इसी साल जनवरी के अंत में प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अगले दो वर्ष में 50 हजार पॉली हाउस बनाने की घोषणा की थी। पॉली हाउस योजना के लिए कैबिनेट ने 304 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया है। इस योजना में मानक बेहद सरल और किसानों के हित में रखे गए हैं। पॉली हाउस बनाने पर सरकार लागत पर 70 फीसदी तक सब्सिडी देगी। किसानों को केवल 30 प्रतिशत पूंजी लगानी होगी। ऐसी ही घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल में हुई थी तब कृषि मंत्री अमृता रावत पर भाजपा द्वारा पॉली हाउस में घोटाला करने के आरोप लगाए गए थे। यही नहीं कैग द्वारा दी गई रिपोर्ट में भी पॉली हाउस योजना में बड़े स्तर पर घोटाले होने का खुलासा किया गया था। इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने कार्रवाई करने का दावा किया था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फलस्वरूप आज भी उद्यान विभाग में घपले-घोटालों का सिलसिला जारी है। विभाग के निदेशक हरमिंदर बवेजा के कारनामों ने विभाग की छवि पर बट्टा लगाने का काम किया है। फिलहाल पॉली हाउस योजना में प्रदेश के कई स्थानों से मानकों के विपरीत कार्य किए जाने की शिकायतें आ रही हैं
उत्तराखण्ड सरकार राज्य के किसानों की बेहतरी के लिए तमाम तरह की योजनाओं पर काम कर रही है तो केंद्र सरकार का भी पूरा फोकस किसानों की आय को दोगुना करने में लगा हुआ है। इसके लिए करोड़ों की योजनाएं राज्य को मिल रही है और राज्य सरकर भी अपने स्तर पर किसानों के लिए काम कर रही है। लेकिन इन योजनाओं की आड़ में जिस तरह से लूट का रास्ता निकाला जा रहा है वह चिंतनीय है। हाल ही में राज्य सरकार ने प्रदेश में पॉली हाउस योजना को कैबिनेट के माध्यम ये लागू करने का निर्णय लिया है। इसके लिए नाबार्ड ग्रामीण अवस्थापना विकास निधि के तहत 304 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। यह योजना कल्स्टर योजना के तहत कार्य करेगी और इसके लिए 100 वर्गमीटर के 17668 पॉली हाउसों का निर्माण किया जाएगा। जिसमें 70 प्रतिशत अनुदान राज्य सरकार देगी और 30 प्रतिशत खर्च चयनित किसान को ही करना होगा। सरकार का मानना है कि इस योजना से राज्य में फूलों और शाक- सब्जियों की खेती को बढ़ावा मिलेगा जिसमें 25 प्रतिशत फूलों का उत्पादन तथा 15 प्रतिशत सब्जियों के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। तकरीबन एक लाख लोगों को इस योजना से रोगजागर मिलने की संभावनाएं जताई गई हैं। इस योजना से राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन को रोकने में मदद मिलने की उम्मीद है।
पॉली हाउस योजना की अगर बात करें तो यह योजना यूरोपीय देशों में सफलतापूर्वक चल रही है। इस योजना को 80 के दशक में पहली बार भारत में लाया गया। इसका मुख्य कारण यह था कि देश में मौसम की मार के चलते किसानों को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ रहा था लेकिन पॉली हाउस द्वारा खेती करने से मौसम की मार से तो बचा ही जा सकता था। साथ ही बेमौसमी और विदेशी फसलां का भी उत्पादन आसानी से किया जा सकता था। इसके चलते भारत सरकार ने हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी मिशन योजना देश के हर राज्यों में लागू कर दी। इसके तहत भारत सरकार द्वारा 40 प्रतिशत अनुदान दिए जाने का प्रावधान रखा गया और राज्यों को इस योजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए अपने स्तर पर भी काम करने की छूट दी गई। कई राज्यों ने इस योजना में अपना अंशदान भी जोड़कर किसानों को अधिक छूट का प्रावधान किया।
उत्तराण्खड राज्य में वर्ष 2003 में यह योजना लागू की गई। जिसमें केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार द्वारा कई छूट दी गईं। इस योजना में फूलों की खेती, नकदी फसलां और विदेशी प्रजाति की शाक-सब्जियों को उगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। 2017 में इस योजना को और बेहतर बनाने के लिए मुख्यमंत्री संरक्षित उद्यान विकास योजना तथा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना चलाई गई जिसमें बेरोजगार युवकों को पॉली हाउस योजना के साथ जोड़कर बेरोजगारी दूर करने के बड़े-बड़े दावे किए गए। सतही तौर पर यह योजना राज्य के किसानों के लिए एक वरदान से कम दिखाई नहीं देती है, लेकिन जानकारां की मानें तो पॉली हाउस योजना में शुरू से ही घोटाले और अनियमितताएं होती रही हैं। उद्यान विभाग इन्हें रोकने में पूरी तरह से नाकाम रहा है। आज भले ही राज्य सरकार एक लाख किसानों को रोजगार से जोड़ने के दावे कर रही है जबकि हकीकत में यह योजना अधिकतर विभागीय अधिकारियों और ठेकेदारां के हितों की भेंट चढ़ती रही है।
प्रदेश का उद्यान विभाग शुरू से ही घोटालों और अनियमिताओं का केंद्र रहा है। उद्यान आवंटन घोटाला से लेकर बीज और फलदार पौधा वितरण घोटाला, कीवी पौधे का घोटाला भी सामने आ चुका है। लेकिन उद्यान विभाग पर किसी सरकार ने कोई लगाम लगाई हो ऐसा देखने को नहीं मिला। हालांकि उद्यान विभाग के कई घोटालां और भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर हाईकोर्ट नैनीताल में सुनवाई भी चल रही है जिसमें उद्यान निदेशक पर गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं। पॉली हाउस योजना में हुए घोटालों और भ्रष्टाचार का 2013 में खुलासा हो चुका है। तब उद्यान विभाग में पॉली हाउस योजना के आवंटन में भाई-भतीजावाद का खेल करके जमकर भ्रष्टाचार किया गया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार में उद्यानमंत्री अमृता रावत पर भाजपा ने अपने चहेते रिश्तेदारों और खास लोगों को पॉली हाउस योजना का आवंटन और इसमें अनुदान की बड़ी लूट करने का आरोप लगाया। भाजपा ने इसको राज्य का बड़ा घोटाला बताते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और उद्यान मंत्री अमृता रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। 2014 में सतपाल महाराज जैसे ही भाजपा में शामिल हुए तो अचानक ही भाजपा के नेताओं के स्वर बदल गए और इस बड़े घोटाले पर भाजपा ने चुप्पी साध ली।
2017 में कैग ने राज्य में चल रही पॉली हाउस योजना में बड़े पैमाने पर घोटाले होने का खुलासा किया था। 2013 से 2016 तक इस योजना में कई बड़ी अनियमितताएं पाई गईं। जिसमें ऐसे लोगों को भी पॉली हाउस आवंटित किए गए थे जिनके पास कृषि भूमि तक नहीं थी। साथ ही राज्य स्तरीय कार्यकारिणी समिति की मंजूरी के बगैर 3 करोड़ 32 लाख रुपए मनमाने ढंग से बांट दिए जाने का भी उल्लेख किया गया था। इस योजना में सब्सिडी के नाम पर भी भ्रष्टाचार किए जाने का खुलासा हुआ था। कैग के देहरादून और हरिद्वार जिले के पांच लोगों को पॉली हाउस में फूल एवं सब्जियों के उत्पादन के लिए दो से तीन बार सब्सिडी दिए जाने का मामला सामने आया था। यही नहीं नैनीताल जिले में लीलियम की खेती के लिए 700 रुपए वर्ग मीटर के हिसाब से भुगतान किया गया जबकि नियमानुसार लीलियम की खेती के लिए 426 रुपए प्रतिवर्ग मीटर भुगतान किए जाने का मानक इस योजना में रखा गया। यानी अपने चहेतां को मानकां से ज्यादा भुगतान राज्य के उद्यान विभाग द्वारा किया गया।
जिनके पास अपनी जमीन तक नहीं थी। ऐसे 15 लोगों को पॉली हाउस योजना से जोड़ दिया गया और इसमें 94 लाख खर्च दिखा दिए गए। देहरादून जिले के 6 और हरिद्वार जिले के 9 लोगों को पॉली हाउस योजना के तहत सिंचाई के लिए नलकूप लगाने के लिए 8 लाख से भी ज्यादा धनराशि बांट दी इनके पास भी खेती की जमीन नहीं थी। इसी तरह से एक संस्था को राज्य स्तरीय कार्यकारिणी समिति की मंजूरी के बगैर ही राज्य मिशन अधिकारी द्वारा 34 लाख रुपए दिए जाने का भी उल्लेख कैग द्वारा किया गया। बागवानी उपकरणां और जल स्रोत के लिए 35 लाख रुपए और फल-सब्जी क्षेत्र के विस्तार के लिए 91 लाख रुपए मनमाने ढंग से खर्च करने का भी खुलासा कैग ने अपनी रिपोर्ट में किया था। कैग की रिपोर्ट आने के बाद तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार द्वारा इस योजना में भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करने का दावा किया गया था सरकार के शासकीय प्रवक्ता और मंत्री मदन कौशिक ने दावा किया था कि इस मामले में किसी को नहीं छोड़ा जाएगा और जो भी दोषी होगा उस पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के तहत कठोर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और उद्यान विभाग के नए-नए घोटाले समाने आते रहे और सरकार चुप्पी साधे रही। स्वयं किसानों द्वारा इस योजना में उद्यान विभाग के अधिकारियों और कार्यदायी संस्था द्वारा मानकों को ताक पर रखकर पॉली हाउसां का निर्माण किए जाने के आरोप लगाए जा रहे हैं लेकिन न तो सरकार और न ही उद्यान विभाग इस पर कोई कार्रवाई करने को तैयार है।
मुख्यमंत्री संरक्षित उद्यान विकास योजना के तहत निर्माण होने वाले पॉली हाउस योजना में मानकों को ताक पर रखा गया है। कई ऐसे किसानों के आरोप हैं उनके पॉली हाउस 100 वर्ग मीटर स्वीकृत हुए थे। लेकिन निर्माण 80 वर्ग मीटर का किया गया है जबकि ठेकेदारों ने कागजों में 100 वर्ग मीटर का निर्माण दिखाया है। 200 माइक्रोन की प्लास्टिक शीट लगाए जाने के मानक तय होने के बावजूद 160 से 170 माइक्रोन प्लास्टि शीट लगाई गई है और न ही इनके फ्रेम तय मानकों के हिसाब से लगाए जा रहे हैं। मानकों में सिंटेक्स वाटर टैंक और ड्रिप सिंचाई उपकरण दिए जाने का प्रावधान है लेकिन किसानों को पॉली हाउस निर्माण के बाद भी नहीं दिए जा रहे हैं।
उद्यान विभाग पॉली हाउसों का निर्माण ठेकदारां द्वारा करवा रही है जिसमें सीमेंट, रेत और मजदूरी, ढुलान, मजदूरां का भोजन का भी भुगतान ठेकदारों को ही करना है लेकिन यह सब किसानों से ही वसूला जा रहा है। टिहरी जिले के रौडधार गांव के उम्मेद सिंह बिष्ट कहते हैं कि उनके द्वारा उद्यान विभाग योजना से दो पॉली हाउस लगाए गए थे 24,380 रुपए उनके द्वारा जमा कर दिए गए थे। लेकिन यह दोनां पॉली हाउस किसी काम के नहीं हैं। इसके अलावा उनसे मजदूरां का खाना और ढुलाई तक का पैसा लिया गया। यहां तक कि फीटिंग, रोड़ी, सीमेंट का भी खर्चा उनके ही द्वारा दिया गया जबकि यह ठेकेदार को ही खर्च करना था। उनका खर्च किया गया पैसा आज तक उन्हें वापस नहीं दिया गया। महज 1 हजार रुपए उनके खाते में डाले गए जबकि इससे कई गुना खर्च उन्होंने किया है। पॉली हाउस में लगाई गई प्लास्टिक की शीट भी किसी काम की नहीं है। इससे कोई तापमान नियंत्रण नहीं हो रहा है।
इसी तरह से पोड़ी नगर के जसपाल सिंह नेगी भी उद्यान विभाग पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। उनको इस योजना में 100 वर्ग मीटर का पॉली हाउस स्वीकृत हुआ लेकिन निर्माण 80 वर्ग मीटर का ही किया गया साथ ही प्लास्टिक शीट भी कमजोर है जो पौड़ी जैसे बेहद ठंडे क्षेत्र के लिए किसी काम की नहीं है। साथ ही उनके पॉली हाउस में वेंटीलेशन सही मानकों के हिसाब से नहीं किया गया है। ड्रिप सिंचाई के उपकरण लगाए गए हैं जो काम ही नहीं कर रहे हैं। जसपाल नेगी का कहना है कि वे पौड़ी नगर में ही रहते हैं और उनका पॉली हाउस भी नगर के ही नजदीक है। बावजूद इसके उनके पॉली हाउस में मानकों से खिलवाड़ किया गया है। कई बार जिला उद्यान अधिकरी से इस बारे में कह चुके हैं लेकिन आज तक उनके पॉली हाउस का निरीक्षण नहीं किया गया है और न ही कमियों को दूर किया गया है। उनका कहना हे कि नगर में होने के बावजूद उनके साथ ऐसा हुआ है तो जो किसान गांवों में हैं उनके साथ भगवान जाने क्या किया जाता होगा।
पौड़ी के ही मिंटू बंगाड़ी जिनको दो वर्ष पूर्व दो पॉली हाउस विभाग से स्वीकृत हुई है और दोनों के ही निर्माण में भारी अनियमिताएं बरती गई हैं। पानी की टंकी, ड्रिप सिंचाई उपकरण और लाइन तक नहीं लगाई गई है। पॉली हाउस में एक-एक पैनल भी कम कर दिया गया है। दरवाजे के लॉक लगाते समय ही टूट गए जो कि दो साल बाद भी दोबारा नहीं लगाए गए हैं। साथ ही प्लास्टिक शीट भी बेहद कमजोर और पतली है जिससे कोई फायदा नहीं हो रहा है। टिहरी जिले के कसमोली गांव के हरीश चंद रमोला का भी पॉली हाउस बना है। उनका आरोप है कि उनका पॉली हाउस का स्ट्रक्चर खड़ा कर दिया गया है। पानी की एक टंकी भी दी गई है लेकिन न तो उसकी और न ही सिंचाई की फीटिंग की गई है। दरवाजा भी टूट गया है और पॉलीथीन भी कई जगहों से फट गई है। इसी तरह से अल्मोड़ा के मनोज उपाध्याय कहते हैं कि पॉली हाउसां में वेंटीलेशन जाली और ड्रिप एरिगेशन की फीटिंग तक नहीं की गई है। नट बोल्ट भी जंग खाकर टूटने लगे हैं, पॉलीथीन जगह-जगह से फटने लगी है।
कोटद्वार के सीपी रावत का मामला तो सबसे दिलचस्प है। उनके पॉली हाउस का निर्माण बगैर स्वीकृति और आवंटन पत्र के ही कर दिया गया जो पूरी तरह से अधूरा था। सीपी रावत द्वारा जब इसकी शिकायत की गई तो उनके पॉली हाउस को ठीक किया गया और सभी कागजात पूरे किए गए लेकिन उनका पॉली हाउस अब किसी काम का नहीं रहा। बंदरां द्वारा उसकी पॉलीथीन पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है। गौर करने वाली बात यह हे कि रावत को ठेकेदार ने यह नहीं बताया कि बंदरों के आंतक वाले क्षेत्र में पॉली हाउस का निर्माण नहीं किया जा सकता है बावजूद इसके उनका पॉली हाउस का निर्माण किया गया और प्लास्टिक शीट इतनी कमजोर लगाई गई कि वह कुछ ही समय में फट गई।
रावत का कहना है कि उनको पहले यह पता होता कि इस क्षेत्र में पॉली हाउस काम नहीं करेगा तो वह इस योजना से पॉली हाउस ही नहीं लगाते लेकिन ठेकेदारों ने अपना टारगेट पूरा करने के लिए उनको बगैर आवंटन पत्र और स्वीकृति के ही पॉली हाउस का निर्माण कर दिया। रावत के मामले से यह तो स्पष्ट हो गया है कि उद्यान विभाग सरकार के दिए टारगेट को पूरा करने के लिए किस तरह से काम कर रहा है। किसानों के ये आरोप तो बानगी भर हैं कि किस तरह से राज्य में किसानों के नाम पर सरकारी खजाने को लूटा जा रहा है। मानकों को ताक पर रखकर सरकारी योजनाओं के नाम पर लूट-खसोट की जा रही है। ठेकेदारों और कार्यदायी संस्था राज्य में किस तरह से काम कर रही है यह सामने आ चुका है। हैरत की बात यह हे कि आज भी कई किसानों का कहना है कि उनके पॉली हाउसां का स्थलीय निरीक्षण तक नहीं किया गया है जबकि उनके निर्माण के दो साल हो चुके हैं। उद्यान विभाग को इसकी शिकायत मिलने के बावजूद नए-नए पॉली हाउस लगाए जा रहे हैं जिनमें जमकर अनियमितताएं बरती जा रही हैं।
क्या गारंटी है कि 304 करोड़ की योजना में घोटाला नहीं होगा
पॉली हाउस में हो रहे इस घोटाले को सामने लाने वाले पूर्व उद्यान अधिकारी और कृषि समन्वयक रहे डॉ राजेंद्र प्रसाद कुकसाल किसानों को फसलों और बीजों के अलावा रोगों से बचाव के लिए अनेक कार्यक्रम चलाते रहे हैं। सोशल मीडिया में वे इसके लिए कई कार्यक्रम-गोष्ठियां और वेबिनार का आयोजन करते रहते हैं। उनका कहना है कि राज्य में हर विभाग सरकारी योजनाओं के नाम पर भ्रष्टाचार कर रहा है। जब प्रधानमंत्री सीधा किसानों के खाते में योजना की धनराशि ट्रांसफर किए जाने की बात करते हैं तो उत्तराखण्ड के विभाग इससे हमेशा बचते रहे हैं इस योजना को कंपनियों, संस्था और ठेकेदारों द्वारा करवाया जा रहा है क्योंकि डीबीटी योजना से उनको इसमें कोई कमीशन नहीं मिल पाएगा इसलिए पॉली हाउस और अन्य कृषि, उद्यान की योजनाओं को डीबीटी से अलग किया हुआ है। पॉली हाउस योजना पहले से ही घोटालों में घिरी रही है अब केंद्र सरकार फिर से 304 करोड़ रुपए के भारी-भरकम बजट के साथ राज्य में इस योजना को और बढ़ावा दे रही है जबकि पूर्व में मुख्यमंत्री संरक्षित उद्यान विकास योजना तथा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में पॉली हाउसों को लेकर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खेल हो चुका है। जब तक इस योजना में किए गए घपलों के दोषियों पर कठोर कार्रवाई नहीं होगी तब तक क्या गारंटी है कि 304 करोड़ की योजना में घोटाला नहीं होगा, क्या सही और मानकों पर पॉली हाउस लगाए जाएंगे।