प्रवीन सिंह ‘काशी’ की जन्मभूमि बेशक बनारस हो, लेकिन उनकी कर्मभूमि उत्तराखण्ड है। यहां के जन आंदोलनों में उनकी जोरदार सक्रियता को देखते हुए लोग उन्हें अपना ही मानते हैं
प्रवीन सिंह ‘काशी’ उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निवासी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के इस छात्र का उत्तराखण्ड से लम्बा नाता तो नहीं रहा, लेकिन अल्प समय में उत्तराखण्ड राज्य के जनसरोकारों से जिस प्रकार उन्होंने खुद को जोड़ लिया है वो दर्शाता है कि जन्मभूमि आपकी कोई भी हो कर्मभूमि आपके प्रयासों को सराहती भी है और आपके कार्यों को भूलती भी नहीं है। उत्तराखण्ड आंदोलनों का प्रदेश रहा है जहां उत्तराखण्ड के लोगों के साथ अन्य प्रदेश के लोगों ने भी यहां के आंदोलनों में बढ़- चढ़कर भागीदारी की है। उन्हीं में शामिल हैं प्रवीन सिंह ‘काशी’। ‘काशी’ उपनाम उनको हरियाणा के फतेहाबाद के लोगों ने दिया था जहां वो नो की प्रवृत्ति के खिलाफ युवाओं को जागृत करने के लिए 60-70 गांवों की पदयात्रा पर निकल गए थे। उनकी इसी पदयात्रा का परिणाम था कि फतेहाबाद के लोग ‘नो’ की प्रवृत्ति के विरुद्ध जागरूक हुए और प्रशासन ‘नो’ के खिलाफ सख्त हुआ। ‘पहाड़ी आर्मी’ के संस्थापक सदस्य प्रवीन सिंह के पिता सुखदेव नारायण सिंह और माता माधवी सिंह बनारस में ही रहते हैं।
एम्स ऋषिकेश में यूजर चार्ज वृद्धि के विरोध में आंदोलन चलाने वाले प्रवीन सिंह तब तक आंदोलन में डटे रहे जब तक एम्स ऋषिकेश में बढ़े हुए शुल्क वापस नहीं लिए गए। इन बढ़े हुए शुल्कों की मार उस गरीब मरीज पर पड़नी थी जो निजी अस्पतालों में इलाज कराने में असमर्थ हैं। उनके इस आंदोलन का असर अन्य राज्यों के एम्स पर भी पड़ा जो शुल्क वृद्धि की ताक में थे, उन्हें अपने कदम रोकने पड़े। बनारस से आकर उत्तराखण्ड के लोगों की लड़ाई लड़ने वाले प्रवीन सिंह कहते हैं कि राजनीतिक लोगों के लिए गैरसैंण राजनीतिक मुद्दा हो सकता है, लेकिन उन्हें सोचना होगा उत्तराखण्ड के लिए गैरसैंण अस्मिता से जुड़ा मुद्दा है। ‘ना नहीं रोजगार दो’ मुद्दे पर जनता को जागरूक करने और सरकारों को चेताने के लिए कुमाऊं गढ़वाल की पैदल यात्रा कर चुके प्रवीन 2017 में शीतकालीन सत्र के दौरान, जो गैरसैंण में आयोजित हुआ था, राजधानी के मुद्दे को लेकर अनशन पर बैठे थे। श्रीनगर के गोलापार्क में 20 दिन अनशन और गैरसैंण में 30 तक अनशन पर बैठे प्रवीन सिंह का कहना है कि गैरसैंण मुद्दे पर बनी केंद्रीय संघर्ष समिति से अपेक्षा बहुत थी पर वो अपना कर्तव्य ढंग से नहीं निभा पाई। उस केंद्रीय समिति के पदाधिकारी उत्तराखण्ड के सरोकारों के प्रति शायद ज्यादा जागरूक थे लेकिन वो जागरूकता क्षणिक ही थी जो लंबे समय तक टिकी नहीं रह सकी और आंदोलन छिन्न-भिन्न हो गया। 2018 में गैरसैंण बजट सत्र के समय गैरसैंण स्थाई राजधानी के लिए एक बड़ा आंदोलन हुआ जिसमें बड़ी संख्या में गैरसैंण के आस-पास के लोग आंदोलन में शामिल हुए। इस धरना-प्रदर्शन में शामिल 40 लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। 38 आंदोलनकारियों के जेल जाना पड़ा था।
इसी संबंध में उन्हें भी सम्मन मिला और वो 14 सितंबर को जेल चले गए। राजनीतिक दलों की नीयत पर सवाल खड़े करते हुए प्रवीन ‘काशी’ का कहना है कि पहाड़ी राज्य की परिकल्पना बिना गैरसैंण राजधानी के अधूरी है। नेताओं और अफसरों के स्वार्थ के चलते देहरादून राजधानी है। आज जब अर्थव्यवस्था बेरोजगारी दोनों नकारात्मक स्तर पर हैं दो राजधानी का औचित्य क्या हैं? आज कांग्रेस परिवर्तन यात्रा निकाल रही है, लेकिन इस परिवर्तन यात्रा में गैरसैंण कहा है? वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ‘नो पेंडिंग कम्पेन’ चला रहे हैं। लेकिन राजधानी का मुद्दा तो ‘पंेडिंग’ है। क्या उनके इस ‘नो पेंडिंग’ मुहिम में गैरसैंण के लिए कोई जगह है, शायद नहीं। ‘काशी’ का मानना है गैरसैंण का मुद्दा उनके लिए सिर्फ ‘इवेंट’ नहीं है उनके लिए पूर्णकालिक मुद्दा है और वो इसके लिए निरंतर संघर्षरत रहेंगे चाहे उन्हें गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित होने तक जेल में ही क्यों न रहना पड़े।