कांग्रेस के पूर्व सचिव बाजपुर निवासी अविनाश शर्मा का कसूर सिर्फ यह था कि उन्होंने दो पक्षों में चल रही एक स्टोन क्रशर की देनदारी के विवाद को खत्म करने की पहल की। कई पंचायतें हुईं। अविनाश शर्मा की अध्यक्षता में पौने दो करोड़ की बकाया राशि का भुगतान करने और इस एवज में स्टोन क्रशर की लीज डीड ट्रांसफर करने की दोनों पक्षों में सहमति बन गई। लेकिन बाद में एक पक्ष बकाया राशि का भुगतान करने से मुकर गया। इसके चलते एक बार फिर पंचायत बैठी। जिसमें क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोग मौजूद थे। इसी दौरान विवाद गहराया और मामला गोलीबारी तक पहुंचा। जिसमें अविनाश शर्मा के अंगरक्षक कुलवंत सिंह की हत्या हो जाती है। जिन लोगों पर हत्या के आरोप हैं वे पुलिस संरक्षण में हैं। लेकिन दूसरी तरफ जिस अविनाश शर्मा गुट के व्यक्ति की हत्या हुई और तीन लोग गंभीर रूप से घायल हुए उनके 10 लोग जेल की सलाखों के पीछे हैं। पुलिस एफएसएल रिपोर्ट न आने की बात कह हत्या के आरोपियों का अप्रत्यक्ष रूप से बचाव करती दिख रही है। इससे क्षेत्र में पुलिस के प्रति आक्रोश है। मृतक के परिजन न्याय की गुहार लगा रहे हैं। साथ ही अपने बेटे के हत्यारों पर कार्रवाई न होने से दुःखी हैं। पुलिस पर यह भी आरोप है कि वह एक पूर्व मंत्री के दबाव में एकतरफा कार्यवाही कर रही है
रूद्रपुर स्थित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का हेडक्वार्टर
‘दि संडे पोस्ट’ संवाददाता जिले के एसएसपी मंजूनाथ टीसी से बाजपुर के कुलवंत सिंह हत्याकांड से संबंधित बात करते हैं। जैसे ही पूछा गया कि कुलवंत सिंह हत्याकांड में पुलिस की इन्वेस्टीगेशन कहां तक पहुंची है। तभी पुलिस कप्तान ‘हत्याकांड’ शब्द पर ऐतराज जताते हुए कहते हैं कि आप कैसे कह सकते हैं कि यह हत्या है। ‘दि संडे पोस्ट’ संवाददाता द्वारा कहा गया कि दो गुटों में गोलियां चली जिसमें कुलवंत सिंह को गोली लगी तो आवेश में आकर पुलिस कप्तान कहते हैं ‘यह हत्या नहीं मौत है।’ शायद यह वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की पूर्वाग्रह से ग्रसित सोच का ही परिणाम है कि वह हत्या को मौत बता रहे हैं। जबकि उनकी ही पुलिस इस मामले में बाजपुर थाने में धारा 302 यानी हत्या किए जाने के कानून के तहत एक गुट पर मुकदमा दर्ज कर चुकी है। क्या इसके बावजूद भी हत्या को मौत कहना जायज होगा? आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि जिन आरोपियों पर इस हत्याकांड में दफा 302 के तहत मुकदमा दर्ज हुए हैं, वह पुलिस संरक्षण में हैं। लेकिन दूसरी तरफ जिन आरोपियों पर 323, 452, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, वे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गएं। इससे पहले ही उन पर गैंगस्टर लगाने के साथ ही ईनाम भी रखा गया।
फ्लैश बैक
26 अप्रैल 2022 : बाजपुर ब्लॉक के कनिष्ठ उपप्रमुख तजिंदर सिंह जंटू और हल्द्वानी-बाजपुर बस यूनियन के अध्यक्ष नेत्रपाल शर्मा उर्फ नेत्रप्रकाश शर्मा आदि दोनों पक्षों के बीच 50 -60 राउंड गोलियां चली। घटना रात 12 बजे की है जब तेजिंदर सिंह जंटू अपने दस-बारह साथियों को लेकर सुल्तानपुर पट्टी के गांव पिपलिया निवासी नेत्रपाल शर्मा के आवास पर गए। वहां लेन-देन को लेकर उनके बीच कहा-सुनी हो गई। इस पर दोनों तरफ से हथियार निकल आए। देखते ही देखते दोनों तरफ से ताबड़-तोड़ फायरिंग होने लगी। जिसमें कांग्रेस के पूर्व सचिव अविनाश शर्मा के निजी अंगरक्षक उत्तर प्रदेश के मिलक खानम (रामपुर) निवासी कुलवंत सिंह की जान चली गई। जबकि तेजिंदर सिंह, मोहित अग्रवाल और हरप्रीत सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए।
क्या था मामला
मामला पाल ग्रिड स्टोन क्रशर पर देनदारी को लेकर था। स्टोन क्रशर की जमीन के मालिक जसपाल सिंह थे। इन्होंने अपनी जमीन 15 साल के लिए लीज पर हरकेवल सिंह व दो अन्य को दी थी। इस जमीन पर ही उत्तराखण्ड शासन से पाल ग्रिड स्टोन क्रशर स्वीकृत हुआ। जिन हरकेवल सिंह व अन्य दो लोगों के नाम जमीन थी, इन्हीं तीन लोगों के नाम पर स्टोन क्रशर स्वीकृत भी हुआ। लेकिन इसके बाद हरकेवल सिंह व अन्य दो के नाम बिना लीज डीड तोड़वाए ही स्टोन क्रशर के मालिक बदल गए। 26 अप्रैल को जो आपसी विवाद हुआ इसकी शुरुअत होती है स्टोन क्रशर के आखिरी मालिक जिला पंचायत सदस्य टिंकू तोमर और रविंद्र शर्मा से। हालांकि टिंकू तोमर ने अपना हिस्सा बेच दिया जिसके खरीददार नेत्रपाल शर्मा और उनके भाई रविंद्र शर्मा तथा दिलीप चंद्र शर्मा के सुपौत्र अनिरूद्ध शर्मा थे। स्टोन क्रशर कुल 5 करोड़ में बेचा गया। जिसमे 1 करोड़ 80 लाख को छोड़कर बाकी सभी पैसे दे दिए गए। इन्हीं एक करोड़ 80 लाख की देनदारी को लेकर विवाद गहराया। अनिरूद्ध शर्मा, नेत्रपाल शर्मा और रविंद्र शर्मा को यह बकाया राशि टिंकू तोमर को देनी थी। इसी दौरान पैसों की बकाया राशि पर जब दोनों पक्षों में विवाद हुआ तो कांग्रेस के पूर्व सचिव अविनाश शर्मा की एंट्री होती है। क्योंकि दिलीप चंद्र शर्मा अविनाश शर्मा के चाचा का लड़का है। इसके चलते दिलीप चंद्र शर्मा ने अविनाश शर्मा से इस विवाद को निपटाने की अपील की।
सबसे पहली पंचायत दिलीप शर्मा के घर पर हुई। जिसमें अविनाश शर्मा की अध्यक्षता में आपसी रजामंदी कराई गई और तय हुआ कि चार माह के अंदर अनिरूद्ध, नेत्रपाल शर्मा और रविंद्र शर्मा बकाया राशि का भुगतान हरकेवल सिंह, टिंकू तोमर और जसपाल को अदा करेंगे। इस समझौते के बाद लीज डीड जो पहले हरकेवल सिंह, दिलवर पाल सिंह और गुरजस पाल के नाम थी, उसे तोड़कर अनिरूद्ध शर्मा, नेत्रपाल शर्मा तथा रविंद्र शर्मा ने अपने नाम करा दिया। लेकिन पंचायत में दोनों पक्षों का इस तरह समझौता हो जाने के बावजूद भी अनिरूद्ध शर्मा, नेत्रपाल शर्मा और रविंद्र शर्मा तीनों ही बकाया राशि देने से मुकर गए। ऐसे में अविनाश शर्मा की प्रतिष्ठा पर बात आई। हरकेवल सिंह, गुरजसपाल सिंह और दिलवर पाल ने अविनाश शर्मा के आश्वासन पर लीज डीड तोड़कर उक्त तीनों के पक्ष में कराई थी। साथ ही अविनाश शर्मा ने उन्हें बकाया राशि दिलाने की भी गारंटी ले ली थी।
गोलियां क्यों चली
26 अप्रैल 2022 को तजिंदर सिंह जंटू पुत्र हरकेवल सिंह ने बाजपुर स्थित ढिल्लन ढाबा में फिर एक बार पंचायत का आयोजन किया। जिसमें बाजपुर और आस- पास के प्रमुख लोग शामिल हुए। इनमें भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सरदार कर्म सिंह पड्डा, सिखों के संत भगत जी, कांग्रेसी नेता हरेंद्र सिंह लाड़ी, भाजपा के वरिष्ठ नेता सरदार मेजर सिंह और सरताज औलख आदि मौजूद थे। हरकेवल सिंह और उनके पुत्र जंटू ने इस पंचायत में उनकी बकाया राशि को देने की बात कहकर मुकरने वाले अनिरूद्ध शर्मा, नेत्रपाल शर्मा और रविंद्र शर्मा को भी बुलाया हुआ था। बताया जाता है कि इस पचायत में तब तक अविनाश शर्मा मौजूद नहीं थे। लेकिन जब पंचों के बीच वार्ता शुरू हुई तो अविनाश शर्मा को पंचायत में बुलाने की मांग उठी। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सरदार कर्म सिंह पड्डा द्वारा फोन करके अविनाश शर्मा को बुलाया गया। अविनाश शर्मा से सभी पंचों ने कहा कि पहली पंचायत में आपकी अध्यक्षता में समझौता हुआ जिसमें लीज डीड तोड़वाकर बाकी पैसे देने से दोनों पक्ष सहमत हो गए थे। पहली पंचायत में क्योंकि अविनाश शर्मा गारंटर बने थे तो सभी पंचों ने एक सुर में कहा कि आप के द्वारा ही फैसला हुआ तो आप ही पैसे दिलवाओ। अविनाश शर्मा ने बकाया भुगतान की बात की। इसके चलते ही दोनों पक्षों में विवाद बढ़ गया। हालांकि तब दोनों पक्षों के साथ बीच-बचाव करके मामला शांत कर दिया गया। सभी लोग पंचायत स्थल से चले गए। बताया जाता है कि पंचायत हो जाने के बाद रात में नेत्रपाल शर्मा ने जंटू को पैसे देने के लिए अपने घर बुलाया। जब जंटू सिंह के साथी लोग नेत्रपाल के आवास पर पहुंचे तो वहीं कहा-सुनी हुई और गोलियां चल गई। जिसमें अविनाश शर्मा के निजी अंगरक्षक कुलवंत सिंह की हत्या हो गई। हालांकि इस मामले में नेत्रपाल शर्मा का कहना है कि उन्हें फोन पर धमकी दी गई और उसके बाद उसके घर पर धावा बोल दिया गया जिसके बाद उसने आत्मरक्षा में फायर किए।
हॉस्पिटल के सीसीटीवी से पहचानकर बनाए आरोपी
‘दि संडे पोस्ट’ की पड़ताल में जो सामने आया है उसके अनुसार पुलिस ने इस हत्याकांड से जुड़े लोगों को डॉक्टर पाण्डे हॉस्पिटल के सीसीटीवी फुटेज से चिन्हित किया। जिन्हें बाद में आरोपी बनाया गया। बताया गया कि जैसे ही अविनाश शर्मा के समर्थकों को यह पता चला कि उनके निजी अंगरक्षक कुलवंत सिंह सहित तीन लोगों को गोली लगी है तो रात में ही वे डॉक्टर पाण्डे हॉस्पिटल पहुंचे। उनमें से अधिकतर को पुलिस ने अपनी एफआईआर में शामिल कर लिया। पुलिस की मानें तो नेत्रपाल शर्मा के घर पर लगे सीसीटीवी में आरोपी स्पष्ट नहीं दिख रहे थे। जबकि आस-पास के घरों से सीसीटीवी कैमरे देखे गए तो उनमें घटना से संबंधित फुटेज सामने नहीं आए।
जांच से पहले ही धारा में किया फेरबदल
पुलिस ने नेत्रपाल की तरफ से अविनाश शर्मा पर दर्ज मुकदमा संख्या 172 में नियम कानूनों के विपरीत जाकर काम किया। विवेचना होने से पहले ही एक मुकदमे में एक ही दिन (27 अप्रैल) को धाराओं में फेरबदल का कारनामा कर दिखाया गया। पहले दर्ज की गई रिपोर्ट में धारा 395 लगाई गई। यह डकैती की धारा है। जिसे कुछ देर बाद ही बदल दिया गया। पहले जहां 395 की धारा थी उसे 452 (लूट) में परिवर्तित कर दिया गया। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास एक ही मुकदमा संख्या में परिवर्तित की गई दोनों धाराओं के दस्तावेज मौजूद हैं। इस मामले में अविनाश शर्मा के अधिवक्ता संदीप तिवारी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 का उल्लेख करते हुए अदालत को बताया कि किसी संज्ञेय अपराध की एफआईआर एक ही बार दर्ज होती है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार एफआईआर में छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। लेकिन इस मामले में पुलिस ने इस संहिता का उल्लंघन करते हुए एफआईआर में छेड़छाड़ की है। इस मामले में हाईकोर्ट ने पूर्व में ही संबंधित पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा था। हालांकि विवेचना अधिकारी प्रवीण कोश्यारी ने बाद में चार्जशीट में अविनाश शर्मा पर लगाई गई धारा 452 को भी हटा दिया है।
किसकी गोली से हुई कुलवंत की हत्या
घटना के पांच माह बीत जाने के बाद भी पुलिस अभी तक कुलवंत सिंह के हत्यारों की जांच पूरी नहीं कर पाई है। इसके पीछे पुलिस अपना पक्ष रखते हुए कह रही है कि एफएसएल (विधि विज्ञान प्रयोगशाला) की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। एफएसएल जांच में पुलिस घटनास्थल पर पाए गए कारतूस और बरामद किए गए हथियारों आदि की जांच करा रही है। पुलिस ने इस घटना से संबंधित 4 हथियार बरामद किए जाने का दावा किया है। हालांकि देखा जाए तो चार हथियार अविनाश शर्मा गुट की तरफ से ही बरामद किए गए हैं। बताया जाता है कि पुलिस अविनाश शर्मा के घर से एक राइफल और एक पिस्टल ले गई। जबकि एक जंटू तथा एक नीरज सोनी के घर से पुलिस द्वारा जब्त किया गया है। ऐसे में सवाल यह है कि पुलिस जिन चार हथियारों की बरामदगी की बात कर रही है वह अविनाश शर्मा गुट के लोगों के ही है। तो क्या पुलिस ने नेत्रपाल शर्मा गुट के लोगों के हथियारों को बरामद नहीं किया या उन्हें छुपाया जा रहा है। विदित रहे कि किसी भी बड़े से बड़े अपराध की गुत्थी सुलझाने में एफएसएल जांच बहुत महत्वपूर्ण होती है।
क्यों दिखाया गया बुल्डोजर का डर
आरोपी अविनाश शर्मा के घर पर पुलिस बुल्डोजर लेकर भी पहुंची जिसका न केवल भारी विरोध हुआ बल्कि इसे नियम विरुद्ध भी माना गया। अविनाश शर्मा के अधिवक्ता विजय गर्ग के अनुसार यदि कोई भवन गलत बना है तो राजस्व विभाग नोटिस जारी करता है। जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर ही प्रशासन अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की कार्यवाही करता है। ऐसे में पुलिस की इस प्रकरण पर कोई कार्यवाही ही नहीं बनती थी।
विजय गर्ग ने बताया कि अविनाश शर्मा और जंटू का सरेंडर प्रार्थना पत्र कोर्ट में दिया गया था जिसका जवाब पुलिस द्वारा देने की बजाय उल्टे एनबीडब्ल्यू वारंट की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। घटना के सातवें दिन पुलिस ने अविनाश शर्मा तथा उनके पुत्र विराट देवगन पर 10 हजार का ईनाम रखा। यह ईनाम घटना के आठवें दिन में बढ़कर 25 हजार कर दिया गया। नौवें दिन अविनाश शर्मा ने अपने एक साथी नीरज सोनी के साथ खुद ही कोतवाली बाजपुर में सरेंडर कर दिया।
पूर्व मंत्री का हस्तक्षेप
इस मामले में कांग्रेसी नेता अविनाश शर्मा गुट पर प्रदेश के एक भाजपा नेता और पूर्व मंत्री का हस्तक्षेप बताया जा रहा है। इस पूर्व मंत्री की शर्मा परिवार से पुरानी सियासी टशन रही है। गत विधानसभा चुनाव में अविनाश शर्मा ने जब अपनी पत्नी सुरेशी शर्मा को गदरपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस पार्टी की टिकट की दावेदारी में सक्रिय किया तो तब वह भाजपा नेता बहुत विचलित हो गया था। हालांकि कांग्रेस में मजबूत दावेदारी के बावजूद गदरपुर विधानसभा क्षेत्र में बंगाली वोट बैंक पर कब्जा जमाने के मद्देनजर सुरेशी शर्मा को टिकट नहीं मिल सका और कांग्रेस नेता प्रेमानंद महाजन को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया। कहा जा रहा है कि भाजपा नेता को यह डर सता रहा है कि अविनाश शर्मा आगे चलकर उसकी राजनीतिक राह का कांटा बन सकते हैं। हो सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में बाजपुर विधानसभा सामान्य सीट में परिवर्तित हो जाएगी। इसके मद्देनजर ही वह इस मामले में शर्मा और उनके साथियों पर दबाव की राजनीति कर रहे हैं। बताया तो यहां तक जा रहा है कि जिन आरोपियों पर हत्या की संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है उन्हें जेल जाने से बचाने में इस पूर्व मंत्री का भी हाथ है।
बात अपनी-अपनी
निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। दोषी को सजा मिले। हत्या किसने की वह साफ हो से।
यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष
आपकी इन्वेस्टीगेशन क्या है मुझे इससे मतलब नहीं है। फिलहाल जो आप जानना चाह रहे हैं कि 302 के आरोपियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई ते इस संबंध में आपको बताना चाहूंगा कि अभी वेपन्स की एफएसएल रिपोर्ट नहीं आई है। उस रिपोर्ट के आने के बाद ही स्पष्ट होगा कि कुलवंत सिंह की मौत किसके वेपन्स से हुई। इसके बाद कार्यवाही की जाएगी। जांच निष्पक्ष ही हो रही है। ज्यादा जानकारी के लिए बाजपुर एसओ से बात कर लीजिए।
मंजुनाथ टीसी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ऊधमसिंह नगर
इस मामले में 50-60 राउंड गोलियां चली है जिनकी एफएसएल जांच कराई जा रही है। इस जांच में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कुलवंत सिंह की हत्या किसने की है। उसके बाद उन पर कार्यवाही होगी।
वंदना वर्मा, सीओ बाजपुर
बाजपुर के इतिहास में ऐसी एकतरफा कार्यवाही नहीं हुई जैसी अविनाश शर्मा पर कराई गई। पुलिस द्वारा बुल्डोजर लेकर अविनाश शर्मा के घर पर पहुंचना और 302 के आरोपियों को थाने से घर भेज देने पर पुलिस की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में है।
जितेंद्र शर्मा ‘सोनू’, जिला अध्यक्ष कांग्रेस ऊधमसिंह नगर
पुलिस अपना काम कर रही है, वह निष्पक्ष कार्य ही करेगी। जो भी दोषी है उन पर सख्त कार्यवाही होगी।
राजेश कुमार, प्रवक्ता भाजपा उत्तराखण्ड
पिपलिया गांव में 26 अप्रैल की रात्रि को हुई अंधाधुंध फायरिंग से लोग अभी भी दहशत में हैं। दो गुटों की आपसी लड़ाई में कौन कब शिकार हो जाए कहा नहीं जा सकता है। हम चाहते हैं कि गांव में शांति का माहौल रहे।
रमणीक कौर शर्मा, ग्राम प्रधान पिपलिया
आज पांच माह हो गए हैं लेकिन हमें अभी तक यह नहीं पता चल रहा है कि हमारे बेटे का दोष क्या था। उसको किस दोष की सजा मिली। हमें यह तक नहीं बताया जा रहा है कि हमारे बेटे के हत्यारे कौन हैं? पुलिस भी इस मामले में एकतरफा झुकती हई दिखाई दे रही है। जब एक पक्ष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया तो दूसरे पक्ष को जेल क्यों नहीं भेजा?
सुखदेव सिंह, मृतक कुलवंत सिंह के पिता