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गवाहों के बयान बदलने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं। लेकिन उत्तराखण्ड में तो एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसमें गोली लगने से बचा शख्स ही मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए अपने बयान से पलट गया। मनोज बोरा नामक यह शख्स ‘दि संडे पोस्ट’ से जुड़ा रहा है। कहा जा रहा है कि बयान बदलने और केस वापस लेने के लिए उस पर जबर्दस्त दबाव था। आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण होने के कारण मनोज दबाव में आ गया। यह भी चर्चा शुरू हो चुकी है कि इस मामले में मनोज के साथ मोटा लेन-देन हुआ
गवाहों के पलटने का पुराना इतिहास रहा है। लेकिन उत्तराखण्ड के हल्द्वानी में एक मामला ऐसा आ रहा है जिसमें उस व्यक्ति पर बयान बदलने का आरोप है जिस पर जान लेने की नीयत से गोली चलाई गई। हालांकि किस्मत से वह बच गया। जी हां बात हो रही है पत्रकार मनोज बोरा की।
6 माह पूर्व मनोज बोरा पर हल्द्वानी में उस समय हमला हुआ था जब वह ‘दि संडे पोस्ट’ के राज्य प्रभारी दिव्य प्रकाश सिंह रावत की स्कॉरपियो गाड़ी लेकर अपने घर जा रहा था। उस दिन रावत खुद गाड़ी नहीं चला रहे थे। बताया जाता है कि हमलावरां ने गोली यह सोचकर चलाई थी कि गाड़ी दिव्य प्रकाश रावत की है। दिव्य को टारगेट करते हुए चलाई गई गोली लगने के बाद मनोज बोरा को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कई दिनों तक वह अपना इलाज कराता रहा। तब प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से लेकर नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश गंभीर रूप से घायल मनोज बोरा का हाल चाल जानने अस्पताल पहुंचे थे।
इस मामले में मनोज बोरा ने मुखानी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। जिसमें कहा गया कि 25 मार्च को जब वह विठोरिया नंबर वन शक्ति विहार स्थित अपने घर जा रहा था तो घर पहुंचते ही गाड़ी से उतरते समय दो लोगों ने उसे गोली मार दी। गोली उसके पैर में लगी थी। गोली मारने से पहले हमलावरां ने उसको बातों में लगाया था। किराए के कमरे की बाबत पूछा और फिर गोली चला दी थी। इसके कुछ दिन बाद ही पुलिस ने मनोज बोरा पर हमला करने वाले दो लोगों को गिरफ्तार किया था। जिनमें एक का नाम नीरज जोशी था तो दूसरे का नाम राहुल श्रीवास्तव बताया गया। पुलिस ने दोनों आरोपियों को जेल भेज दिया। इसके बाद जब मनोज बोरा अस्पताल से ठीक होकर घर आया तो उसने मजिस्ट्रेट के समक्ष कलमबद्ध बयान दिए। जिसमें उसने गोली लगने की सारी दास्तां कही। इसी के साथ हमलावरों के भी बयान दर्ज कराए गए। मजिस्ट्रेट के सामने उन्होंने बयान दिया था कि उन्होंने सतीश नैनवाल के कहने पर मनोज बोरा को गोली मारी थी। साथ ही उन्होंने बताया था कि सतीश नैनवाल ने उन्हें दिव्य प्रकाश रावत की सुपारी दी थी। लेकिन उस दिन दिव्य की गाड़ी में मनोज बोरा था। जिसके चलते मनोज बोरा उनकी गोली का शिकार हुआ।
इसके बाद पुलिस ने मनोज बोरा को जेल में ले जाकर मजिस्ट्रेट के सामने बकायदा शिनाख्त कराई। बोरा ने जेल में दोनों आरोपियों की पहचान करते हुए बताया कि इन्होंने ही उसे गोली मारी थी। इसके बाद मनोज बोरा ने जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को 4 मई 2019 को एक पत्र लिखकर अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई थी। साथ ही बोरा ने कहा था कि उस पर समझौता करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इसी के साथ दिव्य प्रकाश रावत ने भी प्रदेश के पुलिस विभाग को पत्र लिखकर सुरक्षा की गुहार लगाई थी। बाद में यह मामला सीबीसीआईडी के हवाले कर दिया गया।
फिलहाल इस मामले में दिलचस्प मोड़ आ गया है। सीबीसीआईडी के सम्मुख मनोज बोरा ने यह कहकर सबको चांका दिया है कि उसने एफआईआर दर्ज नहीं कराई थी, बल्कि उससे एक कोरे कागज पर साईन कराए गए थे। बोरा ने कोरे कागज पर साईन कराने वाला ‘दि संडे पोस्ट’ के तराई प्रभारी संजय स्वार को बताया है। जबकि संजय स्वार का कहना है कि उन्होंने एफआईआर के लिए जो पत्र लिखा वह मनोज बोरा के कहने पर ही लिखा था। स्वार का यह भी कहना है कि क्योंकि मनोज बोरा उस समय कुछ लिखने की स्थिति में नहीं थे। इसके चलते उन्होंने जो कुछ बोला उसे उन्होंने हूबहू लिखा। जिस पर बाद में मनोज बोरा ने अपने साईन किए। इसके बाद उस पत्र को पुलिस को दिया गया। पुलिस ने उसके आधार पर ही एफआईआर दर्ज की।
4 मई 2019 मनोज द्वारा एसएसपी नैनीताल को लिखा गया पत्र जिसमें आरोपियों द्वारा समझौते का दबाव बनाने की बात कही थी

हालांकि छह माह बाद मनोज बोरा अपने पूर्व के बयानों से पलट गया है। अपने बयानों से वह क्यों मुकरा? इसके पीछे क्या वजह रही यह तो वह ही जाने। लेकिन बताया जा रहा है कि मनोज बोरा आरोपियों के दबाव में आ गया। जिसका कि उसने पुलिस कप्तान को पत्र लिखते समय पूर्व में जिक्र किया था। हालांकि चर्चा यह भी है कि इस मामले में मोटा लेन-देन हुआ है। गौरतलब है कि मनोज बोरा पूर्व में मीडिया के सामने कह चुका है कि उसको बयान बदलने और केस वापस करने के लिए उसके परिवार पर दबाव बनाया जा रहा है। इससे लगता है कि आरोपी बोरा पर दबाव बनाने की राजनीति में सफल हो गए हैं।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि इस मामले के अन्य दो गवाह बृजेश कुमार और पंकज जोशी भी हैं। जबकि तीसरे गवाह दिव्य प्रकाश रावत भी हैं। तीनों ने आरोपियों पर उन पर दबाव बनाने की बात कही है। हालांकि बयान बदलना इतना आसान भी नहीं है। मजिस्ट्रेट के समक्ष एक बार 164 के बयान होने के बाद वह कानून की किताब में बकायदा दर्ज हो जाते हैं। अगर भविष्य में गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं तो उन पर धारा 182 के तहत कानूनन कार्यवाही की जाती है। इसके तहत छह माह की सजा का प्रावधान है।
  • गुजरात में आरटीआई एक्टीविस्ट और पर्यावरणविद् अमित जेठवा की 20 जुलाई 2010 को गुजरात हाईकोर्ट के बाहर हत्या कर दी गई थी। अमित जेठवा मर्डर ट्रायल के दौरान 195 में से 105 गवाह अपने बयान से मुकर गए थे।
  • 22 नवंबर 2012 को चंडीगढ़ के सेक्टर-21 में सड़क किनारे एक लड़की का शव मिला था। उसकी पहचान होशियारपुर निवासी ज्योति के रूप में हुई थी। इस हत्या के लिए पुलिस ने हिमाचल के विधायक राजकुमार चौधरी सहित एक दर्जन लोगों पर मामला दर्ज किया था। पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी। लेकिन पुलिस की चार्जशीट में शामिल दो लोगों ने बयान बदल दिए।
  • दिल्ली में जेसिका लाल की 1999 में एक रेस्तरां में हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में प्रमुख अभियुक्त मनु शर्मा था। इस मामले में 32 में से 26 गवाहों ने अपने बयान पलट लिए।
  • उत्तर प्रदेश के मोहम्मदाबाद से भाजपा विधायक रहे कृष्णानंद राय की नवंबर 2005 में हत्या हो गई थी। इस मामले में मुख्य आरोपी बसपा विधायक मुख्तार अंसारी और अन्य को बरी कर दिया गया क्योंकि सभी चश्मदीद और अहम गवाह अपने बयान से पलट गए।
  • गुजरात में 2005 में बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराज प्रजापति के इनकाउंटर मामले में पुलिस पर आरोप लगा कि इसमें गलत तरीके से लोगों का इनकाउंटर किया गया। इस हाईप्रोफाइल केस में कुल 86 गवाह थे। जिनमें से 60 गवाह अपने बयानों से मुकर गए।

बात अपनी-अपनी

अगर कोई झूठी सूचना देता है या पुलिस को गुमराह करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 182 के तहत मामला दर्ज किया जाता है। जिसमें छह माह की सजा का प्रावधान है। पुलिस ने मनोज बोरा गोलीकांड मामले में पहले दो लोगों को जेल भेजा, उसके बाद पुलिस की विवेचना में ही तीसरे आरोपी सतीश नैनवाल का नाम आया था। पुलिस ने बकायदा चार्जशीट भी लगाई है। चार्जशीट फाइल करने से पहले पुलिस ने मनोज बोरा का भी बयान दर्ज किया था।
दुष्यंत मैनाली, वरिष्ठ अधिवक्ता हाईकोर्ट नैनीताल
मनोज अस्पताल में लिखने योग्य नहीं था उसने यह घटना सबके सामने अस्पताल में संजय स्वार को कही। आज मनोज बोरा अपने बयानों से पलट रहा है। उसका कोई भी कारण हो सकता है। उस पर दबाव डाला गया हो या बयान बदलने के लिए लोभ दिया हो हमें न्यायालय पर पूर्ण विश्वास है। अगर मनोज बोरा सत्य के साथ नहीं खड़ा होता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
दिव्य प्रकाश रावत

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