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वित्तमंत्री प्रकाश पंत राज्य को आर्थिक बदहाली से निकालने के लिए जूझ रहे हैं। उनसे विशेष बातचीत

आपने पहली बार सरप्लस बजट पेश किया है। जबकि बजट के आंकड़े बताते हैं कि सरकार को पिछले वर्ष आमदनी कम हुई है। अपना ही राजस्व सरकार पूरा प्राप्त नहीं कर पाई है, तो बजट के सरप्लस होने का अनुमान किस आधार पर है?
पहली बात यह है कि हमने सरप्लस बजट पहली बार नहीं, बल्कि तीसरी बार पेश किया है। हमारे टोटल कितने रिसोर्सेज हैं और हमारा कितना व्यय होगा, इसके आधार पर ही सरप्लस बजट तय होता है।

राज्य पर हर वर्ष कर्ज बढ़ता ही जा रहा है। एक अनुमान है कि इस वर्ष 56 हजार करोड़ का कर्ज प्रदेश पर हो जाएगा। सरकार कर्ज लेकर अपना काम चला रही है। ऐसा क्यों हो रहा है?
इन 18 वर्षों में जो कर्ज लिया गया है उसकी विधिवत अदायगी है, वह जाती है। हमारी ऋण की सीमा एफआरबीएमसी एक्ट के तहत 8 हजार करोड़ तय है उससे अधिक हम नहीं जाएंगे, ओैर जो हमारा ऋण होगा, वह हमारा प्रोडक्टिव ऋण होगा। जो हम योजनाओं को बनाने के लिए लेते हैं। विशेष राज्य के दर्जे के फलस्वरूप हमको यह सुविधा है कि हमें भारत सरकार से 90 फीसदी अनुदान मिलता है। दस प्रतिशत लंबी अवधि का ऋण मिलता है। वही ऋण की सीमा निर्धारित है।

प्रदेश सरकार तीन प्रतिशत जीडीपी के अनुसार ऋण लेती है। सरकार का दावा है कि इन्वेस्टर समिट के बाद राज्य में 10 हजार करोड़ का निवेश होना आरंभ हो गया है। इससे राज्य की ग्रोथ बढ़ेगी और जीडीपी में इजाफा होगा। तो क्या अब सरकार बढ़ी हुई जीडीपी के हिसाब से ऋण लेगी, जबकि 10 हजार करोड़ का निवेश पूरी तरह से धरातल पर नहीं उतरा है?
एफआरबीएमसी एक्ट के तहत हमारी सीमा का निर्धारण होता है। हम उससे नीचे ही जा सकते हैं, ऊपर नहीं।

सरकार के बजट के आंकड़े कहते हैं कि वह पिछले वित्त वर्ष में अपना ही राजस्व पूरा नहीं वसूल पाई है। तकरीबन 3600 करोड़ कम राजस्व प्राप्त हुआ है। दूसरी तरफ सरकार कर्मचारियों के तीन प्रतिशत मंहगाई भत्ते बढ़ा रही है। जिससे एक वर्ष में तकरीबन 4680 करोड़ का बोझ सरकार पर पड़ेगा। फिर ऐसा किस आधार पर सरकार कर रही है?
जो कमीटेड लाईबिलिटीज होती हैं, वह सरकार को देनी ही पड़ती हैं। हम इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। जो व्यवस्था है हम उसी के तहत कर रहे हैं। हम कहीं बैंक करप्ट नहीं हुए हैं। सबको वेतन दिया है। सब भुगतान समय पर सरकार कर रही है। हमारे संसाधन लगातार बढ़ रहे हैं। हमारा नॉन टैक्स रेवन्यू लगातार बढ़ रहा है। अपने टैक्स रेवन्यू में 91 प्रसेंट ग्रोथ लेकर हमने जीएसटी जमा किया है। एसजीएसटी जो राज्य सरकार का होता है उसमें अवश्य ग्रोथ फॉल है जिसको मेंटेन करने के लिए हम लगातार उपाय कर रहे हैं।

कितना नुकसान जीएसटी से राज्य को हुआ है। कोई आंकड़ा बता सकते हैं?
इसे नुकसान नहीं कह सकते। हमने 91 प्रसेंट की ग्रोथ ली है। पहले जहां हम 7 हजार करोड़ के लगभग टैक्स ला रहे थे वहीं आज हम 12 से 13 हजार करोड़ के आस-पास ला रहे हैं। हम तो ग्रोथ पर हैं और इसी ग्रोथ के आधार पर हम डेवलपमेंट की योजनाएं चला पा रहे हैं।

राज्य सरकार ऑल वेदर रोड के निर्माण में वन भूमि का मुआवजा जो कि आठ सौ करोड़ से ज्यादा का है, उसे छोड़ने की दरियादिली क्यों दिखा रही है?
ऑल वेदर रोड के तहत केंद्र सरकार प्रदेश में 22 हजार करोड़ खर्च कर रही है। राज्य सरकार का भी दायित्व होता है कि वह केंद्र की योजनाओं के लिए भूमि उपलब्ध करवाए। हमारे पास वन भूमि है। हमने जो पेसा वन विभाग को देना है उसको हमने वन विभाग को एडजेस्ट किया है। ऐसा तो नहीं है कि हमने वह पैसा किसी इंडीविजुअल के खाते में डाल दिया है। भारत सरकार हमको 22 हजार करोड़ दे रही है। अगर हम 860 करोड़ रुपया वन विभाग के खाते में दे रहे हैं तो वह कोई नुकसान का विषय नहीं है। यह निर्णय राज्य के हित में और राज्य की अवस्थापना को बढ़ाने वाला निर्णय है।

राज्य में विभागों द्वारा शासन और वित्त विभाग को बाईपास करके सीधे मुख्यमंत्री स्तर पर फाइलों का निस्तारण किया जा रहा है। इस पर राज्य के मुख्य सचिव को सभी विभागों के लिए कड़ा पत्र तक जारी करना पड़ा है। क्या राज्य में फाइलों और योजनाओं का निस्तारण राजनीतिक स्तर पर किया जा रहा है या शासकीय स्तर पर। मुख्य सचिव इसे बड़ा गंभीर मामला बता रहे हैं?
देखिए, प्रशासकीय विभाग का मंत्री होने के नाते जिन विभागों का नियंत्रण माननीय मुख्यमंत्री जी के पास है, उन विभागों की फाइलों पर मुख्यमंत्री जी के दस्तखत होते हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि सीधे मुख्यमंत्री से हस्ताक्षर करवा लिए गए। दरअसल, यह नहीं माना जाता है कि वह माननीय मुख्यमंत्री जी के हस्ताक्षर हैं, बल्कि वह हस्ताक्षर प्रशासकीय विभाग के मंत्री होने की हैसियत से माने जाते हैं। यह परंपरा है और यही प्रक्रिया है।

अभी हाल ही में खुलासा हुआ है कि वन विभाग ने लाखों रुपए खर्च करके देहरादून में कैक्टस पार्क का निर्माण किया है। जिसके लिए शासन स्तर तक कोई अनुमति नहीं ली गई है और न ही वित्त विभाग से। इसे आप कैसे सही कहेंगे?
देखिए, वन विभाग के अंतर्गत दो मद हैं। एक तो कैम्पा का मद है जिसमें भारत सरकार धनराशि देती है। कैम्पा के आधार पर वन विभाग उसको प्रदेश में जो हाई पावर कमेटी है, के निर्देश प्रोजेक्ट के आधार पर खर्च करती है। दूसरा जो अन्य बाहय सहायतित योजनाएं हैं जैसे जायका आदि, उनका व्यय वह खुद करते हैं। जो विभागों के माध्यम से अपव्यय करने वाला विषय है, वह ऐसा विषय नहीं है।

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