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Uttarakhand

पदयात्रा से बनेगी सत्ता में वापसी की राह

  •   हरीश रावत
    पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड

पिंडर क्षेत्र में सामाजिक कार्यकर्ताओं की फौज है। कांग्रेस सौभाग्यशाली है कि यहां हमारे पास पूर्ण संभावनाओं से युक्त नेताओं की कतार है। पार्टी के लिए समर्पण में क्षेत्र के कांग्रेसजन बहुत आगे हैं। हम 2002 का चुनाव भी इस क्षेत्र में आंतरिक विरोध से हार गए। राज्य गठन के पहले दो, ढाई वर्ष कांग्रेस बनाने का दौर था। हमने लोगों को खोजा और लोग पूरे जोश से हमारे साथ जुटे। पार्टी अध्यक्ष बनते ही मैंने अपने पहले कार्यक्रम में पिंडर घाटी को जोड़ा, यहां के लोग भी मुझसे बड़ा ही अपनत्व रखते हैं, न जाने मैंने कितनी रातें ग्वालदम एवं नारायण बगड़ में बिताई हैं। मुझे यहां अपना गांव सा लगता है। विधानसभा उपचुनाव में मैं पृथ्वीपाल थोकदार साहब के घर में कई दिन रहा, उनकी पत्नी व बच्चों ने हमारे ब्लॉक महिला कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती ममता शाह के साथ रोटियां पाथ-पाथ कर हमारी चुनावी फौज को खिलाई। ऐतिहासिक गढ़वाल उपचुनाव में भी मैं नारायण बगड़ के टूटे हुए फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में कई रात रहा और इस क्षेत्र में मैंने कांग्रेस अभियान चलाया

पदयात्राओं से ही कांग्रेस की सत्ता में पुनः वापसी की राहबनेगी। ‘उदयपुर नव संकल्प’ एलान इसके लिए कांग्रेसजनों को संकल्पित करता है। कांग्रेस ने 3 दिन के अपने मंथन में दो महत्वपूर्ण पद यात्राओं का आयोजन तय किया है। आजादी के स्वर्णिम 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रत्येक जिले में 9 अगस्त से 75 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की जाएगी। कांग्रेसजन 15 अगस्त, 2022 से कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘रोजगार दो-भारत जोड़ो पदयात्रा’ आयोजित करेगी। उदयपुर नवसंकल्प के लगभग चार दर्जन एक्शन प्वाइंट्स में उपरोक्त 2 प्वाइंट्स के साथ मैं अपने आपको बहुत ही निकटता के साथ जुड़ा हुआ पा रहा हूं। शरीर की शक्ति क्षीण हो चुकी है, मगर आत्मबल कह रहा है कि तुम्हें भी इन यात्राओं से जुड़ना है। वर्ष 2000 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना। राज्य में कांग्रेस की स्थिति अत्यधिक चिंताजनक थी। वर्ष 2000 में कांग्रेस की स्थिति शेष उत्तर प्रदेश से कांग्रेस की स्थिति से भी अधिक खराब थी। समय ने कहा, हरीश रावत भ्रमण जिसमें अधिक से अधिक पद यात्राएं हों, निकल पड़ो। मैं निकला, बड़ी संख्या में साथी-सहयोगी भी निकले, कुल मिलाकर औसत 15 किलोमीटर प्रतिदिन की औसत से हमने टुकड़ों-टुकड़ों में पदयात्रा की। 1000 किलोमीटर से कुछ अधिक पद यात्राएं व 4000 किलोमीटर से अधिक कार से भ्रमण की इन यात्राओं से लोग जुड़े। कांग्रेस बनती चलती चली गई। एक ऐसी ही यात्रा से मैं आपको भावनात्मक व मानसिक रूप से अपने से जोड़ रहा हूं। यह तिरंगा यात्रा थी।

पिंडर घाटी एक अद्भुत सौंदर्यमय क्षेत्र है। नारायण बगड़, थराली, देवाल के तीन विकास खंडों से बना यह पिंडर क्षेत्र, वीर पराक्रमियों के बलिदान के लिए पहचाना जाता है। यहां सवाण और रैंस जैसे गांव हैं जिन्हें वीर पराक्रमी गांवों के रूप में सारा उत्तराखंड जानता है। प्रथम व दूसरे विश्व युद्ध में इन गांवों से बड़ी संख्या में न केवल लोग शहीद हुए बल्कि उनके सम्मान में स्मारक भी बने हुए हैं। रैंस गांव से कई लोग अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में समिल्लित हुए। उनके स्मारक भी बने हैं। ये गांव अद्भुत प्राकृतिक एवं नैसर्गिक छटा युक्त गांव है। रैस गांव के लोगों ने देश की आजादी में भी बढ़ चढ़कर भाग लिया।

पवित्र नंदा राजजात इसी भू-भाग से होकर ही नंदा मां के ससुराल ऊंचे पहाड़ों में जाती है। ग्वालदम व बेदनी बुग्याल, रूपकुंड इस क्षेत्र की पहचान है। बाण व घेस जैसे क्षेत्र आज के उत्तराखण्ड की खेती के पहचान के रूप में उभर रहे हैं। ग्वालदम, एसएसबी का ट्रेनिंग स्थल होने के साथ हिमशिखरी के भव्यतम दर्शन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2015 में हेलीकॉप्टर व छोटे जहाज से हिम दर्शन योजना प्रारंभ की जो समय के साथ भुला दी गई है। राजनीति का यह दुखद और चिंताजनक पक्ष है। पिंडर क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य व चुनौतियों का अद्भुत खजाना है। हिमनद पिण्डर से निकली पिंडर नदी इस भू-भाग को दो भागों में बांटते हुए कर्णप्रयाग में मां अलकनंदा से संगम कर पंच प्रयागों में एक प्रयाग कर्णप्रयाग को प्रसिद्धि देती है। इस क्षेत्र के व्यक्तियों ने मुझे बड़ा प्रभावित किया श्री कमल सिंह चौहान साहब की सतत् प्रेरणा से तलवाड़ी में महाविद्यालय स्वीकृत हुआ। दूसरे व्यक्ति ग्वालदम के निकट सलताखेत जन्मे भारतीय प्रशासनिक सेवा में संयुक्त सचिव रहे स्वर्गीय श्री इंद्र सिंह बिष्ट जी थे, मेरे अच्छे दोस्त थे। हमेशा इस क्षेत्र के विकास के लिए शासन में विभिन्न स्तरों में मुझसे पत्र भिजवाते रहते थे।

तीसरे व्यक्ति शिक्षाविद् स्वर्गीय श्री गोविंद सिंह नेगी जी, दिल्ली के अत्यधिक प्रतिष्ठित संस्थान भारतीय विद्यामंदिर कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। एक ऊंचे शिक्षाविद के साथ-साथ पहाड़ों के विकास के लिए चिंतनशील व्यक्ति थे। मेरे बच्चों ने वही पढ़ा। मेरा पुत्र दिग्विजय अपनी शरारतों के साथ उनका प्रिय शिष्य रहा है। स्वर्गीय श्री रामचंद्र उनियाल, चमोली जिला पंचायत के अध्यक्ष रहे। यहीं देवाल के रहने वाले थे। पहाड़ी गांवों की अर्थव्यवस्था पर उनकी सोच बड़ी गहरी थी और उनकी सोच ने मुझे बहुत सिखाया। यूं, चमोली जनपद ने दर्जनों अच्छी सोच वाले नेता कांग्रेस को दिए हैं। स्वर्गीय नरेंद्र सिंह भंडारी ने पर्वतीय विकास को उत्तर प्रदेश में एक नई सोच दी। श्री भंडारी जी वास्तविक अर्थों में पर्वतीय विकास के भगीरथ थे। स्वर्गीय श्री शेर सिंह दानू विधायक रहे। श्री सुरेंद्र सिंह लिंगवाल, चचा सतेनु बर्थवाल, स्वर्गीय डॉ ़अनुसूया प्रसाद मैखुरी, सुदर्शन सिंह कठैत, प्रेमलाल भारती, स्वर्गीय रामचंद्र उनियाल, स्वर्गीय लक्ष्मी लाल साह, चंदन सिंह गढ़िया, स्वर्गीय सतेन्द्र सिंह बर्थवाल, स्व. श्री रघुनाथ सिंह राणा सहित कुछ नाम मुझे याद आ रहे हैं।

घेस-पिनाउ के सीमांत क्षेत्र के रहने वाले कर्नल दान सिंह रावत कांग्रेस के उम्मीदवार रहे। विजेंद्र सिंह रावत के ताऊ जी जयवीर सिंह रावत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में अग्रणीय थे। स्वर्गीय नरेंद्र सिंह भंडारी के पुत्र कामरेड इंद्र भूषण भंडारी पृथक राज्य के पैदाइशी पैरोकार थे। डॉक्टर शिवानंद नौटियाल राज्य स्तरीय नेता थे, विधायक, मंत्री पद को कई बार सुशोभित किया है। आज के कठिन दौर में भी चमोली कांग्रेस ने प्रदेश कांग्रेस को कई महत्वपूर्ण नेता दिए हैं जिनका मार्गदर्शन राज्य व कांग्रेस, दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। श्री राजेंद्र सिंह भंडारी जी विधायक हैं, पूर्व मंत्री राज्य के एक मार्गदर्शक नेता हैं। समय ने अच्छी सोच वाले नेताओं के साथ बड़ा अन्याय किया है पूर्व विधायक श्री कुंवर सिंह नेगी, पूर्व विधायक पृथ्वीपाल चौहान, श्री भुवन नौटियाल, पूर्व विधायक डॉ ़जीतराम जी, सुशील रावत अवसर के मोहताज हैं।

ऐसे नेताओं की पंक्ति में श्री मुकेश नेगी, नंदन सिंह बिष्ट, लखपत बुटोला, विजेंद्र सिंह रावत, प्रीतम सिंह रावत, सुरेश बिष्ट, सुरेंद्र बिष्ट, देवीदत्त कुनियाल, दर्शनी रावत, अयाजुद्दीन सिद्दकी, गोदांबरी रावत, श्री गोविंद सिंह पांगती, राजेंद्र दानू, लखन रावत, इंदर सिंह राज, राजेश्वरी रावत, संदीप पटवाल, महेश त्रिकोटी, सुखबीर रौतेला, अब्बल सिंह कठैत, सुमिती बिष्ट, मनोज कठैत, इंदर सिंह फरस्वाण, जयकृत चिनवान आदि सशक्त तौर पर पार्टी को खड़ा करने में जुटे हैं।

पिंडर क्षेत्र में सामाजिक कार्यकर्ताओं की फौज है। कांग्रेस सौभाग्यशाली है कि यहां हमारे पास पूर्ण संभावनाओं से नेताओं की कतार है। पार्टी के लिए समर्पण में क्षेत्र के कांग्रेसजन बहुत आगे हैं। हम 2002 का चुनाव भी इस क्षेत्र में आंतरिक विरोध से हार गए। राज्य गठन के पहले दो, ढाई वर्ष कांग्रेस बनाने का दौर था। हमने लोगों को खोजा और लोग पूरे जोश से हमारे साथ जुटे। पार्टी अध्यक्ष बनते ही मैंने अपने पहले कार्यक्रम में पिंडर घाटी को जोड़ा, यहां के लोग भी मुझसे बड़ा ही अपनत्व रखते हैं, न जाने मैंने कितनी रातें ग्वालदम एवं नारायण बगड़ में बिताई हैं। मुझे यहां अपना गांव-सा लगता है। विधानसभा उपचुनाव में मैं पृथ्वीपाल थोकदार साहब के घर में कई दिन रहा, उनकी पत्नी व बच्चों ने हमारे ब्लॉक महिला कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती ममता शाह के साथ रोटियां पाथ-पाथ कर हमारी चुनावी फौज को खिलाई। ऐतिहासिक गढ़वाल उपचुनाव में भी मैं नारायण बगड़ के टूटे हुए फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में कई रात रहा और इस क्षेत्र में मैंने कांग्रेस अभियान चलाया।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद मैंने अपने भ्रमण कार्यक्रमों, पदयात्रा व राजनीतिक यात्राओं को कई नाम दिए। ढोल की पोल खोल कोटद्वार से ग्वालदम, हिसाब दो-जवाब दो, तिरंगा यात्रा आदि-आदि। ऐसे ही एक यात्रा तिरंगा यात्रा के नाम से हमने तिलवाड़ी में श्री कमल सिंह चौहान जी के आशीर्वाद के साथ निकाली, सैकड़ों लोग इस यात्रा में जुड़े। तिलवाड़ी एक अत्यधिक भव्य रमणीक पहाड़ी गांव व बाजार है। यहां अब एक स्नातकोत्तर महाविद्यालय भी है। बांज, काफल व देवदार की झुरमुटों के मध्य सैकड़ों कांग्रेस के झंडे ऐसे फहरा रहे थे, मानो परिवर्तन का जश्न मना रहे हों। मैं उस समय अपने साथ पार्टी की सदस्यता बुक, कुछ पार्टी व पार्टी अध्यक्ष के लेटर हेड रखता था, ठीक-ठाक जो भी मिला पार्टी से जोड़ देते थे। यहां की गड़िया की चाय की दुकान में यह अभियान चला। यहां से कारों का कारवां सिनाइ इंटर कॉलेज में पहुंचा। यहां बड़ी संख्या में लोग उमड़े हुए थे। भैंटा, चौड़ा, माल बजवाड़, सुनाऊं, सिनाई, राय कोली, काखड़ा, किमनी, देवल कोट, कोटग्वाड़, कितनी, मेल्टा, देवराड़ा, कसबीनगर, तुगेश्वर, लोल्टी सहित आस-पास ही नहीं दूर-दूर के गांवों से लोग आए थे, कुछ गाजे-बाजे के साथ भी आए थे। तिरंगा यात्रा चौहान साहब का आशीर्वाद लेने के बाद यहीं से प्रारंभ हुई थी। कुछ भाषण, कुछ नारेबाजी, कुछ गीत गाए गए।

सोनिया गांधी जिंदाबाद, इंदिरा गांधी अमर रहे, ये दो नारे हमारे संबल थे। यही गुंजायमान हो रहे थे। मैं भीड़ से तो गदगद था ही, कांग्रेस के नेताओं के चेहरे की रंगत दमक रही थी, उन्हें पार्टी का अस्तित्व बनता दिखाई दे रहा था। सभा की अध्यक्षता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देव सिंह भंडारी जी की धर्मपत्नी माताश्री शंकरी देवी ने की और संचालन महिला मंगल दल की अध्यक्ष श्रीमती शारदा देवी ने की। कांग्रेस नेताओं में श्री राम चंद्र उनियाल, श्री प्रेमलाल भारती, डॉक्टर मैखुरी, श्री सुरेंद्र सिंह
लिंगवाल, श्री सतेंद्र बर्थवाल, श्री शोभाराम जोशी जी, राम सिंह राणा जी, श्री शेर सिंह रावत जी, श्री हरेंद्र सिंह रावत जी उत्साहपूर्वक यात्रा में सम्मिलित थे। आज ये साथी हमारे मध्य नहीं हैं। मैं इनकी स्मृति को अपनी कलम से प्रणाम करता हूं। यह एक जनयात्रा थी। इस यात्रा में हमारे अतीत के साथ हमारे आज के नेता भी सम्मिलित थे।

जिला पंचायत के अध्यक्ष श्री राजेंद्र भंडारी, श्री बृजेंद्र रावत, श्री पृथ्वीपाल चौहान, श्री सुशील रावत, हयात सिंह बिष्ट, भुवन नौटियाल, प्रीतम सिंह रावत, सुरपाल सिंह, विजयपाल फर्सवाण, प्रताप सिंह भंडारी, दरबान सिंह रावत, गजेंद्र रावत, विनोद सिंह, जय सिंह, धनराज सिंह, हरीश देवराड़ी, माधवी देवी, खिताब सिंह भंडारी, पुष्कर सिंह, लखन सिंह, इंदर सिंह, संजय बिष्ट के साथ गरुड़ से आए ललित फर्सवाण, रंजीत दास व श्री गोपाल दत्त भट्ट जी लोग यात्रा भर साथ चले, कुछ नेता मध्य में चले गए, कुछ जुड़े, मगर यात्रा अविलंब रूप से चलती रही। रास्ते में बजवाड़ में बहुत सारे लोग गांव से पहले ढोल-नगाड़ों को लेकर पहुंचे, सभा हुई। मालियाल देवता के मंदिर से लगे प्रांगण में सभा हुई। बाद में जब मैं राज्य सभा सांसद बना तो मंदिर के सौंदर्यीकरण हेतु मैंने सांसद निधि से धन दिया। जहां तक मुझे याद है स्थानीय नेता हरक सिंह रावत और सुशील रावत इसके लिए प्रयत्नशील थे।

बजवाड़ से यात्रा माल गांव पहुंची, लोगों ने बताया कि जिस घर में कांग्रेस का सबसे बड़ा झंडा लगा होगा, वही घर राम सिंह राणा का है। यहां खाना खाते वक्त एक दिलचस्प, मगर सही किस्सा सुनने को मिला। मजराम हवलदार जी का। असोटी गांव की मज राम जी के भाई हवलदार थे, उनकी पोशाक पहनकर मजराम जी सभी सभाओं आदि में जाते थे। सैन्य सेल्यूट देना उनका प्रिय संगल था। हवलदार भाई थे, मगर सोच के हवलदार मज राम जी थे। इलाके भर में प्रसिद्ध थे। यहां से यात्रा माल गांव पहुंची। लोगों का उत्साह देखने लायक था। शाम ढल रही थी, मगर गांव वासी यात्रा से जुड़ते जा रहे थे। चलते माइक से मैं कुछ कहता था, लोग नारे लगाते थे। यात्रा बागा खेत होकर सुनाऊं, तुगेश्वर खाल गांव होते लोल्टी गांव की सड़क में पहुंची, सभी स्थानों में मीटिंग करते-करते रात 10 बज गए।

हम लोग लोल्टी पहुंचे, चाय-नमकीन आदि से रास्ते भर खातिरदारी होती रही। सोनिया गांधी जिंदाबाद, कांग्रेस पार्टी जिंदाबाद के नारों के मध्य हम लोग अपने आप को जिंदाबाद मान रहे थे। बागा खेत की शेर सिंह जी बहुत याद आ रहे हैं, कितना नाच रहे थे। गांव -गांव में कांग्रेस बन रही थी, हमारी उम्मीदें परवान चढ़ रही थी। देहरादून व दिल्ली में नेता कुछ और सोच रहे थे। रात 10 बजे हम सड़क पर पहुंचे। यात्रा के साथी थक चुके थे, मगर जोश की कमी नहीं थी। मैंने सभा को धन्यवाद देकर यात्रा को समाप्त किया। अगली यात्रा की रूपरेखा बनाने लगा।

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