आठवीं सदी के दार्शनिक आदि शंकराचार्य द्वारा शुरू किए गए कुंभ मेले से करोड़ों हिंदुओं की आस्था जुड़ी होती है। लेकिन दुखद यह है कि भ्रष्टाचार इस आस्था पर हमेशा से भारी पड़ता आया है। धर्म और संस्कृति के सहारे देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन उभरी भाजपा के शासनकाल में जनवरी 2021 से अप्रैल 2021 तक आयोजित हरिद्वार कुंभ मेला आयोजन तो इस भ्रष्टाचार का महाकुंभ ही बनकर रह गया। हद यह कि खरबों के बजट की बंदरबांट तो हुई ही, कोरोना टेस्टिंग तक में भारी घोटाला कर लाखों श्रद्धालुओं की जान को खतरे में डालने के घृणित कार्य को भी अंजाम दिया गया। अब इस आयोजन के लिए विशेष रूप से तैनात किए गए मेलाधिकारी दीपक रावत को कुंभ समाप्त होने के बाद भी दोबारा से मेलाधिकारी बनाया जाना पुष्कर सिंह धामी सरकार की साख पर भारी संदेह पैदा कर रहा है
कुंभ मेला अधिष्ठान राज्य के कुछ अधिकारियों के लिए परमानेंट ठिकाना जैसा बनता नजर आ रहा है। कुछ समय पूर्व जिन दीपक रावत को कुंभ मेला अधिकारी के पद से हटाकर पिटकुल और पावर काॅरपोरेशन का एमडी बनाकर
देहरादून भेजा गया था, वे कुंभ मेला अधिकारी के पद पर बने रहने का मोह नहीं छोड़ पाए। नतीजा यह है कि सरकार के आदेश की खुली अवहेलना करते हुए दीपक रावत अपनी ऊंची पहुंच के बलबूते राज्य सरकार पर भारी पड़े। दीपक रावत ने पहले तो नए तैनाती स्थल पर ज्वाइनिंग ही नहीं दी और सूत्र बताते हैं कि इस बात का आश्वासन मिलने पर कि उनको मेला अधिकारी का पदभार एक बार पुनः दिया जाएगा तब जाकर रावत ने पावर काॅरपोरेशन में ज्वाइनिंग दी। इस प्रकार एक आईएएस अधिकारी के सामने धामी सरकार के तमाम आदेश जहां हवा में उड़ते नजर आए, वहीं सरकार को दीपक रावत को एक बार फिर कुंभ मेला अधिकारी के पद पर तैनाती देनी पड़ी।
गौरतलब है कि कोई भी अधिकारी इतने लंबे समय तक मेलाधिकारी के पद पर कार्यरत नहीं रहा है जितने समय से कि दीपक रावत मेलाधिकारी पद पर जमे हुए हंै। धामी सरकार को अपना निर्णय पलटने का दबाव बनाने में कामयाब हुए दीपक रावत एक बार फिर मेला अधिकारी की कुर्सी पर अतिरिक्त प्रभार के रूप में काबिज हो गए हैं। यह हाल तब है जब कुंभ मेला विवादों और घोटालों से भरा रहा है। ऐसे में दीपक रावत की मेलाधिकारी के पद पर फिर से तैनाती किसी के गले नहीं उतर रही है। ऐसा इसलिए कि दीपक रावत के मेलाधिकारी रहते हालिया संपन्न कुंभ आयोजन भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान बनाने के लिए याद किया जाता है। सबसे बड़ा घोटाला कोरोना जांच में हुए भारी भ्रष्टाचार को माना जा रहा है जिसकी जांच वर्तमान में हरिद्वार पुलिस द्वारा गठित एसआईटी कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर हरिद्वार के मुख्य विकास अधिकारी सौरभ गहरवार भी इसकी विभागीय जांच में जुटे हैं। सूत्रों के अनुसार सीडीओ की जांच में मेले से जुड़े कई बड़े अधिकारियों की गर्दन फंसती नजर आ रही है। कोरोना जांच में हुए करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार के चलते जहां एक ओर स्थानीय स्तर पर राज्य सरकार एवं मेला प्रशासन को खासी फजीहत झेलनी पड़ी, तो वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी कोरोना जांच से जुड़ा कुंभ का यह घोटाला मेला प्रशासन पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है?
दीपक रावत के नाम रिकाॅर्ड
बात करें हरिद्वार के प्रथम कुंभ मेलाधिकारी से लेकर वर्तमान मेलाधिकारी के कार्यकाल की अवधि की तो कुंभ मेले का प्रथम कुंभ अफसर बनने का सौभाग्य ब्रिटिश शासनकाल के दौरान फैलिक्स विंसेंट रैपर को मिला था। कुंभ मेला अफसर नियुक्त करने की शुरुआत भी ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1808 में हुई थी जिसमें वर्ष 1808 में फैलिक्स विंसेंट रैपर प्रथम कुंभ मेला अफसर के पद पर तैनात किए गए। फिर 12 वर्ष पश्चात 1820 में एक बार फिर कुंभ के आयोजन का जिम्मा अंग्रेज अफसर फैलिक्स विंसेंट रैपर को दिया गया। 1855 में राॅबर्ट कुंभ मेला अफसर के पद पर तैनात हुए। इसके पश्चात 1886 में जैक्स, 1891 में निल्स बुडमैन, 1903 में साइमन, 1915 में लाॅड क्लार्क, 1927 में डब्ल्यू ओक्रिष्ट, 1938 में मैलकम के पश्चात वर्ष 1962 में भारतीय मूल के टीजेके चारलू पहले मेलाधिकारी बनाए गए। इसके पश्चात 1986 कुंभ में अरुण कुमार मिश्रा, 1998 में जेपी शर्मा, 2010 में आनंद वर्द्धन तो 2021 कुंभ के लिए दीपक रावत की तैनाती 2017 में कुंभ मेलाधिकारी के पद पर की गई। इस प्रकार दीपक रावत जहां एक ओर सबसे अधिक समय चार बरस तक मेलाधिकारी के पद पर तैनाती पाने वाले अधिकारी बने, तो वहीं दूसरी ओर दीपक रावत के साथ एक नया रिकाॅर्ड यह भी जुड़ा कि मेला समाप्ति के पश्चात पद से हटाए जाने पर अभी कुंभ मेला न होते हुए भी एक बार फिर उन्हें कुंभ मेलाधिकारी के पद पर तैनात किया गया।
दीपक रावत को कुंभ समाप्त होने के बाद दोबारा से मेलाधिकारी बनाया जाना कहीं न कहीं घोटालों की जांच को प्रभावित करना और अपने किए पर पर्दा डालने की कवायद स्पष्ट नजर आ रही है। मेला अधिकारी ही नहीं, अपर मेला अधिकारी सहित उप मेलाधिकारी के रूप में प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी अंशुल कुमार की मेला प्रतिष्ठान में तैनाती भी किसी के गले नहीं उतर रही है, जबकि अंशुल कुमार को उपजिलाधिकारी सदर का पदभार भी सौंपा गया है।
कहा तो यह भी जा रहा है कि कुंभ-2021 में हुए कोरोना जांच घोटाले में चल रही जांच को लेकर प्रदेश स्तर तक हलचल के चलते कुछ अधिकारियों को अपनी गर्दन फंसती नजर आ रही थी, तो इस जांच को प्रभावित करने के लिए ही इन अधिकारियों की तैनाती कंुभ प्रशासन में बनाकर रखी गई है। कोरोना जांच में हुए घोटाले की जांच कर रही एसआईटी के अनुसार घोटाले का मामला तब सामने आया जब एक पंजाब निवासी विपिन नाम के व्यक्ति को उनके मोबाइल पर मैसेज मिला कि उनका कोरोना टेस्ट किया गया, जबकि विपिन ने कोई टेस्ट कराया ही नहीं था। विपिन ने इसकी शिकायत आला अधिकारियों से की, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। इसके बाद विपिन ने इंडियन काॅउंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च को ईमेल कर इस बात की शिकायत की। तब हरकत में आए आईसीएमआर ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए जांच के लिए उत्तराखण्ड शासन को निर्देश दिए। प्रारंभिक जांच के दौरान घोटाले का सच सामने आया जिसमें पाया गया कि झूठा टेस्ट केवल अकेले विपिन का ही नहीं हुआ, बल्कि कई लोगों की कोरोना रिपोर्ट फर्जी तरीके से बनाई गई थी और एक ही मोबाइल नंबर पर 50-55 लोगों का रजिस्ट्रेशन कर उनके नाम की फर्जी कोरोना रिपोर्ट तैयार कर मेला प्रशासन से करोड़ों रुपया प्राप्त कर लिया गया। दरसअल, कुंभ को लेकर नैनीताल उच्च न्यायालय ने 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक प्रतिदिन 50 हजार टेस्ट किए जाने के निर्देश दिए थे जिसको देखते हुए आईसीएमआर से अधिकृत 9 लैब तथा 22 निजी लैब को ये जिम्मा सौंपा गया था। जिसमें लगभग चार लाख टेस्ट होने बताए गए। फर्जीवाड़े की शुरुआत भी यहीं से हुई।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कुंभ मेले के दौरान 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक छह लाख टेस्ट कराए गए जिसमंे से 17,335 लोग ही मात्र पाॅजिटिव पाए गए। गौरतलब है कि इस समय हरिद्वार में कोरोना पाॅजिटिविटी दर मात्र 2.89 प्रतिशत ही पाई गई जो कि अन्य राज्यों की अपेक्षा 80 प्रतिशत कम थी, जबकि उस समय हरिद्वार में लाखों श्रद्धालु आए हुए थे साथ ही राज्य के कुल टेस्ट का 58 फीसदी हरिद्वार में हुआ था। उस समय एंटीजन टेस्ट की दर निजी लैब द्वारा 300 रुपए थी, जबकि आरटीपीसीआर की तीन दरें तय थी जिसमें यदि सरकारी लैब सैम्पल लेकर जांच के लिए निजी लैब को देती तो 400 रुपए भुगतान दिया जाता। यदि निजी लैब खुद सैम्पल लेती तो 700 और यदि निजी लैब सैम्पल का संग्रह घर से करती तो 900 रुपए दिए जाते थे। इस हिसाब से 10 से 14 अप्रैल तक ही लगभग 240,726 टेस्ट हुए जिनका कुल खर्चा लगभग 6 करोड़ 42 लाख के करीब था। एक तरफ केवल पांच ही दिन में जहां इतने बड़े पैमाने पर झूठी कोरोना रिपोर्ट बनाई गई हैं, इसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि कितना बड़ा आर्थिक घोटाला हुआ है। साथ ही कोरोना की झूठी रिपोर्ट बनाकर कितने लोगों की जान जोखिम में डाली गई। अभी तक कुंभ प्रशासन के नित नए कारनामे सामने आ रहे हंै। उल्लेखनीय है कि कुंभ आयोजन के दौरान बनाया जाने वाला मेला क्षेत्र कुंभ समापन के बाद समाप्त कर दिया जाता है। जैसा कि 1 जनवरी से जून माह तक कुंभ अवधि होती थी। लेकिन अब इसकी कोई सीमा ही नहीं रही। जहां मेलाधिकारी को पुनः पद पर विराजमान कराया गया वहीं दूसरी ओर रातोंरात नए अपर मेलाधिकारी कुंभ को नियुक्त किया गया है। 2021 में कराए जाने वाले कुंभ गजट की मानें तो एक जनवरी से 30 अप्रैल तक ही कुंभ कहा जा रहा था, जबकि मई तथा जून दो महीने का समय कुंभ योजना खर्च का आॅडिट का होता रहा है। लेकिन कुंभ मेला अधिकारी दीपक रावत को एक बार फिर से मेलाधिकारी बनाया जाना इस बात का संकेत है कि शायद कुछ ऐसे काम अभी बाकी हैं जो गजट से बाहर हैं और जो केवल दीपक रावत ही कर सकते हैं। यही कारण लग रहा है कि प्रदेश सरकार द्वारा घोषित कुंभ अवधि 29 अप्रैल के बाद 17 अगस्त की गई और रातोंरात उत्तम सिंह चैहान को सचिव एचआरडीए के साथ नया अपर मेलाधिकारी कुंभ नियुक्त किया गया है। सरकार का कुंभ अधिकारियों में लगातार किया जा रहा ये फेरबदल किसी ऐसे काम की ओर संकेत कर रहा है जो पूरा कुंभ मेला सम्पन्न करा चुके पुराने अपर मेलाधिकारी से नहीं हो पा रहा था कि अब नए अपर मेलाधिकारी को लाया गया और मेलाधिकारी की पुनः वापसी की गई है। ऐसे में मेलाधिकारी को कार्यमुक्त कर पुनः कार्यभार सौंपने का शासन का निर्णय जांच के निष्पक्ष होने पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। राज्य गठन के पश्चात अभी तक राज्य में दो कुंभ का आयोजन हो चुका है। जिसमें 2010 में आयोजित कंुभ के लिए मेलाधिकारी के पद पर 26 जुलाई 2008 को आईएएस अधिकारी आनंद वर्द्धन की तैनाती की गई। इस दौरान आनंद वर्द्धन 17 जून 2010 तक कुंभ मेलाधिकारी के पद पर तैनात रहे। अब 2021 कुंभ के लिए 4 मई 2017 को मेलाधिकारी दीपक रावत की तैनाती की गई, जिसमें जुलाई 2021 में दीपक रावत को मेलाधिकारी के पद से हटाए जाने के बाद उनको एक बार फिर मेलाधिकारी के पद पर तैनात किया जाना सरकार के बेहतर शासन-प्रशासन देने के तमाम दावों की पोल खोलने के लिए काफी है।
साथ में नावेद अख्तर
बात अपनी-अपनी
स्थानांतरण और पुनर्नियुक्ति शासन की सामान्य प्रक्रिया है। उसी प्रक्रिया के अंतर्गत दीपक रावत को एक बार फिर मेला अधिकारी का पदभार सौंपा गया है। जहां तक कोरोना जांच में हुए घोटाले का सवाल है, तो जो भी जांच में दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए।
मदन कौशिक, प्रदेश अध्यक्ष भाजपा
मेला अधिकारी के पद पर एक बार फिर दीपक रावत की तैनाती के संबंध में मुझे अधिक जानकारी नहीं है। आप मुझसे आकर मिलें फिर चर्चा करते हैं।
गणेश गोदियाल, प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस