पेपर लीक प्रकरण पर जब सूबे के हजारों बेरोजगार देहरादून की सड़कों पर उतरे तो एक बारगी लगा कि ट्टामी सरकार के लिए इनको संभालना आसान नहीं है। कई दिनों तक ट्टारना-प्रदर्शन के दौरान बेरोजगारों पर जब पुलिस की लाठियां चली तो विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसे हाथों हाथ ले लिया। कांग्रेस इस मुद्दे को 2024 के लोकसभा चुनावों में सरकार के खिलाफ बड़ा हथियार बनाने के ख्वाब सजो रही थी। लेकिन तेजतर्रार मुख्यमंत्री पुष्कर सिह ट्टामी ने प्रदेश में देश का सबसे सख्त नकल विरोट्टा कानून लागू कर विपक्ष को चारो खाने चित्त कर दिया। इसके बाद विपक्ष ने विट्टानसभा में बैकडोर भर्ती से बर्खास्त हुए 228 कर्मियों को सरकार के खिलाफ मुख्य मुद्दा बना लिया है। इस मुद्दे में उस समय जान पड़ गई जब पूर्व सांसद और वरिष्ठअट्टिवक्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने बर्खास्त कर्मियों को न्याय दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने की घोषणा कर दी
घटनाक्रम एक
देहरादून के अभिनव थापर ने पिछले साल दिसंबर में हाईकोर्ट नैनीताल में एक याचिका दाखिल कर कहा है कि उत्तराखण्ड में बैकडोर भर्ती का मामला सामने आया है। जिसमें सिर्फ 2016 के बाद की भर्तियों को ही निरस्त किया गया है। जबकि यह भर्ती घोटाला राज्य बनने के बाद से ही आज तक लगातार चला आ रहा है। अभिनव थापर ने याचिका में अपने करीबियों को बैकडोर से भर्ती करने का आरोप लगाया है। याचिका में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज से करने की मांग है और सरकारी धन को रिकवर करने की भी याचिका में गुहार लगाई गई है। साथ ही उन्होंने अब तक की गई सभी भर्तियों की जांच की मांग के साथ जिन लोगों ने ये भर्तियां की हैं, उन पर कार्रवाई की मांग की गई है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस मनोज कुमार तिवारी ने कोर्ट में सुनने के बाद सरकार और विधानसभा को नोटिस जारी कर 8 हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।
घटनाक्रम दो
पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने गत 26 फरवरी को कहा कि वह उत्तराखण्ड विधानसभा से 200 से ज्यादा तदर्थ कर्मचारियों की बर्खास्तगी को जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। देहरादून में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए स्वामी ने विधानसभा के 228 कर्मचारियों की बर्खास्तगी को संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया और कहा कि वह कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए जल्द ही सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक ही संस्थान में एक ही प्रक्रिया से नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों की वैधता पर दो अलग-अलग निर्णय कैसे लिए जा सकते हैं? कुछ लोगों की नियुक्ति को अवैध बताने के बाद भी बचाया गया जबकि कुछ लोगों की नियुक्ति को अवैध करार कर भेद-भावपूर्ण रवैया अपनाते हुए बर्खास्त भी कर दिया गया। यह कहां का न्याय है कि 2001 से 2015 की अवैध तरीके से की गई नियुक्तियों को संरक्षण दिया जा रहा है और 2016 से वर्ष 2022 तक के कार्मिकों को सात वर्ष की सेवा के उपरांत एक पक्षीय कार्यवाही कर बर्खास्त कर दिया गया। स्वामी ने कहा कि कर्मचारियों को बहाल करने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी चिट्ठी लिखी है क्योंकि उन्हें बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने का अधिकार है। न्यायालय में इस मुद्दे पर सरकार के हारने का दावा करते हुए स्वामी ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल नही करते तो ‘मैदान-ए-जंग का ऐलान’ है।
घटनाक्रम तीन
विधानसभा से बर्खास्त 228 कार्मिकों का आंदोलन जारी है। नव वर्ष 2023 के पहले दिन आंदोलनकारियों ने सांकेतिक रूप से गले में फंदा बांधकर अनोखे अंदाज में विरोध किया था। इससे पहले 31 दिसंबर को कर्मियों ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पत्र लिखकर न्याय न मिलने की स्थिति में इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी थी। राष्ट्रपति को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि राज्य गठन के समय से ही विधानसभा सचिवालय में सभी भर्तियां एक प्रक्रिया के तहत हुई हैं। लेकिन भर्तियों को अवैध बताकर विधानसभा की ओर से वर्ष 2016 से 2021 में नियुक्त 228 कर्मचारियों को बर्खास्त करने की कार्रवाई की गई। वर्ष 2000 से 2015 तक नियुक्त कर्मचारी नियमित होने से उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। हटाए गए कार्मिकों में कई विकलांग, विधवा होने के साथ ही कई ओवरएज हो चुके हैं। जिससे उनके परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
गौरतलब है कि विधानसभा में बैकडोर से भर्तियों का मामला सामने आने के बाद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी भूषण ने गत वर्ष 3 सितंबर 2022 को पूर्व आईएएस अधिकारी डीके कोटिया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था। जांच समिति ने राज्य गठन से 2021 तक तदर्थ आधार पर की गईं नियुक्तियों की जांच कर 20 दिन के भीतर 22 सितंबर 2022 को विधानसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंप दी थी। समिति ने जांच में पाया कि तदर्थ आधार पर नियुक्तियां नियम विरुद्ध की गई हैं। साथ ही यह भी पाया गया कि नियुक्तियों में यह घपला वर्ष 2001 से ही चला आ रहा है। समिति की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने 23 सितंबर को तत्काल प्रभाव से 2016 से 2021 तक की गई कुल 228 नियुक्तियां को रद्द कर कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था। जबकि 2016 से पहले की नियुक्तियों के मामले में कुछ स्पष्ट नहीं किया गया। बर्खास्तगी के बाद कर्मचारी हाईकोर्ट गए तो वहां भी उन्हें निराशा मिली। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दी थी।
2016 में कांग्रेस की सरकार में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोंविद सिंह कुंजवाल के द्वारा विधानसभा में बैकडोर से भर्ती करवाई गई थी जिसमें उनके पुत्र और पुत्रवधु के साथ-साथ रिश्तेदारां को भी नियुक्तियां दी गईं। इस तरह से अपने ही नेताओं के रिश्तेदारों जो कि बैकडोर से भर्ती हुये थे, को निकाले जाने के बाद कांग्रेस के नेताओं की हालत ऐसी हो गई कि उनसे कुछ बोलते नहीं बन पाया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जो कि प्रेमचंद अग्रवाल के द्वारा बैकडोर से भर्ती किये गये कर्मचारियों की सेवायें समाप्त करने के कदम को स्पीकर का साहसिक कदम बता रहे थे, वहीं कुंजवाल के द्वारा की गई भर्ती को सही ठहराने का प्रयास करने लगे। हालांकि कुछ समय बाद हरीश रावत ने अपनी गलती मानी और सभी कार्यवाही को उचित ठहराया। लेकिन अचानक ही कांग्रेस का मोह इन बर्खास्त कर्मचारियों के प्रति बढ़ गया और अब उनकी सेवाओं की बहाली के लिए बीच का रास्ता निकाले जाने की बात पार्टी द्वारा की जाने लगी है। यही नहीं अनेक कर्मचारी संगठन भी इन कर्मचारियों की सेवा बहाली की मांग करने लगे हैं। सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी के अलावा मिनिस्ट्रीयल कर्मचारी संघ, शिक्षक कर्मचारी संगठनों के द्वारा भी बर्खास्त कर्मचारियों की पुनः बहाली की मांग कर रहे हैं। यह संगठन न सिर्फ सरकार से मांग कर रहे हैं, साथ ही कर्मचारियों के धरना स्थल पर जाकर उनको पूरा समर्थन भी दे रहे हैं।
कांग्रेस ने पहले भी युवाओं खासकर छात्रो के लिए लड़ाई लड़ी है। पूर्व में आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में फीस वृद्धि को लेकर राज्य के आयुर्वेदिक छात्र सड़को पर आंदोलन कर रहे थे। इस मामले में हाईकोर्ट ने छात्रों के पक्ष में आदेश जारी किये थे। लेकिन तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार और शासन हाईकोर्ट के आदेश का पालन तक नहीं करवा पा रही थी। इस मामले में भी कांग्रेस के नेताओं ने छात्रों को समर्थन दिया। बहरहाल, कांग्रेस नेता प्रकाश जोशी पूरी तरह से छात्रो के साथ खड़े रहे और उनके लिये हाईकोर्ट में भी गए। कांग्रेस बैकडोर से भर्ती हुये कर्मचारियों को फिर से नौकरी पर रखे जाने की बात कर रही है। कांग्रेस नेता 2000 से 2012 तक हुई बैकडोर की भर्ती को भी रद्द करने की मांग कर रहे है। उनका मानना है कि जब 2000 से लेकर 2022 तक हुई सभी भर्तियां अवैध हैं तो फिर 2016 के बाद के ही कर्मचारियों पर क्यों कार्यवाही की गई है।
हालांकि यह मामला कांग्रेस के लिये एक बड़ी मुसीबत बन भी सकता है। क्योंकि 2000 से लेकर 2016 तक भर्ती हुए 396 कर्मचारी नियमित हो चुके हैं और उन पर अगर कार्यवाही होती है तो कांग्रेस के खिलाफ माहौल बन सकता है। हालांकि इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष का रवैया भी पूरी तरह से स्पष्ट नही दिखाई दे रहा है। 2000 से हुई भर्ती के मामले में उनके द्वारा राज्य के महाअधिवक्ता एस एन बाबुलकर से विधिक राय मांगी गई थी। जिस पर प्रदेश के महाअधिवक्ता द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को 2016 से पहले के कर्मचारियो के नियमितीकरण पर अपनी विधित राय देने से साफ तौर पर मना किया जा चुका है।
पहले तो हम सरकार की जांच कमेटी का ही विरोध करते रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने जिस तरह से जांच कमेटी का गठन किया वह परंपराओं को तोड़ने का काम किया गया है। विधानसभा प्रकरण की जांच पीठ के समकक्ष लोग या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आदि ही कर सकते है लेकिन एक रिटायर्ड आईएएस को कोटिया की कमेटी से जांच कराई गई। इसके बाद भी जब कोटिया ने जांच कमेटी में लिखा कि प्रदेश के गठन के बाद से ही पहली नियुक्ति से लेकर अंतिम नियुक्ति तक घोटाला हुआ और जमकर भाई-भतीजावाद हुआ तो यह नियमावली का उल्लंघन है। हमारी लड़ाई शुरू से ही यही है कि उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने अपने परिजनों को नौकरी पर रखा। 2013 का एक कानून भी है जो कहता है कि अवैध नियुक्ति कराने वालों पर कार्यवाही होनी चाहिए। इसी के साथ विधानसभा ने जब जांच करा ही ली तो उन नेताओं के स्पष्ट नाम सामने आने चाहिए थे जिन पर भाई-भतीजे और रिश्तेदारों को नौकरी लगाने के आरोप हैं। हमारा कहना है कि जिन्होंने अपने जीवन के आठ साल राज्य की सेवा में लगा दिए जांच और कार्यवाही उन पर ही क्यों? उन सब पर क्यों नहीं जो राज्य गठन के बाद से ही नेताओं की कृपा पर नौकरी पाए थे। हमारी लड़ाई उन नेताओं से है जिन्होंने लोकतंत्र के मंदिर में यह शर्मनाक कृत्य किया।
करण माहरा, प्रदेश अध्यक्ष उत्तराखण्ड कांग्रेस