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Uttarakhand

‘आप’ का पॉलिटिकल पैकअप

उत्तराखण्ड की राजनीति में अब तक कांग्रेस और भाजपा दो ही मुख्य पार्टी रही है। बसपा और उत्तराखण्ड क्रांति दल के भी विट्टायक रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला हमेशा कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहा। वक्त-वक्त पर यहां सामाजिक हलकों में यह भी बात उठती रही है कि उत्तराखण्ड को विकल्प की जरूरत है। आम आदमी पार्टी की नजर इसी विकल्प पर थी। 2022 का चुनाव भी पार्टी ‘दिल्ली मॉडल’ पर पूरे दमखम के साथ लड़ी। लेकिन मतदाताओं का मिजाज समझने में वह नाकामयाब रही। विट्टानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अब एक-एक कर उनके सेनापति पार्टी का दामन छोड़ भाजपा में चले गए। राजनीतिक गलियारों में इसे ‘आप’ का उत्तराखण्ड में पॉलिटिकल पैकअप माना जा रहा है

आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उत्तराखण्ड की जनता को ‘दिल्ली मॉडल’ का सपना दिखाकर डेढ़ साल पहले अपनी सरकार बनाने का ख्वाब देख रहे थे। इसके मद्देनजर उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले उत्तराखण्ड में कई दौरे किए। वह पूरे 5 बार उत्तराखण्ड में आकर कई बड़ी घोषणाओं का ऐलान कर जाते थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड की जनता पर केजरीवाल के लोकलुभावन वायदों का कोई असर नहीं हुआ। चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई। वह उत्तराखण्ड में अपना खाता भी नहीं खोल पाई। यहां तक कि आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरा रहे (रिटायर्ड) कर्नल अजय कोठियाल गंगोत्री सीट से भी बुरी तरह हार गए।

इसके बाद पार्टी में उल्टी गिनती शुरू हो गई। पिछले महीने आम आदमी पार्टी से नेताओं का इस्तीफा देने का जो दौर शुरू हुआ वह गत 12 जून तक जारी रहा। चुनाव के करीब दो महीने बाद ही 18 मई को कर्नल अजय कोठियाल ने पार्टी छोड़ दी। उन्होंने आम आदमी पार्टी में ‘संगठनात्मक समस्या’ का आरोप लगाते हुए 24 मई को भाजपा का कमल थाम लिया था। कर्नल ने दावा किया कि आम आदमी पार्टी में शामिल होना उनकी एक गलती थी और भाजपा में शामिल होकर वह उसी गलती को सुधार रहे हैं।

इसके बाद ‘दीपक बाली’ को उत्तराखण्ड में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। बाली काशीपुर से चुनाव लड़े थे साथ ही वह चुनाव केम्पैन कमेटी के चेयरमैन भी थे। लेकिन एक महीने के भीतर ही दीपक बाली ने अरविंद केजरीवाल को जो त्याग पत्र भेजा है, उसमें पार्टी के काम-काज के तरीकों पर सवाल उठाया है। उन्होंने लिखा, ‘मैं एएपी के मौजूदा संगठनात्मक ढांचे में उसके साथ रहकर काम करने में सहज नहीं था।’ पहले कर्नल अजय कोठियाल और अब दीपक बाली ने इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नींद उड़ा दी। साथ ही उनके वे सपने भी धराशायी हो गए जिन्हे उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले देखा था।

उत्तराखण्ड में आम आदमी पार्टी के अतीत को देखा जाए तो करीब डेढ़ साल पहले चुनाव मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में तीसरे विकल्प की उम्मीद जगाई और बहुत से युवा और प्रबुद्ध वर्ग के लोग इस पार्टी में शामिल भी हुए थे। लेकिन धीरे-धीरे कर वे इसे छोड़कर जाते रहे। मतदान से 10 दिन पहले चार फरवरी को ही रिटायर्ड मेजर जनरल जखमोला और पार्टी के प्रदेश सचिव राजेश शर्मा ने आप का साथ छोड़ दिया था। एक कांग्रेस में शामिल हो गए तो दूसरे भाजपा में। कुछ समय पहले पूर्व आईएएस सुवर्द्धन ने भी करीब साल भर आम आदमी पार्टी में रहने के बाद पार्टी को त्याग दिया था।

यही नहीं बल्कि पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी अनंत राम चौहान उनसे पहले ही आप से नाता तोड़ चुके थे। याद रहे कि आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एसएस कलेर ने पिछले साल सितंबर में ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि वह खटीमा से चुनाव लड़ना चाहते थे उसके लिए उन्हें समय चाहिए था। इसके बाद पार्टी ने तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए थे जिनमें से एक अनंत राम चौहान भी थे। चौहान ने आम आदमी पार्टी का दामन छोड़ इस साल की शुरुआत में कांग्रेस ज्यॉइन कर ली थी।

पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली मॉडल को आगे कर पहले ही उत्तराखण्ड में बड़ी घोषणाएं कर चुके थे। उनमे दिल्ली की तर्ज पर प्रत्येक परिवार को 300 यूनिट मुफ्त बिजली, 24 घंटे की बिजली, एक लाख बेरोजगार युवाओं को सरकारी नौकरी, रोजगार न मिलने तक पांच हजार रुपए भत्ता, महिलाओं को एक हजार रुपए की सम्मान राशि, पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में आरक्षण, मुफ्त तीर्थ यात्रा, मोहल्ला क्लीनिक आदि खोलने की गारंटी दे चुके थे। तब पार्टी की पांच गारंटियों के लिए कुल 28 लाख रजिस्ट्रेशन हुए थे। उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव से ठीक 3 दिन पहले आम आदमी पार्टी ने अपना घोषणा पत्र जारी किया था। घोषणा पत्र के साथ एक शपथ पत्र भी जारी किया। जिसमें घोषणा पत्र में लिखे सभी वायदों पर काम किए जाने की बात लिखी गई है। लेकिन बावजूद इसके आम आदमी पार्टी की चुनाव में करारी हार होना हर किसी के गले नहीं उतर रहा है।

कहां तो, आम आदमी पार्टी प्रदेश में तीसरा विकल्प बनने का ख्वाब संजोये थी कहां उसके अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कुल 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था तथा उसका वोट प्रतिशत भी करीब 3 .3 फीसदी तक सिमट कर रह गया। आप का चुनावों में पिछड़ने का एक कारण उत्तराखण्ड के ज्यादातर लोग उसे बाहरी पार्टी ही मानते हैं। उत्तराखण्ड में पिछले 20 सालों से भाजपा और कांग्रेस का दबदबा रहा है। वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद से दोनों पार्टियां बारी-बारी से सत्ता में आती रही हैं। कभी स्पष्ट बहुमत के साथ, तो कभी जोड़-तोड़ के साथ, भाजपा या कांग्रेस ने ही सरकार बनाई। इन दोनों पार्टियों ने कभी किसी तीसरी पार्टी को विकल्प नहीं बनने दिया। इसका बड़ा कारण यह है कि दोनों पार्टियों का राज्य में अपना केडर वोट है। मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी ने कई बार कोशिश तो जरूर की, लेकिन उनका हाथी कभी पहाड़ नहीं चढ़ पाया। वहीं समाजवादी पार्टी, सीपीआई, एनसीपी और सीपीएम जैसी पार्टियों ने भी यहां सिर्फ नाम के लिए ही उम्मीदवार उतारें।

देखे तो आज भी उत्तराखण्ड में सिर्फ दो ही पार्टियों का राज चलता है। हालात यह है कि राज्य के ग्रामीण इलाकों में आज भी चेहरा देखकर नहीं बल्कि कमल और हाथ का निशान देखकर वोट दिया जाता है। जिन्हें इन पार्टियों के पुश्तैनी वोटर्स कहे जा सकते हैं। इन दो निशानों के अलावा पहाड़ी इलाकों के ज्यादातर लोग किसी तीसरी निशान का बटन नहीं दबाते हैं। यही वजह है कि पिछले 20 सालों में कई कोशिशों के बावजूद तीसरी पार्टी उत्तराखण्ड में अपनी जमीन तैयार नहीं कर पाई। फिलहाल सवाल यह है कि आखिर क्या वजह रही कि उत्तराखण्ड में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाई।

इसके पीछे आम आदमी पार्टी का प्रदेश में संगठन न होना और अब तक जितने भी नेता प्रभारी बनकर आये उनका राजनीतिक बैकग्राउंड कमजोर होना मुख्य रूप से शामिल रहा है। दिल्ली से आयातित प्रभारियों का संगठन और स्थानीय नेताओं के साथ ताल-मेल सही न बैठना भी हार का एक कारण रहा है। इसे लेकर जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि चुनाव संगठन से नहीं बल्कि लोगों की उम्मीदों पर लड़ा जाता है। रही बात प्रभारी की तो आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनावों से पहले दिल्ली के संगम विहार से विधायक ‘दिनेश मोहनिया’ को उत्तराखण्ड का प्रभारी नियुक्त किया था। लेकिन दिनेश मोहनिया कोई ऐसा नाम नहीं हैं, जिनके नाम से पार्टी उत्तराखण्ड में अपना संगठन खड़ा कर सकती थी।

बताया जाता है कि चुनाव से पहले भी और चुनाव के बाद भी मोहनिया के स्थानीय नेताओं के साथ मधुर संबंध नहीं रहे। कर्नल अजय कोठियाल और दीपक बाली का पार्टी छोड़ने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में कहा गया कि आम आदमी पार्टी उत्तराखण्ड में कंसल्टेंसी फर्मों और कॉट्रेक्ट पर रखे लोगों के सहारे चुनाव लड़ रही थी। लोगो की माने तो आम आदमी पार्टी दरअसल राजनीतिक दल लगती भी नहीं है। उनके अनुसार आम आदमी पार्टी एक कॉरपारेट कंपनी है, जिसके सीईओ अरविंद केजरीवाल हैं उनके लिए न कार्यकर्ता का कोई मतलब है, न नेताओं का और न ही संगठन का। शायद यही वजह थी कि पार्टी उत्तराखण्ड की जनता के दिलो में उतर न सकी। फिलहाल आम आदमी पार्टी के पास राज्य में न तो कोई पॉलिटिकल बेस है और न ही कोई बड़ा चेहरा। सभी बड़े चेहरे सत्तासीन पार्टी भाजपा में जा चुके हैं जो बचे भी है वे भी अपना राजनीतिक विकल्प तलाश रहे हैं।

दिल्ली में पहाड़ों से आए बहुत लोग रहते हैं, उनमें से कई लोगों ने मुझे आकर कहा कि आप उत्तराखण्ड में आकर चुनाव लड़िए। हमने इसके लिए उत्तराखण्ड में सर्वे कराया। जिसमें उत्तराखण्ड के 62 फीसदी लोगों ने कहा कि पार्टी को वहां चुनाव लड़ना चाहिए। उत्तराखण्ड में तीन मुद्दे हैं-रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा, जिसकी वजह से पलायन हो रहा है। उत्तराखण्ड में ‘दिल्ली मॉर्डल’ की काफी चर्चा है। इसलिए हम दिल्ली मॉडल को पहाड़ में लेकर जाएंगे। (10 अगस्त 2020)
अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री दिल्ली

जिस प्रकार उत्तराखण्ड में प्रत्येक साल कई पर्यटक घूमने आते हैं उसी प्रकार दिल्ली की आम आदमी पार्टी भी उत्तराखण्ड में एक पर्यटक के रूप में आई थी, जो अब अपने गंतव्य को वापस चली गई है। आम आदमी पार्टी ने उत्तराखण्ड की जनता से बड़े-बड़े वायदे कर उसके साथ छल करने की कोशिश की, लेकिन उत्तराखण्ड की जनता ने उन्हें पूरी इज्जत के साथ विदा किया। उत्तराखण्ड में जिनके नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा, उन्होंने अपनी पूर­­­­ी टीम के साथ पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। उत्तराखण्ड के अंदर आम आदमी पार्टी का नामोनिशान खत्म हो गया है और न ही यह पार्टी पुनर्जन्म ले पाएगी। (20 मई 2022)
पुष्कर सिंह ट्टामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड

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