए जाने से संदेह उठ रहा है कि कैदी प्रवेश कुमार की मौत के जिम्मेदार बंदी रक्षकों व तत्कालीन जेलर संजीव हयांकी सहित कोई तो ऐसा बड़ा नाम है जिसको बचाने के लिए सरकार में इस कदर तेजी नजर आ रही है।
बता दें कि काशीपुर के कुंडेश्वरी निवासी प्रवेश कुमार पुत्र रघुवर दयाल अपनी ही बेटी के साथ छेड़छाड़ के आरोप में हल्द्वानी जेल में बंद था। मृतक मूल रूप से यूपी के चंदौसी का रहने वाला था और यहां कुछ साल से अपने ससुराल में किराए का घर लेकर रह रहा था। यहां मेहनत-मजदूरी करके परिवार का पेट पालता था। हल्द्वानी सब जेल में कैद प्रवेश कुमार के लिए 6 मार्च 2021 का दिन उसकी जिंदगी का आखरी दिन साबित हुआ। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रतिदिन जेल में दिनचर्या के अनुसार सामान्य रूप से कार्य चल रहा था तभी उसी दौरान हेड कांस्टेबल देवेंद्र यादव एवं तीन अन्य बंदी रक्षकों ने कैदी प्रवेश कुमार से उगाही के संबंध में बातचीत की। प्रवेश के रुपए देने से मना करने पर वे चारों प्रवेश को पकड़कर ले गए। बताया जाता है कि चारों ने क्रूरता की सभी हदें पार करते हुए प्रवेश कुमार को इस निर्दयता के साथ यातनाएं दी कि प्रवेश ने दम तोड़ दिया।
कैदी प्रवेश की मौत पर पर्दा डालने के लिए पहले तो उसकी मौत को छुपाकर रखा गया फिर अगले दिन प्रवेश के परिजनों को इसकी सूचना दी गई। प्रवेश की मौत की सूचना मिलने पर उसकी पत्नी अपने परिजनों सहित हल्द्वानी पहुंची और घटना के संबंध में जानकारी ली। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उसी दौरान हल्द्वानी सब जेल से छूटे एक बंदी ने प्रवेश के साथ बंदी रक्षकों द्वारा की गई मारपीट और जुल्म की पूरी दास्तान मृतक के परिजनों को बताई तो परिजन सकते में रह गए। इसके साथ ही जहां एक ओर प्रवेश के परिजन इंसाफ के लिए जेल अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के समक्ष कार्रवाई को लेकर गुहार लगाने लगे तो वहीं दूसरी ओर जेल प्रशासन सहित जिला प्रशासन ने भी बंदी रक्षकों की इस नापाक करतूत पर पर्दा डालने का प्रयास शुरू कर दिया।
सूत्र बताते हैं कि हल्द्वानी सब जेल के जेलर संजीव हयांकी की गर्दन फंसते देख इस जेलर के एक रिश्तेदार जो राज्य सरकार में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, पुलिस पर दबाव बनाने लगे। दबाव में जहां पुलिस ने आरोपी जेलकर्मियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किए जाने से हाथ खड़े कर दिए तो वहीं दूसरी ओर कस्टडी डेथ होने के बावजूद जिलाधिकारी स्तर से भी प्रवेश की मौत को लेकर किसी भी प्रकार की न्यायिक जांच नहीं बैठाई गई जो सीधे-सीधे कस्टडी डेथ के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय सहित मानव अधिकार अधिनियम का भी उल्लंघन है। जहां एक ओर पूरा प्रशासन जेलकर्मियों को बचाने में जुटा हुआ था वहीं मृतक प्रवेश की पत्नी अपने पति की मौत के दोषियों पर कार्रवाई की मांग को लेकर पुलिस अधिकारियों की चैखट पर दस्तक देकर गुहार लगाते-लगाते थक गई।
इसी दौरान काशीपुर निवासी एडवोकेट संजीव आकाश की जानकारी में जब यह प्रकरण आया तो गरीबों के लिए निशुल्क सेवाएं देने वाले एडवोकेट संजीव आकाश ने प्रवेश की पत्नी को इंसाफ दिलाने की ठानी। एडवोकेट संजीव आकाश ने बताया कि जब प्रकरण उनकी जानकारी में आया तो सर्वप्रथम मृतक की पत्नी की ओर से एसएसपी नैनीताल को प्रार्थना पत्र देकर दोषी जेल कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किए जाने की गुहार लगाई गई, परंतु एसएसपी द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर नैनीताल के न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर आरोपी जेल कर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई। संजीव के अनुसार सीजेएम ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए जहां एक ओर मुकदमा दर्ज किए जाने के आदेश दिए वहीं दूसरी ओर जिलाधिकारी स्तर से प्रकरण की न्यायिक जांच न कराए जाने को भी गंभीरता से लेते हुए अपने स्तर से जांच अधिकारी नामित करते हुए प्रकरण की जांच कराए जाने का निर्देश दिया। यही नहीं हल्द्वानी सब जेल के जेलर संजीव हयांकी को भी कस्टडी डेथ होने के बावजूद उसकी सूचना न्यायालय को न देने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।
सीजेएम नैनीताल के आदेश पर आरोपी बंदी रक्षकों के विरुद्ध हल्द्वानी कोतवाली में भले ही मुकदमा दर्ज कर लिया गया, लेकिन पूरे घटनाक्रम में दोषी बताए जा रहे हल्द्वानी जेल के बंदी रक्षकों के विरुद्ध गिरफ्तारी तो क्या अपितु उनके स्थानांतरण जैसी सामान्य कार्रवाई भी नहीं की गई। यही नहीं मुकदमा दर्ज होने के बावजूद पूरा जिला प्रशासन आरोपियों को बचाने की जुगत में लगा रहा। आखिर में थक-हार कर इस मामले की पुरजोर पैरवी में लगे एडवोकेट संजीव आकाश पूरे प्रकरण को उच्च न्यायालय नैनीताल में ले गए और मृतक की पत्नी की ओर से नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई जिसमें चली लंबी सुनवाई के पश्चात हाईकोर्ट द्वारा आरोपी बंदी रक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करने तथा उनका स्थानांतरण करने और एसएसपी नैनीताल सहित सीईओ हल्द्वानी को भी स्थानांतरित किए जाने के निर्देश देने पड़े।
यही नहीं प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने मुकदमे की जांच सीबीआई से कराए जाने के निर्देश भी जारी कर दिए। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी सरकारी मशीनरी दोषी
जेलकर्मियों को बचाने में जुटी स्पष्ट नजर आ रही है। दोषियों को बचाने के लिए जहां एक ओर आज तक भी आईजी जेल द्वारा दोषी बंदी रक्षकों का स्थानांतरण नहीं किया गया है, तो वहीं दूसरी ओर पूरी घटना के चश्मदीद बताए जा रहे कुछ सजायाफ्ता बंदियों का स्थानांतरण प्रदेश की अन्य जेलों में मात्र इसलिए कर दिया गया कि जिससे सच सामने ना आ सके। सच पर पर्दा डालने का यह खेल आज भी बदस्तूर जारी है। राज्य सरकार भी नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करवाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची है। इससे सरकार सवालों के कटघरे में आ गई है। क्या अधिकारियों और आरोपी बंदी रक्षकों को बचाने के लिए इस तेजी के साथ की जा रही पैरवी सरकार की नीयत पर संदेह के लिए काफी नहीं है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हल्द्वानी जेल में हुई इस निर्मम हत्या के सच पर पर्दा डालने की कोशिशों में लगे जेल प्रशासन ने जहां एक ओर चश्मदीद बताए जा रहे सजायाफ्ता बंदियों को एकाएक प्रदेश की अन्य जेलों में शिफ्ट करने के निर्देश जारी किए तो वहीं दूसरी ओर जो बंदी रक्षक इस घटना में शामिल नहीं थे, परंतु उनके द्वारा जांच एजेंसी को सच-सच बताए जाने की आशंका बनी हुई थी, उन बंदी रक्षकों को भी अन्य जेलों में अटैच कर दिया गया है। मृतक कैदी प्रवेश के परिजनों के अनुसार इंसाफ मिलने तक यह जद्दोजहद जारी रहेगी तो वहीं दूसरी ओर पूरे प्रकरण में आरोपियों के विरुद्ध जोरदार पैरवी में जुटे एडवोकेट संजीव आकाश ने बताया कि मृतक प्रवेश ही नहीं अब प्रदेश की तमाम जेलों में हुई रहस्यमय मौतों की जानकारी जुटाकर एक नई जनहित याचिका दाखिल कर आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन इसके विपरीत महानिरीक्षक कारागार एपी अंशुमन अभी भी आरोपी बंदी रक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर लीपापोती करने में जुटे हुए हैं। अंशुमन के अनुसार जो नैनीताल हाई कोर्ट ने निर्देश जारी किया है वह गृह सचिव के लिए है और गृह सचिव यानी सरकार उस निर्देश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई है। उनके अनुसार कार्रवाई शासन से होनी है, जबकि बंदी रक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई का अधिकार सीधे-सीधे महानिरीक्षक कारागार के पास है। बावजूद इसके एपी अंशुमन पूरे प्रकरण से पल्ला झाड़ते नजर आए।
बात अपनी-अपनी
नैनीताल हाईकोर्ट ने जो निर्देश दिया है वह गृह सचिव उत्तराखण्ड सरकार के लिए है। सरकार उस निर्देश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में चली गई है। कार्रवाई गृह सचिव के स्तर से की जानी है।
एपी अंशुमन, महानिरीक्षक कारागार उत्तराखण्ड
यह प्रकरण मेरे स्तर का नहीं है जहां तक वर्तमान में भी बंदी रक्षकों के हल्द्वानी जेल में तैनाती का सवाल है तो हां अभी तक उनको हल्द्वानी जेल से नहीं हटाया गया है। यह अधिकार महानिरीक्षक कारागार के पास है। आप महानिरीक्षक कारागार से जानकारी ले सकते हैं।
एसके सुखीजा, अधीक्षक हल्द्वानी कारागार
मामला सीबीआई को जा चुका है। जहां तक पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही न किए जाने का सवाल है तो अब आप इस संबंध में जेल विभाग अथवा सीबीआई से पूछिए।
प्रीति प्रियदर्शनी, एसएसपी नैनीताल
जब यह प्रकरण मेरी जानकारी में आया तो मैंने जानकारी जुटाकर पीड़ित पक्ष से संपर्क किया और उनका मुकदमा निशुल्क लड़ने का फैसला किया। मेरा मकसद था पीड़ित को इंसाफ दिलाना। माननीय नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के बावजूद सरकार कार्रवाई के बजाय आरोपियों को बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गई है जहां हमने भी अपना पक्ष रखने का निर्णय लिया है।
संजीव आकाश, एडवोकेट काशीपुर