- सुनील भारद्वाज
सरकारी जमीन की अनोखी लूट-2
उत्तराखण्ड के नैनीताल जनपद की हल्द्वानी तहसील में लगभग सौ करोड़ की बाजारी मूल्य वाली सरकारी जमीन का फर्जीवाड़ा तो दरअसल, असल घोटाले का आधा-अधूरा सच निकला। ‘दि संडे पोस्ट’ की गहन पड़ताल ने तो पूरेसरकारी अमले की कलई खोल दी है। गौलापार इलाके के गांव देवला तल्ला में तो अलग ही ‘खेला’ सामने आया है। 2010 में बलवंत सिंह के अवैध कब्जे वाली जमीन 3.107 हेक्टेयर नहीं बल्कि 6.248 हेक्टेयर निकली (दो सौकरोड़ बाजारी भाव) जिसे 2011 में तमाम नियम-कानूनों को धता बताते हुए बलवंत सिंह और उनके परिजनों के नाम कर दी गई। इस परिवार ने जमीन को आधा-आधा आपस में बांट लिया। 2016 में जमीन का वर्गीकरण 2011 के आदेश को आधार बना वर्ग 1(क) यानी पूर्ण मालिकाना हक में परिवर्तित करा इस परिवार ने अजीबो-गरीब तरीकों को अपना सारी जमीन बेच डाली है। बलवंत सिंह के हिस्से वाली जमीन 7 लोगों को बेची गई तो उसके चचेरे भाई हरगोविंद सिंह के हिस्से वाली 3.107 हेक्टेयर जमीन 111 लोगों के नाम छोटे-छोटे प्लॉट काट कर खुर्द-बुर्द कर दी गई है। इन 111 लोगों में से आधे उत्तराखण्ड के नागरिक नहीं हैं। हैरानी की बात यह कि कृषि भूमि को अकृषक कार्य प्लॉटिंग के इस ‘खेला’ की बाबत जिला प्रशासन को भनक तक नहीं
पटकथा
‘दि संडे पोस्ट’ ने 17 दिसंबर के अपने अंक में उत्तराखण्ड के नैनीताल जनपद की तहसील हल्द्वानी में करोड़ों रुपयों के बाजारी मूल्य वाली सरकारी जमीन की ‘लूट’ का पर्दाफाश किया था। ग्राम देवला तल्ला, गौलापार स्थित इस जमीन की लूट में राज्य के ताकतवर राजनेताओं से लेकर जिले के वरिष्ठ नौकरशाहों का हाथ रहा था। खबर प्रकाशित होते ही राज्य सरकार एक्शन में आई। स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खबर का संज्ञान लेते हुए कड़ी कार्यवाही का आदेश नैनीताल के जिलाधिकारी को दिया। 2016 में इस जमीन का पट्टा वर्ग-1(ख) से वर्ग-1(क) किए जाने के आदेश को गत् सप्ताह नैनीताल के डीएम धीराज गर्ब्याल ने अवैध करार देते हुए समस्त 50 बीघा जमीन को सरकारी घोषित कर भ्रष्टाचार को लेकर धामी सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर मुहर लगा तो दी लेकिन पूरे मामले की तह तक पहुंचने में चूक गए हैं। इस लूट का असल ‘खेला’ 2016 का आदेश है ही नहीं। 2016 में तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक रावत ने जिस जमीन का पट्टा वर्ग-1(ख) (ग्रांट की जमीन) से बदल वर्ग-1(क) किया उसका आधार 2011 का वह आदेश है जिसके जरिए इस सरकारी जमीन को अवैध तरीके से ग्रांट की जमीन में बदला गया था। हालांकि राज्य सरकार ने ‘दि संडे पोस्ट’ में इस लूट का पर्दाफाश होने के साथ ही एक्शन लिया जरूर लेकिन आधा-अधूरा। आधा -अधूरा इसलिए क्योंकि इसी जमीन से सटी 3 ़107 हेक्टयर जमीन (लगभग 50 बीघा) की भी ‘लूट’ को अंजाम दिया गया है। इतना ही नहीं पहली जमीन जिसका पट्टा बलंवत सिंह माहरा के नाम 2011 में किया गया था, ठीक उसी तरह से इस जमीन का पट्टा हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा और विमला माहरा के नाम किया गया जिन्होंने बलंवत सिंह की भांति ही पट्टे को वर्ग-1(क) में परिवर्तन करा सारी जमीन तत्काल बेच दी। कुछ जमीन को सीधे बेचा गया तो कुछ को बलवंत सिंह की भांति पहले दान में दिया गया फिर उसे खुर्द-बुर्द कर डाला। इस जमीन को 111 लोगों को बेचा गया है जिनमें से मात्र कुछ ही लोग उत्तराखण्ड मूल के हैं बाकी सभी बिजनौर, रामपुर, दिल्ली और अलीगढ़ के निवासी हैं।
कहानी विस्तार से
इस सरकारी जमीन की लूट के केंद्र में भी तहसील हल्द्वानी के गौलापार इलाके की एक 3 ़107 हेक्टयर भूमि है जो ग्राम देवला तल्ला में स्थित है। इस जमीन पर बीते कई दशकों से हरगोविंद सिंह और कृष्ण पाल सिंह का कब्जा चला आ रहा था। यहां यह समझा जाना जरूरी है कि गत् 17 दिसंबर के अपने अंक में जिस जमीन की लूट का खुलासा ‘दि संडे पोस्ट’ ने किया था, उस जमीन के साथ सटी इस जमीन पर काबिज हरगोविंद सिंह और कृष्ण पाल सिंह, बलवंत सिंह के सगे संबंधी हैं। बलवंत सिंह माहरा के पिता मोहन सिंह और हरगोविंद सिंह माहरा के पिता प्रीतम सिंह सगे भाई थे। इस परिवार के पास कुल 6 ़285 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा दशकों से बना चला आ रहा था जिसको वैध कब्जे में तब्दील करने का पहला प्रयास इस परिवार ने एक साथ मिलकर 1991 में किया था जिसे तत्कालीन डीएम नैनीताल सूर्यप्रताप सिंह ने 22/04/91 को खारिज करते हुए इस 6 ़285 हेक्टेयर जमीन से इन भाइयों को बेदखल करने का आदेश दिया था। राज्य गठन के बाद माहरा परिवार ने अपने इस अवैध कब्जे की सरकारी जमीन का आपस में बंटवारा कर जिला प्रशासन के समक्ष प्रार्थना पत्र दे कर जमीन को वर्ग चार से नियमित पट्टे में बदलने की गुहार लगाई। बलवंत सिंह की याचिका के साथ-साथ हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा और विमला माहरा की याचिका को भी 2011 में तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा स्वीकारते हुए वर्ग चार की सरकारी जमीन को वर्ग-1(ख) में की सरकारी ग्रांट वाली जमीन में बदल दिया। यहां यह समझा जाना भी जरूरी है कि सरकारी वर्ग चार की जमीन उसी व्यक्ति के नाम ग्रांट (वर्ग-1(ख) की जा सकती है जो भूमिहीन हो एवं लंबे समय से कब्जे वाली जमीन पर कृषि कार्य करता आ रहा हो। माहरा बंधुओं के मामले में लेकिन ऐसा नहीं था।

‘दि संडे पोस्ट’ के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस परिवार के पास तहसील हल्द्वानी के गांव जगतपुर एवं तहसील नैनीताल के महरागांव में कई हेक्टेयर जमीन होने के बावजूद उन्हें सरकारी जमीन का पट्टा दे दिया गया। बलवंत सिंह प्रकरण की जांच में इसे सही पाया गया है कि 12 ़5 एकड़ से अधिक भूमि का मालिक होने के बावजूद बलवंत सिंह द्वारा सरकारी जमीन हड़पने की नीयत से गलत शपथ पत्र दिया गया जिसे जांच करे बगैर ही जिले के राजस्व अधिकारियों ने सही करार दे डाला था। ठीक इसी प्रकार बलवंत सिंह के परिजन हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा और विमला माहरा ने भी गलत शपथ पत्र दिया जिसे बगैर जांच किए ही राजस्व अधिकारियों ने सही मान लिया।
2010-11 में हुआ था असली ‘खेला’
इस 6 ़285 हेक्टेयर (लगभग 110 बीघा) को वर्ग-4 (अवैध कब्जे वाली जमीन) से वर्ग-1(ख) (सरकारी ग्रांट वाली जमीन) में बदलने का ‘खेला’ 2010 में एक बार फिर से शुरू किया गया। तब राज्य में भाजपा की सरकार थी और डॉ . रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ मुख्यमंत्री थे। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई एक्टिविस्ट रविशंकर जोशी द्वारा प्राप्त सरकारी पत्रावली मौजूद है जिसके अनुसार 25 जून, 2010 को नैनीताल के तत्कालीन अपर जिलाधिकारी के समक्ष जब इस अवैध कब्जे वाली 6.285 हेक्टेयर भूमि के विनियमितीकरण की संस्तुति पेश हुई तो उन्होंने इस संस्तुति को अस्वीकार करते हुए तत्कालीन तहसीलदार, हल्द्वानी को निर्देश दिया कि ‘पत्रावली के अवलोकन करने पर पाया गया कि पूर्व परगनाधिकारी (एसडीएम) द्वारा दी गई आख्या दिनांक 03/04/1998 में कहा गया कि प्रश्नगत् भूमि के संबंध में बेदखली का वाद विचाराधीन है। उक्त के संबंध में अपनी स्पष्ट आख्या इस कार्यालय में प्रस्तुत करें कि वाद लंबित है या नहीं तथा खातेदार से शपथ पत्र भी लिया जाए।’ जमीन की लूट को जल्द से जल्द अंजाम तक पहुंचाने के लिए व्याकुल राजस्व विभाग के अधिकारियों ने अपने स्तर से यह पता लगाने का प्रयास किया ही नहीं कि इस जमीन से अवैध कब्जा हटाने के जो आदेश 1991 में तत्कालीन डीएम नैनीताल एस.पी. सिंह ने दिए थे और जिसके कारण सिटी मेजिस्ट्रेट, हल्द्वानी के समक्ष बेदखली का मुकदमा दायर किया गया था, उन मुकदमां की वर्तमान में क्या स्थिति है। इन राजस्व अधिकारियों ने अवैध कब्जेदारां के दिए गए शपथ पत्र को सत्य मानते हुए अपनी जांच रिपोर्ट दोबारा अपर जिलाधिकारी को 03 जुलाई, 2010 को भेज दीं इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि ‘….प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत संग्लन प्रार्थना पत्र में उक्त प्रस्तावित वर्ग-4 की भूमि संबंधित बेदखली वाद किसी भी न्यायालय में लंबित नहीं होने का उल्लेख किया है।’ 12 जनवरी, 2011

को तत्कालीन जिलाधिकारी, नैनीताल के समक्ष पेश रिपोर्ट में जिले के राजस्व अधिकारियों ने बगैर किसी प्रमाण के मात्र एक शपथपत्र को आधार बना बलवंत सिंह एवं हरगोविंद सिंह द्वारा वर्ग चार की भूमि का वाद किसी भी न्यायालय में लंबित न होने तथा उनके द्वारा 1989 में ही अवैध कब्जे वाली जमीन का पूरा भू-नजराना जमा कराए जाने के दावे को भी बगैर किसी प्रमाण जनपद के राजस्व अधिकारियों ने स्वीकार लिया जिससे स्पष्ट होता है कि सरकारी जमीन की इस हैरतनाक ‘लूट’ में नैनीताल जिले के वे अधिकारी शामिल हैं जो 2010-11 में यहां तैनात थे।
वर्ग-1(ख) की जमीन का वर्ग-1(क) में बदलना वर्ष 2010 में एक अवैध कब्जे वाली बहुमूल्य सरकारी जमीन को निजी हाथों में सौंपने का ‘खेला’ भाजपा शासन में शुरू हुआ और इसको अंजाम तक पहुंचाया गया कांग्रेस शासन में। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव बाद चूंकि राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया था इसलिए इस ‘खेला’ के असल खिलाड़ियों ने इस खेल में कांग्रेस से जुड़े किरदारों को शामिल किया। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के पुत्र हरेंद्र कुंजवाल की इस मामले में एंट्री इसी चलते होनी स्पष्ट प्रतीत होती है। वर्ष 2016 में जिला प्रशासन, नैनीताल ने हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा और विमला माहरा की वर्ग-1(ख) की जमीन को वर्ग-1(क) में बदलने के लिए 2011 में इसी जमीन को वर्ग चार से वर्ग-1(ख) में बदलने के आदेश को अपना आधार बनाया। यहां यह गौरतलब है कि तत्कालीन राजस्व निरीक्षक काठगोदाम क्षेत्र भगवान सिंह चौहान एवं तत्कालीन तहसीलदार हल्द्वानी ने यह सुनिचित करने का कोई प्रयास नहीं किया कि हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा और विमला माहरा के पास खुद की कितनी जमीन है। जमीनदारी उन्मूलन कानून के अंतर्गत सरकारी जमीन का पट्टा केवल भूमिहीनों को ही आवंटित किया जा सकता है। इतना ही नहीं इन अवैध कब्जेदारों से नियमानुसार वसूले जाने वाला नजराना जो वर्तमान सर्किल रेट का 40 प्रतिशत होता है, को भी इस आधार पर नहीं लिया गया कि उक्त धनराशि को पूर्व में ही जमा करा दिया गया था। उत्तराखण्ड सरकार के शासनादेश 453/XVIII (II)/ 2014-17(46/2008) दिनांक 11 मार्च, 2015 तथा

शासनादेश 1846/XVIII(II)201517 (46/2008) दिनांक 26/11/2015 के अनुसार सरकारी जमीन का पट्टा दिए जाते समय भूमि श्रेणी बदलने हेतु ‘उक्त भूमि के कब्जे की अवधि के भू-राजस्व का बीस गुना तथा जिलाधिकारी द्वारा निर्धारित सर्किल रेट की 40 प्रतिशत धनराशि नजराना के रूप में जमा कराना अवश्यक है।’ इन्हीं शासनादेशों में यह भी कहा गया है कि जिन पट्टा आवंटियों ने श्रेणी परिवर्तन हेतु संपूर्ण धनराशि दिनांक 31/12/1989 तक जमा करा दी हो, उनसे श्रेणी परिवर्तन के लिए अतिरिक्त नजराना नहीं लिया जाएगा। बलवंत सिंह की तरह ही हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा और विमला माहरा ने भी एक शपथ पत्र दाखिल करा जिसमें यह कहा गया कि उन्होंने संपूर्ण धनराशि पूर्व में ही जमा करा दी थी लेकिन ‘उक्त जमा करने संबंधी प्रपत्र शपथकर्त्ताओं को अपने घर पर बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे हैं।’ इसी को सच मानते हुए तत्कालीन राजस्व अधिकारियों ने जमीन को वर्ग-1(ख) से वर्ग-1(क) में बदलने की संस्तुति तत्कालीन डीएम को कर डाली।

हरगोविंद एंड फैमली भी बनी दानवीर, कर दी कुछ भूमि दान
सरकारी जमीन की इस लूट को भी बलवंत सिंह जैसे ही खुर्द-बुर्द किया गया। वर्ग-1(क) का आदेश आते ही इस जमीन के एक हिस्से, लगभग 15 बीघा को हरगोविंद एंड फैमली ने हरिप्रिया माहरा पत्नी आलोक माहरा एवं प्रमिला माहरा पत्नी जीवन सिंह माहरा को दान कर दी। इन दोनों ने भी बलवंत सिंह से दान भूमि पाने वाले रविकांत फुलारा की भांति ही इस जमीन को बेच डाला। यह प्रशासन द्वारा निष्पक्ष जांच से ही प्रमाणित हो पाएगा कि सही में यह भूमि दान की गई थी अथवा रविकांत फुलारा की तरह ही हरिप्रिया माहरा और प्रमिला माहरा जमीन की इस लूट में मोहरा मात्र हैं जिनके जरिए असल खिलाड़ियों ने अपनी ‘ठगी’ को अंजाम पहुंचाया है।
बेचा जाना समस्त जमीन को
हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा और विमला माहरा ने लगभग 15 बीघा भूमि तो ‘दान’ कर दी। बची जमीन में से 1.534 हेक्टेयर (लगभग 25 बीघा) जमीन एक स्थानीय प्रॉपर्टी डीलर राजेश रावत एवं गुंजन सिंह दरम्वाल को बेच डाली। राजेश रावत और गुंजन सिंह दरम्वाल ने इस जमीन को वर्तमान भूलेखों के अनुसार छोटे-छोटे भूखंडों के रूप में 111 लोगों को बेच दिया है। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास उपलब्ध दस्तावेजों अनुसार इन 111 लोगों में से 49 खरीददार गैर उत्तराखण्डी हैं जिन्होंने वर्ग-1(ग) श्रेणी के अंतर्गत पहली बार राज्य में जमीन खरीदी है। इस बड़े स्तर पर कृषि भूमि को छोटे- छोटे टुकड़े कर अवासीय भूमि में बदलने के लिए भूमि के मालिकों राजेश रावत एवं गुंजन सिंह दरम्वाल ने किसी भी सरकारी विभाग से कोई भी औपचारिक अनुमति नहीं ली।
उपसंहार
सरकारी जमीन की यह हैरतनाक लूट कई बड़े सवालों को जन्म देती है। बहुत संभव है कि हल्द्वानी तहसील का यह ‘खेला’ जिले की अन्य तहसीलों और राज्य के अन्य जनपदों में भी खुलकर परवान चढ़ाया जा रहा
इस घोटाले का पर्दाफाश आरटीआई के जरिए करने वाले रविशंकर जोशी की माने तो ‘उत्तराखण्ड के एक शांत पहाड़ी क्षेत्र की डेमोग्राफी’ इस ‘खेला’ के चलते बदली गई है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या राज्य सरकार बलवंत सिंह प्रकरण की तर्ज पर हरगोविंद सिंह एंड फैमली द्वारा दिए गए फर्जीवाड़े पर कार्यवाही कर समस्त जमीन को सरकार में चिÐत करती है या फिर रसूखदारों के दबाव में आकर मामले को दबा दिया जाता है।

5 मार्च, 2011 के दिन अवैध कब्जेदार बन गए वैध कब्जेदार हो। हल्द्वानी के गौलापार इलाके की इस जमीन का विनियमतिकरण वर्ष 1991 और 1998 में तत्कालीन जिलाधिकारियों ने निरस्त करते हुए इस पूरी जमीन जो 6 ़285 हेक्टेयर है, से अवैध कब्जेदारां का कब्जा हटाने का आदेश भी पूर्व में दिया गया था और बेदखली का मुकदमा भी सिटी मेजिस्ट्रेट हल्द्वानी के समक्ष चल रहा था। ऐसे में सबसे बड़ा घोटाला 2011 में तत्कालीन राजस्व अधिकारियों द्वारा इस वर्ग-4 की अवैध कब्जे वाली जमीन को वर्ग-1(ख) ग्रांट वाली जमीन में बदला जाना है। यदि 1991 में तत्कालीन जिलाधिकारी एस.पी. सिंह द्वारा इस जमीन की बाबत दिए गए आदेश को तथा इस परिवार (बलवंत सिंह, हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा, विमला माहरा) के पास कुल जमीन की बाबत 2011 में तत्कालीन राजस्व अधिकारी सही पड़ताल करते तो जमीन से अवैध कब्जा भी हटता और इस बेशकीमती सरकारी जमीन की लूट भी परवान नहीं चढ़ती। असली ‘खेला’ तो 2010-11 में खेला गया। यदि जमीन की श्रेणी 2011 में वर्ग-4 से वर्ग-1(ख) में नहीं बदली जाती तो 2016 में इस जमीन को वर्ग-4(क) में नहीं बदला जाता। प्रश्न यह भी बेहद महत्वपूर्ण है कि हरगोविंद एंड फैमली द्वारा ‘दान’ में वाकई 15 बीघा जमीन दी गई या फिर बलवंत सिंह की तरह यहां भी दान के नाम पर मनी लॉन्ड्रिग हुई है। यह भी जांच का विषय है कि इस 3 ़107 हेक्टेयर जमीन को क्या किसी प्राधिकरण अथवा किसी सरकारी अनुमति के बाद 111 लोगों को बेचा गया या फिर सब कुछ अवैध तरीके से किया गया है।
‘किसी को बख्शा नहीं जाएगा’
किसी भी सरकारी जमीन का यदि गलत तरीके से पट्टा कराया गया हो या फिर उसे बेचा गया हो तो सरकार कठोरतम कार्यवाही करेगी। आपकी पहली खबर को संज्ञान में लेते हुए हमने उक्त जमीन को सरकार में निहित कर लिया है। इस दूसरी जमीन की बाबत भी डीएम, नैनीताल जांच करेंगे और यदि गड़बड़ी पाई गई तो यह जमीन भी जब्त कर ली जाएगी।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड
बात अपनी-अपनी
हम इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराएंगे। यदि विनियमितीकरण के दौरान कुछ गड़बड़ी हुई है तो जमीन शासन में निहित की जाएगी। सभी दोषियों के खिलाफ नियमानुसार कठोर कार्यवाही भी होगी।
धीराज गर्ब्याल, डीएम नैनीताल
आपसे हमें इस प्रकरण की जानकारी मिली है। पहले हम सभी को नोटिस भेजेंगे, जवाब नहीं मिलने पर चालान करेंगे, सील करेंगे और यदि कोई गलत निर्माण हुआ है तो उसे ध्वस्त भी करेंगे। यदि जमीन सरकार की है तो वापस ली जाएगी। हमने रजिस्ट्रार को आगे से इस जमीन की रजिस्ट्री न करने के आदेश दे दिए हैं।
रिचा सिंह, सिटी मजिस्ट्रेट एवं संयुक्त सचिव, हल्द्वानी-काठगोदाम विकास प्राधिकरण
यह जमीन हमारे पिताजी की थी जिसे मैंने अपनी चाची, प्रमिला माहरा को दान कर दी है।
हरगोविंद सिंह माहरा, जमीन के पट्टा मालिक
आपको इससे क्या मतलब है? आप क्यों पूछताछ कर रहे हो? जो कुछ पूछना है राजेश रावत से पूछो?
जीवन सिंह, दान में मिली जमीन की प्राप्तकर्ता
प्रमिला माहरा के पति

राज्य की डेमोग्राफी को बदला गया है : रविशंकर जोशी, आरटीआई कार्यकर्ता
हल्द्वानी तहसील में बहुमूल्य सरकारी जमीन की लूट का पर्दाफाश करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी का कहना है कि राजनीतिक रसूखदार व्यक्तियों तथा जिला प्रशासन के अधिकारियों- कर्मचारियों के भ्रष्ट गठजोड़ से जनपद नैनीताल में सिलिंग सीमा से अधिक भूमि को भूमाफियाओं के नाम वर्ग 1 (क) श्रेणी में दर्ज की गई। आवेदक के शपथपत्र के दावे को ही पूर्णतः सत्य मानते हुए विनियमितीकरण के एवज में नजराने की कोई धनराशि जमा न कर राजकोष को करोड़ों की हानि पहुंचाई गई।
जोशी का मानना है कि ग्राम देवला तल्ला पजाया के खाता सं. 40 की 3.107 हेक्टेयर श्रेणी वर्ग 1 (ख) की कृषि भूमि को फरवरी 2016 में श्री हरगोविंद सिंह, उमंग माहरा तथा विमला माहरा के नाम श्रेणी वर्ग 1 (क) में विनियमितीकरण की संपूर्ण प्रक्रिया अवैध व नियमविरुद्ध है तथा जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम व सिलिंग अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत प्रश्नगत संपूर्ण भूमि राज्य सरकार में निहित करने के सर्वथा योग्य है।
बकौल जोशी प्रॉपर्टी डीलर राजेश रावत एवं गुंजन सिंह दरम्वाल तथा प्रकाश चन्द्र द्वारा उक्त भूमि विभिन्न व्यक्तियों को विक्रय कर दी गई है। वर्तमान खतौनी के अनुसार कुल 111 व्यक्तियों को प्रश्नगत भूमि विक्रय की गई, जिसमें से मात्र 02 व्यक्ति उत्तराखण्ड मूल के पहाड़ी हैं। शेष 109 क्रेता मुस्लिम समुदाय के हैं, इनमें से भी 49 व्यक्ति राज्य से बाहर के मुस्लिम हैं जिन्होंने वर्ग 1 (ग) विशेष श्रेणी के अंतर्गत उत्तराखण्ड राज्य में प्रथम बार भूमि क्रय की है। इस प्रकार उत्तराखण्ड के एक शांत पहाड़ी क्षेत्र की डेमोग्राफी पूरी तरह से बदल दी गई है।
जोशी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भेजे अपने पत्र में गुहार लगाई है कि ‘महोदय से विनम्र आग्रह है कि तत्काल उक्त विनियमितीकरण की संपूर्ण प्रक्रिया को अवैध/शून्य घोषित करते हुए सिलिंग एक्ट के प्रावधानों के अंतर्गत उक्त संपूर्ण भूमि को राज्य सरकार में निहित करने, प्रश्नगत भूमि पर बने प्लॉटिंग क्षेत्र को सीज करने, उपनिबंधक कार्यालय हल्द्वानी में प्रश्नगत भूमि के पंजीकरण पर रोक लगाने, पंजीकरण हो चुके भूखंडों के भू.रा.अधि. 1901 की धारा 34-35 के अंतर्गत दाखिल खारिज की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए प्रश्नगत प्रकरण में सम्मिलित सभी व्यक्तियों से जुर्माने सहित राजस्व की पूर्ण वसूली सुनिश्चित की जाए।’ जोशी का कहना है कि उक्त संपूर्ण भूमि को राज्य सरकार में निहित कर लोकहित में आश्रयहीन, वृद्ध, बीमार गौवंश की किसी कल्याण योजना हेतु आवंटित करना सर्वथा उचित रहेगा।