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Uttarakhand

पुलिस के लापरवाह तंत्र में गुम हुए धूम को नहीं जानती मित्र पुलिस

धूम सिंह तोमर (23 सितम्बर 2003)

23 सितम्बर का दिन यकीनन मित्र पुलिस के इतिहास में बड़ा कलंक लगा चुका है क्योंकि मित्र पुलिस की लाचार कार्यशैली का आलम यह है कि पिछले 17 वर्षों से अपने लापता ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी का पता नहीं लगा सकी।यही नहीं धूम सिंह की रहस्यमय गुमशुदगी का खुलासा करने में देश की अग्रणी जांच एजेंसी मानी जाने वाली सीबीआई भी इस आईपीएस की गुमशुदगी में गुम होकर रह गई है। 17 साल पश्चात आज भी यही सवाल बना हुआ है कि आखिर यह ईमानदार पुलिस अधिकारी कहां गया? लापता हुए आईपीएस अधिकारी धूम सिंह तोमर की रहस्य में गुमशुदगी के संबंध में इससे अधिक दुखदाई बात कोई नहीं हो सकती की मित्र पुलिस के अधिकतर जवान इस ईमानदार पुलिस अधिकारी के नाम से ही अनजान है यही नहीं आईजी कार्यालय में तैनात पुलिसकर्मियों से जब धूम सिंह तोमर के संबंध में बात की गई तो इस संवाददाता को पुलिसकर्मियों ने पूछा के कौन धूम सिंह? बेहद ही रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता पदोन्नत आईपीएस अधिकारी धूम सिंह तोमर अपने सेवाकाल में ईमानदारी के चलते न सिर्फ कुछ विभागीय अधिकारियों की आंखें की किरकिरी रहे, बल्कि साजिशों का शिकार भी हुए। धूम सिंह तोमर के परिजनों ने जिन पुलिसकर्मियों पर शक जताया था उनके खिलाफ जांच की जरूरत भी नहीं समझी गईं। अब तो पुलिस महकमे के नए कर्मचारी और अधिकारी इस ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी का नाम भी नहीं जानते जब मित्र पुलिस के अधिकारियों से धूम सिंह तोमर के बारे में सवाल किया जाता है तो वो जवाब देने से बचते नज़र आते है ।
उत्तराखण्ड की मित्र पुलिस के ईमानदार अधिकारियों में शामिल धूम सिंह तोमर की रहस्यमयी गुमशुदगी आज भी एक पहेली बनी हुई है। तोमर वर्ष 2003 में हरिद्वार के तत्कालीन नगर अधीक्षक थे। इसी वर्ष 23 सितंबर को वे रहस्यमय परिस्थितियों में लापता हुए। अब तक उनका कोई पता नहीं चल पाया है।
गौरतलब है कि 23 सितंबर 2003 की शाम उत्तराखण्ड पुलिस के माथे पर ऐसा बदनुमा दाग लगा जो शायद ही साफ हो सकेगा। यह दिन मित्र पुलिस के इतिहास में किसी कंलक से कम नहीं माना जा सकता। इसी दिन मित्र पुलिस के ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों में शुमार तत्कालीन एसपी सिटी हरिद्वार रहस्यमय परिस्थितियों में गुम हो गये। धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी को डेढ़ दशक का लंबा अरसा बीत चुका है। लेकिन आज तक उनका कहीं कुछ पता नहीं। बताया जाता है कि हरिद्वार में बतौर एसपी सिटी तैनात धूम सिंह 23 सितंबर 2003 की शाम 7:30 बजे डाम कोठी के समीप से वॉक करने के लिए बनी नहर पटरी पहुंचे। इसी बीच वह अचानक गायब हो गए। देर रात्रि तक जब धूम सिंह घर नहीं लौटे तो उनकी पत्नी सुशीला तोमर द्वारा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया गया। देखते ही देखते बड़ी संख्या में पुलिस बल एवं अधिकारी उनकी तलाश में जुट गए। उसी दौरान डाम कोठी के आस-पास छानबीन के दौरान धूम सिंह तोमर के जूते नहर की सीढ़ियों में पाए गए एवं उनका चश्मा, मौजे झांडियों से बरामद किए गए। उस समय अधिकारियों द्वारा धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी को लेकर उनके अपहरण अथवा नहर में डूबकर आत्महत्या जैसी आशकांए जाहिर की गई। दोनों ही मामलों को केंद्र में रखकर खोजबीन शुरू हुई। पुलिस एवं आर्मी के गोताखोर के अलावा आम जनता के बीच से कुशल गोताखोरों ने डाम कोठी से 30 किमी. दूर तक समूची गंगनहर को खंगाल डाला। परंतु तोमर का कहीं पता नहीं चला। उस समय हरिद्वार पुलिस के एसएसपी वर्तमान डीजी कानून व्यवस्था अशोक कुमार द्वारा आंशका जताई गई कि हो सकता है कि श्री तोमर बहकर दूर निकल गए हों। जबकि यह आशंका इसलिए निर्मूल थी क्योंकि हरिद्वार नगर से 30 किमी. की दूरी पर मजबूत एवं बारीक जाल लगे हुए थे। जहां से मछलियां भी नहीं निकल सकती।
यहीं नहीं जाल के अतिरिक्त गंगनहर से पानी की निकासी के लिए कुछ स्थानों पर डाईवर्जन बने हैं। पुलिस ने आंशका जताई कि तोमर डाईवर्जन से बहकर कहीं दूर बालू या रेत में समा गए हां। परंतु उस समय लगाई जा रही सारी कयासबाजी निरर्थक साबित हुए। धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी को लेकर दर्ज कराई गई शिकायत पर जांच कोतवाली हरिद्वार में तत्कालीन एसएसआई टीके शर्मा को सौंपी गई। हफ्तेभर बाद ही इंस्पेक्टर गिरीश चंद्र को जांच अधिकारी बनाया गया। परंतु धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी एक पहेली ही बनी रही। तोमर की गुमशुदगी के बाद से उनकी पत्नी श्रीमती सुशीला तोमर ने अपने पति के गनर जयप्रकाश, घटना के वक्त टेलीफोन ड्यूटी पर तैनात कॉन्स्टेबल हर्ष रौतेला तथा पेशकार राम कुमार को केंद्र में रखते हुए सीबीआई जांच की मांग कर डाली, क्योंकि श्रीमती सुशीला तोमर को अपने पति की रहस्यमयी गुमशुदगी में उक्त तीनों सिपाहियों पर साजिश में शामिल होने का शक था। जिसको लेकर श्रीमती तोमर द्वारा इस बाबत तत्कालीन एसएसपी अशोक कुमार से बार-बार अनुरोध किया गया था।
लेकिन बताया जाता है कि इस संबंध में जांच कराने के बजाए तत्कालीन एसएसपी अशोक कुमार ने यह बेहुदे तर्क देते हुए श्रीमती तोमर की मांग खारिज कर दी कि उक्त पुलिसकर्मियों के विरुद्ध जांच के आदेश दिए जाने से पुलिसकर्मी भड़क जाएंगे। इस प्रकार उस दौरान तीनों पुलिसकर्मियों के विरुद्ध जांच करने की जरूरत नहीं समझी गई। हां, इतना जरूर हुआ कि दबाव पड़ने पर धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी को अपहरण की धाराओं में तरमीम कर मुकदमा अपराध संख्या 991/03 धारा 364 आईपीसी धूम सिंह तोमर के पुत्र उत्कृष्ट तोमर की ओर से दर्ज कर लिया गया। मुकदमा दर्ज होने के बाद भी धूम सिंह तोमर का गुम होना एक पहेली ही बना रहा। जिसके चलते पुलिस रिकॉर्ड में मुकदमा अपराध संख्या 991/03 धारा 364 आईपीसी आज भी बेनतीजा होकर मित्र पुलिस के लिए कलंक बना रहा है। जब सीबीसीआईडी भी धूम सिंह तोमर को तलाश करने में नाकामयाब रही तो नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर धूम सिंह तोमर के मुकदमे की जांच सीबीआई को सुपुर्द कर दी गई। परंतु 17 वर्ष बीतने के बावजूद सीबीआई धूम सिंह तोमर का पता लगाने में नाकाम रही है। इससे पूर्व गुमशुदा पुलिस अधिकारी की हताश, निराश पत्नी सुशीला तोमर ने मुख्यमंत्री एवं राज्य पुलिस के तत्कालीन मुखिया के आगे अपना दुःखड़ा रोया। तब शासन की पहल पर सीबीआई को जांच भेजी गई थी। परंतु बताया जाता है कि उस समय सीबीआई द्वारा इस जांच को लेने में कोई रुचि नहीं दिखाई गई।


जिस प्रकार धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी के पश्चात उसकी जांच को लेकर तत्कालीन पुलिस महकमे द्वारा लापरवाही दिखाई गई और जो रवैया उनके परिवार के प्रति रहा, वह पुलिस की संवेदनहीनता मानी गई। बताया जाता है कि जिस समय धूम सिंह तोमर लापता हुए उस दौरान उनका प्रांतीय पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस कैडर) में प्रमोशन होना था। तोमर के बारे में कहा जाता था कि वह कर्तव्यनिष्ठ, अनुशासित एवं ईमानदार पुलिस अधिकारी थे। यही कारण था कि वह हमेशा ही विभाग में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों की नजरों में खटकते थे। यह भी कहा जाता है कि 2004 के हरिद्वार अर्द्धकुंभ मेले में सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए करोड़ों रुपए आवंटित हुए थे। परंतु ईमानदार पुलिस अधिकारी धूम सिंह तोमर के रहते इस धन के उपयोग को लेकर भ्रष्ट अफसरों में खासी बेचैनी व्याप्त थी। तोमर के खिलाफ साजिश किस-किस स्तर से और कैसे-कैसे की गई इसका खुलासा करने में जिला पुलिस के साथ-साथ प्रांत की सीबीसीआईडी सहित सीबीआई भी नाकाम साबित हुई है। कहा जाता है कि धूम सिंह तोमर की पदोन्नति को लेकर बेचैन नजर आ रहे कुछ पीसीएस अधिकारियों ने उनकी गुमशुदगी के बाद आईपीएस कैडर में हुई उनकी पदोन्नति संबंधित पत्र को उनके घर के पते पर न पहुंचने देने के लिए जो खेल खेला वह बड़ी साजिश की तरफ इशारा करता था। बावजूद इसके श्री तोमर की गुमशुदगी को लेकर मित्र पुलिस का पूरा महकमा लापरवाह ही बना रहा। पदोन्नति के पत्र को लेकर खेले गए खेल की बात करें तो उत्तराखण्ड के तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह एसके दास के कार्यालय से रजिस्टर्ड डाक से जारी उक्त पत्र न जाने किस प्रकार सामान्य डाक में तब्दील हुआ? यही नहीं धूम सिंह तोमर की जगह पत्र में एसपी सिटी मुंबई का पता कैसे लिखा गया। यह भी बहुत बड़ा सवाल था। धूम सिंह तोमर गुमशुदगी प्रकरण में संवेदनहीन हो चुकी मित्र पुलिस का कारनामा देखिए कि जिस प्र्रोन्नति पत्र को पता बदल कर मुंबई भेजा गया था उस पत्र को मुंबई से वापस आने के बाद धूम सिंह तोमर का नाम काटकर गृह विभाग से एसपीएम, बीएचईएल पिन कोड नंबर 249403 के पते पर भेज दिया गया। डाककर्मियों द्वारा पत्र खोलने पर ज्ञात हुआ कि वह गुमशुदा एसपी सिटी हरिद्वार धूम सिंह तोमर का पदोन्नति पत्र था। किसी तरह उनका पत्र उनके घर भेजा गया। पूरे प्रकरण में मित्र पुलिस के अधिकारियों की भूमिका पर बार-बार उंगलियां उठाई गई। परंतु भ्रष्ट तंत्र में गहरी पैठ बना चुके ऐसे अधिकारियों पर न तो कोई कार्यवाही की गई न ही आज तक धूम सिंह तोमर का कुछ पता चल सका है।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर इस केस की जांच करने वाली सीबीआई ने तत्कालीन सीओ सिटी वर्तमान में आईपीएस अधिकारी रोशन लाल शर्मा सहित तत्कालीन एसएसपी हरिद्वार वर्तमान में एडीजी कानून व्यवस्था उत्तराखण्ड अशोक कुमार से लंबी पूछताछ की थी। पूछताछ का क्या नतीजा निकला यह तो सीबीआई ही जाने। परंतु पुलिस रिकॉर्ड सहित आम जनमानस के लिए धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी आज भी एक पहेली बनी हुई है। यही नहीं 2003 के बाद उत्तराखण्ड पुलिस में शामिल होने वाले आईपीएस एवं पीपीएस अधिकारी तथा निरीक्षक, उपनिरीक्षक, पुलिसकर्मी शायद ही उत्तराखण्ड पुलिस के इस ईमानदार अधिकारी धूम सिंह तोमर का नाम जानते हो।

धूम सिंह तोमर के सम्बंध में वर्तमान की स्थिति को लेकर जानकारी प्राप्त करने के लिए जब पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड अनिल रतूड़ी से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने ‘दि सन्डे पोस्ट’ का नाम सुन फ़ोन रख दिया और दुबारा फ़ोन करने पर फ़ोन नही उठाया ।
जिस समय धूम की तलाश जारी थी उस दौरान हरिद्वार के एसएसपी रहे वर्तमान में गढ़वाल रेंज के पुलिस महानिरीक्षक अभिनव कुमार के कार्यलय में फ़ोन कर दि सन्डे पोस्ट का परिचय देकर अभिनव से धूम सिंह प्रकरण की वर्तमान स्थिति जानने के लिए सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो आई जी रेंज कार्यालय में तैनात पुलिस कर्मियों द्वारा आई जी से बात नही कराई गई। जब आईजी कार्यालय में तैनात पुलिस कर्मियों को लापता आईपीएस अधिकारी धूम सिंह तोमर की रहस्य में गुमशुदगी का उल्लेख करते हुए आईजी का बयान लेने के लिए कहा गया तो आईजी कार्यालय में तैनात पुलिसकर्मियों ने बहुत ही हास्यास्पद बात करते हुए यह कहा धूम सिंह कौन?

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी के बाद मित्र पुलिस द्वारा उनकी पत्नी सुशीला तोमर से सरकारी आवास तक खाली करा लिया गया था। वहीं, फॉलोवर को भी हटाए जाने की बात सामने आई थी। श्री तोमर मूल रूप से देहरादून जनपद के अंतर्गत कालसी तहसील के सकरोल गांव के निवासी थे। बताया जाता है कि लापरवाह तंत्र में उलझे ईमानदार पुलिस अधिकारी के इस गुमशुदगी प्रकरण में न्याय न मिल पाने एवं विभागीय अधिकारियों द्वारा सौतेला व्यवहार किए जाने से क्षुब्ध उनकी पत्नी सुशीला तोमर अब देहरादून में अपने बेटे के साथ रहती है। जिनको आज भी अपने पति के गुमशुदगी प्रकरण का खुलासा होने की उम्मीद है।

कमलदास कुटिया प्रकरण भी बना रहा था खासी चर्चा का विषय।

धर्मनगरी में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार जिस दौरान धूम सिंह तोमर गुम हुए उस दौरान वह हरिद्वार स्थित करोड़ों रुपये कीमत वाली बेशकीमती संपत्ति कमलदास कुटिया की जांच कर रहे थे। जिसमें कब्जे को लेकर हरिद्वार के एक मुख्य संत एवं मित्र पुलिस के कुछ अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध लग रही थी। चूंकि धूम सिंह ईमानदार पुलिस अधिकारी थे जिसके चलते उक्त संपत्ति पर कब्जा करने वाले माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही तय मानी जा रही थी। जिसके चलते हरिद्वारवासी दबी जबान में धूम सिंह की रहस्यमयी गुमशुदगी को कमलदास की कुटिया प्रकरण से भी जोड़ने की बात करते हैं।

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