[gtranslate]
Uttarakhand

विनिवेश की डगर, मजदूरों का डर

उत्तराखण्ड के तीन जिलों नैनीताल, अल्मोड़ा और पौड़ी के संगम स्थल पर स्थित मोहान में इंडियन मेडिसिन्स फार्मास्युटिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईएमपीसीएल) की स्थापना 1978 में हुई थी। कंपनी के अच्छे प्रोडक्ट होने के चलते इसको ‘मिनी नवरत्न’ का दर्जा दिया गया है। भारत सरकार के इस एकमात्र आयुर्वेदिक कारखाने में आस-पास के सैकड़ों लोग कार्यरत हैं। सुदूर तड़म से पैदल चलकर और चुकम जैसे गांव से नदी में तैर कर यहां मजदूर काम करने के लिए आते हैं। पिछले 40 वर्षों से इस कारखाने से केवल श्रमिक एवं कर्मचारियों की ही जीविका नहीं चलती है, बल्कि क्षेत्र के हजारों लोग विभिन्न प्रकार के उत्पादन इस फैक्ट्री को सप्लाई कर अपनी जीविका चलाते हैं। लेकिन अब ग्रामीण, किसान और मजदूर केंद्र सरकार के विनिवेश के फरमान से सहमे हुए हैं। सरकार इस कारखाने को निजी हाथों में सौंपने का पूरा खाका तैयार कर चुकी है। यह तब है जब वित्त वर्ष 2022 में आईएमपीसीएल का रेवेन्यू 250 करोड़ रुपए और प्रॉफिट मार्जिन करीब 25 फीसदी था

अल्मोड़ा जिले के मोहान स्थित भारत सरकार के एकमात्र आयुर्वेदिक कारखाना इंडियन मेडिसिन्स फार्मास्युटिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईएमपीसीएल) में 12 वर्षों से भी अधिक समय से मजदूरों की लड़ाई जारी है। आईएमपीसीएल का विनिवेश रद्द करने, श्रमिकों की बकाया 1.12 करोड़ रुपए की पीएफ राशि व अन्य देय राशियों का भुगतान करने व ठेका श्रमिकों को नियमित रोजगार की मांग को लेकर ठेका मजदूर कल्याण समिति ने एक बार फिर गत 20 नवंबर को आईएमपीसीएल कारखाना गेट पर धरना-प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व कारखाना के प्रबंधक निदेशक को ज्ञापन दिया। इसी के साथ आंदोलनकारी मजदूरों ने आगामी 8 दिसंबर को कारखाना गेट पर मजदूर-किसान पंचायत करने की घोषणा की है। मजदूरों ने कहा कि इस फैक्ट्री में काम करने से ही हमारा परिवार चलता है और जब यह फैक्ट्री ही बिक जाएगी तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार लाभ में चलने वाले इस कारखाने के विनिवेश को रद्द करे। मजदूरों के पीएफ तथा अन्य देय राशि का तत्काल भुगतान किया जाए एवं सभी ठेका श्रमिकों को नियमित रोजगार की गारंटी दी जाए।

2011 में मजदूरों ने पहली बार पीएफ, वेतन, बोनस, इएसआईसी आदि में भ्रष्टाचार के मामले को उठाया था। तब दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी प्रदर्शन था। 42 दिन के धरने के बाद कंपनी से ठेकेदारी खत्म कर दी गई थी। लेकिन प्रबंधन ने चालाकी से 2013 में ठेकेदारी को पुनः प्रारंभ कर दिया। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा करवाई गई जांच में भी सामने आया की फैक्ट्री प्रबंधन ने ठेकेदार के साथ मिलकर श्रमिकों के पीएफ बोनस वेतन वह इएसआईसी आदि की राशि में घोटाला किया है। बकायदा पीएफ कमिश्नर हल्द्वानी में फैक्ट्री प्रबंधन से 1. 12 करोड़ रुपए रिकवरी की जा चुकी है। मजदूरों का पीएफ का पैसा कंपनी ने दो बार भुगतान किया है परंतु मजदूरों को आज तक पीएफ का पैसा नहीं मिला है। पीएफ कार्यालय का कहना है कि कारखाना प्रबंधन आपका फार्म 19 अग्रसारित करके भेजेगा तभी हम पैसा मजदूरों को दे पाएंगे परंतु कारखाना प्रबंधन मजदूरों से शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हुए उनके फार्म 19 पीएफ कार्यालय को अग्रसारित नहीं कर रहा है। चर्चा है कि मजदूरों का पैसा एक बार ठेकेदार और मैनेजमेंट मिलकर खा गए और दूसरी बार जब लंबी कानूनी लड़ाई के बाद पैसा वसूल हुआ तो वह पैसा पीएफ कार्यालय में डंप होकर रह गया है। मजदूर इसके लिए कारखाना प्रबंधन के उच्च अधिकारियों तथा दिल्ली में जंतर- मंतर से लेकर आयुष कार्यालय तक प्रदर्शन कर चुके हैं।

20 नवंबर को धरने के दौरान भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। समिति ने कारखाना प्रबंधन को 1 बजे ज्ञापन स्वीकार करने के लिए कहा था लेकिन कारखाना प्रबंधन का कोई भी अधिकारी श्रमिकों का ज्ञापन लेने नहीं आया। इस पर आक्रोशित श्रमिक व सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने कारखाने में ज्ञापन लेकर जाने का प्रयास किया जिस पर पुलिस अधिकारियों ने श्रमिकों को गेट के बाहर रोककर कारखाना एच आर को बाहर आने को विवश कर श्रमिकों का ज्ञापन स्वीकार करवाया। इसके बाद कारखाना एचआर पनीराम आर्य ने श्रमिकों को आश्वस्त किया कि उनके पीएफ के बकाया 1.12 करोड रुपए के भुगतान हेतु प्रबंधन हर संभव मदद करेगा। आईएमपीसीएल ठेका मजदूर कल्याण समिति के अध्यक्ष किशन शर्मा के अनुसार तीन जिलों अल्मोड़ा, पौड़ी और नैनीताल के संगम पर लगे इस आयुर्वेदिक कारखाने में काम करने के लिए लोग सुदूर तड़म से पैदल व चुकम जैसे गांव से नदी में तैर कर काम करने के लिए आते हैं। पिछले 40 वर्षों से इस कारखाने से केवल श्रमिक एवं कर्मचारियों की ही जीविका नहीं चलती है, बल्कि क्षेत्र के हजारों लोग विभिन्न प्रकार के उत्पादन इस फैक्ट्री को सप्लाई कर अपनी जीविका चलाते हैं।

उन्होंने कहा कि आज पहाड़ से पलायन बहुत ज्यादा बढ़ चुका है। 16 सौ से अधिक गांव भूतहा गांव हो चुके हैं। इस कारखाने के विनिवेश से पलायन और भूतहा गांव की संख्या और भी अधिक बढ़ेगी अतः इस कारखाने के विनिवेश को किसी भी शर्त पर रोका जाना बहुत जरूरी है। किशन शर्मा ने कहा कि इस कारखाने से केवल श्रमिकों एवं कर्मचारियों को ही रोजगार नहीं मिला हुआ है, बल्कि क्षेत्र के किसान जड़ीबूटियां, कंडे, गोमूत्र, आदि बेच कर अपनी जीविका चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि फैक्ट्री प्रबंधन श्रमिकों के पीएफ के फार्म पीएफ ऑफिस के लिए अग्रसारित नहीं कर रहा है जिस कारण श्रमिकों को उनका बकाया 1.12 करोड रुपए नहीं मिल पाए हैं। आंदोलनकारी लोगों का कहना है कि जब सरकार हमारी आवाज सुनने के लिए तैयार नहीं है तभी हमें आंदोलन के लिए विवश होना पड़ा है। लोगों की मानें तो वर्ष 2019 में भी इस कारखाने को बेचने का प्रयास मोदी सरकार कर चुकी है तब भी श्रमिकों एवं क्षेत्र की जनता के विरोध के कारण विनिवेश की कार्रवाई रुक गई थी।

समाजवादी लोकमंच के संयोजक मुनीष कुमार ने कहा कि कारखाने की तकनीकी टेंडर हो चुके हैं दूसरे दौर के फाइनेंशियल टेंडर भी होने वाले हैं। मैनकाइंड और बैद्यनाथ जैसी कंपनियां 35 एकड़ में फैले इस मिनी नवरत्न कारखाने को खरीदने के लिए लालायित हैं। साथ ही वह कहते है कि यह मजदूर की जबरदस्त मेहनत का ही परिणाम है कि पिछले वर्ष आईएमपीसीएल ने 45 करोड़ रुपए का मुनाफा अर्जित किया है। कोरोना लॉकडाउन के दौरान भी कारखाना मुनाफे में चल रहा था। सरकार लोगों के लिए नए रोजगार पैदा करने की जगह मुनाफे में चल रहे सार्वजनिक संस्थाओं को भी पूंजीपतियों को बेच देने पर आमादा है। उन्होंने बताया कि मोदी सरकार पिछले 4 वर्षों में 1.92 लाख करोड रुपए की सरकारी संपत्तियों का विनिवेश कर चुकी है। जो कि देश की जनता के साथ धोखा है और उत्तराखण्ड सरकार द्वारा पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए बनाया गया पलायन आयोग जनता के लिए भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं है।

उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय प्रधान महासचिव प्रभात ध्यानी की मानें तो आईएमपीसीएल मोहान का विनिवेश करना राज्य की अवधारणा के खिलाफ है। राज्य की अवधारणा के प्रमुख केंद्र में पहाड़ का पानी पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आनी चाहिए लेकिन भारतीय जनता पार्टी की केंद्र की मोदी सरकार एवं राज्य की धामी सरकार राज्य की अवधारणा के खिलाफ काम कर रही है। आईएमईपीसीएल मोहान मिनी रत्न कारखाने के विनिवेश के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में पहले से ही हो रहे पलायन में तेजी आएगी। स्थानीय नौजवानों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ेगा, वहीं किसानों के कृषि उपज का सही मूल्य न मिलने के कारण उनके शोषण बढ़ेगा। आईएमपीसीएल मोहान द्वारा मजदूरों का पीएफ के भुगतान में जान-बूझकर अवरोध पैदा किया जा रहा है जिसके कारण मजदूरों का करोड़ों रुपए का भुगतान नहीं हो पा रहा है। ध्यानी कहते हैं कि क्षेत्रीय विधायक महेश जीना जी एवं दीवान सिंह विष्ट जी, सांसद अजय टम्टा जी, अजय भट्ट जी द्वारा इस संबंध में पहल न करना मजदूरों के प्रति उनकी दुर्भावना को दर्शाता है। मजदूरों को अपने पीएफ के भुगतान के लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं जिसके कारण मजदूर एवं आम लोगों में केंद्र एवं राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़ता जा रहा है जिसकी कीमत मोदी सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में चुकानी पड़ेगी। मजदूर नेता शेखर आर्य ने कहा कि विगत 30 अक्टूबर को कारखाने बेचे जाने हेतु निविदाएं आमंत्रित की गई थी। हरियाणा की कंपनी रिसर्जेट इंडिया को आईएमपीसीएल बेचने के लिए नियुक्त किया गया है। आईएमपीसीएल को मिनी नवरत्न का दर्जा प्राप्त है तथा इस कारखाने से केवल मजदूर ही नहीं, बल्कि क्षेत्र के किसान तथा अन्य लोगों की भी जीविका जुड़ी हुई है। इस कारखाने के बिकने से उत्तराखण्ड से पलायन और भी अधिक बढ़ेगा अतः इसके विनिवेश को रोका जाना चाहिए।

गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में आईएमपीसीएल को 45.21 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ है जिसके बाद आईएमपीसीएल ने आयुष मंत्रालय और उत्तराखण्ड को 10.13 करोड़ रुपये लाभांश देने की घोषणा की थी। कंपनी ने बकायदा केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को आयुष मंत्रालय के लिए 9.93 करोड़ रुपए का लाभांश चेक सौंपा था।

सूत्रों के अनुसार सरकार अपने स्वामित्व वाली आयुर्वेद कंपनी आईएमपीसीएल को बेचने का प्रयास कर रही है। मैनकाइंड फार्मा और बैद्यनाथ आयुर्वेद ने इस सरकारी कंपनी में 100 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए अभिरुचि पत्र जमा किया है। चर्चा यह भी है कि इस आयुर्वेदिक कारखाने को खरीदने के लिए एक प्राइवेट इक्विटी फंड और एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ने भी बोली लगाई है। बोली लगाने की प्रक्रिया में हरिद्वार की पतंजलि आयुर्वेद के भी शामिल होने की उम्मीद थी, लेकिन खबर है कि वह ऐसा नहीं करेगी। पतंजलि आयुर्वेद ने फिलहाल अभिरुचि पत्र जमा करने से इनकार कर दिया है।

250 करोड़ रुपए था कंपनी का रेवेन्यू वित्त वर्ष 2022 में सरकारी दवा आईएमपीसीएल का रेवेन्यू 250 करोड़ रुपए और प्रॉफिट मार्जिन करीब 25 फीसदी था। सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (सीजीएचएस) के तहत चलने वाली डिस्पेंसरीज और क्लीनिक्स को यह कंपनी दवाओं की सप्लाई करती है। कंपनी मौजूदा समय में 656 क्लासिकल आयुर्वेदिक, 332 यूनानी और 71 प्रोप्राइइटरी आयुर्वेदिक दवाएं बनाती है। कंपनी नेशनल आयुष मिशन के तहत सभी राज्यों को आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं की सप्लाई करती है। इसके अलावा इंडियन मेडिसिन्स फार्मास्युटिकल कॉरपोरेशन 6000 जन औषधि केंद्रों को भी दवाओं की आपूर्ति करती है। यह कंपनी केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय के तहत काम करती है।

मैंने आईएमपीसीएल के संबंध में केंद्र सरकार के तत्कालीन मंत्री श्रीपाद नाईक से बात की थी तब कंपनी का विनिवेश रोक दिया गया था। मेरी अभी भी यही कोशिश है कि इस कंपनी के मजदूरों के साथ किसी तरह का अन्याय न होने पाए। इसलिए मैंने अपनी सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि कंपनी के मजदूरों को किसी भी हालत में न हटाया जाए।
अजय टम्टा, सांसद, अल्मोड़ा-पिथौरागढ़

You may also like

MERA DDDD DDD DD