पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन की आड़ में सुनियोजित षड्यंत्र रचकर एक प्रोपर्टी डीलर से बड़ी लूट करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय जांच पूरी हो चुकी है। जांच में तीन पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया है। माना जा रहा है कि जांच रिपोर्ट का परीक्षण करने के बाद पुलिसकर्मियों पर बड़ी कार्रवाई हो सकती है। सूत्रों की मानें तो इन पुलिसकर्मियों की सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं। फिलहाल ये तीनों पुलिसकर्मी निलंबित चल रहे हैं।
उत्तराखण्ड में इस प्रकार का मामला पहली बार सामने आया था तीन मित्र पुलिसकर्मियों जिनमें एक पुलिस के सब इंस्पेक्टर, एक वाहन चालक और एक सिपाही थे, उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता का भय दिखाकर एक कारोबारी से करोड़ों की लूट की थी। मामला तब सामने आया जब स्वयं कारेबारी ने अपने धन की जानकारी लेने के लिए पुलिस विभाग के चक्कर लगाए, तब जाकर मामले का खुलासा हुआ और इसके लिए बकायदा एक टीम का गठन किया गया। जिसमें कुछ ही दिनों के बाद सारा मामला साफ हो गया। कारोबारी से लूट करने वाले उत्तराखण्ड पुलिस के ही कर्मचारी थे।
हालांकि इस मामले में कई मोड़ सामने आए और तमाम तरह की चर्चाएं सामने आती रही। सबसे बड़ा मोड़ तो यह आया कि कारेबारी द्वारा यह स्पष्ट नहीं किया गया कि उससे की गई लूट में कितनी रकम थी। पुलिस ने आज तक न तो लूट की रकम का खुलासा किया है ओैर न ही लूट की रकम बरामद की। मामला बेहद सनसनीखेज बन गया था। क्योंकि लूट के लिए उपयोग में जिस वाहन का इस्तेमाल किया गया वह अजय रौतेला तत्कालीन आईजी का सरकारी वाहन था। इसके चलते पुलिस ने त्वरित एसटीएफ का गठन किया और सीसीटीवी की फुटेज के आधार पर मामले का खुलासा करते हुए सब इंस्पेक्टर दिनेश नेगी, सिपाही मनोज अधिकारी और सिपाही तथा वाहन चालक हिमांशु उपाध्याय को गिरप्तार करके जेल भेज दिया।
जिस तेजी से पूरे प्रकरण में पुलिस विभाग ने काम किया और मामले का कुछ ही दिन में खुलासा कर दिया गया वह भी अपने आप में मिसाल कहा जा सकता है। परंतु इस लूट में कितनी रकम थी, रकम थी भी या नहीं। यही नहीं लूट कांड के सभी आरोपियां की गिरप्तारी के बाद भी इसकी बरामदगी आज तक नहीं हो पाई है। इसके चलते मामले में अनेक आशंकाएं जताई जाने लगी थी। कुछ दिनों के बाद तीनों ही पुलिसकर्मियों को न्यायालय से जमानत भी मिल गई। पुलिस विभाग ने इस मामले में विभागीय जांच करवाने का आदेश दिया जिसकी जांच रिपोर्ट विभाग को मिल चुकी है। जानकारी के अनुसार पुलिस विभाग जांच रिपोर्ट का परीक्षण करवा रहा है और माना जा रहा है कि तीनों ही पुलिसकर्मियों को बर्खास्त भी किया जा सकता है।
इस सनसनीखेज मामले की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 4 अप्रैल 2019 को कांग्रेसी नेता अनुपम शर्मा ने अनुरोध पंवार को राजपुर रोड स्थित डब्ल्यू आई सी क्लब में प्रॉपर्टी से संबंधित रकम लेने के लिए बुलाया। 4 अप्रैल की ही रात को अनुरोध पंवार क्लब में पहुंचा, लेकिन वहां कांग्रेसी नेता अनुपम शर्मा मैजूद नहीं था। इसी बीच क्लब के मैनेजर अर्जुन पंवार ने एक बड़ा-सा बैग अनुरोध पांवर को देते हुए कहा कि यह बैग अनुपम शर्मा द्वारा उनके लिए दिया गया था। अर्जुन पंवार ने अनुरोध पंवार की स्कॉर्पियो गाड़ी में उक्त बैग को रख दिया जिसे लेकर अनुरोध पंवार क्लब से चला गया।
क्लब से बाहर निकलते ही एक स्कॉर्पियो गाड़ी अनुरोध पंवार के पीछे लग गई और कुछ ही दूर होटल मधुवन के सामने उक्त स्कॉर्पियो ने उनकी गाड़ी को ओवरटेक करके रोक दिया। गाड़ी में से दो लोग पुलिस की वर्दी में उतरे और उन्होंने अनुरोध पंवार को आचार संहिता के चलते तलाशी लेने की बात कही। अनुरोध पंवार की गाड़ी की तलाशी में क्लब के मैनेजर अर्जुन पंवार द्वारा दिया बैग जिसे वर्दीधरियों ने ले लिया और पंवार को उसकी गाड़ी से उतार कर अपनी गाड़ी में बैठाकर ले गए।
अनुरोध पंवार का कहना है कि गाड़ी में दो वर्दीधारी के अलावा एक व्यक्ति बिना वर्दी के बैठा था जिसको बड़ा आईएएस अधिकारी बताया गया। ये तीनों पूरे रास्ते पंवार को आतंकित करते रहे फिर सर्वे चौक में उनको अपनी गाड़ी से उतार दिया और नोटों से भरा बैग लेकर चंपत हो गए।
अनुरोध पंवार यह सोचकर कि उनका रकम से भरा बैग चुनावी टीम द्वारा जब्त किया गया है, वापस आकर अपनी गाड़ी से घर चला गया। अगले दिन समाचार पत्रों में पुलिस द्वारा रकम के जब्त किए जाने की खबर न मिलने पर पंवार चिंतित हुआ और तीन दिन तक इसकी जानकारी लेता रहा, फिर ठगे जाने की आशंका जाहिर करते हुए अनुरोध पंवार ने पुलिस के अधिकारियों को इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी तो पुलिस विभाग में हड़कम्प मच गया। 9 अप्रैल 2019 को अनुरोध पंवार की तरफ से डालनवाला थाने में प्राथमिकी दर्ज करवाई गई।
पुलिस ने त्वरित कार्यवाही करते हुए जांच की और पूरे घटनाक्रम को बारीकी से ख्ांगाला तो क्लब और अन्य स्थानों की सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पाया कि अनुरोध पंवार से बैग लूटने वाले पुलिस विभाग के ही एक दरोगा दिनेश नेगी, सिपाही मनोज अधिकारी और आईजी पुलिस के सरकारी वाहन चालक और सिपाही हिंमाशु उपाध्याय की पहचान हो गई। अनुरोध पंवार ने भी तीनों की पहचान कर ली तो मामला साफ हो गया।
अब इस लूट कांड की कहानी में बहुत ही बड़ा दिलचस्प मोड़ आया ओैर पूरी कहानी किसी मुंबइया फिल्मी ड्रामे में तब्दील होने लगी। पुलिस की जांच में अनुपम शर्मा का नाम सामने आने पर मामले की तह खुलने वाली ही थी कि अचानक ही चर्चाएं सामने आने लगी कि उक्त एक करोड़ की रकम कांग्रेस के किसी उम्मीदवार के चुनावी खर्च के लिए अनुपम शर्मा द्वारा देहरादून में लाई गई जिसे अनुपम शर्मा ने अनुरोध पंवार को अर्जुन पंवार के हाथों से सौंपी थी। हालांकि यह आज तक साबित नहीं किया जा सका कि लूट की रकम का वास्तविक उपयोग किसके द्वारा और किस उद्देश्य के लिए किया जाना था।
डालनवाला पुलिस की जांच सही दिशा में जा रही थी। पुलिस ने सभी आरोपियों की पहचान भी कर ली थी और 11 अप्रैल को तीनों पुलिसकर्मियों को विभाग से निलंबित किया गया। लेकिन अचानक ही पुलिस मुख्यालय ने 12 अप्रैल को जिला पुलिस से जांच वापस ले ली और डालनवाला कोतवाली से हटाकर एटीएफ को सौंप दी। एसटीएफ ने मामले की जांच आरंभ की और 14 अपैल को डब्ल्यू आई सी क्लब के कर्मचारियों और मेनेजर अर्जुन पंवार से पूछताछ कर मामले के सभी प्रमाण एकत्र किए। 15 अप्रैल को सभी तीन पुलिसकर्मियों और कांग्रेसी नेता अनुपम शर्मा से पूछताछ की। 16 अप्रैल को तीनों पुलिसकर्मी और अनुपम शर्मा को हिरासत में ले लिया।
एसटीएफ के हाथों में जांच आते ही मामले ने बेहद दिलचस्प मोड़ ले लिया। मामले के मास्टर माइंड होने के आरोपी अनुपम शर्मा द्वारा देहरादून के एक दैनिक समाचार पत्र को दिए गए बयान ने खासी हलचल मचा दी। बयान में साफ कहा कि उक्त रकम एक कांग्रेसी उम्मीदवार की है जिसे देहरादून लाया गया है। लेकिन फिर कुछ दिनों के बाद अनुपम शर्मा अपनी ही बात से पलटी मारता हुआ कहने लगा कि उसे इस बारे में कुछ नहीं पता। जो बैग उसने अनुरोध पंवार को दिया था उस बैग में कोई रकम नहीं थी। उस बैग में कुछ शराब की बोतलें और कपड़े ही थे जिसको पुलिस ने जब्त किया था। अचानक ही अनुरोध पंवार भी इस मामले में पलटते हुए कहने लगा कि उसे नहीं पता था कि बैग में क्या था। उसने न तो बैग खोलकर देखा था। उक्त बैग को क्लब के मैनेजर अर्जुन पंवार ने ही उसकी गाड़ी में रखा था जिसके चलते वह देख नहीं पाया कि बैग में क्या है। जबकि डालनवाला पुलिस को अनुरोध पंवार ने बताया था कि उक्त बैग में बड़ी रकम थी और उस बैग को अर्जुन पंवार ने ही उसकी गाड़ी में रखा था जिस कारण वह रकम को नहीं गिन पाया।
यह मामला न्यायालय में चल रहा है। अभी न्यायालय का निर्णय आना शेष है लेकिन जिस तरह से पुलिस विभाग द्वारा विभागीय जांच में तीनों ही पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया है वह अपने आप में ही दिलचस्प है। माना जा रहा है कि विभागीय जांच में दोषी पाए जाने पर आरोपी पुलिसकर्मियों की सेवाएं भी समाप्त की जा सकती हैं या फिर उन पर कोई अन्य कठोर विभागीय कार्यवाही भी हो सकती है। लेकिन जिस तरह से पूरे प्रकरण में नए-नए बयान और मामलों से पलटी मारी गई है यहां तक कि आज तक लूट में लूटी गई धनराशि को पुलिस बरामद तक नहीं कर पाई है, जबकि स्वयं पुलिस विभाग की जांच में तीनां ही दोषी पाए गए हैं।
अब सवाल यह उठता है कि जिस तरह से अनुपम शर्मा द्वारा कहा गया कि बैग में कपड़े और शराब की बोतलें ही थी और अनुरोध पंवार द्वारा कहा गया कि उसको पता नहीं था कि बैग में क्या है तो मामला संदिग्ध बन जाता है। तो क्या विभाग पुलिसकर्मियों पर शराब की बोतलें और कपड़ों को लूटने का दोषी मानकर कार्यवाही करेगा या फिर इस मामले का जब तक न्यायालय से कोई निर्णय नहीं आता तब तक विभागीय कार्यवाही ही लंबित रहेगी। यह बड़ा सवाल है जिसका जवाब आने वाले समय में किस तरह आता है यह भी देखना बड़ा दिलचस्प होगा।