उत्तराखण्ड क्रांति दल जब अपना 44वां स्थापना दिवस मना रहा था तब देहरादून स्थित पार्टी मुख्यालय पर पुलिस बल तैनात था। दल में महाअधिवेशन की समय-सीमा को लेकर जमकर टकराव हुआ। यह टकराव दो दशक तक पत्रकारिता क्षेत्र में अपना दम दिखाकर दल में जाने वाले शिवप्रसाद सेमवाल और वरिष्ठ नेताओं के बीच हुआ। कहा गया कि सेमवाल की नई सोच पार्टी के पुराने नेताओं को नहीं भा रही थी। पार्टी को पुराने ढर्रे पर चलाने वाले वरिष्ठ नेताओं को यह गवारा नहीं था कि महज एक साल पहले ही नेता बने सेमवाल के निर्देशन में आगामी निकाय चुनाव लड़ा जाए। शायद यही वजह रही कि शीर्ष नेतृत्व पार्टी का अधिवेशन जुलाई में न कराकर नवंबर में कराने का फरमान जारी कर चुका था जिसका निकाय चुनाव पर असर पड़ना तय था। इसका विरोध करना ही सेमवाल गुट को भारी पड़ा। पार्टी का भविष्य तक कहे जाने लगे सेमवाल और उनके समर्थकों को शीर्ष नेतृत्व द्वारा निष्कासित कर एक बार फिर दल को रसातल की तरफ धकेल दिया गया है
उत्तराखण्ड क्रांति दल (उक्रांद) का जन्म ही राज्य आंदोलन की अवधारणा के साथ हुआ। इस दल ने तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। राज्य गठन से ठीक पहले क्रांति दल अपने को प्रदेश में एक मजबूत दल के रूप में स्थापित कर चुका था। राज्य आंदोलन के दौरान उक्रांद के प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में लोग जुड़ते थे। राज्य गठन के बाद उक्रांद को स्थानीय जनता ने अपना पूरा आशीर्वाद भी दिया।
उत्तराखण्ड में भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों में जहां दूसरी पीढ़ी के नेता आगे बढ़ गए, वहीं उत्तराखण्ड क्रांति दल में अभी भी नेतृत्व शीर्ष नेताओं के हाथों में ही है। जनपक्षीय
पत्रकारिता के बेताज बादशाह रहे शिव प्रसाद सेमवाल दो साल पहले जब ‘कलम’ का साथ छोड़ ‘कुर्सी’ की तरफ बढ़े तो लोगों को एक उम्मीद जगी कि अब उक्रांद नए सिरे से सूबे की राजनीति का अलख जगाएगा। सेमवाल के निर्देश में युवाओं का उक्रांद की तरफ आकर्षण भी हुआ। फिलहाल आगामी निकाय चुनाव को लेकर सेमवाल गुट सक्रिय था। यहां तक कि देहरादून के मेयर का टिकट किसको दिया जाए, कौन जिताऊ प्रत्याशी होगा? इसको लेकर गहन चिंतन मनन चल रहा था लेकिन इसी दौरान दल एक बार फिर घात प्रतिघात के मुहाने पर पहुंचा। उत्तराखण्ड क्रांति दल के 44वें स्थापना दिवस पर देहरादून में जो कुछ हुआ वह सही तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। जिस तरह से पार्टी के केंद्रीय कार्यालय पर गहमागहमी का माहौल हुआ, तोड़-फोड़ हुई और पुलिस तैनात करनी पड़ी उससे प्रदेश की जनता का एक बार फिर दल के प्रति दिल टूट गया।
पृथक राज्य उत्तराखण्ड पाने की चाह में जुलाई 1979 में उत्तराखण्ड क्रांति दल का उदय हुआ। जाने-माने वैज्ञानिक स्वर्गीय डीडी पंत ने समाज के बुद्धिजीवी और पर्वतीय क्षेत्रों का हित चाहने वाले जुनूनी लोगों को जोड़कर यह दल बनाया। दल का पहला उद्देश्य हिमालय रक्षा था लेकिन समय के साथ-साथ यह उत्तराखण्ड आंदोलन में परिवर्तित हो गया। पृथक राज्य के लिए स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी ने 105 दिन में करीब 2000 किलोमीटर की पदयात्रा कर पृथक राज्य के आंदोलन में एक नई चेतना दी। दल में कई नाम हैं इससे जुड़े जो इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो गए। सन 2000 में 9 नवंबर को वह दिन आया जब राज्य के लिए आंदोलित लोगों को उनका राज्य उत्तरांचल मिला। राज्य तो मिला पर पूरी तरह से नहीं। उस संकल्प को आगे बढ़ाते हुए उत्तराखण्ड क्रांति दल की लगाम काशी सिंह ऐरी और दिवाकर भट्ट ने थामी।
पहली बार 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में 4 विधायकों की जीत के साथ उत्तराखण्ड क्रांति दल का राजनीतिक सफर शुरू हुआ। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा उत्तराखण्ड क्रांति दल
राजनीति में अपनी साख जमाने में नाकामयाब होता चला गया। सन 2009-2010 में वह समय भी आया जब उत्तराखण्ड क्रांति दल में सबसे बड़ी टूट और आपसी संघर्ष जनता के सामने खुलकर आ गई। त्रिवेंद्र पवार ने अपने समर्थकों के साथ उत्तराखण्ड क्रांति दल को खंड-खंड करने और उस पर काबिज होने की भरपूर कोशिश की। उस समय का संघर्ष दल में पहली बार था जिसको देखकर हर उत्तराखण्डी का दिल रुधिर हो गया और राजनीतिक पृष्ठभूमि में उत्तराखण्ड क्रांति दल भरभरा कर गिर पड़ा। जिसके बाद से दल एक भी विधायक, सांसद या पार्षद उत्तराखण्ड को देने में नाकामयाब होता रहा। लोगों की मानें तो इसमें कमजोर कड़ी शीर्ष नेतृत्व की रही। क्षेत्रवासियों में हमेशा यह बात चर्चित रही कि यूकेडी वाले आपस में एक नहीं होते। काशी सिंह ऐरी के विरोध में एक जमाने में दिवाकर भट्ट ने ऐसा नारा दिया जिससे यूकेडी का अस्तित्व ही संकट में आ गया था। आपसी मनमुटाव और झगड़े की खबरें इस दल के लिए एक आम बात बनकर रह गई।
समय बीतता गया और 2022 से कुछ नए चेहरे शामिल हुए जो उक्रांद और क्षेत्र के लोगों के लिए न्याय की आवाज मुखर करते दिखे। जिनमें दो दशक तक जनपक्षीय पत्रकारिता करने वाले शिवप्रसाद सेमवाल प्रमुख थे। सेमवाल ने डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव का डंका भी बजा दिया। उस समय त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और डोईवाला उनका गढ़ माना जाता था। भाजपा के दिग्गज नेताओं में गिने जाने वाले त्रिवेंद्र रावत के सामने एक चुनौती बनकर खड़े हुए शिवप्रसाद सेमवाल के आते ही मानो उत्तराखण्ड क्रांति दल फिर से रिचार्ज हो गया। टोल प्लाजा पर 57 दिन के धरने ने शिवप्रसाद सेमवाल को नेता बना दिया। उसके बाद एक-एक करके शिव प्रसाद सेमवाल ने कई आंदोलनों को अंजाम तक पहुंचाया।
15 अगस्त 2022 को पत्रकारिता जगत का एक और बड़ा चेहरा अनुपम खत्री भी दल में शामिल हुए। खत्री शिव प्रसाद सेमवाल के खास लोगों में गिने जाते हैं। सेमवाल के साथ ही खत्री और अन्य कई युवाओं ने उत्तराखण्ड क्रांति दाल में नए विचारों को जन्म देकर अतीत हो चले पुराने नेताओं के सामने चुनौती पेश करनी शुरू कर दी। उसके बाद जैसे उत्तराखण्ड क्रांति दल रूपी गाड़ी के पहियों में स्पीड ही बढ़ गई। संगठन से नए-नए लोग जुड़ने लगे। आए दिन सदस्यता बढ़ने लगी। अब उत्तराखण्ड क्रांति दल के लिए लोगों के विचार भी बदलने लगे थे। उत्तराखण्ड के लोगों का विश्वास खो चुकी इस पार्टी में जैसे रक्त संचार होने लगा। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व भी सक्रिय भूमिका में नजर आने लगा। दल के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी की भी उपस्थिति मीडिया और जनता में दिखने लगी। संगठन में अनुशासन को लेकर कठोर निर्णय लिए जाने लगे। इन्हीं निर्णयों के चलते दल से प्रमिला रावत और जयप्रकाश उपाध्याय का अनुशासनहीनता के चलते निष्कासन हो गया। यह वह समय था जब एक बार फिर दल में अपनी तनाव की स्थिति पैदा हो गई। प्रमिला रावत ने कार्यालय के अंदर ही धरना दे दिया और दूसरे दल की एक नेत्री को साथ लेकर दल के अध्यक्ष पर कई गंभीर आरोप और सवाल खड़े कर दिए।
उधर दूसरी तरफ जयप्रकाश उपाध्याय ने भी अपने लोगों को इकट्ठा कर दल में गुटबाजी तेज कर दी। अपनी दूरदर्शिता और सूझबूझ के चलते केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने इस विरोध को दबा दिया। लेकिन चिंगारी की तरह यह विरोध धीरे-धीरे सुलगता रहा। दल के ही लोगों की मानें तो निष्कासित लोगों के साथ दिवाकर भट्ट का पूरा समर्थन था और त्रिवेंद्र पवार भी अनुशासनहीनता के चलते निष्कासित किए इन दोनों नेताओं के पीछे अपनी राजनीतिक मंसूबों को अंजाम देने की कवायद में लगे हुए थे। ऐसे में काशी सिंह ऐरी पर दबाव बनाने के लिए इन्होंने संरक्षक मंडल में होने का फायदा उठाते हुए एक असंवैधानिक पत्र जारी किया। जिसमें केंद्रीय अध्यक्ष को आदेशित किया कि वह निष्कासन वापस ले लें। लेकिन जब यह पैंतरा फेल होते देखा तो संरक्षक मंडल ने खामोशी अख्तियार कर ली।
दल का युवा लगातार उत्तराखण्ड की सड़कों पर सक्रिय था और हर मोर्चे पर दमदार तरीके से डटकर क्षेत्रवासियों के दिलों में अपनी और दल की जगह बना रहा था। जबकि दूसरी तरफ पार्टी ही के कुछ नेताओं के दिमाग में एक षड्यंत्र जन्म ले चुका था। बताया गया कि प्रमिला और जेपी उपाध्याय को वापस लाने में नाकाम रहे दिवाकर भट्ट ने काशी सिंह ऐरी के इस फैसले को अपने अहम पर ले लिया था। सूत्रों की मानें तो दिवाकर भट्ट क्रांति दल में काशी सिंह ऐरी की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता से कहीं अंदर एक घुटन-सी महसूस कर रहे थे। चर्चाओं का दौर चला। कहा गया कि जिन मजबूत इरादों के साथ काशी सिंह ऐरी ने सेमवाल और खत्री के साथ दल को मजबूत करने के लिए कवायद शुरू की थी और जिसका लाभ भी संगठन को मिलता दिख रहा था इस बात से कहीं न कहीं दिवाकर भट्ट प्रभावित होते नजर आने लगे थे। जून 2023 से दल के अंदर कार्यकारिणी की बैठक होने लगी और आगामी महा अधिवेशन की तैयारियां शुरू होने लगी। इस दौरान अनुपम खत्री ने अपनी बातों को रखते हुए स्पष्ट किया कि ‘पहले हमने काशी सिंह ऐरी जी से ही दरख्वास्त की थी कि आप अध्यक्ष के तौर पर अपने कार्यकाल को आगे बढ़ाएं और अपने अनुभवों का लाभ हमें देते हुए दल को मजबूत और सत्ता हासिल करने का रास्ता सुगम करें जिसमें दल के अधिकतर लोग सहमत भी थे, परंतु उम्र और परिवार के कारणों का हवाला देकर काशी सिंह ऐरी ने अध्यक्ष बनने से मना कर दिया।’ तब रणनीति बनी कि चुनाव करवाया जाए और जो भी अध्यक्ष पद का दावेदार सामने आएगा कार्यकर्ता गुप्त मतदान कर अपने अध्यक्ष को चुन लेंगे। इससे भविष्य के लिए भी अध्यक्ष पद के लिए किसी प्रकार के द्वंद सामने नहीं आएंगे और एक अच्छी परंपरा की शुरुआत हो जाएगी।
अपनी इसी सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते हुए संगठन में कार्यकारिणी की बैठकों का दौर शुरू हो गया। सबसे पहले पिथौरागढ़ से संदेश आया कि केंद्रीय अध्यक्ष के आदेश अनुसार पिथौरागढ़ में महाधिवेशन होना तय पाया गया है लेकिन दल के काफी लोग इससे ज्यादा सहमत नहीं थे फलस्वरूप फिर से कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई और दोबारा निर्णय लिया गया। बैठक में दिल्ली से अनुशासन समिति के अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष डीडी जोशी के साथ कार्यकारी अध्यक्ष एपी जुयाल, दल के महामंत्री, संगठन महामंत्री आदि बड़े पदाधिकारियों के साथ सभी सक्रिय सदस्यों की मौजूदगी में महाअधिवेशन के लिए गैरसैंण की राय बनी। इसके उपरांत केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी के आदेश से एक समिति का गठन हुआ जिसका काम महाधिवेशन को कराना और उसके सभी प्रकार की तैयारियों को पूरा करना था। यह भी तय हुआ कि सभी जिला अध्यक्षों से प्रस्ताव मांगे जाए कि कौन-कौन अपने जिलों में महा अधिवेशन कराने का इच्छुक है। इस क्रम में कई जिला अध्यक्षों ने अपनी तरफ से प्रस्ताव भेजें लेकिन उत्तराखण्ड क्रांति दल की मूल भावनाओं का आदर करते हुए और अपने मकसद पर अडिग रहते हुए महाधिवेशन को गैरसैंण में कराना तय हुआ। जिसकी अधिकारिक घोषणा भी कर दी गई और मीडिया में भी केंद्रीय अध्यक्ष द्वारा बता दिया गया। महाधिवेशन सफल रूप से संपन्न हो सके इस उद्देश्य से सभी सदस्य अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में लग गए। प्रताप सिंह कुंवर और शमीम मुंडेपी को चुनाव अधिकारी बनाया गया। सभी जिला अध्यक्षों से डेलीगेट की लिस्ट मंगानी शुरू कर दी गई। महा अधिवेशन को लेकर तैयारियां जोरों पर थी। तभी निष्कासित प्रमिला रावत और जेपी उपाध्याय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने आपको उक्रांद के नेता बताते हुए मसूरी में महाधिवेशन करने का ऐलान कर दिया।
ऐसे समय पर दिवाकर भट्ट की एंट्री हुई जिसके बाद एक कमरे में बैठे 6 लोगों द्वारा तय किया गया कि अब महाधिवेशन नवंबर में होगा। नवंबर में महाधिवेशन का फरमान आते ही दल में उथल-पुथल मच गई और शिव प्रसाद सेमवाल ने अपनी पूरी टीम के साथ इस फैसले का विरोध दर्ज करना शुरू कर दिया। इस बेतुके फरमान के विरोध के चलते अनुपम खत्री की पूर्व विधायक और दल के बड़े नेता पुष्पेश त्रिपाठी से गरमागर्मी भी हुई। जिसके चलते खत्री अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। शिव प्रसाद सेमवाल केंद्रीय अध्यक्ष और सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों को समझाने की कोशिश करते रहे कि नवंबर में अगर हम महाधिवेशन करेंगे तो हमारे हाथों से पूरा निकाय चुनाव छूट जाएगा जिसकी बड़े स्तर पर सभी ने तैयारी कर ली थी। सेमवाल की इन बातों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दिवाकर भट्ट ने कहा कि ‘जो हमारा मन होगा हम वह करेंगे, तुम कहने वाले कौन होते हो? तुम नए लड़के राजनीति क्या जानो?’ इसके बाद सेमवाल अपनी पूरी टीम के साथ देहरादून स्थित उत्तरांचल प्रेस क्लब पहुंच गए और मीडिया के माध्यम से जनता के समक्ष सारा सच रख दिया।
जिसके बाद शीर्ष नेतृत्व में मानो खलबली मच गई। दबाव की राजनीति चलते शिवप्रसाद सेमवाल को बर्खास्त कर दिया गया लेकिन सेमवाल के कदम यहीं नहीं रुके। उनकी टीम लगातार कई प्लेटफार्म के माध्यम से यूकेडी के शीर्ष नेतृत्व तक यह बात पहुंचाती रही कि अधिवेशन 24 और 25 जुलाई की तिथियों पर ही किया जाए। शीर्ष नेतृत्व ने सेमवाल के साथ इस मांग का समर्थन करने वाले सभी केंद्रीय पदाधिकारी का 23 जुलाई की रात निष्कासन पत्र जारी कर दिया। सेमवाल के साथ जिनका निष्कासन किया गया उनमें महिला मोर्चा की अध्यक्ष सुलोचना इष्टवाल, कोषाध्यक्ष तेज सिंह कार्की, पछवादून जिलाध्यक्ष संजय डोभाल और कर्मचारी प्रकोष्ठ के केंद्रीय अध्यक्ष राजेंद्र पंत शामिल थे। जबकि सेमवाल के खास सिपहसालार अनुपम खत्री अपने केंद्रीय प्रवक्ता, कार्यक्रम नियोजन समिति के उपाध्यक्ष और पछवादून पर्यवेक्षक के पद से पहले ही इस्तीफा दे चुके थे। उसके बाद 24 जुलाई को सेमवाल ने अपने समर्थकों के साथ केंद्रीय कार्यालय पर पहुंचकर अधिवेशन को कराने की कोशिश की। दूसरी तरफ से कार्यकारी अध्यक्ष एपी जुयाल आए और केंद्रीय अध्यक्ष तथा सेमवाल की मध्यस्था कराने का काम करने लगे। केंद्रीय अध्यक्ष ने अनुपम खत्री को अपने पास बातचीत करने के लिए सरकारी गेस्ट हाउस में भी बुलाया। इसी दौरान त्रिवेंद्र सिंह पंवार समर्थकों के साथ केंद्रीय कार्यालय पहुंचे। देखते ही देखते दोनों ही गुटों में कार्यालय पर तोड़-फोड़ और लड़ाई-झगड़ा शुरू हो गया। हालात यह हो गए कि उत्तराखण्ड क्रांति दल कार्यालय पर पुलिस को पहरा लगाना पड़ा।
बात अपनी-अपनी
पार्टी ने यह तय किया कि महा अधिवेशन 18-19 नवंबर को होगा। कुछ लोगों ने विद्रोह कर दिया। इसका कोई औचित्य नहीं था। इसलिए उनको पार्टी से निकाल दिया गया।
काशी सिंह ऐरी, केंद्रीय अध्यक्ष, उक्रांद
इनको पार्टी में आए हुए अभी 1 साल भी नहीं हुआ और यह संस्थापकों के खिलाफ बोलने लगे। कल का आया छोरा अध्यक्ष बनने का ख्वाब देखने लगा। अध्यक्ष बनने के लिए पहले पार्टी का संविधान पढ़ना पड़ता है। तमाम मुद्दों पर आंदोलन करने पड़ते हैं। दल के लिए कुर्बानी करनी पड़ती है। तब जाकर कहीं अध्यक्ष बना जाता है। कोई आते ही कह दे कि मुझे अध्यक्ष बना दो तो यह संभव नहीं है। पुराने लोग जो आज पार्टी में स्थापित है उन्हें हटाकर नए लोग पार्टी पर कब्जा कर लेंगे यह संभव नहीं है। माना कि राजनीति में हर किसी की महत्वाकांक्षा होती है लेकिन वह दल के हित में होनी चाहिए। दल को खत्म करके अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ाना ठीक नहीं है। अगर पुराने लोग हैं तो उन्होंने संघर्ष किया है। आज वह पद पर आसीन है तो इसके लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया है। सेमवाल जैसे लोग बड़ी लकीर को मिटा कर अपनी लकीर बड़ी करने के चक्कर में लग जाते हैं। वह सोचते हैं कि बड़ी लकीर को काटकर अपनी लकीर बड़ी कर लेंगे, ऐसे नेता नहीं बना जाता है।
दिवाकर भट्ट, पूर्व संरक्षक, उक्रांद
जब-जब उत्तराखण्ड क्रांति दल थोड़ा-सा मजबूत स्थिति में होता है तब भाजपा कांग्रेस की गोद में बैठे कुछ स्वार्थी नेता यूकेडी को तोड़ देते हैं। इस बार भी उत्तराखण्ड क्रांति दल अपने युवा कार्यकर्ताओं के बल पर खुद को आगामी निकाय चुनाव के लिए तैयार कर रहा था। इसी खतरे को भांपकर भाजपा के इशारे पर कुछ नेताओं ने निकाय चुनाव के लिए मेहनत कर रहे लगभग आधा दर्जन कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को निष्कासित कर दिया। इसी तरह के कारनामों के कारण उत्तराखण्ड क्रांति दल का जनता में विश्वास और जनाधार लगातार कमजोर हो रहा है।
शिवप्रसाद सेमवाल, पूर्व प्रवक्ता, उक्रांद